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Chardham Yatra: धीरे-धीरे कम होने लगी केदारनाथ यात्रा की रफ्तार, जानिए अब तक कितनों ने किए दर्शन.

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2023 में 25 अप्रैल से शुरू हुई केदारनाथ यात्रा में इस वर्ष अभी तक 17 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं, बीते दिनों केदारनाथ धाम में हुई बर्फबारी से ठंड बढ़ने से यात्रा की रफ्तार भी कम हो गई है।

बीते दिनों हुई बारिश और बर्फबारी के चलते केदारनाथ यात्रा की रफ्तार थमने लगी है। एक सप्ताह से धाम में प्रतिदिन दर्शनार्थियों की संख्या में कमी दर्ज की जा रही है। वहीं, केदारघाटी में होटल, रेस्टोरेंट और लॉज को भी गिनती की बुकिंग मिल रही है।

25 अप्रैल से शुरू हुई केदारनाथ यात्रा में इस वर्ष अभी तक 17 लाख 30 हजार से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं, लेकिन बीते दिनों केदारनाथ में हुई बर्फबारी से ठंड बढ़ने से यात्रा की रफ्तार भी थम गई है। सोनप्रयाग से केदारनाथ जाने वाले यात्रियों की संख्या घटने के साथ ही दर्शनार्थियों की संख्या भी प्रतिदिन घटने लगी है।

पांच दिनों में धाम में जहां 15 अक्तूबर को धाम में 10,546 श्रद्धालु पहुंचे थे, वहीं बीती 17-18 अक्तूबर को 7,365 और 7,905 शिव भक्तों ने बाबा केदार के दर्शन किए। इधर, श्रीकेदार धाम होटल एसोसिएशन के सचिव नितिन जमलोकी का कहना है कि यात्रा के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी होटल, रेस्टोरेंट और लॉज संचालकों को सीमित बुकिंग मिली हैं। दूसरे चरण में भी गिनती की बुकिंग मिली है।

उत्तराखंड के कई जिलों में झमाझम बारिश और बर्फबारी, जानिए कैसा रहेगा अगले 2 दिनों तक मौसम का हाल.

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उत्तराखंड में मौसम का मिजाज बिगड़ा हुआ है। राजधानी देहरादून समेत प्रदेशभर के कई जिलों में भारी बारिश के साथ ही तेज गर्जना हो रही है। बारिश के बीच अचानक राजधानी देहरादून में अंधेरा छा गया। वाहनों को दिन में हेडलाइट जलानी पड़ी। तो वहीं सभी जगह सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें जलाई गयी.

उत्तराखंड में बदला मौसम का मिजाज-

सोमवार उत्तराखंड में भारी बारिश के साथ ही तेज हवाएं चलने से मौसम ठंडा हो गया है। बदले मौसम के मिजाज के चलते ठंड बढ़ने से लैंसडाउन चौक के पास लोगों ने अलाव का सहारा लिया। वहीं धुंध के कारण अंधेरा होने से वाहनों को दिन में हेडलाइट जलानी पड़ी। बारिश होने से तापमान में भारी गिरावट दर्ज की गई है। सुबह स्कूली बच्चों और नौकरीपेशा लोगों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। राजधानी देहरादून सहित प्रदेश के कई जिलों में झमाझम बारिश का सिलसिला जारी है। हरिद्वार में तेज तूफान से धूल मिट्टी, कूड़ा तेज शहर के रोड और गलियों में पसर गया।

तेज आंधी के चलते कई जगह पेड़ की शाखाएं टूट कर गिर गई है। उत्तरकाशी में बादल छाए हुए हैं साथ ही ठंडी हवाएं चल रही है। वहीं विकासनगर में मूसलाधार बारिश हो रही है।मौसम विभाग की ओर से आज सोमवार को बारिश होने के आसार बताए गए थे। केंद्र ने पर्वतीय जिलों में बारिश का ऑरेंज और मैदानी इलाकों में येलो अलर्ट जारी किया है।

कई जिलों में कल येलो अलर्ट- 

मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार कल यानी 17 अक्तूबर को भी ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले को छोड़ अन्य सभी जिलों में भी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया गया है।हालांकि 18 अक्टूबर से प्रदेशभर का मौसम शुष्क रहेगा।

चारों धामों में बारिश और बर्फबारी- 

वहीं केदारनाथ और यमुनोत्री में बारिश बर्फबारी का सिलसिला जारी है। इस मौसम में भी धामों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद हैं। एक ओर जहां श्रद्धालु बर्फबारी देख उत्साहित नजर आए तो वहीं दूसरी तरफ सुविधाओं के अभाव में उन्हें परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है।

यमुनोत्री सहित यमुना घाटी में एक घंटे से झमाझम बारिश हो रही है। यमुनोत्री धाम के ऊपर बुग्यालों चोटियों सप्त ऋषि कुंड, बंदरपूंछ, कालिंदी पर्वत, गरुड़ गंगा टाप पर बर्फबारी जारी है। बारिश बर्फबारी के चलते तापमान में गिरावट आ गई। ठंड से लोग घरों में दुबके हैं।

यमुनोत्री धाम में बर्फबारी का श्रद्धालु लुत्फ उठा रहे हैं, लेकिन वहीं पर्याप्त सुविधाएं न होने से श्रद्धालुओं को बारिश बर्फबारी में दिक्कतों का सामना करना रहना पड़ रहा है। देहरादून सहित प्रदेश के कई जिलों में बारिश के साथ ही तेज गर्जना हो रही है।

 

बद्रीनाथ धाम में भी बर्फबारी- 

बदले मौसम के मिजाज के चलते ठंड बढ़ने से लैंसडाउन चौक के पास लोगों ने अलाव का सहारा लिया। वहीं धुंध के कारण अंधेरा होने से वाहनों को दिन में हेडलाइट जलानी पड़ी। बारिश होने से तापमान में भारी गिरावट दर्ज की गई है। वहीं दोपहर के बाद बदरीनाथ धाम में भी खूब बर्फबारी हुई है। बर्फबारी के बाद धाम में तेज ठंड बढ़ गयी है, श्रद्धालु भी इस बर्फ को देखकर उत्साहित हो रहे हैं.

