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13 नंबर वाला पास.. 80 नंबर वाला फेल, क्या ये है भाजपा सरकार का नया खेल…

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भर्ती घोटालों पर बेरोजगार युवाओं ने सरकार के खिलाफ  मोर्चा खोला और साफ सुथरे तरीके से परीक्षा करवाने सहित सीबीआई जांच की मांग की,बेरोजगारों के हल्ला बोल से डरी सरकार ने सीबीआई जांच की बात तो की पर अभी तक पांच महिने बित जाने के बाद भी मानी नहीं.  लेकिन बेरोजगार युवाओं की बुलंद आवाज का ये असर जरूर पड़ा कि सरकार को भर्ती परीक्षाओं की जांच करनी पड़ी, उसमें वो सफल कितनी हो पायी ये कहना तो मुश्किल है मगर सरकार को एक नकल विरोधी कानून बनाना पड़ा,, हालांकि ये कानून कितना कारगर साबित होगा ये अभी भविष्य के गर्त में है.. लेकिन छात्रों के आंदोलन से ये फर्क जरूर पड़ा कि हाकम सिंह जैसे कई नकल माफिया जेल की सलाखों के पीछे पहुंचे और नकल माफियाओं की थोड़ी सी कमर जरुर टूटी और उसके बाद हुई परीक्षाओं में कई मेहनती छात्रों का चयन हुआ जो इससे पहले देखने को प्रदेश में कभी मिला नहीं था।

 

धामी सरकार पर खड़े हो रहे सीधे सवाल-

लेकिन क्या सिर्फ इतने भर से नियुक्तियों में धांधलियां रुक गयी ? जिस तरह विधानसभा भर्ती घोटाले में सामने आया कि इस उत्तराखंड राज्य के कई राजनेताओं ने अपने करीबियों को बिना किसी मानक के नियुक्ति दे दी,, अब ऐसा ही एक और मामला सामने आया है जिसमे फिर से प्रदेश की पुष्कर सिंह धामी सरकार पर सीधे सवाल खड़े हो रहे हैं, इस बार तो मामला ऐसा सामने आया है की जिसमे किसी नकल माफिया का हाथ नहीं दिखाई देता बल्कि सीधे तौर पर सरकार ही इसमें सम्मलित होती प्रतीत हो रही है और इस पर सीधा सवाल मुख़्यमंत्री पुष्कर सिहं धामी पर ही उठते दिखाई देते हैं,, इस बार मुख्यमंत्री के खुद के ही विभाग में ऐसी नियुक्तियां हुई है जिसमें 80 नंबर वाला छात्र को तो बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है और 13 नंबर प्राप्त करने वाले को 5400 सौ ग्रेड पे पर नियुक्ति दे दी जाती है,, आरोप तब और मजबूत हो जाता है जब उनमे से एक खुद मुख़्यमंत्री के करीबी रहे पूर्व में कैबिनेट मंत्री की बेटी हो ,,,हमारे कुछ और बताने से पहले जरा आप इस वीडियो को देखें इसे देखकर सरकार की करनी और कथनी में अंतर साफ़ दिखाई देगा ….. लेकिन ये बात जरुर साफ करनी होगी की बेरोजगार संघ के द्वारा लगाए गए इन आरोपों की पुष्टि हम नहीं करते लेकिन अगर ये आरोप सही साबित होते  हैं तो किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के लिए ये एक बहुत बड़ा फेलियर माना जाएगा।

 

बेरोजगार संघ ने इंटरव्यू लेने के लिए बनाई कमेटी पर किए कई सवाल –

बॉबी पंवार जो की उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष हैं उन्होने सीधे तौर पर ये आरोप लगाए हैं कि कैबिनेट मंत्री चन्दनराम दास की बेटी को 13 नंबर रिटर्न में आने के बाद इंटरव्यू में उनको इतने नंबर मिल जाते हैं कि उनको नियुक्ति मिल जाती है, हालांकि चंदन राम दास अब इस दुनिया में नहीं हैं, उनकी कुछ समय पूर्व मृत्यु हो चुकी है, वो कैबिनेट मंत्री रहते हुए मुख़्यमंत्री धामी के काफी करीबी माने जाते थे यही कारण था कि उनको कैबिनेट में जगह दी गयी थी… बेरोजगार संघ ने इंटरव्यू लेने के लिए बनाई गयी कमेटी पर भी कई सवाल खड़े किये।

