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उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार हो रही है शीतकालीन चार धाम यात्रा, जानिए कब और कैसे शुरू होगी ये यात्रा।

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पूरी दुनिया जब क्रिसमस और न्यू ईयर के जश्न में डूब रही होगी, तब देवभूमि उत्तराखंड में पहली बार ऐतिहासिक शीतकालीन यात्रा की शुरूआत होगी। आमतौर पर चारधाम यात्रा की शुरूआत उत्तराखंड में गर्मियों में होती है, लेकिन पहली बार शीतकालीन यात्रा पोस्ट मास में शुरू होने वाली है। यात्रा की शुरूआत जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद करेंगे। शंकराचार्य के प्रतिनिधियों ने रविवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की। सीएम धामी ने चारधाम यात्रा के लिए शुभकामनाएं दी हैं।

7 दिन की शीतकालीन तीर्थ यात्रा की शुरुआत 27 दिसंबर से होगी। समापन 2 जनवरी को हरिद्वार में होगा। यात्रा के आमंत्रण के लिए ज्योतिर्मठ का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री धामी से मिला और यात्रा का आमंत्रण पत्र दिया।उत्तराखंड में चारधाम यात्रा 6 माह की अवधि की होती है,,ठंड और बर्फबारी के साथ ही ये यात्रा शीतकाल के लिए बंद कर दी जाती है लेकिन अब उत्तराखंड में शीतकालीन चारधाम यात्रा की भी शुरुआत होने जा रही है, यानी साल के 12 महीने अब ये यात्रा हो पायेगी नए साल के अवसर पर अगर आप भी चारों धाम  के दर्शन करना चाहते हैं, तो ये बिल्कुल संभव है.

 

ज्योतिर्पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा शीतकालीन चारधाम यात्रा शुरू की जा रही है. आमतौर पर चारधाम यात्रा की शुरुआत उत्तराखंड में गर्मियों में होती है. यह यात्रा 6 माह तक यानी दीपावली के आसपास तक चलती है, लेकिन पहली बार शीतकालीन यात्रा पौष मास में शुरू होने जा रही है।

जानिए क्या कहा अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने- 

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि इस बार शीतकाल के दौरान चारों धामों की यात्रा कर वह उस  धारणा को समाप्त करना चाहते हैं  कि  सिर्फ 6 महीने ही चार धाम की पूजा हो सकती है वह लोगों को यह समझाने का प्रयास करेंगे कि शीतकाल में भी चार धाम की पूजा वैकल्पिक स्थान पर की जाती है, यहां दर्शन करने पर भी वही पुण्य मिलता है, जो मूल स्थान पर मिलता है उन्होंने कहा कि इससे चारों धामों में आस्था रखने वाले साल भर दर्शन के लिए उत्तराखंड पहुंच सकते हैं साथ ही स्थानीय लोगों और सरकार को इसका आर्थिक रूप से फायदा भी  मिलेगा।

कोई शंकराचार्य इतिहास में पहली बार कर रहे ऐसी यात्रा-

इतिहास में पहली बार कोई शंकराचार्य ऐसी यात्रा कर रहे हैं। आम धारणा है कि शीतकाल के 6 माह तक उत्तराखंड के चार धामों की बागडोर देवताओं को सौंप दी जाती है और उन स्थानों पर प्रतिष्ठित चल मूर्तियों को पूजन स्थलों में विधि विधान से विराजमान कर दिया जाता है। इन स्थानों पर 6 महीने तक पूजा पाठ पारंपरिक पुजारी ही करते हैं, लेकिन लोगों में धारणा रहती है कि अब 6 महीने के लिए पट बंद हुए तो देवताओं के दर्शन भी दुर्लभ होंगे। ये प्रयास अगर सफल होता है तो निश्चित रूप से उत्तराखंड में पर्यटन को पंख लग सकते हैं और केवल चार धाम यात्रा ही नहीं बल्कि प्रदेश की आर्थिकी के लिए भी एक अच्छा कदम साबित हो सकता है।

उत्तराखंड में बर्फबारी: खूबसूरत बर्फीली वादियों में हो रही है जमकर बर्फ़बारी, क्रिसमस-नए साल के लिए कर सकते हैं प्लान.

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मौसम के बदले मिजाज के साथ ही मंगलवार को चारों धामों के साथ ही हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी और औली में जमकर बर्फबारी हुई। केदारनाथ में जहां चार इंच नई बर्फ जम गई है वहीं तापमान माइनस 7 तक रहा है। 

वहीं निचले क्षेत्रों में हुई बारिश और पहाड़ों में बर्फबारी से कड़ाके की ठंड पड़ने लगी है। ठंड से बचने के लिए लोगों ने अलाव का सहारा लिया। गोपेश्वर/जोशीमठ में मंगलवार को सुबह से बादल छाए थे और दोपहर बाद चमोली जिले में बदरीनाथ धाम, हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी, रुद्रनाथ, काली माटी, औली, गोरसों बुग्याल सहित ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जमकर बर्फबारी हुई, जबकि निचले क्षेत्रों में बारिश हुई।

गोपेश्वर, जोशीमठ, पोखरी, नंदानगर, पीपलकोटी आदि क्षेत्रों में ठंडी हवाएं चलीं। ठंड से बचने के लिए लोग घरों में ही दुबके रहे और बाजारों में सन्नाटा छाया रहा। बदरीनाथ में तापमान अधिकतम -1 और न्यूनतम – 8 डिग्री, औली में अधिकतम 3, न्यूनतम -3 और , जोशीमठ में अधिकतम 9 , न्यूनतम – 2 रहा। 

रुद्रप्रयाग केदारनाथ धाम में दोपहर बाद 12 बजे बर्फबारी हुई जो देर शाम तक होती रही। धाम में लगभग चार इंच नई बर्फ जमी। वहीं, द्वितीय केदार व तृतीय केदार में भी बर्फ गिरी। धाम में तापमान अधिकतम 1 डिग्री व न्यूनतम -7 डिग्री दर्ज किया गया। 

उत्तरकाशी/बड़कोट स्थित गंगोत्री व यमुनोत्री धाम में इस सीजन की दूसरी बर्फबारी हुई जबकि हर्षिल में भी बर्फबारी हुई। गंगोत्री धाम में अधिकतम तापमान -3 और न्यूनतम -8 दर्ज किया गया है। वहीं यमुनोत्री धाम में अधिकतम -1 व न्यूनतम तापमान -7 दर्ज किया गया है। 

बदरीनाथ धाम में मास्टर प्लान का काम हुआ प्रभावित-

गोपेश्वर में बर्फबारी से बदरीनाथ धाम में महायोजना मास्टर प्लान का काम प्रभावित हो गया है और मजदूर काम नहीं कर पाए। मास्टर प्लान के कार्य में लगे वाहन और उपकरणों पर भी बर्फ की मोटी चादर बिछ गई है।

