नरेंद्र मोदी का गिरता और योगी आदित्यनाथ का बढ़ता ग्राफ…
भारतीय जनता पार्टी को साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला. करीब 15 साल बाद बीजेपी ने सत्ता में वापसी की थी.. सरकार का मुखिया कौन होगा यानी मुख्यमंत्री कौन बनेगा,, इस सवाल के जवाब में कई नाम सामने थे. लेकिन, फ़ाइनल मुहर लगी योगी आदित्यनाथ के नाम पर.. बहुत से लोगों के लिए ये फैसला एक ‘सरप्राइज़’ था. योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की रेस कैसे जीती,, ये सवाल आज तक पूछा जाता है,,, तब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अमित शाह ने भी कुछ साल पहले इसका ज़िक्र किया था, अमित शाह ने तब कहा था कि “जब योगी जी को मुख्यमंत्री बनाया तो किसी ने कल्पना नहीं की थी कि योगी जी मुख्यमंत्री बनेंगे. कई सारे लोगों के फोन आए कि योगी जी ने कभी म्युनिसिपलिटी भी नहीं चलाई. वास्तविकता भी यही थी. कि नहीं चलाई थी. योगी जी कभी किसी सरकार में मंत्री तक नहीं रहे.” अमित शाह के मुताबिक उस वक्त उनसे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुछ अलग सलाह दी गई थी, “योगी जी संन्यासी हैं, पीठाधीश हैं और इतने बड़े प्रदेश का आप उनको मुख्यमंत्री बना रहे हो.
“क्या कहती हैं राधिका रामाशेषन-
7 साल बाद स्थिति पूरी तरह बदल गई है. अब योगी आदित्यनाथ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराधिकारी तलाशने वालों की संख्या बढ़ती नज़र आ रही है,, ऐसे लोगों में सिर्फ़ योगी आदित्यनाथ के उत्साही समर्थक नहीं हैं. बीजेपी के कई कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक भी दावा करते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का कद पार्टी में अपने समकालीन नेताओं से काफी ऊंचा हो गया है… भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पर वर्षों से करीबी नज़र रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामा शेषन कहती हैं, “दिल्ली में अक्सर हमें दोनों का पोस्टर देखने को मिलता है, मोदी और योगी. योगी जी का स्टेटस पार्टी में दूसरे नंबर का हो गया है. उन्होंने सबको पीछे छोड़ दिया है.
“सवाल ये भी-
ऐसे में ये भी सवाल उठता है कि क्या योगी आदित्यनाथ को अब नरेंद्र मोदी की ज़रूरत नहीं है? इस सवाल का जवाब कई बातों से भी मिलता दिखाई देता है, योगी आदित्यनाथ का असर ज़मीन पर भी दिखता है. मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के पहले योगी आदित्यनाथ पांच बार लोकसभा के सांसद चुने जा चुके थे लेकिन कई विश्लेषक ये भी मानते हैं कि तब उनका प्रभाव क्षेत्र सीमित था… मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के कामकाज ने जिस यूपी मॉडल को खड़ा किया, उसकी चर्चा अब उसी तरह होती है जैसे साल 2014 के पहले बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और पार्टी के कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल का ज़िक्र करते थे.. योगी आदित्यनाथ ने अपना काफी प्रभाव छोड़ा है. मध्य प्रदेश और कर्नाटक में जब बीजेपी की सरकार थी तब वहां के नेता भी यूपी मॉडल का काफी ज़िक्र करते रहते थे.”
क्या कहते हैं ये राजनीतिक विश्लेषक-
‘योगी आदित्यनाथ. रिलीजन, राजनीतिक और पावर, द अनटोल्ड स्टोरी ‘ किताब के लेखक और उत्तर प्रदेश की राजनीति को कई दशक से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान दावा करते हैं कि आज की तारीख में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ दूसरे सभी नेताओं से आगे हैं.. वो कहते हैं, “जहां तक यूपी का सवाल है यहां नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा योगी आदित्यनाथ का असर है. नरेंद्र मोदी 2024 में जहां फिर से पहुंचना चाहते हैं, उसके लिए यूपी ज़रूरी है और योगी भी. इसमें कोई शक नहीं है कि योगी आदित्यनाथ ने अपने आपको जिस तरह से आगे बढ़ाया है, वो काबिले तारीफ है.”