 

5 महीनों से धरना दे रहा है बेरोजगार छात्रों का संगठन- 

बेरोजगार संघ बेरोजगार छात्रों का वो संगठन जो हर अभाव में भारी बारिश और गर्मी के बीच पिछले 5 महीनों से देहरादून में टेंट में दिन-रात बैठकर धरना दे रहा है, और सिर्फ एक मांग कर रहा है कि भर्ती धांधलियों की सीबाई जांच की जाय, गौरतलब है कि इस आंदोलन में कई छात्रों को जेल भी जाना पड़ा है, ये सभी बेरोजगार अपने भविष्य की परवाह किये बगैर दिन- रात लगातार आंदोलनरत हैं लेकिन सरकार न तो उनकी मांग मान रही है और न कोई उनको मिलने आया है,और न मुख़्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उनको मिलने का समय दिया है।
बेरोजगार संघ का आरोप हैं कि मुख़्यमंत्री ने खुद परीक्षा कैलेंडर खत्म होने के बाद सीबीआई की बात कही थी,अब परीक्षाएं निपट चुकी हैं तो अब क्यों सीबाई की जांच नहीं हो रही हैं,बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार आरोप लगाते हैं कि सीबीआई जांच के न करवाने के कई कारण हैं,इनमे से एक उनके द्वारा उठाये अलग-अलग मुद्दे हैं,,  एक अधिकारी  जिन पर खुद मुख़्यमंत्री  ने जांच की बात की थी उनका खुद सरकार सेवा विस्तार कर रही है,जबकि दूसरे खुद मुख़्यमंत्री धामी के सयुक्त सचिव संजय टोलिया हैं जो जनजाति कल्याण विभाग के डारेक्टर पद पर आसीन हैं जबकि वो इस पद के कोई भी मानक पुरे नहीं करते,बॉबी पंवार का आरोप है कि मुख़्यमंत्री के ख़ास होने के कारण उन पर कोई कारवाही नहीं की जा रही है जबकि मुख़्यमंत्री ने खुद उन पर कारवाही का बात कही थी।

 

कंपनी में किसके शेयर हैं इसकी जांच होनी चाहिए- बेरोजगार संघ

सरकार अपने लोगों पर मेहरबानियाँ कैसे करती हैं इसका सीधा-सीधा और ताजा उदहारण ये हैं कि आउटसोर्स से नियुक्तियां करने का ठेका एक ऐसी कम्पनी को दिया जाता है जो कंस्ट्रक्शन यानी बिल्डिंगें बनाने का काम करती है,उनको अगर बिल्डिंग बनाने काम सरकार देती तो शायद लगता कि योग्यता के अनुसार काम दिया गया है,और इन नियुक्तियों का जिम्मा किसी आयोग को दिया जाता जो इस काम को हमेशा से करते आये हैं,लेकिन ये उत्तराखंड की सरकार है जनाब यहां कुछ भी मुमकिन है,,,बेरोजगार संघ का ये भी आरोप हैं कि इस कम्पनी में किसके शेयर हैं इसकी भी जांच होनी चाहिए।

 

बेरोजगार संघ का एक और बड़ा खुलासा-

बेरोजगार संघ ने एक और बड़ा खुलासा किया है,उनके मुताबिक़ 2015 की दरोगा भर्ती धांधली सामने आने के बाद 20 दरोगाओं को तो निलंबित कर दिया गया था जबकि 100 की जांच चल रही है,ये जांच कहाँ तक पहुंची ये भी स्पष्ट नहीं है बल्कि इस जांच को दबाने के लिए एक थ्री स्टार वाले दरोगा को लगाया गया है जिसको कहा गया है कि इन सभी दरोगाओं से 5 -5  लाख रूपये लेकर जांच को डंप किया जाय ? ये वो तमाम आरोप हैं जो बेरोजगार संघ ने सरकार पर लगाए हैं और यदि ये आरोप सच हैं तो निश्चित रूप से धामी सरकार पर गंभीर सवाल उठते हैं,बेरोजगार संघ के आरोपों के बाद अब सरकार का क्या रुख रहेगा, ये आने वाला वक्त बताएगा। मगर फिलवक्त इन आरोपों से धामी सरकार की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है।