क्रिसमस और नए वर्ष से पहले औली की पहाड़ियां बर्फ से ढकीं-

औली में क्रिसमस और नए वर्ष के आगमन से पहले बर्फबारी होने से पर्यटन से जुड़े व्यापारियों के चेहरे खिल गए हैं। बर्फबारी से औली में पर्यटकों के बढ़ने की उम्मीद है। मंगलवार को हुई बर्फबारी से औली के साथ ही समीपवर्ती पहाड़ियां बर्फ से ढक गई हैं।

पर्यटकों में होगा इजाफा-

औली में स्कीइंग की ढलानें भी बर्फ से ढक गई हैं। बर्फबारी के बीच कई पर्यटक चेयर लिफ्ट से औली का दीदार कर रहे थे। औली में पर्यटन व्यवसायियों का कहना है कि क्रिसमस से पहले बर्फबारी शुभ संकेत है। दिसंबर माह के अंत में भी बर्फबारी होती है तो पर्यटकों में इजाफा हो जाएगा। 

चमोली में 50 से अधिक गांवों में गिरी बर्फ- 

चमोली जनपद के 50 से अधिक गांवों में बर्फबारी हुई है। निजमुला घाटी के ईराणी, पाणा, झींझी, रामणी, ल्वाणी, घूनी, पडेरगांव, सुंग, कनोल, सुतोल, पेरी के साथ ही जोशीमठ क्षेत्र के नीती घाटी के गांवों में भी बर्फबारी हुई है। गांवों को जाने वाले पैदल रास्तों में भी बर्फ जम गई है। रामणी गांव के ग्राम प्रधान सूरज पंवार ने बताया कि बर्फबारी से कड़ाके की ठंड शुरू हो गई है।

Uttarakhand: केदारनाथ में हुई बर्फ़बारी, पारा-6 डिग्री पहुंचा, आज कहीं बारिश तो कहीं कोहरा, जानिए कहां कैसा है मौसम का हाल.

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प्रदेश के पर्वतीय जिलों के कुछ इलाकों में हल्की बारिश होने से ठंड बढ़ सकती है। मैदानी इलाकों में कोहरा लगने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। मौसम विज्ञान केंद्र की ओर से चमोली, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले के कुछ इलाकों में बारिश होने की संभावना जताई है।

अन्य जिलों में मौसम शुष्क रहेगा। ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले के कुछ इलाकों में सुबह के समय कोहरा छाने से ठंड बढ़ सकती है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है आठ दिसंबर तक प्रदेश भर में मौसम शुष्क रहेगा। इसके बाद पर्वतीय जिलों में बारिश व बर्फबारी होने से तापमान में गिरावट रिकॉर्ड की जाएगी। इसका असर मैदानी इलाकों में भी देखने को मिलेगा।

वहीं केदारनाथ में सोमवार देर शाम को तापमान माइनस छह डिग्री पहुंच गया। धाम में जमकर बर्फबारी भी हो रही है। मौसम की बेरुखी से केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। इधर, निचले इलाकों में भी सोमवार को कुछ देर हल्की बारिश हुई, जिससे ठंड बढ़ गई है। उधर, पहाड़ों की रानी मसूरी में भी देर रात हुई बारिश हुई। जौनपुर के नागटिब्बा में रात को बर्फबारी होने से क्षेत्र में ठंड बढ़ गई है। वहीं यमुनोत्री धाम सहित यमुना घाटी में कल की बारिश बर्फबारी से ठंड बढ़ गई।

सोमवार को सुबह से ही केदारनाथ में हल्के बादल छाए रहे। दिन चढ़ने के साथ यहां मौसम खराब होता गया और दोपहर 3 बजे से हल्की-हल्की बर्फबारी होने लगी।

देर रात तक रुक-रुककर हल्की बर्फबारी होती रही। खराब मौसम के कारण केदारनाथ में तापमान में काफी गिरावट आई है, जिससे ठंड बढ़ गई है।

धाम में अधिकतम तापमान दो डिग्री और न्यूनतम माइनस छह डिग्री दर्ज किया गया। जिला आपदा प्रबंधन-प्राधिकरण, लोनिवि के ईई विनय झिक्वांण ने बताया कि खराब मौसम के कारण पुनर्निर्माण कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं।

केदारनाथ में इन दिनों 300 मजदूर पुनर्निर्माण कार्य में जुटे हुए हैं।

उत्तराखंड के कई जिलों में झमाझम बारिश और बर्फबारी, जानिए कैसा रहेगा अगले 2 दिनों तक मौसम का हाल.

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उत्तराखंड में मौसम का मिजाज बिगड़ा हुआ है। राजधानी देहरादून समेत प्रदेशभर के कई जिलों में भारी बारिश के साथ ही तेज गर्जना हो रही है। बारिश के बीच अचानक राजधानी देहरादून में अंधेरा छा गया। वाहनों को दिन में हेडलाइट जलानी पड़ी। तो वहीं सभी जगह सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें जलाई गयी.

उत्तराखंड में बदला मौसम का मिजाज-

सोमवार उत्तराखंड में भारी बारिश के साथ ही तेज हवाएं चलने से मौसम ठंडा हो गया है। बदले मौसम के मिजाज के चलते ठंड बढ़ने से लैंसडाउन चौक के पास लोगों ने अलाव का सहारा लिया। वहीं धुंध के कारण अंधेरा होने से वाहनों को दिन में हेडलाइट जलानी पड़ी। बारिश होने से तापमान में भारी गिरावट दर्ज की गई है। सुबह स्कूली बच्चों और नौकरीपेशा लोगों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। राजधानी देहरादून सहित प्रदेश के कई जिलों में झमाझम बारिश का सिलसिला जारी है। हरिद्वार में तेज तूफान से धूल मिट्टी, कूड़ा तेज शहर के रोड और गलियों में पसर गया।

तेज आंधी के चलते कई जगह पेड़ की शाखाएं टूट कर गिर गई है। उत्तरकाशी में बादल छाए हुए हैं साथ ही ठंडी हवाएं चल रही है। वहीं विकासनगर में मूसलाधार बारिश हो रही है।मौसम विभाग की ओर से आज सोमवार को बारिश होने के आसार बताए गए थे। केंद्र ने पर्वतीय जिलों में बारिश का ऑरेंज और मैदानी इलाकों में येलो अलर्ट जारी किया है।

कई जिलों में कल येलो अलर्ट- 

मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार कल यानी 17 अक्तूबर को भी ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले को छोड़ अन्य सभी जिलों में भी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया गया है।हालांकि 18 अक्टूबर से प्रदेशभर का मौसम शुष्क रहेगा।

चारों धामों में बारिश और बर्फबारी- 

वहीं केदारनाथ और यमुनोत्री में बारिश बर्फबारी का सिलसिला जारी है। इस मौसम में भी धामों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद हैं। एक ओर जहां श्रद्धालु बर्फबारी देख उत्साहित नजर आए तो वहीं दूसरी तरफ सुविधाओं के अभाव में उन्हें परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है।