गुजरात मॉडल की तर्ज पर है यूपी मॉडल-
योगी आदित्यनाथ और यूपी मॉडल एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं.. लेकिन ‘यूपी मॉडल’ है क्या ? योगी जी का यूपी मॉडल है कानून व्यवस्था और विकास.. साथ में हिंदुत्व का तड़का. यानी हिंदुत्व के तड़के के साथ विकास और कानून व्यवस्था पर फोकस करना… नरेंद्र मोदी के ‘गुजरात मॉडल’ की ही तरह योगी आदित्यनाथ के ‘यूपी मॉडल’ में भी सबसे मुख्य बात हिंदुत्व है… जैसे गुजरात मॉडल का मेन फ़ीचर विकास, इन्फ्रा स्ट्रक्चर और आर्थिक उन्नति थी, तो यहां यूपी मॉडल में कानून व्यवस्था मुख्य स्तंभ है… विकास की बात उसके बाद आती है.. कानून व्यवस्था के मामले में योगी ने काफी प्रभाव छोड़ा है. मध्य प्रदेश और कर्नाटक भी यूपी मॉडल का काफी ज़िक्र कर रहे थे… वो कह रहे थे कि कोई क़ानून हाथ में ले या उल्लंघन करे तो एक ही उपाय है, ‘बुलडोजर चलना’… बुलडोज़र योगी आदित्यनाथ की सरकार का एक सिंबल बन गया है. हालांकि, योगी आदित्यनाथ के इस ‘यूपी मॉडल’ को लेकर आलोचक लगातार सवाल उठाते रहे हैं.. योगी आदित्यनाथ की अभी मेन USP क्या है, जिसे दूसरे लोग भी कॉपी कर रहे हैं, खासकर बीजेपी शासित राज्य चाहे मध्य प्रदेश हो या असम वाले मुख्यमंत्री,, किसी ने कुछ गड़बड़ की, भले ही वो प्रूफ नहीं हुआ हो, केस चल रहा हो, ये कहते हैं कि उसे बुलडोज़ कर दो. बकायदा ऐसी भाषा बोलते हैं. ये क़ानून के मुताबिक नहीं है.. अगर आप देश के कानून को ताक पर रखकर अपना क़ानून चलाएंगे तो कुछ दिन तो अच्छा लगेगा लेकिन जब गाज आम आदमी पर गिरने लगेगी तो फिर लोग इस पर भी सवाल उठाने शुरू करेंगे। योगी आदित्यनाथ ने अपना एक प्रोफ़ाइल बना लिया है कि भई ये है सॉलिड आदमी, ये तुरंत तय करता है, योगी आदित्यनाथ ने प्रचार के जरिए तरक्की की है. मोदी का मॉडल फोलो किया है,
अपने तौर पर ही करेंगे काम- योगी
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र सिंह कहते हैं कि आलोचक भले ही कुछ भी कहें. योगी आदित्यनाथ का मॉडल एक ख़ास तरह से ही काम करता है.. राधिका रामाशेषन कहती हैं कि योगी आदित्यनाथ के यूपी मॉडल में एक और ख़ास बात है जो बीजेपी शासित किसी और राज्य में दिखाई नहीं देती… और वो है कि योगी आदित्यनाथ अन्य बीजेपी नेताओं की तरह केंद्र की हर बात आंख मूंदकर नहीं मानते.. 2017 में मुख्यमंत्री पद के लिए मोदी जी की पहली पसंद मनोज सिन्हा माने जाते थे. केशव प्रसाद मौर्य जैसे कुछ और नाम चल रहे थे.. लेकिन अंत में योगी सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे.. नोट करने वाली बात है कि पहले दिन से उन्होंने ये सिग्नल भेजा कि वो दिल्ली से निर्देश और आदेश नहीं लेने वाले हैं.. वो खुद अपने तौर पर ही राज चलाएंगे.. भले ही ये दिल्ली को पसंद न आया हो.. कई ऐसे उदाहरण हैं जब दिल्ली और लखनऊ के बीच में टेंशन हुई है.. ” उसका नजारा इस बात से दिखाई देता है, जब “अरविंद शर्मा गुजरात में मोदी जी के पसंदीदा अधिकारी थे. उन्होंने इस्तीफा दिया और उन्हें MLC बनाया गया.. बहुत प्रयास हुआ कि 2022 विधानसभा चुनाव के पहले उन्हें मंत्री बनाया जाए.. ख़बर यहाँ तक आयी कि उनके लिए एक बंग्ला भी कालिदास मार्ग पर देखा गया था, लेकिन योगी जी अड़े रहे और उन्हें अपने मंत्रिमंडल में नहीं लिया. अभी वो मंत्री हैं लेकिन उनकी ज़्यादा चर्चा नहीं है. केशव प्रसाद मौर्या भी समानांतर खड़ा करने का प्रयास हुआ लेकिन वो भी सफल नहीं हो पाए हैं. “
