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उत्तराखंड में बारिश का कहर जारी, बिगड़ेंगे अभी और हालात…

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उत्तराखंड में मानसून ने भयानक तबाही मचा रखी है. उत्तराखंड  में मानसून का सीजन हर साल आफत लेकर आता है. हर साल आपदा की वजह से सैकड़ों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. तो वहीं सैकड़ों मकान भी तबाह हो जाते हैं. इतना ही नहीं आपदा की वजह से मरने वाले मवेशियों की तो कोई गिनती ही नहीं होती है. क्योंकि हर साल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश से तबाही मचती है  कई लोग बेघर हो जाते हैं और कई लोग अपनी जान तक गंवा देते हैं.  भारी बारिश के चलते आम जनजीवन भी अस्त-व्यस्त है. मौसम विभाग की मानें तो राज्य में अभी बारिश का ये सिलसिला जारी ही रहेगा. IMD ने कुछ इलाकों के लिए रेड अलर्ट भी जारी किया है. देश के कई राज्यों में मूसलाधार बारिश देखने को मिल रही है.  तो वहीं मैदान से लेकर पहाड़ी इलाकों तक भारी बारिश के चलते तबाही की तस्वीरें सामने आ रही हैं. सबसे ज्यादा तबाही उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में देखने को मिल रही है. उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश के चलते नदियां उफान पर हैं.  इस बीच मौसम विभाग ने अभी आफत कम नहीं होने की संभावना जताई है. मौसम विभाग ने उत्तराखंड में अगले पांच दिनों तक बारिश की चेतावनी दी है.

 

अब तक आपदा की वजह से 36 लोगों की हुई मौत

उत्तराखंड आपदा के हिसाब से अति संवेदनशील राज्य है. यहां पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा की कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें सैकड़ों लोग जान गवा चुके हैं. बात 2013 केदारनाथ आपदा की हो या फिर रैणी गांव में आई आपदा की.  हर साल बरसात के सीजन में ऐसी तबाही मचती है कि सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा देते हैं. इस साल ही अब तक आपदा की वजह से 36 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. यह आंकड़े आपदा परिचालन केंद्र के अनुसार हैं,, इसके अलावा 53 लोग ऐसे हैं जो घायल हुए हैं और 13 लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं बात सिर्फ इंसानों की नहीं है बल्कि ढाई सौ से ज्यादा छोटे बड़े पशु भी काल के मुंह में समा गए. नुकसान की अगर बात की जाए तो कच्चे-पक्के भवनों को सैकड़ों की संख्या में नुकसान हुआ है.

 

इन जिलों में हुई इतने लोगों और पशुओं की मौतें

इसी के साथ अगर जिलों में मौतों की बात की जाए तो बागेश्वर में 1, चमोली में 5, चंपावत में 2, देहरादून में 2, हरिद्वार में 2, नैनीताल में 2,पौड़ी में 2, पिथौरागढ़ में 5, रुद्रप्रयाग में 4, टिहरी में 5, उधम सिंह नगर में 2 और उत्तरकाशी में 4 लोगों की मौत हुई है. साल 2021 की बात की जाए तो आपदा की वजह से कुल 303 लोग मारे गए थे, जबकि 87 लोग घायल हुए थे. 61 लोग आज भी लापता सूची में दर्ज है. आपदा में 412 बड़े पशु और 740 छोटे पशु आपदा की चपेट में आकर मारे गए हैं.

 

अब तक 1500 से अधिक सड़कें हुई बंद-

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मानसून की बारिश हमेशा आफत लेकर आती है। सबसे अधिक कहर सड़कों पर बरसता है। बारिश में स्लिप आने और क्रॉनिक लैंडस्लाइड जोन (अति संवेदनशील) सड़कों के बंद होने का बड़ा कारण बनते हैं। पहले से चिह्नित भूस्खलन क्षेत्रों के अलावा हर साल नए क्रॉनिक जोन विकसित हो रहे हैं, जो सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय हैं। लोनिवि की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल अब तक कुल 1,508 सड़कें बंद हो चुकी हैं। इनमें 1,120 सड़कें लोनिवि, 7 NH और 381 PMGSY यानि (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) की हैं। इनमें से अब तक 1,235 सड़कों को खोला जा चुका है, जबकि 273 अब भी बंद हैं। इन सड़कों को चालू हालत में लाने के लिए 1,776.24 लाख रुपये खर्च होंगे, जबकि पूर्व की हालत में लाने के लिए 3,560.66 लाख रुपये की जरूरत पड़ेगी। यह आकलन लोनिवि की ओर से अपनी रिपोर्ट में किया गया है।

 

7 पुल भी हुए क्षतिग्रस्त-

प्रदेश में भारी बारिश के बाद उपजे हालात के कारण सात पुलों को भी नुकसान पहुंचा है। इनको चालू करने के लिए 14 लाख रुपये खर्च होंगे, जबकि पूर्व की हालत में लाने के लिए कुल 337.50 लाख रुपये खर्च होंगे। 