जोशीमठ में फिर दहशत में लोग, दोबारा आने लगी घरों के नीचे से पानी बहने की आवाजें…

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उत्तराखंड के जोशीमठ में धंस रही जमीन और दरारों को देखकर हर कोई डरा हुआ है…आज 8 महीने गुजर जाने के बाद भी जोशीमठ में भू-धसाव और पानी रिसाव का सच अभी तक बाहर नहीं आ पाया है. आज भी जोशीमठ के ये हालत किसी से छिप नहीं पाए हैं. जोशीमठ में पानी बहने की आवाजें सुनाई दे रही हैं. जोशीमठ नगर के भू-धसाव वाले क्षेत्रों में फिर से घरों के नीचे से पानी के बहने की आवाजें सुनाई देने लगी है। लेकिन ये पानी कहाँ से आ रहा है और कहां से निकल रहा है. इसका अभी तक कुछ पता नहीं चल रहा है. लोगों में भय की स्थिति बनी हुई है। सुनील वार्ड जो की जोशीमठ में ही है. वहा पर रहने वाले लोग फर्श में कान लगाकर पानी के बहने की आवाजें सुन रहे हैं, ये आवाज ऐसे लग रही हैं, जैसे कि नीचे से कोई गदेरा बह रहा हो।

फिर से आने लगी घरों के नीचे से पानी बहने की आवाजें- 

जनवरी माह के शुरुआत से ही जोशीमठ में भू-धसाव शुरू हो गया था। तब जोशीमठ की तलहटी में बसी जेपी कॉलोनी में एक जलधारा फूट गई थी। उस समय से ही  कई घरों के नीचे पानी बहने की आवाजें आ रही थी। तब कई एजेंसियों ने इसका अध्ययन किया था। मार्च के माह में भू-धसाव थम गया। लेकिन फिर से वही शुरू हो गया. क्योंकि बरसात के समय रोज बारिश के कारण फिर से घरों के नीचे पानी बहने की आवाजें आने लगी हैं। 13 अगस्त को फिर से रात को हुई अतिवृष्टि के बाद विनोद सकलानी के घर के अंदर पानी बहने की आवाज आने लगी।

विनोद सकलानी कहते हैं कि पहले दिन घर के अंदर खड़े होने पर ही ऐसा लग रहा था कि नीचे कोई बड़ी सी नदी बह रही है। अब पानी की आवाज कुछ कम हो गई है। लेकिन हैरत की बात ये है कि न तो मकान के ऊपर और न ही मकान के नीचे कहीं भी पानी बहता हुआ नहीं दिखाई देता है केवल आवाज ही सुनाई देती है। यदि ये  पानी है तो कहां से आ रहा है और ये पानी कहां जा रहा है। उन्होंने कहा कि वार्ड में कई जगहों पर फिर से भू-धसाव हो रहा है। पैदल रास्तों में भी धसाव हो रहा है।

यहाँ 13 अगस्त के बाद आयी दरार- 

उसी वार्ड के दूसरे मोहल्ले में रह रहे भारत सिंह पंवार का कहना है कि उनके घर में तो पहले दरारें नहीं आई थी. लेकिन 13 अगस्त की बारिश के बाद यहाँ भू-धसाव शुरू हो गया है. और रास्ता ध्वस्त हो गया, खेतों में भी दरार पड़ गई है। उन्होंने कहा कि उनका मकान तो अभी सही है, लेकिन उनके आंगन तक दरार आ चुकी है। पूरे क्षेत्र में जगह-जगह भू धसाव हो रहा है। इससे लोगों में भय बना हुआ है। उनका कहना है कि घर के दो कमरे अभी फिलहाल ठीक हैं, परिवार के लोग भी अभी उन्ही कमरों में रह रहे हैं। लेकिन अधिक बारिश होने पर सभी होटल में बने राहत शिविर में चले जाते हैं।

बरसात के कारण रास्तों और खेतों में आयी दरार-  

बरसात ने आपदा प्रभावित जोशीमठ वासियों के जख्मों को फिर से हरा कर दिया है। बरसात शुरू होने के बाद से ही अलग-अलग जगह पर गड्ढे होने, जमीन में दरार आने, घरों की दरार अधिक चौड़ी होने के मामले सामने आए हैं। मनोहर बाग वार्ड में औली रोड पर हाल ही में 22 मीटर लंबी और दो फीट गहरी पड़ी। सिंहधार वार्ड में भी कई जगह पर रास्तों और खेतों में दरार आई है।

