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उत्तराखंड के पलायन और बेरोजगारी को लेकर मील का पत्थर साबित हो रही ये योजना 

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उत्तराखंड में होता पलायन जिसकी सबसे बड़ी वजह है बेरोजगारी, उत्तराखंड में कई योजनाओं को लागू कर पहाड़ों में रोजगार पैदा करने की कोशिश की जा रही है, जिससे पलायन को रोका जा सके, आज के वीडियो में बात एक ऐसी ही योजना की करेंगे जो उत्तराखंड के कई बेरोजगार युवाओं के लिए वरदान साबित हुई, इस योजना के कारण कई युवाओं ने न केवल रिवर्स पलायन किया बल्कि आज खुद के साथ कई अन्य के रोजगार का माध्यम बने हैं,,,, उत्तराखंड के खाली होते गावों और छोटे शहरों में रहने वाली युवा पीढ़ी रोजगार की चाह में लगातार महानगरों की तरफ रुख करने को मजबूर हैं, जिस कारण पहाड़ और छोटे शहरों में लगातार पलायन होता जा रहा है,खासतौर पर युवाओं का प्रदेश छोड़कर जाना एक अच्छा संकेत नहीं है,,,

 

उत्तराखंड की सरकारों ने समय-समय पर कई योजनाओ को लागू किया है जिससे युवाओं को प्रदेश में ही रोजगार मिल पाए और पलायन थम सके, इन योजनाओ में सबसे कामयाब योजना रही होम स्टे योजना, जिसका असर आज धरातल पर दिख रहा है, इस योजना से जुड़े कई युवा न केवल वापस अपने गांव या शहर लौटे बल्कि आज खुद के रोजगार के साथ अन्य को भी रोजगार दे रहे हैं साथ ही उत्तराखंड पर्यटन उद्योग को भी खूब पंख लगा रहे हैं, उत्तराखंड में होमस्टे योजना का श्रेय पूर्व की त्रिवेंद्र रावत सरकार को जाता है,

उत्तराखंड में होमस्टे योजना की शुरुआत 20 अप्रैल 2018 को सीमावर्ती जनपद पिथौरागढ़ से पूर्व मुख़्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने की थी, इस योजना का मुख्य मकसद युवाओं को रोजगार देना और पलायन को रोकना था लेकिन देश में कोरोना काल के बाद अपने घर वापस लौटे बेरोजगार युवाओं के लिए ये रोजगार का एक अहम कदम साबित हुआ,कई युवाओं ने इस योजना के जरिये रोजगार शुरू किया,और अब तो ये योजना प्रदेश के युवाओं के लिए एक वरदान साबित हो रही है,इस योजना के लिए हर साल बड़ी संख्या में आवेदन हो रहे हैं,जबकि अब तक प्रदेश में हजारों होमस्टे संचालित हो रहे हैं,,,

पर्वतीय जिलों में होम स्टे से जुड़कर यहां के स्थानीय युवा स्वरोजगार को अपनाने के साथ ही पर्यटकों को उचित सेवा भी दे रहे हैं, जिससे उत्तराखंड के दुर्गम इलाकों के लोगों की आजीविका पर सुधार आया है और सीजन में स्थानीय लोग अच्छा रोजगार कमा रहे हैं. युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने और पहाड़ के गांवों से हो रहे पलायन को थामने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा होम स्टे योजना की शुरुआत की गयी थी, जिसमें पर्यटक स्थलों में स्थानीय लोग अपने ही घरों में देश-विदेश के पर्यटकों के लिए ग्रामीण परिवेश में साफ व किफायती आवास की सुविधा उपलब्ध करा सकते हैं. यहां पर पर्यटकों को स्थानीय व्यंजन परोसने के साथ ही उन्हें यहां की सभ्यता व संस्कृति से भी परिचित कराया जा रहा है, जो पर्यटक खूब पसंद कर रहे हैं.