यमुनोत्री सहित यमुना घाटी में एक घंटे से झमाझम बारिश हो रही है। यमुनोत्री धाम के ऊपर बुग्यालों चोटियों सप्त ऋषि कुंड, बंदरपूंछ, कालिंदी पर्वत, गरुड़ गंगा टाप पर बर्फबारी जारी है। बारिश बर्फबारी के चलते तापमान में गिरावट आ गई। ठंड से लोग घरों में दुबके हैं।

यमुनोत्री धाम में बर्फबारी का श्रद्धालु लुत्फ उठा रहे हैं, लेकिन वहीं पर्याप्त सुविधाएं न होने से श्रद्धालुओं को बारिश बर्फबारी में दिक्कतों का सामना करना रहना पड़ रहा है। देहरादून सहित प्रदेश के कई जिलों में बारिश के साथ ही तेज गर्जना हो रही है।

 

बद्रीनाथ धाम में भी बर्फबारी- 

बदले मौसम के मिजाज के चलते ठंड बढ़ने से लैंसडाउन चौक के पास लोगों ने अलाव का सहारा लिया। वहीं धुंध के कारण अंधेरा होने से वाहनों को दिन में हेडलाइट जलानी पड़ी। बारिश होने से तापमान में भारी गिरावट दर्ज की गई है। वहीं दोपहर के बाद बदरीनाथ धाम में भी खूब बर्फबारी हुई है। बर्फबारी के बाद धाम में तेज ठंड बढ़ गयी है, श्रद्धालु भी इस बर्फ को देखकर उत्साहित हो रहे हैं.

जोशीमठ के बाद अब नैनीताल भी भूस्खलन की चपेट में, खतरे की जद में आए मकानों पर लगे लाल निशान…

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जोशीमठ के बाद अब नैनीताल में भूस्खलन ने लोगों के नींदे उड़ा दी है, भूस्खलन के खतरे को देखते हुए प्रशासन ने चार्टन लॉन्ज क्षेत्र में 24 घरों पर लाल निशान लगाकर मकान खाली करवा दिए अचानक हुई इस कार्रवाई से लोगों में गुस्सा है.

कल तक अपने घरों में रह रहे लोग कुछ ही घंटे में आपदा प्रभावित बन गए उनका आरोप है कि प्रशासन सुरक्षा कार्यों के बजाय लोगों के घर तोड़ने की योजना बना रहा है. इसलिए कई घरों को जबरदस्ती खतरे की जद में डाल दिया गया है, रविवार को अयरपट्टा में रह रहे परिवारों को विकास प्राधिकरण एवं प्रशासन की ओर से नोटिस जारी कर दिए गए,

इसके बाद कुछ परिवारों को प्रशासन ने होटल में रुकवाया है जबकि कुछ परिवार अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेने चले गए हैं इस कार्रवाई से लोगों में नाराजगी है आप है कि प्रशासन ने यहां पर सुरक्षा उपाय नहीं किए हैं अचानक से घरों पर लाल निशान लगाए जा रहे हैं ऐसे में लोगों को आशंका है प्रशासन खतरा बात कर कई दूसरे घरों को तोड़ सकता है.

 

नैनीताल में खतरा बढ़ा, 24 परिवारों में घर छोड़े-

नैनीताल के शनिवार को चार्ट लोन क्षेत्र में एक दो मंजिला भवन के भरभरा कर जमींदोज होने के बाद आसपास के इलाके में भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है रविवार को भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में दशकों से रह रहे 24 परिवारों ने गम और गुस्से के बीच अपने-अपने घरों को खाली कर दिया।

वहीं जिला प्रशासन और नैनीताल विकास प्राधिकरण ने भी इन सभी चिन्हित परिवारों को नोटिस थमा कर तीन दिन के भीतर अपना पूरा सामान घरों से हटाने को कह दिया है क्षेत्र में दिन भर अपराध अफ्रीका माहौल बना हुआ है नैनीताल में प्रकृति की चेतावनी को अनदेखा करना अब लोगों पर भारी पड़ने लगा है.

शनिवार को चार्ट आंदोलन क्षेत्र में भूस्खलन से एक दो मंजिला भवन भर भर कर गिर गया था जिसकी चपेट में आने से तीन अन्य घर भी दब गए थे एसडीएम प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रशासन विकास प्राधिकरण और आपदा प्रबंधन की टीमों ने इलाके में सर्वे कर संवेदन सील घरों पर लाल निशान लगाने के साथ ही प्रभावितों को नोटिस दे दिए हैं.

भू-कटाव रोकने के लिए रेत के कट्टे-तिरपाल का सहारा-
 

भूस्खलन प्रभावित इलाके में मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए तारपाल डाल दिया गया बारिश होने पर इसे मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद मिलेगी साथ ही जिन घरों के बुनियादी पर असर आ रहा है वहां पर रेत के कट्टे डालकर अस्थाई रूप से सुरक्षा उपाय किए जा रहे उपाय किए जा रहे हैं पर प्रशासन बारिश होने से आशंकित है बारिश हुई तो यहां मिट्टी कटाव होने की आशंका बनी रहेगी।

खाना बनाने के लिए घर आने की इजाजत-
 

प्रशासन ने लोगों को भोजन बनाने के लिए अपने घर आने की इजाजत दी है पर अंधेरा होने से पहले ही घर छोड़ने को कहा है ऐसे में लोग अपने घरों की सफाई और भोजन बनाने के लिए कुछ ही देर तक अपने घरों में जा रहे हैं उसके बाद चले जा रहे हैं।

यहां रह रहे निवासियों ने क्या कहा-

अचानक से घरों पर लाल निशान लगाया दिए गए हैं हमें 3 दिन में घर खाली करने को कह दिया है आखिर यह कैसे संभव है कि हम अपना सारा घर खाली करके चले जाएं अचानक से हमारे घरों पर लाल निशान लगा दिए गए हैं हमें घर छोड़ने को कह दिया है प्रशासन यहां सुरक्षा कार्य करवाए हम सहयोग कर रहे हैं पर घर नहीं छोड़ सकते हैं.

उत्तराखंड के वीरान हुए दो वाइब्रेंट विलेज सूची से हटाए जाएंगे, केंद्र को भेजा प्रस्ताव…

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वाइब्रेंट विलेज सूची से हटेंगे चमोली का रेवालचक, पिथौरागढ़ का हीरा गुमारी गांव, केंद्र को भेजा प्रस्ताव.