ये है जोशीमठ भू-धसाव की स्थिति-

जोशीमठ भू-धसाव के कारण 868 भवनों में दरारें आई थी, जिनमें से प्रशासन ने 181 भवनों को असुरक्षित श्रेणी में रख दिया था। प्रशासन की ओर से 145 प्रभावित परिवारों को पुनर्वास पैकेज के तहत 31 करोड़ रुपये मुआवजा वितरित कर दिया गया है। नगर पालिका जोशीमठ के अंतर्गत अभी भी 57 परिवार ऐसे हैं जो कि राहत शिविरों में रह रहे हैं। जबकि 239 परिवार अपने रिश्तेदारों या फिर वे लोग किराए के घरों में रह रहे हैं।सुनील वार्ड में भी कुछ जगहों पर भू-धसाव हुआ है। यहां प्रभावित सभी परिवारों को राहत शिविर में जाने के लिए कहा गया है। क्षेत्र में अन्य जगहों पर स्थिति सामान्य है। लोगों से विस्थापन के लिए विकल्प मांगे गए हैं। अभी तक किसी की ओर से कोई भी लिखित रूप में विकल्प नहीं दिए हैं। जल्द ही अब मानसून सीजन के बाद फिर से लोगों से विस्थापन को लेकर विकल्प मांगे जाएंगे।

क्या कहा जल विज्ञान वैज्ञानिक गोपाल कृष्ण ने-

डॉ गोपाल कृष्ण ने कहा कि अधिकारिक रूप से हमारे पास ऐसी कोई सूचना नहीं है। जमीन के भीतर मिट्टी के सेटलमेंट के चलते भीतर रुका हुआ पानी कहीं न कहीं अपना रास्ता बना लेता है।जमीन के भीतर पानी बहने की आवाज के पीछे इस तरह के कारण हो सकते हैं। इस बारे में जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

जमीन के भीतर पानी का अपना एक चैनल काम करता है। जोशीमठ के मामले में पूर्व में हुए अध्ययनों में ये बात सामने आ चुकी है, वहां भी पानी का चैनल काम कर रहा है। बरसात में इसमें वृद्धि हो सकती है। बाकी मौके की क्या स्थिति है, ये जब जांच होगी उसके बाद ही स्पष्ट हो सकती है।

 

इस कारण आ रही केदारघाटी में आपदाएं, विशेषज्ञों की सलाह दरकिनार…

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केदारनाथ के गौरीकुंड में हुए हादसे ने एक बार फिर कई सवालों को जन्म दे दिया है,केदारघाटी में जिस तरह लगातार गतिविधियां बढ़ रही है वो कहीं न कहीं इस पूरी घाटी के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रही हैं,वैज्ञानिकों और वाडिया संस्थान के शोध बताते हैं कि पूरी केदारघाटी एक सेंसटिव जॉन में बसी है, यहां  अत्यधिक मानवीय गतिविधियां इस पूरी घाटी के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रही हैं ?

 
 
आज भी कई गांव मौत के मुहाने पर खड़े- 

मैं केदारनाथ बोल रहा हूं… आज से 10 साल पहले मेरे आंगन में एक आपदा आई थी. जिसका जिम्मेदार भी मुझे ही ठहराया गया था. लेकिन ये मेरी मर्जी नहीं थी. मुझे तो एकांत चाहिए. सालों से मेरे दिल पर पत्थर तोड़े जा रहे हैं. मेरा घर हिमालय है. जिसे इंसान अपने फायदे के लिए लगातार तोड़ रहा है. मैं चुप हूं. कुछ कर नहीं पा रहा हूं, लेकिन मेरे घर को तोड़कर इसे कमाई का जरिया बनाने वाले इन इंसानों को जरा भी आभास नहीं है कि ऐसा करना न सिर्फ मेरे लिए बल्कि मेरे अंदर रह रहे लाखों लोगों के लिए विनाशकारी हो सकता है. गौरीकुंड में मंदाकिनी नदी किनारे मलबे के बीच बिखरी पड़ी 10 से अधिक कंड़ियां भूस्खलन हादसे की विभीषिका को बयां कर रही हैं। कमाई का साधन तो रह गया लेकिन कमाने वाले मजदूर लापता है, जिनकी खोज की जा रही है। दो वक्त की रोटी के लिए ये लोग 16 किमी पैदल मार्ग पर कंडी के सहारे यात्री को पीठ पर लादकर केदारनाथ पहुंचाते थे।गौरीकुंड में हुए इस भूस्खलन से तीन लोगों की मौत हो गई है, जबकि 17 लोग लापता हैं। केदारघाटी के गौरीकुंड में हुए इस हादसे ने दस साल पहले वर्ष 2013 में आई केदारनाथ आपदा की यादों को ताजा कर दिया है। जबकि बीते चार दशक में ऊखीमठ ब्लॉक क्षेत्र में यह तीसरी बड़ी आपदा है। इसके बाद भी आज तक केदारघाटी से लेकर केदारनाथ पैदल मार्ग पर सुरक्षा के नाम पर ठोस इंतजाम तो दूर, कार्ययोजना तक नहीं बन पाई है।सरकार सिर्फ केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्यों तक ही सिमटी रही। वर्ष 1976 से रुद्रप्रयाग व केदारघाटी के गांव प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेलते आ रहे हैं। यहां आज भी कई गांव मौत के मुहाने पर खड़े हैं। बीते चार दशक में यहां 14 प्राकृतिक आपदाएं आ चुकी हैं जिसमें से 16-17 जून 2013 की केदारनाथ की आपदा सबसे विकराल रही।

 
 