 

तेज बारिश से जन जीवन अस्त-व्यस्त-

उत्तराखंड में लगातार हो रही भारी बारिश के कारण जगह-जगह से तबाही के मंजर की तस्वीरें सामने आ रही हैं. ऋषिकेश में भी गंगा का पानी ऋषिकेश में स्थित परमार्थ निकेतन की शिव मूर्ति को छू कर बहने लगा है. शिव मूर्ति तक पहुंचने के लिए बनाई गई छोटी पुलिया भी पूरी तरह से नदी में डूब चुकी है. गंगा का बढ़ता जल स्तर अब डरा रहा है कि कहीं पानी का तेज बहाव एक बार फिर प्रतिमा को डूबो न दे. इसके साथ ही ऋषिकेश से गुजरने वाली चंद्रभागा नदी, सॉन्ग नदी, सुखवा नदी, बीन नदी के साथ-साथ नाले भी अपना रौद्र रूप दिखा रहे हैं. उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भी अब भारी बारिश के कारण झीलों का जल स्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है. तो वहीं, भारी बारिश के चलते नेशनल हाइवे में कटाव देखने को मिला. उत्तरकाशी में भी लगातार तेज बारिश के बाद गंगोत्री-यमुुनोत्री हाइवे पर कई जगह रास्ते बंद हो चुके हैं. जिसके कारण जगह-जगह फंसे कांवड़ियों का रेस्क्यू किया जा रहा है.

 

 

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प्रदेश में अभी टला नहीं बारिश का कहर. इन इलाकों में ऑरेंज अलर्ट-

IMD की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक, कल यानी गुरुवार को नैनीताल, उधम सिंह नगर, पौड़ी, चंपावत  में बारिश का रेड अलर्ट जारी किया गया है. इसके अलावा पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली, और अल्मोड़ा में बारिश का ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है. वहीं, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, देहरादून, टिहरी और हरिद्वार में भी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया गया है.

 

क्या कहता है मौसम का रेड, ऑरेंज और येलो अलर्ट-

मौसम विभाग मौसम के बहुत खराब होने पर रेड अलर्ट जारी करता है. इसमें प्रशासन को तुरंत सक्रिय होने का संकेत मिलता है. ऑरेंज अलर्ट मौसम के खराब होने पर जारी होता है और इसमें प्रशासन को तैयार रहने का इशारा मिलता है. येलो अलर्ट प्रशासन को सतर्क रहने के लिए कहता है.

 

मदद के लिए सरकार ने जारी किए हेल्पलाइन नंबर-

उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों एवं हिमाचल प्रदेश में फंसे उत्तराखंड के नागरिकों की सहायता के लिए सरकार ने आपदा राहत नंबर जारी किए हैं। किसी भी मदद के लिए लोग इन नंबरों 9411112985, 01352717380, 01352712685 पर संपर्क कर सकते हैं। साथ ही 9411112780 नंबर पर व्हाट्सएप मैसेज कर सकते हैं। सीएम धामी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है।

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उत्तराखंड में भारी बारिश के बीच लगातार भूस्खलन हो रहा है। कुमाऊं से लेकर गढ़वाल और पहाड़ से लेकर मैदान तक बारिश का दौर जारी है। कुमाऊं और गढ़वाल के सभी इलाकों में लगातार हो रही तेज बारिश आफत बनी हुई है। राजधानी देहरादून में लगातार 3 दिन से बारिश हो रही है। बारिश की वजह से देहरादून की सड़कों पर पानी भरा हुआ है, जिसके चलते लोगों को आने-जाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मौसम विभाग के अनुसार अभी अगले 5 दिन प्रदेश में बारिश का दौर जारी रहेगा। इसे देखते हुए कुमाऊं के सभी पहाड़ी जिलों में स्कूलों को बंद कर दिया गया है। प्रदेश में बारिश के दौरान भूस्खलन तथा अन्य संबंधित घटनाओं में 9 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी और छह अन्य घायल हुए हैं…. पिथौरागढ़, अल्मोड़ा बागेश्वर, नैनीताल और चंपावत में सभी स्कूल बंद रहेंगे। भारी बारिश के अलर्ट पर पांचों जिलों के डीएम ने यह अहम फैसला लिया है। तेज बारिश के चलते कुमाऊं की कई नदियां उफान पर हैं तो गढ़वाल और कुमाऊं में पहाड़ों से पत्थर गिर रहे हैं। इस कारण सड़कें भी अवरुद्ध हो रही हैं। मौसम विभाग ने नदियों के किनारे और पहाड़ी मार्गों पर सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। कई दिनों से प्रदेश भर के ज्यादातर इलाके बारिश में जलमग्न हैं। पहाड़ से लेकर मैदान और कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक सब जगह बारिश हो रही है। उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश के बाद पहाड़ से लेकर मैदान तक कुदरत का कहर बरप रहा है। पहाड़ी इलाकों में नदी नाले उफान पर आए हैं। गंगा, अलकनंदा, काली और बीन नदी उफान पर हैं। वहीं, भूस्खलन ने कई जिंदगियां लील लीं। उत्तरकाशी में पांच, रुद्रप्रयाग में एक और विकासनगर में दो लोगों की भूस्खलन के चलते मौत हो गई। उधर, मैदानी इलाके बारिश के बाद जलमग्न हो गए हैं।