 

उत्तराखंड के वीरान हुए दो वाइब्रेंट विलेज सूची से हटाए जाएंगे,

चमोली का रेवालचक, पिथौरागढ़ का हीरा गुमारी गांव वीरान

राज्य सरकार ने गृह मंत्रालय को भेजा प्रस्ताव

वाइब्रेंट विलेज की संख्या 51 से घटकर हो जाएगी 49

49 विलेज के लिए करीब 1200 करोड़ का एक्शन प्लान तैयार-

उत्तराखंड के 51 वाइब्रेंट विलेज में से दो वीरान वाइब्रेंट विलेज को सूची से हटाया जाएगा। सरकार ने इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेज दिया है। अनुमति मिलने के बाद उत्तराखंड के वाइब्रेंट विलेज की संख्या 49 रह जाएगी। इन 49 विलेज के लिए करीब 1200 करोड़ का एक्शन प्लान तैयार हो चुका है।

 

चमोली का रेवालचक गांव, पिथौरागढ़ का हीरा गुमारी गांव वीरान-

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीमावर्ती गांवों के विकास को वाइब्रेंट विलेज योजना की शुरुआत की थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय इस योजना का क्रियान्वयन कर रहा है। इसके तहत उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली में सीमावर्ती 51 गांवों को चुना गया था। इनमें से चमोली जिले का रेवालचक गांव कई साल पहले एवलांच की चपेट में आने के बाद खाली हो चुका है, जबकि दूसरा पिथौरागढ़ का हीरा गुमारी गांव रिजर्व फॉरेस्ट में होने की वजह से वीरान है।

 

दोनों गांवों को सूची से हटाने का प्रस्ताव-

वाइब्रेंट विलेज की नोडल अधिकारी नीतिका खंडेलवाल ने बताया कि इन दोनों गांवों को सूची से हटाने का प्रस्ताव गृह मंत्रालय को भेज दिया गया है। मंत्रालय से अभी इसकी अनुमति नहीं मिली है। एक्शन प्लान पर गृह मंत्रालय ही निर्णय लेगा। हर वाइब्रेंट विलेज का अलग से एक्शन प्लान तैयार किया गया है।

 

2963 वाइब्रेंट विलेज के विकास का ऐलान-

केंद्र सरकार ने उत्तराखंड, हिमाचल, अरुणाचल, सिक्किम व लद्दाख के 2963 वाइब्रेंट विलेज के विकास का ऐलान किया था। इनमें से पहले चरण में 662 गांवों को शामिल किया गया है, जिनके लिए कुल 4000 करोड़ बजट का प्रावधान मोदी सरकार ने किया है।

 

वाइब्रेंट विलेज की ऐसे बदलेगी सूरत-

इन वाइब्रेंट विलेज को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाएगा। यहां सड़कों का निर्माण होगा। इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाएगा। जरूरतों के हिसाब से सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट लगेंगे। टीवी व टेलीकॉम की कनेक्टिविटी दी जाएगी, जिसमें आईटी इनेबल कॉमन सर्विस सेंटर भी शामिल हैं। इको सिस्टम को पुनर्विकसित किया जाएगा। पर्यटन व संस्कृति को प्रोत्साहन दिया जाएगा। वित्तीय समावेशन होगा। कौशल विकास व उद्यमिता को बढ़ावा दिया जाएगा। कृषि, हॉर्टिकल्चर, औषधीय पौधे को प्रोत्साहन देने को को-ऑपरेटिव सोसाइटी विकसित की जाएगी ताकि लोगों की आजीविका के साधन बढ़ें।

जोशीमठ में फिर दहशत में लोग, दोबारा आने लगी घरों के नीचे से पानी बहने की आवाजें…

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उत्तराखंड के जोशीमठ में धंस रही जमीन और दरारों को देखकर हर कोई डरा हुआ है…आज 8 महीने गुजर जाने के बाद भी जोशीमठ में भू-धसाव और पानी रिसाव का सच अभी तक बाहर नहीं आ पाया है. आज भी जोशीमठ के ये हालत किसी से छिप नहीं पाए हैं. जोशीमठ में पानी बहने की आवाजें सुनाई दे रही हैं. जोशीमठ नगर के भू-धसाव वाले क्षेत्रों में फिर से घरों के नीचे से पानी के बहने की आवाजें सुनाई देने लगी है। लेकिन ये पानी कहाँ से आ रहा है और कहां से निकल रहा है. इसका अभी तक कुछ पता नहीं चल रहा है. लोगों में भय की स्थिति बनी हुई है। सुनील वार्ड जो की जोशीमठ में ही है. वहा पर रहने वाले लोग फर्श में कान लगाकर पानी के बहने की आवाजें सुन रहे हैं, ये आवाज ऐसे लग रही हैं, जैसे कि नीचे से कोई गदेरा बह रहा हो।

फिर से आने लगी घरों के नीचे से पानी बहने की आवाजें- 

जनवरी माह के शुरुआत से ही जोशीमठ में भू-धसाव शुरू हो गया था। तब जोशीमठ की तलहटी में बसी जेपी कॉलोनी में एक जलधारा फूट गई थी। उस समय से ही  कई घरों के नीचे पानी बहने की आवाजें आ रही थी। तब कई एजेंसियों ने इसका अध्ययन किया था। मार्च के माह में भू-धसाव थम गया। लेकिन फिर से वही शुरू हो गया. क्योंकि बरसात के समय रोज बारिश के कारण फिर से घरों के नीचे पानी बहने की आवाजें आने लगी हैं। 13 अगस्त को फिर से रात को हुई अतिवृष्टि के बाद विनोद सकलानी के घर के अंदर पानी बहने की आवाज आने लगी।

विनोद सकलानी कहते हैं कि पहले दिन घर के अंदर खड़े होने पर ही ऐसा लग रहा था कि नीचे कोई बड़ी सी नदी बह रही है। अब पानी की आवाज कुछ कम हो गई है। लेकिन हैरत की बात ये है कि न तो मकान के ऊपर और न ही मकान के नीचे कहीं भी पानी बहता हुआ नहीं दिखाई देता है केवल आवाज ही सुनाई देती है। यदि ये  पानी है तो कहां से आ रहा है और ये पानी कहां जा रहा है। उन्होंने कहा कि वार्ड में कई जगहों पर फिर से भू-धसाव हो रहा है। पैदल रास्तों में भी धसाव हो रहा है।

यहाँ 13 अगस्त के बाद आयी दरार- 

उसी वार्ड के दूसरे मोहल्ले में रह रहे भारत सिंह पंवार का कहना है कि उनके घर में तो पहले दरारें नहीं आई थी. लेकिन 13 अगस्त की बारिश के बाद यहाँ भू-धसाव शुरू हो गया है. और रास्ता ध्वस्त हो गया, खेतों में भी दरार पड़ गई है। उन्होंने कहा कि उनका मकान तो अभी सही है, लेकिन उनके आंगन तक दरार आ चुकी है। पूरे क्षेत्र में जगह-जगह भू धसाव हो रहा है। इससे लोगों में भय बना हुआ है। उनका कहना है कि घर के दो कमरे अभी फिलहाल ठीक हैं, परिवार के लोग भी अभी उन्ही कमरों में रह रहे हैं। लेकिन अधिक बारिश होने पर सभी होटल में बने राहत शिविर में चले जाते हैं।