केदारघाटी में आई आपदाओं के आंकड़े- 

2013 की आपदा ने केदारघाटी से लेकर केदारनाथ का भूगोल बदल दिया था। गौरीकुंड से रुद्रप्रयाग के बीच मुनकटिया, रामपुर, खाट, सेमी, भैंसारी, रामपुर, बांसवाड़ा, विजयनगर कई क्षेत्र हादसों का सबब बने हुए हैं लेकिन सरकारें, प्राकृतिक आपदा कम हो इसके प्रयास कम करने की योजना बनाने के बजाय केदारनाथ पुनर्निर्माण में ही घिरकर रह गई। केदारनाथ पैदल मार्ग पर यहां न तो भूस्खलन जोन का ट्रीटमेंट हो पाया न ही पैदल रास्ते का विकल्प ढूंढा गया। जबकि रुद्रप्रयाग जिला भूकंप व अन्य प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से पांचवें जोन में है। इस पूरी घाटी में आयी अब तक की इन आपदाओं के आंकड़े देखें तो साफ़ हो जायेगा कि सरकारों का रुख इस घाटी के प्रति क्या रहा है,,,इस घाटी में 1976 भूस्खलन से ऊपरी क्षेत्रों में मंदाकिनी का प्रवाह अवरुद्ध हो गया था ।1979 में क्यूंजा गाड़ में बाढ़ से कोंथा, चंद्रनगर और अजयपुर क्षेत्र में भारी तबाही से 29 लोग काल के गाल में समा गए थे ।1986 जखोली तहसील के सिरवाड़ी में भूस्खलन हुआ जिसमें 32 लोगों की जान गयी थी, 1998 भूस्खलन से भेंटी और पौंडार गांव ध्वस्त हो गया था । साथ ही 34 गांवों में इससे  नुकसान पहुंचा जबकि  103 लोगों की मौत हुई थी ।

2001 से 2013 तक आई आपदा की घटनाएं- 

2001 ऊखीमठ के फाटा में बादल फटा जिसमें  28 की मौत हुई थी,जबकि 2002 बड़ासू और रैल गांव में भूस्खलन,,,2003 स्वारीग्वांस मेंं भूस्खलन,,,2004 घंघासू बांगर में भूस्खलन,,,2005 बादल फटने से विजयनगर में तबाही से  चार की मौत,,2006 डांडाखाल क्षेत्र में बादल फटने की घटना, 2008 चौमासी-चिलौंड गांव में भूस्खलन से  एक युवक की मौत  और कई मवेशी मलबे मेंं दबे थे,इतना ही नहीं 2009 गौरीकुंड घोड़ा पड़ाव मेंं भूस्खलन से  दो श्रमिक की मौत ,,,2010 में भी रुद्रप्रयाग जनपद में कई स्थानों पर बादल फटे, 2012 ऊखीमठ के कई गांवों में बादल फटने से  64 लोग मरे थे ।जबकि 2013 केदारनाथ आपदा में हजारों मौतों से  पूरी केदारघाटी प्रभावित हुई थी,और अब 2023 में गौरीकुंड में भूस्खलन 19 लोग लापता होने की घटना,,, ये सब वो घटनाएं हैं जिनमें कई लोगों ने अपनी जान गवाई पर आज तक हमारी किसी भी सरकार ने इस घाटी को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बनाई,,,

रुद्रप्रयाग जिले को देश में भूस्खलन से सबसे अधिक खतरा- 

2013 में केदारनाथ में हुए भूस्खलन और बाढ़ में 4500 लोग मौत के आगोश में सो गए थे और कई स्थानों का  नामो-निशान मिट गया।ये सिर्फ सरकारी आंकड़े हैं जबकि कहा जाता है कि मरने वालों की संख्या इससे भी कहीं  अधिक है , बीते दिन गौरीकुंड भूस्खलन हादसे ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के राष्ट्रीय सुदूर संवेदी केंद्र (एनआरएससी) की उस भूस्खलन मानचित्र रिपोर्ट पर मुहर लगाई है। उपग्रह से लिए गए चित्रों के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट बताती है कि रुद्रप्रयाग जिले को देश में भूस्खलन से सबसे अधिक खतरा है। भूस्खलन जोखिम के मामले में देश के 10 सबसे अधिक संवेदनशील जिलों में टिहरी दूसरे स्थान पर है।पर्वतीय जनमानस के लिए चिंताजनक बात यह है कि सर्वाधिक भूस्खलन प्रभावित 147 जिलों में उत्तराखंड के सभी 13 जिले शामिल हैं। इनमें चमोली जिला भूस्खलन जोखिम के मामले में देश में उन्नीसवें स्थान पर है। चमोली जिले का जोशीमठ शहर भूस्खलन के खतरे की चपेट में पहले से है।
क्या कहते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ-

पर्यावरण विशेषज्ञों और जानकारों का मानना है कि 2013 की वो आपदा सरकार के लिए एक सबक थी। लेकिन जिस तरह पहाड़ों में जरूरत से ज्यादा निर्माण, बहुत अधिक संख्या में पर्यटकों की आवाजाही भी आपदा के कारण हैं। खनन, पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले पदार्थों की अधिकता से पारिस्थितिकी तंत्र को अधिक नुकसान हुआ है। जो अभी वर्तमान स्थिति का प्रमुख कारण है।केदारनाथ में उमड़ती भीड़,यहां मार्गों में होते निर्माण  को कंट्रोल न करना भी इस घाटी पर अधिक दबाव बना रहे हैं,जिससे वहां का क्लाइमेट भी तेजी से बदल रहा है,इससे ग्लेशियरों पर भी प्रभाव पड़ रहा है जिससे वो तेजी से पिघल रहे हैं,अत्यधिक मानव गतिविधियां भी यहां कई परिवर्तन ला रहा है,घाटी में हेली सेवाओं का अत्यधिक आवाज से भी यहां काफी प्रभाव पद रहा है,कई जंलि पशु पक्षी इस कारण यहां से विलुप्त हो रहे हैं ,जो यहां हो रहे बदलावों का एक बड़ा प्रमाण हैं,,