 

होम स्टे योजना की अब तक की तस्वीर देखें, तो वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रदेश के सभी जिलों में 965 होम स्टे पंजीकृत हुए. आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा बढ़कर 3 हजार 964 पहुंच गया. पर्वतीय जिलों में भी ये आंकड़ा बढ़ा है, बात अगर पिथौरागढ़ जिले की करें जहां इस योजना की शुरुआत हुई थी , तो 2021-22 में 608 लोगों ने और 2022-23 में 103 लोगों ने अपने घरों को होम स्टे में बदलने के लिए पर्यटन विभाग में पंजीकृत किया, जिसमें सबसे ज्यादा धारचूला में 423 लोग अपना पंजीकरण करा चुके हैं. धारचूला सीमांत जिले का उच्च हिमालयी क्षेत्र भी है, जहां की खूबसूरती का दीदार करने पर्यटक पहुंच रहे हैं. उनके रुकने की सुविधा यहां के गांवों में होम स्टे के रूप में विकसित हो रही है. इस योजना के माध्यम से सिर्फ साल 2020 में ही 5 हजार होमस्टे विकसित किए गए थे। इससे प्रदेश में रोजगार के अवसर को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है और लोगों को कामकाज या कारोबार के लिए दूसरे राज्य में पलायन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

 

15 रुपये लीटर मिलेगा ! पेट्रोल के पीछे का पूरा सच…

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आज की तारीख में एक से बढ़कर एक बढ़िया माइलेज वाले वाहन आने के बावजूद जेब पर सबसे ज्यादा बोझ पेट्रोल-डीजल के रेट का ही पड़ता है. पेट्रोल-डीजल के रेट में कुछ पैसे की बढ़ोतरी भी सोशल मीडिया पर बड़ी चर्चा का सबब बन जाती है. पेट्रोल के रेट 100 रुपये प्रति लीटर के भी पार हैं, लेकिन यदि आपसे कहा जाए कि जल्द ही यह कीमत 15 रुपये प्रति लीटर हो जाएगी तो शायद आप यकीन भी नहीं करेंगे. कम से कम केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का तो यही दावा है कि जल्द ही पेट्रोल की लागत 15 रुपये प्रति लीटर के बराबर की होगी. हालांकि गडकरी का इस बात से मतलब असली पेट्रोल के दाम से नहीं था बल्कि वह कार या किसी अन्य वाहन को चलाने वाले ईंधन की लागत की बात कर रहे थे. गडकरी ने यह दावा राजस्थान के प्रतापगढ़ में एक कार्यक्रम के दौरान किया है.

 

 

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गडकरी ने कार्यक्रम में कहा, हमारी सरकार चाहती है कि किसान को अन्नदाता ही नहीं बल्कि ऊर्जादाता भी बनाया जाए. किसानों के तैयार एथेनॉल से गाड़ियां चलाने की तैयारी की जा रही है. हम चाहते हैं कि 60 फीसदी गाड़ियां एथेनॉल से चलें और 40 फीसदी बिजली से. इसकी लागत का औसत यदि देखेंगे तो यह पेट्रोल के 15 रुपये प्रति लीटर के भाव के बराबर बैठेगा.
 
 
 
गडकरी ने यह भी कहा कि किसान के ऊर्जादाता बनकर एथेनॉल उत्पादन करने से देश की जनता का भी भला होगा. पेट्रोल की कम कीमत से जनता का भला होगा. साथ ही इस ईंधन से गाड़ियों से निकलने वाला प्रदूषण भी कम होगा. देश में प्रदूषण घटेगा तो भी जनता का भला होगा. पेट्रोल का आयात कम होगा. अभी 16 लाख करोड़ रुपये का आयात हो रहा है. यह पैसा दूसरे देशों में जाने के बजाय किसानों की जेब में जाएगा. इससे किसानों के घर समृद्ध होंगे और रोजगार के मौके बढ़ेंगे.
 
 
 
बता दें कि एथेनॉल एक खास तरह का ईंधन है, जो गन्ने के रस समेत कई जैविक उत्पादों से तैयार किया जा सकता है. अभी सरकार गन्ने के रस और मक्का से एथेनॉल तैयार करा रही है. एथेनॉल ईंधन से प्रदूषण कम होता है. इस कारण सरकार धीरे-धीरे मौजूदा पेट्रोल में एथेनॉल मिक्स करने की मात्रा बढ़ा रही है. नितिन गडकरी पहले ही कह चुके हैं कि जल्द ही पूरी तरह एथेनॉल ईंधन से चलने वाली कार व अन्य वाहन बाजार में लाने का लक्ष्य वाहन निर्माता कंपनियों को दिया गया है. केंद्र सरकार ने साल 2022 में विश्व जैव ईंधन दिवस के मौके पर एक बड़ा एथेनॉल प्लांट चालू कराया था. यह प्लांट हरियाणा के पानीपत में बना है. इस 2G एथेनॉल प्लांट से हर साल तीन करोड़ लीटर एथेनॉल उत्पादन करने का लक्ष्य है.