बरसात के कारण रास्तों और खेतों में आयी दरार-  

बरसात ने आपदा प्रभावित जोशीमठ वासियों के जख्मों को फिर से हरा कर दिया है। बरसात शुरू होने के बाद से ही अलग-अलग जगह पर गड्ढे होने, जमीन में दरार आने, घरों की दरार अधिक चौड़ी होने के मामले सामने आए हैं। मनोहर बाग वार्ड में औली रोड पर हाल ही में 22 मीटर लंबी और दो फीट गहरी पड़ी। सिंहधार वार्ड में भी कई जगह पर रास्तों और खेतों में दरार आई है।

ये है जोशीमठ भू-धसाव की स्थिति-

जोशीमठ भू-धसाव के कारण 868 भवनों में दरारें आई थी, जिनमें से प्रशासन ने 181 भवनों को असुरक्षित श्रेणी में रख दिया था। प्रशासन की ओर से 145 प्रभावित परिवारों को पुनर्वास पैकेज के तहत 31 करोड़ रुपये मुआवजा वितरित कर दिया गया है। नगर पालिका जोशीमठ के अंतर्गत अभी भी 57 परिवार ऐसे हैं जो कि राहत शिविरों में रह रहे हैं। जबकि 239 परिवार अपने रिश्तेदारों या फिर वे लोग किराए के घरों में रह रहे हैं।सुनील वार्ड में भी कुछ जगहों पर भू-धसाव हुआ है। यहां प्रभावित सभी परिवारों को राहत शिविर में जाने के लिए कहा गया है। क्षेत्र में अन्य जगहों पर स्थिति सामान्य है। लोगों से विस्थापन के लिए विकल्प मांगे गए हैं। अभी तक किसी की ओर से कोई भी लिखित रूप में विकल्प नहीं दिए हैं। जल्द ही अब मानसून सीजन के बाद फिर से लोगों से विस्थापन को लेकर विकल्प मांगे जाएंगे।

क्या कहा जल विज्ञान वैज्ञानिक गोपाल कृष्ण ने-

डॉ गोपाल कृष्ण ने कहा कि अधिकारिक रूप से हमारे पास ऐसी कोई सूचना नहीं है। जमीन के भीतर मिट्टी के सेटलमेंट के चलते भीतर रुका हुआ पानी कहीं न कहीं अपना रास्ता बना लेता है।जमीन के भीतर पानी बहने की आवाज के पीछे इस तरह के कारण हो सकते हैं। इस बारे में जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

जमीन के भीतर पानी का अपना एक चैनल काम करता है। जोशीमठ के मामले में पूर्व में हुए अध्ययनों में ये बात सामने आ चुकी है, वहां भी पानी का चैनल काम कर रहा है। बरसात में इसमें वृद्धि हो सकती है। बाकी मौके की क्या स्थिति है, ये जब जांच होगी उसके बाद ही स्पष्ट हो सकती है।

 

विकास की भेंट चढ़ा उत्तराखंड, केंद्र सरकार की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा…

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जल, जंगल और जमीन उत्तराखंड की यही पहचान मानी जाती है, इन्ही तीनों चीजों से बचने के लिए एक पृथक राज्य की मांग की गयी थी, जल,जंगल और जमीन पर उत्तराखंड के लोगों का हक हो और इन संसाधनों से प्रदेश तरक्की की तरफ बढ़े, इसको लेकर अनेकों लोगों ने बलिदान भी दिए और काफी समय तक उत्तराखंड बनने को लेकर जबरदस्त आंदोलन भी किए. आखिरकार उत्तराखंड का निर्माण हुआ और विकास का जन्म भी हुआ, ऐसा ना केवल तमाम मुख्यमंत्रियों के भाषणों में भी आया और एसी कमरों में बैठकर विकास को बड़ा करने की बड़ी-बड़ी बातें भी उन उत्तराखंडियों के सामने की जो स्वभाव से सरल और सौम्या की मिसाल के तौर पर पूरे देश में पहचान रखते हैं. मगर इसका मतलब ये नहीं की वो झूटे वादों की हकीकत से रुबरु नहीं है,,, बाकी रही-सही कसर भारत के लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा में खुलकर सामने आ गयी. जब उत्तराखंडियों को उत्तराखंड की हकीकत सामने दिखाई देने लगी।

 

हिल चुकी है पहाड़ों की नींव- 

संसद में रखी एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी राज्यों में सबसे अधिक उत्तराखंड के जंगल विकास की भेंट चढ़ गए हैं, यही कारण है कि जिस प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है, अब उसे आपदा प्रदेश के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें गर्मी में धधकती आग जंगल जला देती है, सर्दी में बर्फीली चोटियां नदियों के आवेग को अचानक बड़ा देती है, और तेज बारिश, फटते बादल जिंदगियों को तबाह कर देती हैं. ये तीनों ही मुश्किल हालात विकास की सीमा को पार कर भोले-भाले मासूम लोगों की जिंदगी को असमय लील लेती हैं.. और काल के गाल में समाते लोग इन मुश्किल हालातों में कुछ नहीं कर पाते हैं.. घर तबाह, खेत तबाह, जिंदगी तबाह। उत्तराखंड में जिस तरह विकास के नाम पर जंगलों से लेकर जल विधुत परियोजनाओं और सड़कों के निर्माण में भूमि का कटान हो रहा है उससे इस प्रदेश के मजबूत पहाड़ों की नीवं इस कदर हिल चुकी हैं कि जरा सा झटका भी यहां के पहाड़ झेल नहीं पाते हैं और भरभरा कर जमीदोज हो जाते हैं. जगह-जगह भूस्खलन से लोगों की जान जा रही है. पूरे प्रदेश में जो सबसे बड़ा उदाहरण है वो इस समय जोशीमठ और उत्तरकाशी है. जहां भूस्ख्लन की वजह से सालों साल से रह रहे लोग अब घर छोड़ने को मजबूर हैं।

 

सरकारों से ये कुछ सवाल- 

सवाल ये उठता है कि क्या उत्तराखंड की स्थापना का उद्देश्य पूरा हो गया है ?

क्या हमारे शहीदों ने इसी विकास के लिए राज्य मांगा था ?

हमारी सरकारें इस प्रदेश को किस दिशा की तरफ ले जा रही है ?