भूविज्ञानी एवं पर्यावरणविद् एसपी सती ने कहा कि चार धाम जाने के लिए सड़कें चौड़ी कर दी गई हैं। वहां हजारों गाड़ियां पहुंच रही हैं, जिससे हालात बिगड़ रहे हैं। गाड़ियां खड़ी करने के लिए पार्किंग तक नहीं हैं। इस वजह से सड़कों पर जाम लगा रहता है। इसके अलावा पहाड़ों पर वीकेंड टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे हिमालय की इकोलॉजी को नुकसान पहुंच रहा है। दूसरा इसके बदले स्थानीय लोगों को कोई फायदा भी नहीं मिल रहा। कुछ गिने-चुने लोगों की लॉबी न केवल कमाई कर रही है, बल्कि, जब पर्यटकों की संख्या सीमित करने की बात होती है तो प्रशासन पर दबाव बनाकर इसका विरोध करती है।
वैज्ञानिकों ने पहले भी दी थी चेतावनी- कई पहाड़ी क्षेत्रों में भू-धंसाव, दरारें आना, पहाड़ों का कटाव, नदियों में बढ़ता अवैध खनन, चमोली में हाइड्रो पावर प्लांट के नाम पर ऋषिगंगा में 2016 में आई बाढ़ हो या जोशीमठ में एनटीपीसी के द्वारा बनाई जा रही टनल ही क्यों न हो ? उच्च हिमालयी क्षेत्र में सीधे 12 महीने आवागमन संभव नहीं है. वैज्ञानिकों ने इस बारे में 2013 में आई आपदा से पहले ही चेतावनी दे दी थी, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया था,,विशेषज्ञ कहते हैं, ‘सरकार के पास सड़कें बनाने के लिए तो बजट है, लेकिन कटाव के कारण पहाड़ पर बनी ढलान को स्थिर करने के लिए कोई बजट नहीं है. यही कारण है कि ऐसी सड़कों पर साल भर भूस्खलन होता रहता है.’कुछ वैज्ञानिकों ने चार धाम मार्ग पर एक सर्वे किया था. जिसमें पाया गया कि इन हाईवे पर कई नए भूस्खलन क्षेत्र बने थे और कई आगे भी बन सकते हैं. रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई लेकिन सरकार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. केदारनाथ के इलाक़े में दशकों से शोध कार्य कर रहे ‘वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जीयोलॉजी’ ने दिसंबर 2013 में, इस आपदा पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी. क्योंकि संस्थान के पास पिछले कई सालों से जुटाए गए विभिन्न वैज्ञानिक आंकड़े मौजूद थे तो इस रिपोर्ट में आपदा की वजहों की वैज्ञानिक पड़ताल भी थी. साथ ही कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए थे. उनके अनुसार  केदारनाथ चौराबाड़ी ग्लेशियर द्वारा बनाए गए ढीले और छिछले मलबे से बने मैदान में बसा है,बाढ़ के जरिए पहुंचे ग्लेसियो—फ्ल्यूवियल मलबे को छेड़ा नहीं जाना चाहिए. इस इलाके में ना ही इतनी जगह है और ना ही ऐसी कोई तकनीक है जिससे कि इतने अधिक मलबे को यहां से कहीं हटाया जा सके और निस्तारित किया जा सके. इसलिए, निकट भविष्य में इसे छेड़ने की कोई भी कोशिश नहीं की जानी चाहिए।

 

क्या कहते हैं वैज्ञानिक डॉ डोभाल-

वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल  बताते हैं, कि “हमने अपनी रिपोर्ट में हिमालयन जियोलॉजी के अनुसार कई सुझाव दिए थे, जिन्हें ध्यान में रखना बेहद महत्वपूर्ण था.”डॉ. डोभाल आगे कहते हैं, “इसमें कोई शक नहीं है कि एनआईएम की टीम ने इतनी ऊंचाई पर बड़ी बहादुरी से काम किया है. लेकिन जो काम हुआ है उसमें दूरदर्शिता और प्लानिंग की कमी है. जिस तरह से कंक्रीट और अन्य भारी निर्माण सामग्री का इस्तेमाल, निर्माण कार्य में किया गया है वह ग्लेशियर के मलबे से बने इस भू-भाग में इस्तेमाल नहीं की जानी चाहिए थी.”हिमालय के ऊंचाई वाले जिस भूगोल में केदारनाथ का मंदिर बना हुआ है, भूगर्भवेत्ताओं और ग्लेशियरों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के लिए यह  ग्लेशियर के मलबे का अस्थिर ढेर है जहां किसी भी किस्म के भारी निर्माण कार्य को वे अवैज्ञानिक मानते हैं। 

कई जियोलॉजिस्ट की भी है यही राय-

हिमालयी ग्लेशियर्स पर लम्बे समय से काम कर रहे ‘फिजिकल रिसर्च लैब, अहमदाबाद’ से जुड़े वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट डॉ. नवीन जुयाल की भी यही राय है. वे कहते हैं, “केदारनाथ में आई बाढ़ अपने साथ इतना मलबा लाई थी कि उसने इस कस्बे को कई फीट तक ढक दिया. इस मलबे को स्थिर होने तक यहां कोई भी निर्माण करना विज्ञान संगत बात नहीं थी. अब जब वहां नई इमारतें बनाई जा रही हैं तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इन इमारतों की नींव को उस नए मलबे की गहराई से भी बहुत नीचे तक डालना होगा. डॉ. जुयाल उच्च हिमालयी इलाकों में वैज्ञानिक ढंग से निर्माण कार्यों के बारे में बताते हुए आगे कहते हैं, “इस ऊंचाई वाले भू-भाग में, ग्लेशियर के मलबे के ऊपर भारी इमारतें नहीं बनाई जा सकती. अगर आप इतनी ऊंचाई पर बसे पारंपरिक समाजों के स्थापत्य को देखेंगे तो हमेशा नज़र आएगा कि लकड़ी आदि, हल्की निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया जाता रहा है.”डॉ. जुयाल आगे कहते हैं, ”केदारनाथ में जब प्रकृति ने हमें तमाचा मारते हुए संभलने का एक मौक़ा दिया था तो हमें अपने स्थानीय पारंपरिक ज्ञान से सबक लेना चाहिए था. लकड़ी और पत्थरों की ढालूदार छतों वाली हल्की इमारतें वहां बनाई जानी चाहिए थी. लेकिन शायद हम ये मौका चूक गए हैं।”