 

चार-धाम यात्रा मार्ग भी हुए अवरुद्ध।

 

बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग शनिवार को पहाड़ी से बोल्डर गिरने के कारण एक बार फिर अवरुद्ध हो गया। बाजपुर चाडा के पास पहाड़ी से चट्टान टूटने के कारण बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग एक बार फिर बंद हो गया। मार्ग बंद होने की वजह से गाड़ियों को दूसरे रास्ते से निकालना पड़ रहा है। रविवार को देहरादून में तड़के से बारिश का दौर जारी रहा, चमोली जिले में मौसम खराब बना हुआ है। यहां भी बारिश हो रही है। केदारनाथ समेत पूरे रुद्रप्रयाग जिले में हल्की बारिश हो रही है। केदारनाथ यात्रा सुचारू है। लगातार बारिश के कारण जौनसार बावर में कई जगह पहाड़ दरक गए हैं। हरिद्वार में बाणगंगा (रायसी), पिथौरागढ़ में धौलीगंगा (कनज्योति) व नैनीताल में कोसी (बेतालघाट) में नदियों के जल स्तर में वृद्धि हो रही है। भूस्खलन की वजह से लोनिवि साहिया के स्टेट हाईवे समेत कई मोटर मार्ग बंद हैं। स्टेट हाईवे, मुख्य जिला मार्ग समेत 10 मोटर मार्ग बंद होने के कारण जौनसार बावर के करीब 100 गांवों, मजरों व खेड़ों में रहने वाली आबादी का जनजीवन प्रभावित हो गया है। सचिव आपदा प्रबंधन डा रंजीत कुमार सिन्हा के निर्देश पर राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र ने हरिद्वार, नैनीताल व पिथौरागढ़ के जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर अपने-अपने क्षेत्रों में विशेष सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं। मौसम विभाग ने कहीं ऑरेंज तो कहीं येलो अलर्ट जारी किया है। कई जिलों में विद्यालयों की छुट्टी कर दी गई है। पहाड़ी मार्गों और नदियों के किनारे सतर्कता बरतने को कहा गया है।बीते दो दिनों से जिस तरीके की बारिश हो रही है, उससे अब देश के पहाड़ी इलाकों से लेकर मैदानी इलाकों में बहुत बड़े खतरे की आहट सुनाई देने लगी है। पहाड़ों पर नजर रखने वाली देश की प्रमुख सरकारी एजेंसियों ने आशंका जताई है कि मूसलाधार बारिश के बाद अब खोखले हो चुके पहाड़ों के दरकने का अंदेशा बढ़ गया है। दरअसल यह रिपोर्ट लगातार बारिश के बाद पहाड़ों के भीतर हो रहे तेज पानी के रिसाव और कमजोर हो रही चट्टानों के चलते आई है। लगातार तेज हो रही बारिश के चलते हिमाचल प्रदेश के कुछ पहाड़ी इलाके सबसे ज्यादा खतरे के निशान पर आ गए हैं और वहां पर पहाड़ियों के खिसकने की बड़ी सूचनाएं भी आने लगी हैं। फिलहाल सरकारी एजेंसियों की चेतावनी के बाद सरकार तो अलर्ट हो गई है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है अगर ऐसा होता है तो यह बहुत बड़ी तबाही होगी।

 

 

 

 हिमालयन रीजन के खतरनाक इलाकों को खाली करने का सुझाव। 

 

बीते दो दिनों की बारिश ने सबसे ज्यादा तबाही हिमाचल प्रदेश के उन इलाकों में मचानी शुरू की है, जहां आबादी बसती है। पहाड़ों समेत मैदानी इलाकों पर नजर रखने वाली जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक जहां पर सबसे ज्यादा बारिश हो रही है और पानी का बहाव तेज है उन पहाड़ी क्षेत्रों में अब सबसे ज्यादा खतरा नजर आने लगा है। ऐसे खतरे को भांपते हुए डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की ओर से पहाड़ों और वहां पड़ने वाली बर्फ पर नजर रखने के लिए डिफेंस जियोइन्फोर्मेटिक्स एंड रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया समेत मौसम विभाग ने केंद्र सरकार को मौसम से होने वाली आपदा संबंधी रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट में अंदेशा जताया गया है कि अगर लगातार ऐसी बारिश होती रही, तो पहाड़ी इलाकों पर न सिर्फ पहाड़ों के खिसकने का खतरा बढ़ेगा, बल्कि मानव आबादी और जान माल की बड़ी क्षति भी हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया है कि कमजोर हो चुके पहाड़ों और बारिश के चलते क्षतिग्रस्त हुए इलाकों से अब वहां रहने वालों को किसी दूसरी जगह बसाया जाना जरूरी हो गया है।