टूट जाएगा गरीब बच्चों की पढ़ाई का सपना ? “शिक्षा के बढ़ते निजीकरण के आगे घुटने टेकती सरकार”

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कुछ समय पहले  धामी कैबिनेट ने शिक्षा को लेकर एक फैसला किया इस फैसले से जहां छात्र फेल होने से बच पाएंगे,साथ ही मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृति देने का प्रस्ताव भी पास किया है,लेकिन इससे बड़ी एक और चीज शिक्षा के लिए जरूरी है जहां ध्यान देना सबसे अधिक जरूरी है और वो है प्रदेश की शिक्षा के बुनियादी ढांचे को सुधारना जिसको शायद प्रदेश के मुख़्यमंत्री और शिक्षा मंत्री भूल चुकें हैं। ..आज हम आपको इस से जुड़ी पूरी रिपोर्ट बताते है।इस प्रदेश के शिक्षा से जुड़ें कुछ ऐसे तथ्यों को आपके सामने रखेंगे जो आपके पैरों से जमीन खिसखा देंगे, खासतौर पर मध्यमवर्गीय उन अभिवाहकों जो अपना पेट काटकर अपने बच्चों के भविष्य सवारने में जुटे है,आज की रिपोर्ट में आपको बताएंगे कि किस तरह शिक्षा जिसको सबका अधिकार माना जाता है उसको हासिल करना धीरे-धीरे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए मुश्किल हो रहा है, आज बात उत्तराखंड की शिक्षा से जुड़ें उन  अहम बिंदुओं पर जिनका अभी असर ही सही लेकिन आने वाले समय में अगर ऐसा ही चलता रहा तो लगभग प्रदेश के अधिकतर लोगों पर पड़ने वाला है.

 

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उत्तराखंड में स्कूलों की छात्रसंख्या बढ़ाना हमेशा शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है. अब महकमे ने शायद इस मामले पर हाथ खड़े कर लिये हैं. शायद इसीलिए राज्य के 3000 स्कूलों को जल्द ही बंद करने की तैयारी की जा रही है. यह वह स्कूल है जहां पर लगातार छात्र संख्या कम हुई है. बेहद कम छात्र संख्या के चलते यह स्कूल अब शिक्षा विभाग को बोझ लगने लगे हैं. उत्तराखंड शिक्षा विभाग में करोड़ों का बजट और लोक लुभावनी स्कीम भी सरकारी स्कूलों में बच्चों को लाने के लिए नहीं लुभा पा रही है.पर्वतीय क्षेत्रों में 5 और मैदानी क्षेत्रों में 10 या इससे कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को बंद कर इन स्कूलों के बच्चों को नजदीक के उत्कृष्ट स्कूलों में भेजा जाएगा. राज्य में 10 या इससे कम छात्र संख्या वाले करीब तीन हजार स्कूल हैं.

सवाल ये उठता है कि आखिर ये नौबत आ क्यो गयी,आखिर क्यों सरकारी स्कूलों से लोगों का मोह भंग हो रहा है ? उत्तराखंड में हर साल औसतन 41 नए स्कूल खुल रहे हैं ये आंकड़ा देख लगता है कि प्रदेश की शिक्षा अच्छे ढर्रे की ओर जा रही है लेकिन अगले ही आंकड़े पर नजर पड़ते ही कई सवाल पैदा हो जाते हैं,41 नए स्कूल खुलने के साथ ही उसके दोगुने से ज्यादा बंद भी हो रहे हैं ये भी सालाना औसत लगाएं तो 112  विद्यालय बंद भी हो रहे हैं

 

इनफार्मेशन सिस्टम  एजुकेशन प्लस (UDISE+) 2019-20 में उपलब्ध जानकारी के अनुसार उत्तराखंड राज्य मेंकक्षा 1 से 12 तक के कुल 16,741 सरकारी स्कूल हैं। यदि इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो उत्तराखंड राज्य में मात्र 6.4% स्कूलों में सुचारू रूप से इंटरनेट कनेक्शन है, मात्र 22.26%स्कूलों में सुचारु रूप से कंप्यूटर की सुविधा है,और 20% से भी ज्यादा ऐसे स्कूल हैं जहां सुचारु रूप से बिजली कनेक्शन नहीं है।