एक बड़ा वर्ग बीजेपी के साथ जुड़ा है-
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान दावा करते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने आज “ऐसी पोजिशनिंग कर ली है कि वो अपनी ही पार्टी में कई लोगों की आंख का कांटा बन गए हैं.. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि योगी आदित्यनाथ के मॉडल में एक और बात है जो उन्हें मौजूदा दौर के दूसरे नेताओं से अलग करती है…योगी आदित्यनाथ के आलोचक उन्हें एक ख़ास जाति का समर्थक बताते हैं लेकिन ये आरोप का उनके राजनीतिक ग्राफ पर असर होता नहीं दिखता.. इसकी वजह है,, उनका भगवा परिधान.. वो गोरक्षनाथ पीठ के पीठाधीश्वर हैं. वो भले ही सवर्ण हैं लेकिन उस पीठ की Following पिछड़ों में काफी है. दूसरे भगवा वेश की वजह से पिछड़े नेतृत्व की बात डाइल्यूट हो जाती है.. फिर यूपी में अब मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह के कद का कोई पिछड़ा नेता भी नहीं है. मायावती का दलितों में आधार घट रहा है.”यूपी में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान से ही ओबीसी और पिछड़ों का एक बड़ा वर्ग बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ है. बीजेपी उन्हें पद भी देती है, जैसे केशव मौर्या उपमुख्यमंत्री हैं. वो योगी आदित्यनाथ के भी साथ है.
उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में विपक्ष को हाशिए पर धकेलने वाले योगी आदित्यनाथ की अगली परीक्षा साल 2024 में लोकसभा के आम चुनाव के दौरान होगी.. तब नरेंद्र मोदी और बीजेपी के साथ विपक्षी दलों के लिए बहुत कुछ दांव पर होगा.. उस वक्त योगी आदित्यनाथ और उनका मॉडल बीजेपी के लिए कितना अहम होगा? इस सवाल पर पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, “कि योगी आदित्यनाथ ने support base सॉलिड बना लिया है. विपक्ष बिल्कुल कमज़ोर है.. अखिलेश यादव सॉफ्ट हिंदुत्व प्ले करने लगे हैं. ये भी योगी के हक में जाता है, जब आप दूसरे की पिच पर खेलेंगे तो कैसे जीतेंगे.”
योगी का सबसे बड़ा एडवांटेज–
वहीं, राजेंद्र सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में आगे भी बीजेपी मौजूदा रास्ते पर ही चलेगी… यूपी में कोई बड़ी चुनौती बीजेपी के सामने नहीं है.. 2019 का आपको ध्यान है, तब सपा बसपा और आरएलडी का गठबंधन था लेकिन बीजेपी बहुत आगे रही.” राजेंद्र सिंह कहते हैं, “सरकार बनी तो मोदी पीएम होंगे. योगी आदित्यनाथ भी उनका गुणगान करते हैं. जब कभी मोदी हटेंगे तब सवाल भले उठ सकता है..
यूपी के अंदर विधानसभा में योगी नंबर वन हैं, लेकिन लोकसभा के लिहाज से अभी भी शायद मोदी नंबर वन हैं.. 2024 में अगर बीजेपी को पहले से ज्यादा सीटें मिली तो मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे, थोड़ा कम भी हो तो भी मोदी होंगे. योगी आदित्यनाथ अगर अपना दावा पेश भी करते हैं तो किन परिस्थितियों में करेंगे,, ये देखना होगा,, योगी आदित्यनाथ अभी सिर्फ़ 51 साल के हैं और ये उनका एडवांटेज है.