 

 

 

यह बारिश सबसे खतरनाक साबित हो सकती है पहाड़ों के लिए…

 

जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व उपनिदेशक डॉ. अरूप चक्रवर्ती कहते हैं कि बीते एक दशक में तैयार की गई उनकी रिपोर्ट बताती है कि पहाड़ के ज्यादातर आबादी वाले हिस्से के इलाके एक खोखले टीले पर बसे हुए हैं। वह कहते हैं कि जिस तरीके की मूसलाधार बारिश पहाड़ों पर जमकर हो रही है और तेजी से पिघलते ग्लेशियर से निकलता पानी तेजी से नदियों के माध्यम से उन पहाड़ों के भीतर जाकर उनकी जड़ों को और खोखला कर रहा है। चक्रवर्ती अंदेशा जताते हैं कि जिस तरीके से बीते दो दिनों में बारिश हुई है वह पहाड़ी इलाकों के लिए सबसे खतरनाक साबित हो सकती है। चक्रवर्ती कहते हैं कि सबसे बड़ा खतरा पहाड़ों के खिसकने का है। उनका उनका कहना है कि इस वक्त सबसे ज्यादा हिमाचल प्रदेश में बारिश का कहर बरप रहा है। खोखले हो चुके पहाड़ों पर बसी आबादी और खतरनाक पहाड़ों पर बने मकानों और उनके ठिकानों के खिसकने का खतरा बना हुआ है। वह कहते हैं कि जिस तरीके से बारिश हुई है अगर किसी तरीके की बारिश इस मानसून में एक दो बार और हो जाती है तो बेहद चिंता की बात होगी।

 

इसलिए जताया बारिश में पहाड़ों के ढह जाने का खतरा।

पहाड़ों पर बसी आबादी को लेकर एक बहुत बड़ा खतरा सामने आ रहा है। भूवैज्ञानिकों का कहना है पहाड़ों का गुरुत्वाकर्षण केंद्र अपनी जगह से खिसकने लगा है। लगातार हो रहे बेतरतीब तरीके के निर्माण कार्य से आबादी वाले पहाड़ खोखले भी होने लगे हैं। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक अरूप चक्रवर्ती कहते हैं कि आने वाले दिनों में पहाड़ों के खिसकने की घटनाएं न सिर्फ हिमाचल और उत्तराखंड में बढ़ेंगी, बल्कि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में बसे पहाड़ी इलाकों और नेपाल, भूटान, तिब्बत जैसे देशों में भी ऐसी घटनाओं के बढ़ने की संभावना ज्यादा है। इसमें बारिश की वजह से और बड़ी घटनाओं के होने की आशंका बनी हुई है। वह कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पहाड़ों के खिसकने का सिलसिला लगातार जारी है। डॉक्टर चक्रवर्ती का कहना है कि पहाड़ों पर लगातार हो रहे अतिक्रमण से पहाड़ों का पूरा गुरुत्वाकर्षण केंद्र अव्यवस्थित हो गया है। पहाड़ों की टो कटिंग और बेतरतीब तरीके से हो रहे निर्माण की वजह से ऐसे हालात बने हैं। उनका कहना है कोई भी पहाड़ तभी तक टिका रह सकता है जब उसका गुरुत्वाकर्षण केंद्र स्थिर हो। पहाड़ों की तोड़फोड़ और पहाड़ों पर बेवजह के बोझ से उसका स्थिर रखने वाला गुरुत्वाकर्षण केंद्र अपनी जगह छोड़ देता है। ऐसे में जब तेज बारिश होती है और नदियों का बहाव अपने वेग के साथ पहाड़ी इलाकों में बहता है, तो पहाड़ों की खोखली हो नीव को गिराने की क्षमता भी रखते हैं। यही परिस्थितियां सबसे खतरनाक होती है।

 

हिमालयन रीजन में इसलिए बढ़ रही हैं बड़ी समस्या।

 

पहाड़ी इलाकों में हो रहे निर्माण कार्यों पर नजर रखने वाली संस्था से जुड़े वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं का कहना है कि पहाड़ पर बनने वाले एक मकान या एक सड़क या एक टनल के लिए भी वैज्ञानिक सर्वेक्षण बहुत जरूरी होता है। उनका कहना है क्योंकि पहाड़ की मजबूती बनाए गए मकान, बनाई गई सड़क और बनाई गई टनल के दौरान काटे गए पहाड़ के मलबे से ही जुड़ी होती है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की पहाड़ी इलाकों पर एक दशक तक किए गए शोध के नतीजे बताते हैं कि यहां पर जो निर्माण हुए उसमें पानी के निकास को लेकर उस तरह का ख्याल ही नहीं किया गया। शोधकर्ताओं के मुताबिक पहाड़ों पर पानी के निकास की सबसे बेहद जरूरत किसी भी हो रहे निर्माण के दौरान होती है। इस शोध को करने वाले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक डीएस चंदेल की रिपोर्ट में पहाड़ों की मजबूती और पहाड़ों की मिट्टी से लेकर उसके पूरे भौगोलिक परिदृश्य को शामिल किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन में पाया था कि वे पहाड़ जहां पर इंसानी बस्तियां बहुत ज्यादा बसने लगी हैं, वहां पहाड़ धीरे-धीरे ही सही लेकिन खोखले होते जा रहे हैं। ऐसे माहौल में अगर कभी बड़ी बारिश होती है तो सबसे बड़ा खतरा पहाड़ों पर बसे शहरों के लिए ही होने वाला है।