इन सभी सुविधाओं के अतिरिक्त राज्य में अभी भी 10% से ज़्यादा स्कूल ऐसे हैं जहां पीने के पानी की सुविधा नहीं है, 13% स्कूलों में लड़कों के लिये और 12% स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है, इन सभी आंकड़ों के अतरिक्त वर्ष 2018 में आयी एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) बताती है कि राज्य में 19.7% ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं जहां पर खेल का मैदान नहीं है।

शिक्षा क्षेत्र के लिए प्रकाशित होने वाली अधिकांश रिपोर्ट उत्तराखंडके स्कूलों की बदहाल स्थिति की ओर इशारा करती हैं। दिसम्बर 2021 में प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की ओर से जारी की गयी फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमरेसी इंडेक्स की रिपोर्ट उत्तराखंड राज्य में स्कूली शिक्षा की बदहाली को उजागर करती है,यह रिपोर्ट बताती है कि राज्य में मात्र 8% प्राथमिक स्कूल ही हैं जहां कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध हैं।दस साल से कम उम्र के बच्चों में साक्षरता दर को बताने वाली इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य ने शिक्षा के आधारभूत ढांचे में 64.89%, शैक्षणिक सुविधा की पहुंच में 39.94%, बेसिक हेल्थ में 64.44%, लर्निंग,आउटकम में 82.12% और गवर्नेंस में 44.6% अंक प्राप्त किये।

देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस राज्य बनने से अब तक बारी-बारी से सरकारें चला  चुकी हैं, लेकिन राज्य के सरकारी स्कूल आज भी बुनियादी सुविधाओं से कोसो दूर हैं।आज भी चुनाव के समय अच्छीशिक्षा के लिए जनता से वादे तो किये जाते हैं लेकिन राज्य के विद्यालयों की स्थिति के आंकड़े बताते हैं कि सरकारी स्कूलों पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते विद्यार्थिओं का नामांकन कम हो रहा है, और अंत में कम नामांकन के चलते स्कूल बंद कर दिया जाता है।

2012-13 में उत्तराखंड में कुल 12,499 राजकीय प्राथमिक विद्यालय और 2,805 राजकीय माध्यमिक विद्यालय थे जिनकी संख्या वर्ष 2019-20 तक घटकर क्रमशः 11,653 और 2,608 हो गयी। यदि जिलेवार इनकी संख्या देखें तो अल्मोड़ा में 130, बागेश्वर में 39, चमोली में 49, चम्पावत में 28, देहरादून में 57, हरिद्वार में 10, नैनीताल में 17, पिथौरागगढ़ में 130, रूद्रप्रयाग में 41 और टिहरी गढ़वाल में 180 सरकारी प्राथमिक विद्यालय पिछले 10 वर्षों में बंद हो चुके हैं।इस ही के विपरीत, मैदानी और पर्वतीय सभी जिलों में पिछले 10 सालों में निजी स्कूलों में बढ़ोतरी हुई है|

अभिभावकों का मानना है कि शिक्षा के लिए ज़रूरी सुविधाएँ जैसे कंप्यूटर, शिक्षकों की उचित संख्या, पीने के पानी की उपलब्धता, आदि सरकारी स्कूल की तुलना में निजी स्कूलों ज़्यादा अच्छी होती हैं।अगर सरकारी स्कूलों में भी अच्छी सुविधाएं सरकार उपलब्ध कराये तो हम या कोई भी व्यक्ति प्राइवेट स्कूलों में इतनी ज़्यादा फीस क्यों देना चाहेगा ?

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार प्रत्येक विद्यालय के लिए कुछ मानक निश्चित किये गये हैं। इन मानकों के अनुसार प्रत्येक विद्यालय के भवन में शिक्षकों के लिए एक कक्ष, बाधा मुक्त पहुंच, लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय, विद्यार्थिओं के लिए पर्याप्त और स्वच्छ पेयजल व्यवस्था, जिन विद्यालयों में मध्याह्न भोजन पकाया जाता है वहां रसोई; और एक खेल का मैदान का होना अनिवार्य है।

