अगर आपसे सवाल पूछा जाय कि बम धमाके से मारना हत्या है या कुछ और ? तो आपका जवाब क्या होगा ? शायद अधिकतर लोग इसको हत्या ही कहेंगे,लेकिन अगर इस सवाल को थोड़ा और घुमा कर कुछ इस तरह पूछा जाय जैसे जैसे की “‘A ‘ एक मेडिकल स्टोर में बम रख देता है और विस्फोट से पहले लोगों को बाहर निकलने के लिए 3 मिनट का समय देता है। ‘B ‘ जो गठिया का मरीज है, वह भागने में विफल रहता है और मारा जाता है। ऐसे में ‘A ‘ के खिलाफ आईपीसी की किस धारा के तहत केस दर्ज किया जा सकता है?” इस सवाल पर अब आपका जवाब क्या होगा ? निश्चित रूप से आप का सर घूम जायेगा और आप सोच रहे होंगे ये कैसा सवाल है ? तो आप बिलकुल सही सोच रहे हैं,,, ये कोई कल्पना या सिर्फ बोलने भर की बात नहीं है बल्कि ये सवाल सच में एक परीक्षा के दौरान पूछा गया,,कई छात्र इस सवाल से इतने परेशान हो गए कि उनकी समझ में कुछ आया ही नहीं,कि इसका जवाब क्या हो सकता है,,,इस सवाल से हैरान और असंतुष्ट छात्र कोर्ट पहुंच गए,कोर्ट में मामला सुनकर जज भी हैरान रह गए,आगे जो हुआ वो आपको चौंका देगा,,,
सवाल पर विवाद पहुंचा हाईकोर्ट
हुआ कुछ यूँ कि उत्तराखंड न्यायिक सेवा की परीक्षा में एक सवाल पर विवाद सामने आया है। परीक्षा में पूछा गया था कि एक मेडिकल स्टोर में बम रखने वाले और विस्फोट से पहले लोगों को बाहर निकलने के लिए 3 मिनट का समय देने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की किस धारा के तहत केस दर्ज किया जा सकता है? सवाल उत्तराखंड की न्यायिक सेवा की परीक्षा में पूछा गया था, जिसे लेकर विवाद अदालत की चौखट तक पहुंच गया । परीक्षा में असफल रहने वाले छात्रों ने विषय-विशेषज्ञों द्वारा बताए गए इस सवाल के जवाब पर असंतोष जताया है और दो अन्य सवालों पर आपत्ति के साथ कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। कोर्ट ने आयोग को दो सवालों पर फिर से विचार करने का सुझाव भी दे दिया है।
ऐसा सवाल जिस पर जज भी हो गए कन्फ्यूज
जिस तीसरे सवाल को लेकर जज भी दुविधा में आ गए वो सवाल हम एक बार फिर हूबहू दोहराते हैं जो शायद आपको भी पूरी तरफ कन्फूज कर देगा, दरसल सवाल ये था कि अगर ‘A ‘ एक मेडिकल स्टोर में बम रख देता है और विस्फोट से पहले लोगों को बाहर निकलने के लिए 3 मिनट का समय देता है। ऐसे में ‘बी’ जो गठिया का मरीज है, वह भागने में विफल रहता है और मारा जाता है। ऐसे में ‘ए’ के खिलाफ आईपीसी की किस धारा के तहत केस दर्ज किया जा सकता है? जवाब के लिए जो विकल्प दिए गए थे, उनमें से एक ये था कि आरोपी के खिलाफ धारा 302 के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए जो हत्या के आरोपियों पर लगायी जाती है।
याचिकाकर्ताओं ने उत्तर के रूप में इसी विकल्प को चुना था लेकिन आयोग की ओर से जो उत्तर उपलब्ध कराया गया था, उसमें इस विकल्प को सही नहीं माना गया था। आयोग के अनुसार सही जवाब धारा 304 था, जो हत्या की श्रेणी में नहीं बल्कि गैर-इरादतन हत्या के मामलों में लगाया जाता है। आयोग का तर्क है कि उपर्युक्त मामला आईपीसी की धारा 302 से संबंधित नहीं है बल्कि यह इरादे के अभाव में या फिर लापरवाही के कारण मौत से संबंधित है। मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि हमारे लिए यह कहना पर्याप्त है कि विषय विशेषज्ञ ने मोहम्मद रफीक के मामले में 2021 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया है। यह अदालत द्वारा दी गई राय के संबंध में कोई भी विचार देने से बचती है।