 

 दिल्ली में टूटा रिकॉर्ड।

मौसम विभाग के अनुसार बारिश ने दिल्ली में 20 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. मौसम विभाग के एक अधिकारी के अनुसार दिल्ली के प्राथमिक मौसम केंद्र सफदरजंग वेधशाला ने सुबह 8.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक  126.1  मिलीमीटर (मिमी) बारिश दर्ज की. उन्होंने बताया कि बारिश का यह आंकड़ा 10 जुलाई 2003 के बाद सबसे ज्यादा है और तब 24 घंटों के दौरान 133.4 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी.

 

मौसम विभाग ने दी ये जानकारी….

मौसम विभाग ने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत के ऊपर बना हुआ है, जबकि मानसून अपनी सामान्य स्थिति के दक्षिण की ओर फैल गया है. साथ ही, दक्षिण-पश्चिम राजस्थान के ऊपर एक चक्रवाती स्थिति बनी हुई है. आईएमडी ने दो दिन पहले हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत ज्यादा बारिश होने की चेतावनी दी थी. इसके अलावा जम्मू कश्मीर के छिटपुट स्थानों, और पूर्वी राजस्थान, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, और पंजाब में भी भारी बारिश का अनुमान लगाया गया था. आईएमडी ने कहा कि 11 जुलाई से क्षेत्र में भारी बारिश होने की संभावना नहीं है. मौसम विभाग के मुताबिक 15 किलोमीटर से कम बारिश हल्की, 15 मिलीमीटर से 64.5 मिलीमीटर वर्षा मध्यम, 64.5 मिलीमीटर से 115.5 भारी और 115.5 से 204.4 मिलीमीटर अत्यधिक बारिश समझी जाती है. दिल्ली में जुलाई में अब तक 137 मिलीमीटर बारिश हुई है . औसत के हिसाब से शहर में पूरे महीने में 209.7 मिलीमीटर बारिश होती है.

2024 का रण, भाजपा का डर!उत्तराखंड भाजपा के तीन सांसद अपनी स्तिथि को लेकर आश्वस्त नहीं !

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तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्माई चेहरे का असर फीका पड़ना शुरू हो गया है,? क्या अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा मुश्किल में पड़ गयी  है ? उत्तराखंड में भाजपा के तीन सांसद क्यों डेंजर जोन में खुद को पा रहे हैं? 

 