आज सरकार का रुझान निजीकरण की ओर बढ़ता जा रहा है,सरकारी तंत्र के पास साधन तो है लेकिन जनता के लिए काम करने की मंशा नहीं है इसी कारण आज सरकारी स्कूलों में अच्छे भवन तो हैं लेकिन जरुरी सुविधाएं नहीं हैं, उत्तराखंड राज्य में विद्यालयों की स्थिति के आंकड़े दिखाते हैं कि सरकारी स्कूलों पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते विद्यार्थियों का नामांकन कम हो रहा है, और अंत में कम नामांकन के चलते स्कूल बंद कर दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर राज्य में प्राइवेट स्कूलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार साल 2012-13 से लेकर साल 2019-20 तक प्रदेश में 846 राजकीय प्राथमिक विद्यालय और 197 राजकीय माध्यमिक विद्यालय बंद हो चुके हैं।लेकिन, इस दौरान निजी प्राथमिक-माध्यमिक विद्यालयों में काफी वृद्धि हुई है।साल 2012-13 में इन स्कूलों की संख्या 776 थी लेकिन साल 2019-20 में यह लगभग 280% बढ़कर 2197 हो गयी।

 

वहीं दूसरी ओर सरकार के द्वारा आरटीई के तहत निजी स्कूलों में एडमिशन को प्राथमिकता दी जा रही है,उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए निजी स्कूलों में सीट आरक्षित करने से ज़्यादा बेहतर है कि सरकार अपने सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाये। इस समय राज्य के निजी स्कूलों में करीब 90 हजार बच्चे आरटीई के तहत शिक्षा ले रहे हैंजिसका पिछले कुछ सालो में कुल खर्च 126 करोड़ रुपये तक आ चुका है। जो रुपये सरकार के द्वारा आरटीई के तहत निजी स्कूलों को दिये जा रहे हैं उनको सरकारी स्कूलों में जरुरी सुविधाओ को बेहतर बनाने के लिए खर्च किया जा सकता है। आज अधिकांश अभिभावक ना चाहते हुए भी अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं। इन अभिभावकों से बात करने परमालूम होता है कि यदि सरकारी स्कूलों में अच्छी सुविधाएँ मिलें तो ये लोग भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ना चाहेंगे। क्योंकि आज मंहगाई के इस दौर में निजी स्कूलों में भारी भरकम फ़ीस देना बहुत मुश्किल होता है।

इतना ही नहीं अब सरकार की नाकामी का इससे बड़ा क्या सबूत हो सकता है  कि उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद हालत में सुधार नहीं हुआ तो इन्हे गोद देने की तैयारी की जा रही है। सामर्थ्यवान सरकारी स्कूलों को गोद लेकर इनमें उचित संसाधन मुहैया कराएंगे। यही नहीं वह अपने माता-पिता या किसी अन्य स्वजन के नाम पर इन स्कूलों का नामकरण भी कर सकेंगे।शिक्षा विभाग की ओर से इसके लिए नीति बनाई जा रही है।गोद लेने वाले व्यक्ति के माता-पिता या किसी अन्य के नाम पर स्कूल का नामकरण किया जाएगा। इसके बदले संबंधित को स्कूल पर आने वाले कुछ खर्च वहन करने होंगे। विभाग की ओर से इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है,जिसे कैबिनेट में लाया जाएगा।ये हालात तब हैं जब 1100 करोड़ रुपये हर साल केंद्र सरकार की ओर से समग्र शिक्षा अभियान के तहत दिए जा रहे हैं।

शिक्षा का अधिकार कानून प्रत्येक बच्चे तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था, अब अगर इस तरह सरकारी स्कूल बंद किए जाएंगे तो एक बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित रह जाएगा, जिसकी जिम्मेदारी आखिर  लेगा कौन? क्योकि कोई भी सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नजर नहीं आती,  शिक्षा का होता निजीकरण एक दिन प्रदेश के अभिवाहकों को बड़ी मुश्किल में डालने वाला है, बंद होते सरकारी स्कुल और बढ़ते प्राइवेट विद्यालय के दौर में वो समय ज्यादा दूर नहीं जब जनता के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा और फिर वो  समय भी जल्द आ सकता है जब निजी स्कूलों के आगे सरकारों  को भी घुटने टेकने पड़ेंगे,तो फिर आम आदमी की क्या बिसात जो  टिक पाये ।