हमारी सरकारों और यहां के नेताओं में कोई भी एक नेता ऐसा नहीं दिखाई देता जिसके पास इस प्रदेश के विकास के लिए यहां के अनुकूल कोई विजन हो, जिससे इस प्रदेश के यहां की परिस्थितियों के हिसाब से विकास हो सके. आखिर कैसे सिर्फ एक अंधी विकास की दौड़ में इस प्रदेश को जो क्षती पहुंच रही है उससे प्रदेश को बचाया जा सके. उत्तराखंड को विकास की दरकार है लेकिन जिस तरह से अनियोजित तरिके से ये काम चल रहे हैं उससे आने वाले भविष्य में इस प्रदेश के लोगों को इस विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी और शायद कीमत वो चुका भी रहे हैं. बड़ी-बड़ी जल विधुत परियोजनाओं के लिए पहाड़ों को अंदर से खोखला किया जा रहा है, नदियों के प्रवाह  को पूरी तरह से रोका जा रहा है, आल वेदर रोड हो या फिर रेल प्रोजेक्ट जिस तरह से पहाड़ों में अंधाधुंध कटान हो रहा है वो कहीं न कहीं इन पहाड़ों की नीव को कमजोर कर  रहा है।

 

क्या कहते हैं भूपेंद्र यादव- 

केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में जो आंकड़े रखे वो कही न कहीं इस प्रदेश की उस जनता को रास नहीं आएंगे,जो इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचते हैं,,,संसद में रखें इन आंकड़ों के मुताबिक पिछले डेढ़ दशक के दौरान हिमालयी राज्यों में सबसे अधिक जंगल उत्तराखंड राज्य में गैर वानिकी उपयोग यानी विकास की भेंट चढ़े हैं। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 15 वर्षों में 14 हजार 141 हेक्टेयर वन भूमि अन्य उपयोग के लिए ट्रांसफर की गई।

 

उत्तराखंड देश के 10 राज्यों में शामिल- 

आंकड़ों के मुताबिक, वन भूमि डायवर्सन मामले में उत्तराखंड देश के प्रमुख 10 राज्यों में शामिल है। राज्य में औसतन प्रत्येक वर्ष 943 हेक्टेयर भूमि दी जा रही है। वर्ष 2008 से लेकर 2009…वर्ष 2022 से लेकर 2023 के दौरान सभी राज्यों में 30 लाख 5 हजार 945.38 हेक्टेयर भूमि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत गैर वानिकी उपयोग के लिए लाई गई। अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर बाकी कोई हिमालयी राज्य उत्तराखंड के आसपास नहीं है। पड़ोसी राज्य हिमाचल में 6 हजार 696 हेक्टेयर वन भूमि दूसरे उपयोग के लिए इस्तेमाल हुई। जो उत्तराखंड के मुकाबले आधी से भी कम है,, ये सभी भूमि सड़क.. रेलवे..पुनर्वास.. शिक्षा.. उद्योग.. सिंचाई.. ऑप्टिकल फाइबर.. नहर.. पेयजल.. पाइपलाइन.. उत्खनन..जल.. ऊर्जा.. सौर ऊर्जा जैसे कार्यों के लिए दी गयी है, हालाकि प्रदेश के विकास के लिए ये सभी चीजें जरूरी भी हैं, लेकिन इसके कुछ मानक तय नहीं किए गए हैं,,, मसलन इन सबके लिए बेहिसाब तरिके से पहाड़ों का दोहन किया जाता है,,, पर्यावरण विद कई बार सरकार को इस पर चेता चुके हैं कि इस प्रदेश में बड़ी जल विधुत परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए बल्कि छोटी-छोटी परियोजनाओं को बनाया जाना चाहिए लेकिन सरकारें इन पर गौर करने को शायद तैयार ही नहीं है. जिसका नतीजा ये हैं कि प्रदेश में बड़ी-बड़ी जल विधुत परियोजनाओं को ह्री हरी झंडी मिलती रही है।

 

पहले भी दी जा चुकी है चेतावनी- 

जोशीमठ भू धसाव के बाद स्थानीय लोगों ने जिस तरह वहां बन रही जल विधुत परियोजना को भू-धसाव का कारण माना वो अनायास ही नहीं बल्कि उसके पीछे ये परियोजना भी एक बड़ा कारण बनी है ऐसा पर्यावरण विद मानकर चलते हैं. इसके नतीजे अब देखने को भी मिल रहे हैं. चमोली जिले में सबसे ज्यादा पहाड़ हिल रहे हैं, भूस्खलन हो रहा है. हालात आज के दौर के ये हो चले हैं कि अपराध को रोकने के लिए बनी पुलिस खासकर चमोली पुलिस मानसून सीजन में सभी काम छोड़ कर सिर्फ यही बताने में लगी रहती है कि यहां रास्ता बंद है और यहां खुला है. जब से आल वेदर सड़क का काम शुरू हुआ है तब से नए नए भूस्खलन जोन बन चुके हैं, जिससे लगातार कटाव बढ़ रहे हैं. जिसकी चेतावनी भी  पहले दी जा चुकी है. याद कीजिए जब सुप्रीम कोर्ट की एक हाइ पावर कमेटी ने सिफारिश की थी कि ये प्रोजेक्ट पहाड़ के लिए बेहद खतरनाक है, लेकिन इस कमेटी की भी सलाह को नजरअंदाज कर दिया गया।

 

इस कारण बेमौत मर रहे हैं लोग- 

2018 में  इस प्रोजेक्ट को एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में चेलेंज किया था, इस याचिका में कहा गया कि सड़क के लिए पहाड़ो को जरूरत से अधिक काटना पहाड़ के ईको सिस्टम को तबाह कर रहा है… और इससे आपदाएं भी लगातार बढ़ रही हैं… कोर्ट ने इस पर फैसला देते हुए सड़क की चौड़ाई साढ़े पांच मीटर तक रखने का आदेश दिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ही चेलेंज कर दिया…. सरकार ने चीन सीमा,,, सैनिकों को सुविधाएं पहुंचाने जैसे अनेक तथ्य रखे, जिसके बाद कोर्ट ने केंद्र की सलाह को माना और सड़क को 10 मीटर तक चौड़ा करने का फैसला दे दिया,,, अब पहाड़ पर हो रहे इस अंधाधुंध कटाव और सड़क चौड़ीकरण के लिए कट रहे पेड़ों का ही नतीजा है कि पूरे यात्रा मार्ग में नए-नए भूस्खलन जोन लगातार बनते चले जा रहे हैं। जिसका खामीयाजा आखिरकार भुगतना तो पड़ेगा ही.. और मासूम लोग भुगत भी रहे हैं…हालांकि सुप्रीम कोर्ट के दिए किसी भी फैसले पर टिप्पणी करना हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है मगर शायद बेमौत मर रहे लोग, तबाह होते घर हमें जुबान देने को मजबूर कर देते हैं।

 