2014और 2019  में भाजपा ने मोदी के करिश्में से देश में प्रचंड बहुमत की सरकार केंद्र में बनाई,खुद भाजपा अपने दम पर बहुमत को पार कर अपने इतिहास की सबसे बड़ी जीत दर्ज करने में कामयाब हुई,मोदी के चेहरे पर ही भरोसा करते हुए उत्तराखंड की जनता ने लगातार दो बार विधानसभा और लोकसभा में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया था, लेकिन 2024 आते आते अब भाजपा के लिए पहले जैसी स्तिथि नहीं रही हैं,,,
कई सर्वे और राजनैतिक विश्लेषक  ये बताते हैं कि आगामी चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है,और सिर्फ मोदी के नाम पर भाजपा हर चुनाव नहीं जीत सकती,अभी हाल ही में  वायरल हुए RSS का मध्य्प्रदेश को लेकर किये सर्वे में ये बात सामने आयी है,,,कांग्रेस ने इसका  जिक्र कर  मध्य्प्रदेश में वापसी की बात कह रही है, सर्वे में ये भी आरएसएस ने जिक्र किया है कि हर चुनाव मोदी के चहरे पर नहीं जीता जा सकता है,,  विपक्ष का लगातार एकजुट होना भी भाजपा के लिए खतरा बन रहा है,उसके ऊपर हिमांचल और कर्नाटक में बीजेपी की हार से ये साबित हो गया है कि मोदी का चेहरा भी भाजपा को हर राज्य में जीत नहीं दिला सकता।।।
उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत की सरकार और पांचो लोकसभा सीट पर भाजपा  का कब्जा होने के बावजूद भी भाजपा के तीन सांसद अपनी स्तिथि को लेकर आश्वस्त नहीं है,और खुद को डेंजर जोन में पा रहे हैं, हाल ही में छपी एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है… रिपोर्ट के अनुसार  उत्तराखंड में भाजपा के तीन लोकसभा सांसद डेंजर जोन में बताए जा रहे हैं।   सासंदों को अपनी स्थिति पार्टी की अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। पार्टी के आंतरिक सर्वे में यह फीडबैक सामने आया है। जिसके  बाद पार्टी शीर्ष नेतृत्व की ओर से सांसदों को आगाह किया गया है।आंतरिक सर्वे में पार्टी के कुछ सांसदों की स्थिति ठीक नहीं पाई गई है। ऐसे में 2024 के चुनाव के लिए राज्य में कुछ चेहरे बदले जाने की चर्चा शुरू हो गई है। इस रिपोर्ट से साफ़ है कि उत्तराखंड में भी भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में खतरे में है,जिससे बचने के लिए इस बार प्रत्याशियों को बदला जा सकता है,,,
उत्तराखंड में भाजपा के लिए सबसे मुफीद सीट मानी जाती है पौड़ी लोकसभा सीट,जहां से इस समय पूर्व मुख़्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सांसद हैं,पौड़ी सीट भाजपा की सबसे मजबूत सीट मानी जाती है,सैनिक बाहुल सीट होने के साथ यहां से कई मुख़्यमंत्री भी यहां से रहे हैं लेकिन इस बार इस सीट पर भी भाजपा को कड़ी चुनौती कांग्रेस से मिल सकती है,अंकिता हत्याकांड के बाद यहां  के लोगों में सरकार के प्रति काफी गुस्सा दिखाई दिया,जिसका असर भी आने वाले चुनाव में देखने को मिल सकता है,ख़ासतौर पर महिला वोटर इस घटना से बेहद आक्रोशित है,,, 
हरिद्वार सीट में जिस तरह से विधान सभा में भाजपा को अपेक्षा के अनुरूप जीत नहीं मिली उससे हरिद्वार लोकसभा सीट भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, यहां भी भाजपा के पूर्व मुख़्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक वर्तमान में सांसद है,लेकिन जिस तरह से हरिद्वार सीट पर धड़ेबाजी भाजपा में दिखाई देती है वो भी पार्टी  के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है,,,  कुल मिलाकर आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तराखंड में काफी संघर्ष करना पड़ सकता है, ये भी हो सकता है भाजपा कई नए प्रत्याशियों को मौका दे दे,लेकिन इस सब से भी क्या भाजपा की राह आसान हो पाएगी ये तो आने वाला वक्त बतायेगा ?

टूट जाएगा गरीब बच्चों की पढ़ाई का सपना ? “शिक्षा के बढ़ते निजीकरण के आगे घुटने टेकती सरकार”

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कुछ समय पहले  धामी कैबिनेट ने शिक्षा को लेकर एक फैसला किया इस फैसले से जहां छात्र फेल होने से बच पाएंगे,साथ ही मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृति देने का प्रस्ताव भी पास किया है,लेकिन इससे बड़ी एक और चीज शिक्षा के लिए जरूरी है जहां ध्यान देना सबसे अधिक जरूरी है और वो है प्रदेश की शिक्षा के बुनियादी ढांचे को सुधारना जिसको शायद प्रदेश के मुख़्यमंत्री और शिक्षा मंत्री भूल चुकें हैं। ..आज हम आपको इस से जुड़ी पूरी रिपोर्ट बताते है।इस प्रदेश के शिक्षा से जुड़ें कुछ ऐसे तथ्यों को आपके सामने रखेंगे जो आपके पैरों से जमीन खिसखा देंगे, खासतौर पर मध्यमवर्गीय उन अभिवाहकों जो अपना पेट काटकर अपने बच्चों के भविष्य सवारने में जुटे है,आज की रिपोर्ट में आपको बताएंगे कि किस तरह शिक्षा जिसको सबका अधिकार माना जाता है उसको हासिल करना धीरे-धीरे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए मुश्किल हो रहा है, आज बात उत्तराखंड की शिक्षा से जुड़ें उन  अहम बिंदुओं पर जिनका अभी असर ही सही लेकिन आने वाले समय में अगर ऐसा ही चलता रहा तो लगभग प्रदेश के अधिकतर लोगों पर पड़ने वाला है.

 

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उत्तराखंड में स्कूलों की छात्रसंख्या बढ़ाना हमेशा शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है. अब महकमे ने शायद इस मामले पर हाथ खड़े कर लिये हैं. शायद इसीलिए राज्य के 3000 स्कूलों को जल्द ही बंद करने की तैयारी की जा रही है. यह वह स्कूल है जहां पर लगातार छात्र संख्या कम हुई है. बेहद कम छात्र संख्या के चलते यह स्कूल अब शिक्षा विभाग को बोझ लगने लगे हैं. उत्तराखंड शिक्षा विभाग में करोड़ों का बजट और लोक लुभावनी स्कीम भी सरकारी स्कूलों में बच्चों को लाने के लिए नहीं लुभा पा रही है.पर्वतीय क्षेत्रों में 5 और मैदानी क्षेत्रों में 10 या इससे कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को बंद कर इन स्कूलों के बच्चों को नजदीक के उत्कृष्ट स्कूलों में भेजा जाएगा. राज्य में 10 या इससे कम छात्र संख्या वाले करीब तीन हजार स्कूल हैं.

