सबसे पहले बात टिहरी सीट की –
सबसे पहले टिहरी सीट की बात करें तो यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है एक तरफ बीजेपी की नहारानी जो लगातार इस क्षेत्र से जीतती रही है और आजादी के बाद से ही इस सीट पर उनके परिवार का एकतरफा वर्चस्व रहा है या ये कहें वो जिस भी दल में रहे हैं जीत उनके परिवार की हुई है लेकिन इस बार उनको इस प्रदेश के सबसे युवा प्रत्याशी और बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार से कड़ी चुनौती मिलती दिखाई दे रही है जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रत्याशी गुनसोला हैं जो अपनी साफ़ छवि के लिए जाने जाते हैं. कुल मिलाकर इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय होने की उम्मीद है।
पौड़ी गढ़वाल सीट-
दूसरी सीट आती है पौड़ी गढ़वाल जहां एक तरह अनिल बलूनी और गणेश गोदियाल आमने सामने हैं,,,वर्तमान हालात में इस सीट पर सबसे जबरदस्त लड़ाई देखने को मिल रही है जहां अनिल बलूनी के लिए स्मृति ईरानी से लेकर कई बड़े नेता चुनाव प्रचार कर रहे हैं. मुख़्यमंत्री धामी भी लगातार रोड शो कर रहे हैं. बीजेपी का मजबूत संगठन लगातार अनिल बलूनी के लिए काम कर रहा है और उसके बावजूद गणेश गोदियाल अकेले ही अनिल बलूनी को चुनौती दे रहे हैं कांग्रेस के पास इस समय न तो भाजपा जैसा मजबूत संगठन है न ही किसी बड़े नेता ने गणेश गोदियाल के लिए प्रचार किया है फिर भी गणेश गोदियाल अकेले ही बीजेपी पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण गणेश गोदियाल की व्यक्तिगत छवि और उनका स्थानीय मुद्दों को लगातार उठाना उनको इस चुनाव में मजबूती दे रहा है।
हरिद्वार सीट-
तीसरी सीट पर हरिद्वार जहां एक तरफ दो पूर्व रावत मुख्यमंत्री और एक तरफ निर्दलीय विधायक उमेश कुमार हैं,,,उमेश कुमार ने जहां धीरे धीरे अपना एक मजबूत किला हरिद्वार में बनाया है उससे बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं. हरीश रावत जहां धीरे धीरे ही सही अब धड़ों और खेमों में बंटी हरिद्वार कांग्रेस को एक करने में कामयाब हो रहे हैं उससे वो बेहद कम समय में मुकाबले में खड़े हो गए हैं,,,जबकि योगी और मोदी की रैलियों के जरिये त्रिवेंद्र सिंह बीजेपी के लिए चुनौती बनी हरिद्वार सीट पर परचम लहराने की तैयारी कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की जनता जब अपने पर आई तो उसने फिर प्रत्याशी का कद या पद नहीं देखा, जिसे पसंद किया उसे जिताया और जो नापसंद था उसे हरा दिया। एक जमाने में भाजपा की राजनीति के तीसरे बड़े ध्रुव डॉ.मुरली मनोहर जोशी रहे हों या खांटी राजनीतिज्ञ नारायण दत्त तिवारी या फिर दिग्गज हरीश रावत, लोकसभा चुनाव में इन सभी दिग्गजों ने करारी शिकस्त का सामना किया।
1984 के लोकसभा चुनाव में अल्मोड़ा सीट पर उस दौर के नौजवान नेता हरीश रावत को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया। हरीश ने खांटी राजनीतिज्ञ डॉ.मुरली मनोहर जोशी को न सिर्फ हराया, बल्कि उनकी जमानत तक जब्त करा दी। जोशी को महज 14.79 फीसदी वोट पर संतोष करना पड़ा। इसी सीट पर 1989 के चुनाव में भगत सिंह कोश्यारी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। वह तीसरे स्थान पर रहे। यही वह चुनाव था, जिसमें निर्दलीय चुनाव लड़े काशी सिंह ऐरी ने 39 फीसदी से अधिक वोट लेकर अपने विरोधियों को हैरान कर दिया था।
टिहरी लोस सीट पर आठ बार के सांसद रहे महाराजा मानवेंद्र शाह को भी पराजय का सामना करना पड़ा था। उन्हें 1971 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार से मात मिली। उन्हें स्वतंत्रता सेनानी परिपूर्णानंद पैन्यूली ने पराजित कर दिया। दिग्गज राजनेता एनडी तिवारी की चुनावी हार का भी अपना इतिहास है। राम लहर के रथ पर सवार भाजपा ने 1991 के लोस चुनाव में बलराज पासी को कांग्रेस के एनडी तिवारी के खिलाफ मैदान में उतारा। पासी ने एनडी तिवारी को पराजित कर दिया।
कद्दावर मुरली मनोहर जोशी को हराने वाले हरीश रावत भी चुनावी पराजयों से महफूज नहीं रहे। अल्मोड़ा सीट पर ही उन्हें भाजपा के बची सिंह रावत के हाथों लगातार तीन हार का सामना करना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनाव में हरीश रावत नैनीताल-उधम सिंह नगर सीट पर भी चुनाव हार गए।
दिग्गजों की चुनावी पराजयों का इतिहास यहीं नहीं थमा है। हरिद्वार लोस सीट पर 1989 और 1991 में मायावती बसपा के टिकट पर दो बार चुनाव हार गईं। बसपा सुप्रीमो की 1991 के चुनाव में तो जमानत तक जब्त हो गई थी। उन्हें महज चार फीसदी वोट ही नसीब हुए।