क्या कहते हैं सामाजिक कार्यकर्ता- 

सामाजिक कार्यकर्ता और उत्तराखंड की सटीक जानकारी रखने वाले अनूप नौटियाल मानते हैं कि उत्तराखंड राज्य की संवेदनशीलता को देखते हुए ये आंकड़े चिंता में डालने वाले हैं। हर साल राज्य आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का सामना कर रहा है। नीति नियंताओं को गंभीरता से पर्यावरण संतुलन के बारे में सोचना होगा। ऐसा ना हो की देर हो जाए…ऐसा नहीं है कि प्रदेश की जनता ये सब नहीं समझ रही है बल्कि अब वो अपने जल,जंगल और जमीन को बचाने के लिए आंदोलन भी कर रही है,यही कारण है कि प्रदेश में अब एक शसक्त भू कानून की मांग को लेकर भी एक बड़ा आंदोलन पनप रहा है,सशक्त भू-कानून  लागू करने की मांग को लेकर राज्य आंदोलनकारियों, संगठनों और दलों ने मुख्यमंत्री आवास कूच किया।आंदोलनकारियों ने  मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा और मांगों पर कार्रवाई न होने पर बड़े से बड़े आंदोलन की चेतावनी दी।

 

एक दिन बड़ी त्रासदी झेल सकता है प्रदेश- 

कुल मिलाकर अपने प्रदेश के जल जंगल और जमीन बचाने के लिए अब प्रदेश की जनता भी आवाज उठा रही है. ऐसा नहीं है कि प्रदेश में विकास नहीं हुआ. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या जिस तरह के उत्तराखंड की कल्पना  की गई थी हम उसी ओर बढ़ रहे हैं. क्या इस तरह के विकास से हम इस हिमालयी राज्य का संतुलन बिगाड़ रहे हैं. ये एक बड़ा सवाल है. जिसका जवाब मिलना बाकी है? अगर जल्दी ही इस विषय पर इस प्रदेश की प्रबुद्ध जनता और राजनेताओं ने नहीं सोचा तो एक दिन ये प्रदेश एक बड़ी त्रासदी झेलने को मजबूर हो जाएगा। याद रहे 2013 की वो 16 और 17 जून की याद जो अभी तक भी हमे झकझोर कर रख देती है. यकीन है की उस काली रात की कल्पना एक बार फिर से ना तो उत्तराखंड की सरकार करेगी और ना ही केंद्र में बैठी मोदी सरकार करेगी।

 

त्रिवेंद्र सरकार में लिया फैसला रोक सकता था जोशीमठ की तबाही ?

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जोशीमठ के लोगों पर फिर खतरा मंडराने लगा है,सरकार की अनदेखियों का खामयाजा भुगत रहे शहर को क्या समय रहते बचाया जा सकता था ?क्या पूर्व की त्रिवेन्द रावत की सरकार का एक फैसला तबाह होते जोशीमठ को बचा सकता था ?

जोशीमठ आपदा को छह माह का समय पूरा हो चुका है। सरकार जोशीमठ को बचाने के लिए धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही है। कुछ आपदा प्रभावितों का जनजीवन पटरी पर लौट आया है, जबकि कुछ अभी राहत के इंतजार में हैं। कई आपदा प्रभावितों के दुख-दर्द से उबरने की उम्मीद कागजों में उलझी हुई है। ऐसे में वह राहत शिविर या रिश्तेदारों के घर रहने को मजबूर हैं। वहीं, मदद की बाट जोह रहे कुछ परिवार फिर से टूटे-फूटे घरों में रहने के लिए लौट गए हैं। आपको बता दें कि  नगर में दरार वाले 868 भवन चिह्नित किए गए थे। इनमें 181 भवन जीर्ण-शीर्ण हैं, यहां रहने वाले परिवारों में से 118 को पुनर्वास पैकेज के तहत 26 करोड़ रुपये वितरित किए जा चुके हैं।वर्तमान में 64 परिवारों के 259 सदस्य राहत शिविरों में रह रहे हैं, जबकि 232 परिवारों के 736 सदस्य रिश्तेदार या किराये के भवन में हैं।कई लोगों को होटलो में रुकवाया गया था लेकिन यात्रा सीजन शुरू होते ही होटल मालिकों ने इनसे होटल खाली करवा दिए जिसके बाद ये परिवार दोबारा उन्ही छतिग्रस्त मकानों में रहने को मजबूर हो गए हैं,6 माह के समय कबीट जाने के बाद भी सरकार इनको घर नहीं दे पाई है.. मानसून की दस्तक ने आपदा प्रभावितों की चिंता बढ़ा दी है। वर्षा से भूमि व मकानों में आई दरारें बढ़ने और शिलाओं के खिसकने का खतरा बढ़ गया है। हाल ही में सुनील गांव और नृसिंह मंदिर के पास दो जर्जर भवन क्षतिग्रस्त हुए हैं।

भू धसाव के समय असुरक्षित भवनों से 300 से अधिक परिवार राहत शिविरों में भेजे गए थे। यहां से 232 परिवार रिश्तेदार या किराये के भवन में रहने चले गए।  सरकार द्वारा इनको  किराया चुकाने के लिए प्रति माह पांच हजार रुपये देने की बात कही थी ,लेकिन 6 महीनो से अब तक मात्र  49 परिवारों को ही किराया मिला है। जिसके कारण  कुछ प्रभावित परिवार फिर असुरक्षित घरों में लौट आने को मजबूर हो गए हैं आपदा प्रभावितों के पुनर्वास को प्रशासन ने जोशीमठ से 14 किमी दूर उद्यान विभाग की भूमि पर 15 प्री-फेब्रिकेटेड हट बनाए थे जो तीन महीने से  खाली पड़े हैं। प्रभावितों का कहना है कि नगर से इतनी दूर जाकर खेती-बाड़ी और मवेशियों का ध्यान कैसे रख पाएंगे। बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा। कुल मिलाकर सरकार जोशीमठ बचाने में फिलहाल विफल साबित हुई है… 

अब सवाल ये उठता है कि आखिर इतना पुराना ऐतिहासिक नगर  जोशीमठ में ये नौबत आयी क्यों,क्या समय रहते जोशीमठ को बचाया जा सकता था ? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें कुछ पुरानी बातों पर ध्यान देना होगा।।।

 

आपको बता दें कि सबसे पहले साल 1939 में आरनोल्ड हेम और ऑगस्ट गैनसर ने अपनी किताब Central Himalaya में बताया था कि जोशीमठ इतिहास में आए एक बड़े लैंड स्लाइड पर बसा है. इतिहासकार Shiv Prasad Dabral भी अपनी किताब में लिख चुके हैं कि जोशीमठ में लगभग 1000 साल पहले एक लैंडस्लाइड आया था जिसके चलते कत्यूर राजाओं को अपनी राजधानी जोशीमठ से शिफ्ट करनी पड़ी थी. लेकिन पिछले 50 साल की ओर देखें तो 1976 के आसा पास जोशीमठ में लैंडस्लाइड के काफी घटनाए हुई, जिसकी जांच के लिए तात्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में उत्तराखंड सरकार ने एक कमेटी बनाई थी. मिश्रा ने जियोलॉजिस्ट्स की मदद से गहन जांच की और एक टू द प्लाइंट रिपो्र्ट तैयार की थी .