सवाल ये उठता है कि आखिर ये नौबत आ क्यो गयी,आखिर क्यों सरकारी स्कूलों से लोगों का मोह भंग हो रहा है ? उत्तराखंड में हर साल औसतन 41 नए स्कूल खुल रहे हैं ये आंकड़ा देख लगता है कि प्रदेश की शिक्षा अच्छे ढर्रे की ओर जा रही है लेकिन अगले ही आंकड़े पर नजर पड़ते ही कई सवाल पैदा हो जाते हैं,41 नए स्कूल खुलने के साथ ही उसके दोगुने से ज्यादा बंद भी हो रहे हैं ये भी सालाना औसत लगाएं तो 112  विद्यालय बंद भी हो रहे हैं

 

इनफार्मेशन सिस्टम  एजुकेशन प्लस (UDISE+) 2019-20 में उपलब्ध जानकारी के अनुसार उत्तराखंड राज्य मेंकक्षा 1 से 12 तक के कुल 16,741 सरकारी स्कूल हैं। यदि इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो उत्तराखंड राज्य में मात्र 6.4% स्कूलों में सुचारू रूप से इंटरनेट कनेक्शन है, मात्र 22.26%स्कूलों में सुचारु रूप से कंप्यूटर की सुविधा है,और 20% से भी ज्यादा ऐसे स्कूल हैं जहां सुचारु रूप से बिजली कनेक्शन नहीं है।

इन सभी सुविधाओं के अतिरिक्त राज्य में अभी भी 10% से ज़्यादा स्कूल ऐसे हैं जहां पीने के पानी की सुविधा नहीं है, 13% स्कूलों में लड़कों के लिये और 12% स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है, इन सभी आंकड़ों के अतरिक्त वर्ष 2018 में आयी एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) बताती है कि राज्य में 19.7% ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं जहां पर खेल का मैदान नहीं है।

शिक्षा क्षेत्र के लिए प्रकाशित होने वाली अधिकांश रिपोर्ट उत्तराखंडके स्कूलों की बदहाल स्थिति की ओर इशारा करती हैं। दिसम्बर 2021 में प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की ओर से जारी की गयी फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमरेसी इंडेक्स की रिपोर्ट उत्तराखंड राज्य में स्कूली शिक्षा की बदहाली को उजागर करती है,यह रिपोर्ट बताती है कि राज्य में मात्र 8% प्राथमिक स्कूल ही हैं जहां कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध हैं।दस साल से कम उम्र के बच्चों में साक्षरता दर को बताने वाली इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य ने शिक्षा के आधारभूत ढांचे में 64.89%, शैक्षणिक सुविधा की पहुंच में 39.94%, बेसिक हेल्थ में 64.44%, लर्निंग,आउटकम में 82.12% और गवर्नेंस में 44.6% अंक प्राप्त किये।

देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस राज्य बनने से अब तक बारी-बारी से सरकारें चला  चुकी हैं, लेकिन राज्य के सरकारी स्कूल आज भी बुनियादी सुविधाओं से कोसो दूर हैं।आज भी चुनाव के समय अच्छीशिक्षा के लिए जनता से वादे तो किये जाते हैं लेकिन राज्य के विद्यालयों की स्थिति के आंकड़े बताते हैं कि सरकारी स्कूलों पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते विद्यार्थिओं का नामांकन कम हो रहा है, और अंत में कम नामांकन के चलते स्कूल बंद कर दिया जाता है।

2012-13 में उत्तराखंड में कुल 12,499 राजकीय प्राथमिक विद्यालय और 2,805 राजकीय माध्यमिक विद्यालय थे जिनकी संख्या वर्ष 2019-20 तक घटकर क्रमशः 11,653 और 2,608 हो गयी। यदि जिलेवार इनकी संख्या देखें तो अल्मोड़ा में 130, बागेश्वर में 39, चमोली में 49, चम्पावत में 28, देहरादून में 57, हरिद्वार में 10, नैनीताल में 17, पिथौरागगढ़ में 130, रूद्रप्रयाग में 41 और टिहरी गढ़वाल में 180 सरकारी प्राथमिक विद्यालय पिछले 10 वर्षों में बंद हो चुके हैं।इस ही के विपरीत, मैदानी और पर्वतीय सभी जिलों में पिछले 10 सालों में निजी स्कूलों में बढ़ोतरी हुई है|

अभिभावकों का मानना है कि शिक्षा के लिए ज़रूरी सुविधाएँ जैसे कंप्यूटर, शिक्षकों की उचित संख्या, पीने के पानी की उपलब्धता, आदि सरकारी स्कूल की तुलना में निजी स्कूलों ज़्यादा अच्छी होती हैं।अगर सरकारी स्कूलों में भी अच्छी सुविधाएं सरकार उपलब्ध कराये तो हम या कोई भी व्यक्ति प्राइवेट स्कूलों में इतनी ज़्यादा फीस क्यों देना चाहेगा ?