कई एजेंसियों ने किया था पुन: निर्माण कार्य करने से मना- 

केदारनाथ कस्बे की दाहिनी ओर की पहाड़ी पर कुछ ऊंचाई पर बने भैरव मंदिर से पूरा केदारनाथ कस्बा दिखाई देता है. आपदा के निशान चारों ओर पसरे हुए हैं. आपदा के बाद फिर से, सुनहरी ढालदार छत और करीने से तराशे गए पत्थरों से बना केदारनाथ मंदिर, कंक्रीट से बनी घिचपिच, तंग, बहुमंजिला इमारतों से घिर गया है. पुनर्निमाण के नाम पर सौंदर्य को एकदम नज़रअंदाज कर सीमेंट और कंक्रीट की सपाट छतों वाली बहुमंजिला इमारतें बना दी गई हैं जो कि इस उच्च हिमालय के भूगोल से एकदम साम्य बनाती नहीं दिखती.एनआईएम बुनियादी तौर पर निर्माण कार्यों से जुड़ी एजेंसी नहीं है. लेकिन 2013 की आपदा के बाद, निर्माण के क्षेत्र में कोई विशेषज्ञता या अनुभव नहीं होने के बावजूद केदारनाथ कस्बे में पुनर्निर्माण का कार्य उसे इसलिए सौंप दिया गया, क्योंकि वह पर्वतारोहण में महारत रखती थी. आपदा ने इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में जिस तरह के हालात पैदा कर दिए थे ऐसे में निर्माण कार्य में दक्षता रखने वाली सभी एजेंसियों ने तत्काल निर्माण कार्य करने से मना कर दिया था।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कही थी ये बातें- 

विशेषज्ञ समितियों की सलाह को नज़रअंदाज कर प्रधानमंत्री मोदी ने केदारनाथ के अपने संबोधन में अगले साल 10 लाख लोगों के केदारनाथ मंदिर में आने का दावा किया है. लेकिन साथ ही उन्होंने विरोधाभासी बयान देते हुए, वहां होने वाले निर्माण कार्यों के दौरान पर्यावरण का ध्यान रखे जाने की भी बात कही है. उन्होंने कहा, ”जब यहां इतना सारा पैसा लगेगा, इतना सारा इंफ्रास्ट्रक्चर बनेगा तो उसमें पर्यावरण के सारे नियमों का ख्याल रखा जाएगा. यहां की रुचि, प्रकृति, प्रवृति के अनुसार ही इसका पुनर्निर्माण किया जाएगा. उसमें आधुनिकता होगी मगर उसकी आत्मा वही होगी जो सदियों से केदारनाथ की धरती ने अपने भीतर संजोए रखी है.” यह समझ से परे है कि कैसे 10 लाख लोगों को इतने संवेदनशील भौगोलिक इलाके में ले जाकर पर्यावरण का ख़याल रखा जा सकता है. केदारनाथ में अब तक हुए नए निर्माण कार्य में पर्यावरण और भूगर्भशास्त्र की विशेषज्ञ एजेंसियों के सुझावों को पूरी तरह अनदेखा किया गया है. जो कुछ अब तक हुआ है उसका परिणाम, फिर से वही अनियोजित और अदूरदर्शी तरीके से कंक्रीट की इमारतों की घिचपिच है. एक विशेषज्ञ के तौर पर पर्यावरणीय और भूगर्भीय चिंताओं के अलावा डॉ. नवीन जुयाल हिमालय के शीर्ष पर बसे कैलाश पर्वत का उदाहरण देते हुए चिंता ज़ाहिर करते  हैं, ”चीन जैसे देश ने भी, जहां एक नास्तिक और तानाशाह सरकार है, जिसने सांस्कृतिक क्रांति के दौरान धर्मों से जुड़े कई प्रतीकों को तोड़ा, ऐसी सरकार ने भी कैलाश पर्वत की चढ़ाई करने पर इस कारण प्रतिबंध लगाया हुआ है क्योंकि वह हिमालय के आस-पास जन्मे सारे ही धर्मों के लिए पवित्र पर्वत है. लेकिन हम अपने संवेदनशील पवित्र स्थानों को लेकर कितने लापरवाह हैं।

न विशेषज्ञों और न ही वैज्ञानिकों की राय पर ध्यान दे रही सरकार- 

ये वो तमाम कारण और शोध से निकले निष्कर्ष है, जिसको लेकर सरकार को भी आगाह किया गया था लेकिन लगता है केदारघाटी की चिंता न  केंद्र सरकार को है और न राज्य सरकार को,, बस सरकार केदार घाटी को एक पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने में जुटी है और सिर्फ और सिर्फ राजस्व बटोरना ही सरकार का मकसद रह गया है, यही कारण है कि इतनी संवेदनशील घाटी होने के बावजूद सरकार तमाम विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की राय पर ध्यान ही नहीं दे रही,और इसका नतीजा आज सबके सामने हैं,,चाहे वो 2013 की आपदा हो या कल का गौरीकुंड हादसा।