 

इस रिपोर्ट में भी साफ कहा गया था कि जोशीमठ किसी ठोस चट्टान पर नहीं बल्की पहाड़ों के मलबे पर बना है जो अस्थिर है. और अगर जोशीमठ को बचाना है तो यहां पर कंस्ट्रक्शन को कम करने की ज़रूरत है और अगर कोई खास कंस्ट्रक्शन करनी भी है तो उसे गहन जांच के बाद ही शुरू किया जाए. जोशीमठ में बड़े कंस्ट्रक्शन पूरी तरह बंद किए जाएं. जोशीमठ के आस पास Erratic boulders यानी की बड़े बड़े चट्टानी पत्थरों को बिल्कुल न छेड़ा जाए और ब्लास्टिंग पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाए. जोशीमठ के आस पास के एरियाज़ में पेड़ लगाने की बात भी कही गई थी ताकि ज़मीन की पकड़ बनी रहे और पनी की निकासी के लिए Pucca Drain बनाने की सलाह भी दी गई थी. लेकिन ये एक सरकारी रिपोर्ट थी और सरकारों ने इस रिपोर्ट को डस्टबिन में डाल दिया.उलटा यहां पर बांध निर्माण की स्वीकृति दे दी गयी,जिसके बाद  यहां लगातार ब्लास्टिंग भी की गयी,स्थानीय आज भी इसी परियोजना को तबाही का कारण मानते है, 

 

पिछले कुछ दशकों में जोशीमठ में वो सब हुआ जिसके लिए मिश्रा रिपोर्ट में मना किया गया था. आर्मी के लिए इस्टेब्लिशमेंट्स बनाई गईं, ITBP का कैंप बना, औली में कंस्ट्रक्शन हुआ , Tapovan-Vishnugad Hydropower Project के इर्द गिर्द खूब कंस्ट्रक्शन की गई. बद्रीनथ जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए बड़े बड़े होटलों का निर्माण हुआ. जिससे जोशीमठ की स्लोप पर काफी छेड़छाड़ हुई और ड्रेनेज की कोई व्यवस्था न होने की वजह से होटलों और घरों से निकलने वाले पानी ने स्लोप को खोखला कर दिया. जिसके चलते जोशीमठ एक टिकिंग टाइम बॉम्ब में तबदील हो गया.

 

जिओलॉजिस्ट्सी के मुताबिक जोशीमठ की इस हालत के पीछे  Tapovan-Vishnugad Hydropower Project और चार धाम परियोजना के तहत बन रहे Helang Bypass की सबसे अहम भूमिका है. Hydropower Project के लिए जो टनल खोदी जा रही है उसकी खुदाई के लिए पहले जहां ब्लास्टिंग का इस्तेमाल किया गया वहीं टनल बोरिंग मशीन ने साल 2009 में जोशीमठ के पास एक पुराने वॉटर सोर्स को पंक्चर कर दिया था जिससे जोशीमठ में पानी की समस्या तक पैदा हो गई थी. उस वक्त इसे लेकर काफी प्रदर्शन भी हुए थे लेकिन तब भी सरकार के कानों में आवाज नहीं पहुंची  .  फिर 7 फरवरी 2021 को रिशीगंगा में आई भीषण बाड़ ने भी जोशीमठ को काफी नुकसान पहुंचाया. इसके अलावा Helang Bypass के निर्माण के दौरान भी अहतियात नहीं बरती गई जिसका परिणाम आज जोशीमठ भुगत रहा है. सबसे हैरान करने वाली बात है कि इतने फ्रैजाइल एरियाज़ में इतने बड़े बड़े निर्माण करने के दौरान किसी तरह की hydrogeological study तक नहीं की गई कि धरती के अंदर पानी की क्या स्थिती है.

 

इसकी ओर आम लोगों को भी ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि जियोलॉजिस्ट्स की मानें तो जोशीमठ की भौगोलिक स्थिती के मुताबिक इसे एक गांव ही रहने देना चाहिए था लेकिन अर्बनाइज़ेंशन और व्यापार के चलते इस इलाके पर इमारतों का बोझ बढ़ता गया जिसका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं. यही नहीं जियोलोजिस्ट्स की मानें तो जो जोशीमठ के नीचे अलकनंदा नदी बह रही है वो भी लगातार पहाड़ की स्लोप की जड़ को काट रही है. चार धाम परियोजना के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी ताकि पहाड़ी इलाकों को बचाया जा सके लेकिन ये फैसला भी सरकार के हक में ही रहा था और अब जोशीमठ में इस परियोजना के परिणाम भी दिखने लगे हैं. यानी व्यापारियों से लेकर सरकारी बाबूओं और ईंजीनियर्स द्वारा जियोलॉजिस्ट्स की अनदेखी के चलते पहाड़ों का ये हाल हो रहा है. खैर ये तो इतिहास की बात हुई लेकिन क्या जोशीमठ को बचाया जा सकता है?

 

पहाड़ों पर हो रहे बेहिसाब निर्माण से हो रहे नुकसान पर कभी किसी सरकार ने ठोस निति नहीं बनाई,, पूर्व की त्रिवेंद्र रावत सरकार जरूर इस पर काम करना शुरू किया था पर उनके पद से हटते ही इसको ठंडे बस्ते में दाल दिया गया,,दरअसल पूर्व की त्रिवेंद्र सरकार ने  13 नवंबर 2017 को सभी जिलों के स्थानीय प्राधिकरणों और नगर निकायों की विकास प्राधिकरण से संबंधित शक्तियां लेते हुए 11 जिलों में जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण गठित किए थे। हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण (एचआरडीए) में हरिद्वार के क्षेत्रों को शामिल कर लिया गया था, जबकि मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) में दून घाटी विकास प्राधिकरण को निहित कर दिया गया था। इसमें स्पष्ट किया गया था कि सभी जिला विकास प्राधिकरणों में नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे के 200 मीटर दायरे में आने वाले सभी गांव, शहर शामिल होंगे। इनमें नक्शा पास करना अनिवार्य कर दिया गया था। बाद में तीरथ सरकार और फिर धामी सरकार ने सभी जिला विकास प्राधिकरणों को स्थगित कर दिया था।लेकिन जिस तरह जोशीमठ बेहिसाब निर्माण कार्यों की सजा भुगत रहा है उस तरह की घटना कहीं और दोबारा न हो उसके लिए निर्माण कार्यों की स्वीकृति देने के लिए विकास प्राधिकरण जैसे कदम बेहद जरूरी थे,त्रिवेंद्र सरकार में लिया गया ये फैसला निश्चित रूप से प्रदेश के लिए एक अहम कदम था,हलाकि जोशीमठ त्रासदी के बाद इसको निस्प्रभावी करने वाली धामी सरकार को फिर से इनको सक्रिय करने जा रही है,, अगर ये प्राधिकरण पहले से प्रदेश में लागू होता तो शायद जोशीमठ की तबाही को काफी हद तक रोका जा सकता था,,लेकिन जब पूरा शहर तबाह हो गया अब सरकार को फिर से इस प्राधिकरण की जरूरत मससूस होने लगी है…