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार प्रत्येक विद्यालय के लिए कुछ मानक निश्चित किये गये हैं। इन मानकों के अनुसार प्रत्येक विद्यालय के भवन में शिक्षकों के लिए एक कक्ष, बाधा मुक्त पहुंच, लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय, विद्यार्थिओं के लिए पर्याप्त और स्वच्छ पेयजल व्यवस्था, जिन विद्यालयों में मध्याह्न भोजन पकाया जाता है वहां रसोई; और एक खेल का मैदान का होना अनिवार्य है।

आज सरकार का रुझान निजीकरण की ओर बढ़ता जा रहा है,सरकारी तंत्र के पास साधन तो है लेकिन जनता के लिए काम करने की मंशा नहीं है इसी कारण आज सरकारी स्कूलों में अच्छे भवन तो हैं लेकिन जरुरी सुविधाएं नहीं हैं, उत्तराखंड राज्य में विद्यालयों की स्थिति के आंकड़े दिखाते हैं कि सरकारी स्कूलों पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते विद्यार्थियों का नामांकन कम हो रहा है, और अंत में कम नामांकन के चलते स्कूल बंद कर दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर राज्य में प्राइवेट स्कूलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार साल 2012-13 से लेकर साल 2019-20 तक प्रदेश में 846 राजकीय प्राथमिक विद्यालय और 197 राजकीय माध्यमिक विद्यालय बंद हो चुके हैं।लेकिन, इस दौरान निजी प्राथमिक-माध्यमिक विद्यालयों में काफी वृद्धि हुई है।साल 2012-13 में इन स्कूलों की संख्या 776 थी लेकिन साल 2019-20 में यह लगभग 280% बढ़कर 2197 हो गयी।

 

वहीं दूसरी ओर सरकार के द्वारा आरटीई के तहत निजी स्कूलों में एडमिशन को प्राथमिकता दी जा रही है,उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए निजी स्कूलों में सीट आरक्षित करने से ज़्यादा बेहतर है कि सरकार अपने सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाये। इस समय राज्य के निजी स्कूलों में करीब 90 हजार बच्चे आरटीई के तहत शिक्षा ले रहे हैंजिसका पिछले कुछ सालो में कुल खर्च 126 करोड़ रुपये तक आ चुका है। जो रुपये सरकार के द्वारा आरटीई के तहत निजी स्कूलों को दिये जा रहे हैं उनको सरकारी स्कूलों में जरुरी सुविधाओ को बेहतर बनाने के लिए खर्च किया जा सकता है। आज अधिकांश अभिभावक ना चाहते हुए भी अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं। इन अभिभावकों से बात करने परमालूम होता है कि यदि सरकारी स्कूलों में अच्छी सुविधाएँ मिलें तो ये लोग भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ना चाहेंगे। क्योंकि आज मंहगाई के इस दौर में निजी स्कूलों में भारी भरकम फ़ीस देना बहुत मुश्किल होता है।

इतना ही नहीं अब सरकार की नाकामी का इससे बड़ा क्या सबूत हो सकता है  कि उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद हालत में सुधार नहीं हुआ तो इन्हे गोद देने की तैयारी की जा रही है। सामर्थ्यवान सरकारी स्कूलों को गोद लेकर इनमें उचित संसाधन मुहैया कराएंगे। यही नहीं वह अपने माता-पिता या किसी अन्य स्वजन के नाम पर इन स्कूलों का नामकरण भी कर सकेंगे।शिक्षा विभाग की ओर से इसके लिए नीति बनाई जा रही है।गोद लेने वाले व्यक्ति के माता-पिता या किसी अन्य के नाम पर स्कूल का नामकरण किया जाएगा। इसके बदले संबंधित को स्कूल पर आने वाले कुछ खर्च वहन करने होंगे। विभाग की ओर से इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है,जिसे कैबिनेट में लाया जाएगा।ये हालात तब हैं जब 1100 करोड़ रुपये हर साल केंद्र सरकार की ओर से समग्र शिक्षा अभियान के तहत दिए जा रहे हैं।

शिक्षा का अधिकार कानून प्रत्येक बच्चे तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था, अब अगर इस तरह सरकारी स्कूल बंद किए जाएंगे तो एक बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित रह जाएगा, जिसकी जिम्मेदारी आखिर  लेगा कौन? क्योकि कोई भी सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नजर नहीं आती,  शिक्षा का होता निजीकरण एक दिन प्रदेश के अभिवाहकों को बड़ी मुश्किल में डालने वाला है, बंद होते सरकारी स्कुल और बढ़ते प्राइवेट विद्यालय के दौर में वो समय ज्यादा दूर नहीं जब जनता के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा और फिर वो  समय भी जल्द आ सकता है जब निजी स्कूलों के आगे सरकारों  को भी घुटने टेकने पड़ेंगे,तो फिर आम आदमी की क्या बिसात जो  टिक पाये ।