बता दें कि मोहम्मद रफीक मामले में मध्य प्रदेश में एक पुलिस अधिकारी को एक तेज रफ्तार ट्रक ने कुचल दिया था, जब उन्होंने वाहन पर चढ़ने की कोशिश की थी। ड्राइवर रफीक ने अधिकारी को धक्का देकर गिरा दिया था।
इस बीच याचिका ने कानूनी हलकों में इस बात पर बहस छेड़ दी है कि क्या किसी आतंकवादी कृत्य को ‘हत्या’ की बजाय ‘लापरवाही के कारण मौत’ के रूप में देखा जा सकता है। हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील बताते हैं कि यह स्पष्ट रूप से लापरवाही का मामला नहीं है क्योंकि अधिनियम स्वयं इरादे को दर्शाता है। ‘ए’ द्वारा किया गया काम ऐक्ट के परिणामों को जानता था। ऐसे में बिना किसी संदेह के यह मामला आईपीसी की धारा 302 यानी हत्या के दायरे में आता है।
आयोग के जवाब पर इस तरह उठे सवाल
आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए जवाब जिसे आयोग की ओर से सही जवाब बताया गया है. उसको हाईकोर्ट के वकील की दलील गलत साबित करती दिखाई देती है. हाई कोर्ट ने आयोग को दोनों सवालों पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है। जबकि तीसरे प्रश्न के संबंध में कोर्ट ने कहा कि इसे पूरी तरह से संवेदनहीन तरीके से तैयार किया गया था। अदालत ने कहा कि हमें यह देखकर दुख होता है कि प्रश्न को पूरी तरह से कैजुअल अप्रोच के साथ तैयार किया गया है। अदालत ने कहा कि पूरी प्रक्रिया चार सप्ताह के भीतर पूरी की जानी चाहिए और एक नई मेरिट सूची तैयार की जानी चाहिए जिसके आधार पर चयन प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए।
अब इस सवाल के बाद एक नई बहस कानून के नियमों को लेकर भी शुरू हो गयी है तो दूसरी तरफ आयोग की काम करने सहित प्रश्नपत्र बनाने को लेकर उनकी गंभीरता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं,,,कोर्ट ने भी आयोग की सवेंदनहीनता को माना है,,,आयोगों पर उत्तराखंड में सवाल उठना कोई नई बात नहीं है बल्कि उत्तराखंड में परीक्षा आयोजित करने वाले आयोग पिछले काफी समय से सवालों के घेरे में हैं, चाहे वो uksssc रहा हो या अब ukpsc हो, इन आयोगों की विश्वसनीयता पिछले काफी समय से सवालों के घेरे में रही है, हाल ही में सामने आये भर्ती घोटालों ने तो वैसे भी उत्तराखंड का नाम पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया है, इन भर्ती घोटालों के खिलाफ बेरोजगार छात्र कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं,और आज भी उनका प्रदर्शन जारी है, बेरोजगारों की सिर्फ यही मांग है कि इन भर्ती घोटालों की निष्पक्ष जांच सीबीआई से करवाई जाय,पर आज तक उत्तराखंड की सरकार उनकी मांगों को मानना तो दूर आंदोलन कर रहे बेरोजगारों से मिलने तक नहीं गयी,,,आयोगों की घटती निष्ठा इस प्रदेश के बेरोजगार छात्रों के भविष्य के लिए एक बड़ी चिंता है और प्रदेश सरकार पर लगता एक बड़ा प्रश्न चिन्ह,,,जो परीक्षाये एक पारदर्शी तरिके से कराने में नाकमयाब साबित हुई है,,,
बाकी रही सही कसर इस तरह के सवाल पूरे कर रहे है,,,