केदारनाथ में पैदा हो रहा नया खतरा, जल्द नहीं दिया ध्यान तो सकती है बड़ी मुश्किलें…

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केदारनाथ मंदिर  में अब कोई रील्स नहीं बना पाएंगे , केदारनाथ में पैदा हो रहा है एक बार फिर बड़ा संकट, खुद भगवान ही अब खतरे में आ गए हैं,केदारनाथ भगवान शिव का वो धाम जो हिमालय की गोद में स्थित है,पहले केदारनाथ की यात्रा काफी कठिन मानी जाती थी लेकिन आज के समय में सभी लोग वह पहुंच रहे हैं. एक समय था जब केदारनाथ जाने का रास्ता काफी कठिन था,और लोग यहां अपने अंत समय में जाया करते थे, क्योकि उस वक्त  यहां पहुंचने के लिए न सड़क थी और ना ही आज की तरह कोई हैली या अन्य सुविधाएं थी. कहते हैं पुराने समय में हरिद्वार के बाद पूरा रास्ता काफी मुश्किल भरा हुआ करता था, इसलिए श्रद्धालु अपने अंत समय में यहां जाया करते थे, और जाने के बाद ये भी उम्मीद कम ही रहती थी कि इंसान लौट कर आएगा या नही, इसलिए कई लोग यात्रा पर जाने से पहले अपना पिंड दान कर दिया करते थे। लेकिन आज धाम की स्तिथि कुछ और ही बयां करती  है।

2013 की आपदा के बाद लोगो की भीड़ बढ़ने लगी-

2013 की आयी भीषण आपदा के बाद केदारनाथ धाम सिर्फ मंदिर को छोड़कर पूरी तरह तहस नहस हो गया था,जिसके बाद सबसे पहले उस समय के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदारनाथ यात्रा को सुचारु और मंदिर परिसर को फिर से खड़ा करने की काफी कोशिश की, लेकिन 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह केदारनाथ को पुनः सवार कर खड़ा किया उसके बाद से ही केदारनाथ जाने के लिए लोगों में उत्सुकता बढ़ी,,,और श्रद्धालुओं की संख्या में यहां बहुत इजाफा होने लगा,,, लेकिन आज के समय में केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं के साथ-साथ मनोरंजन के लिए पहुंचने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है,सोशल मीडिया के इस दौर में कई वीडियो केदारनाथ से वायरल हुए जिससे केदारनाथ धाम ज्यादा चर्चा में बना है,ऐसे वीडियो से लगातार धार्मिक भावनाएं आहत होने का आरोप लगते रहे हैं, जिसके लिए मंदिर समिति पर एक्शन लेने का दबाव भी बन रहा थ।

मंदिर में फ़ोन और फोटोग्राफी पर प्रतिबंध-

लगातार ऐसे मामलों के सुर्ख़ियों में आने के बाद केदारनाथ मंदिर समिति ने अब बड़ा फैसला किया है,,, मंदिर समिति ने केदारनाथ मंदिर में अब मोबाइल फोन से फोटोग्राफी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की और से इस संबंध में धाम में जगह-जगह साइन बोर्ड भी लगाए गए हैं। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि केदारनाथ मंदिर के अंदर यदि कोई श्रद्धालु फोटो खींचता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। केदारनाथ मंदिर में आने वाले कई श्रद्धालु रील्स बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं। जिससे धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंच रही है। हाल ही में केदारनाथ धाम में एक महिला द्वारा गर्भ ग्रह में नोट बरसाने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। जबकि गर्भगृह में फोटो खिंचवाना वर्जित है, हालांकि सरकार ने कई बार खुद ही इस नियम की अनदेखी की है, बीकेटीसी के अध्यक्ष ने कहा कि धाम में अभी तक क्लॉक रूम की व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालु मोबाइल फोन लेकर दर्शन कर सकते हैं। लेकिन मंदिर के अंदर फोटो और वीडियो नहीं खींच सकते हैं। इस पर प्रतिबंध है। यदि कोई श्रद्धालु आदेशों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

भविष्या के लिए एक बड़ा डर-
केदारनाथ धाम की सिर्फ यही चिंता नहीं है, बल्कि यहां उमड़ रही भारी भीड़ भी एक बड़ा डर भविष्य के लिए खड़ा हो रहा है, केदारनाथ हिमालय के सेंसिटिव जोन  में बसा है यहां पर इतनी भीड़ पहुंचने से भी कई तरह का प्रभाव पड़ रहा हैं,भारी भीड़ से यहां दबाव भी बढ़ता है,केदार वैली में हेलीकॉप्टर से बढ़ रहे शोर से भी यहां के पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है, कई बार शोधकर्ता इस विषय पर भी सरकार को चेता चुके हैं, लेकिन उनकी बात पर कोई गौर करने को तैयार नहीं है।
आपदा के बाद तापमान में बड़ा बदलाव-
केदारनाथ धाम में आई आपदा के बाद से यहां के तापमान में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहा हैं. पहले जहां धाम में बर्फबारी और बारिश समय पर होने से तापमान सही रहता था. ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थीं. वहीं अब कुछ सालों से धाम में ग्लेशियर चटकने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं. इसके साथ ही यहां के बुग्यालों को नुकसान पहुंचने से वनस्पति और जीव जंतु भी विलुप्ति के कगार पर हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पर्यावरण को लेकर कोई कार्य नहीं किये जाने से पर्यावरण विशेषज्ञ भी भविष्य के लिए चिंतित नजर आ रहे है।

पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर-

केदारनाथ आपदा को नौ साल का समय बीत चुका है. तब से लेकर आज तक धाम में पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर चल रहे हैं. धाम को सुंदर और दिव्य बनाने की दिशा में निरंतर काम किया जा रहा है, लेकिन इन पुनर्निर्माण कार्यों और बढ़ती मानव गतिविधियों के साथ ही हेली सेवाओं ने धाम के स्वास्थ्य को बिगाड़ कर रख दिया है. यहां के पर्यावरण को बचाने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया जा रहा है, जिससे आज केदारनाथ की पहाड़ियां धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई है।

केदार घाटी के लिए हो रहा नया संकट खड़ा-

केदारनाथ घाटी के लिए एक बड़ी चिंता भी है- कंपन पैदा करता हेलिकॉप्टरों का शोर।  हर 5 मिनट में एक हेलिकॉप्टर केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में गड़गड़ा रहा है ,यही है नया संकट। क्योंकि, विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ये पवित्र मंदिर ग्लेशियर को काटकर बनाया गया है। इसलिए शोर से घाटी के दरकने और हेलिकॉप्टरों के धुंए के कार्बन से पूरा इलाका खतरे की जद में है। हमने भगवान तक पहुंचने के इतने सरल व अवैज्ञानिक रास्ते बना दिए हैं कि अब भगवान पर ही मुसीबत आ गई है। केदारनाथ के लिए 1997-98 तक एक ही हेलिपैड था। अब 9 हेलीपैड बन गए हैं। ये देहरादून से फाटा तक फैले हैं और 9 कंपनियों के लिए उड़ान सुविधा देते हैं। 8 साल पहले तक केदारनाथ के लिए कुल 10-15 उड़ानें थीं। अब केदारनाथ वैली में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक हेलिकॉप्टर रोजाना 250 से ज्यादा राउंड लगाते हैं। इनका शोर और इनसे निकलने वाले कार्बन ने ग्लेशियर काटकर बनाए मंदिर और उसकी पूरी घाटी के लिए नया संकट खड़ा कर दिया है।

धीरे-धीरे धाम में हो रहा है भू धसाव-

 

केदारनाथ धाम में पाये जानी वाली घास विशेष प्रकार की है. वनस्पति विज्ञान में इसे माँस घास कहा जाता है. ये जमीन को बांधने का काम करती है. साथ ही यहां के ईको सिस्टम को भी सही रखती है. बताया जा रहा है कि यह माॅस घास जमीन में कटाव होने से रोकती है और हिमालय के तापमान को व्यवस्थित रखने में मददगार होती है. केदारनाथ धाम चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा है. यहां धीरे-धीरे भू धसाव हो रहा है. यहां मानव का दबाव ज्यादा बढ़ गया है. भैरवनाथ मंदिर, वासुकी ताल और गरूड़चट्टी जाने के रास्ते से इस घास को रौंदा जाता है.  बुग्यालों में खुदाई करके टेंट लगाए गए हैं. जिन स्थानों पर टेंट लगाए गए हैं, वहां के बुग्यालों को पुनर्जीवित करने के लिए कोई कार्य नहीं किया जाता है, जिससे पानी का रिसाव होता जाता है और भूस्खलन की घटनाएं सामने आती है।

 

मंदिर की पहाड़ियों पर एवलांच की घटनाएं-
केदारनाथ धाम की पहाड़ियों में लगातार एवलांच की घटनाएं सामने आ रही हैं. इसके लिए पर्यावरणविद धाम में हो रहे तापमान बदलाव का कारण मानते हैं. पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली की माने तो केदारनाथ धाम के तापमान में ग्लोबल वार्मिंग के कारण वृद्धि देखने को मिल रही है. ग्लेशियर खिसक रहे हैं. केदारनाथ धाम में अनियंत्रित लोगों के जाने से वातावरण को नुकसान पहुंच रहा है. हिमालय क्षेत्र में हेलीकॉप्टर सेवाएं टैक्सी की तरह कार्य कर रही हैं, जबकि इनकी उड़ानों को विशेष इमरजेंसी की सेवाओं में उपयोग किया जाना चाहिए।
खतरे में हैं कई पशु और जानवर-

केदारनाथ में नीचे उड़ते हेलीकाप्टर दुर्लभ प्रजातियों के कई जीवों का ब्रीडिंग साइकल बिगड़ा है। उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल और राजकीय पशु कस्तूरी मृग इस सेंचुरी में अब नहीं दिखते। तितलियों की कई दुर्लभ प्रजातियां तो गायब हो चुकी हैं। स्नो लैपर्ड, हिमालयन थार और ब्राउन बीयर्स भी खतरे में हैं।

NGT के नियमों की उड़ती धज्जियां-

NGT ने सुनिश्चित करने को कहा था कि हेलिकॉप्टर केदारनाथ सेंचुरी में 600 मीटर के नीचे न उड़ें। आवाज 50 डेसिबल हो। लेकिन फेरे जल्दी पूरे करने और फ्यूल बचाने के लिए हेलिकॉप्टर 250 मी. ऊंचाई तक उड़ते हैं। आवाज भी दोगुनी होती है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीटूयट  में ग्लेशियर विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ डीबी डोभाल कहते हैं- सरकार को ये रिपोर्ट दे चुके हैं कि इससे मंदिर और घाटी को बड़ा खतरा हो सकता है।पद्मभूषण पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी बताते हैं कि हिमालय के इस सबसे संवेदनशील व शांत क्षेत्र में 100 डेसिबल शोर और कार्बन उत्सर्जन हर 5 मिनट में होगा तो मंदिर-पर्यावरण-वन्य जीवों के लिए खतरा तय है।