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बाबरी मस्जिद और ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब मथुरा के शाही ईदगाह का भी सर्वे होगा,, इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले ने मुस्लिम पक्ष को झटका तो दिया है लेकिन कई सवाल भी खड़े कर दिये है, और जो सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है वो ये कि आखिर ये सिलसिला कब तक चलेगा, क्या अयोध्या के बाद अब मथुरा के शाही ईदगाह को भी गिराने की तैयारी हो गयी है, क्या शाही ईदगाह का नामो निशान मिटा दिया जायेगा, क्या ये सब कभी खत्म हो पायेगा या फिर ये सब सिर्फ राजनीति है.
अयोध्या में बाबरी मस्जिद और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के ASI सर्वे के बाद अब मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद के ASI सर्वे को भी मंजूरी दे दी गयी है. दरसल ज्ञानवापी मस्जिद के ASI सर्वे के फैसले के बाद से इस मुद्दे ने तूल पकड़ लिया था इस बात की चर्चा ने जोर पकड़ा था की अब मथुरा की श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद गहरा जायेगा और हुआ भी ठीक वैसा ही,, लंबी सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आ गया और विवादित परिसर का सर्वेक्षण कराने की मांग इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंजूर कर ली और ज्ञानवापी की तर्ज पर ही मथुरा के विवादित परिसर का भी अब सर्वे होगा एडवोकेट कमिश्नर अब वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के जरिये यहां का सर्वेक्षण कर सकेंगे, एडवोकेट कमिश्नर कौन होगा और कब से सर्वेक्षण शुरू होगा इस पर हाईकोर्ट 18 दिसंबर को सुनवाई करेगा।
इसके साथ ही 18 दिसंबर को ही हाई कोर्ट एडवोकेट कमिश्नर द्वारा किए जाने वाले सर्वेक्षण के रूपरेखा तय करेगा कोर्ट 18 दिसंबर को होने वाली सुनवाई में सभी पक्षों से इस बारे में राय भी मांगेगा सभी पक्षों की राय सुनने के बाद ही अदालत इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी आपको बता दे कि हिंदू पक्ष के कटरा केशव देव की तरफ से याचिका दाखिल की गई थी जिस पर जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बैंच ने इस मामले में फैसला सुनाया। 16 नवंबर को सुनवाई होने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था हिंदू पक्ष की याचिका में दावा किया गया है कि भगवान कृष्ण की जन्मस्थली उस मस्जिद के नीचे मौजूद है और ऐसे कई संकेत हैं जो ये साबित करते हैं कि वो मस्जिद एक हिंदू मंदिर है.
क्या ये एक रणनीति है ?
आखिर क्यों एक के बाद एक ऐसे विवाद खड़े हो रहे हैं, क्या यह सिर्फ एक खास समुदाय को निशाना बनाने की साजिश है या फिर धार्मिक कार्ड खेल कर हिंदुओं को अपने पक्ष में करने की रणनीति। दरअसल ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि 1991 में तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार के समय आया प्लेसे ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है की 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता यह कानून तब आया था जब देश में बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गरम था. हालांकि राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले को इस एक्ट से बाहर रखा गया था और नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। फैसले के मुताबिक 2.77 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिलेगी, मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश था.
इस फैसले के बाद कुछ जानकारों का मानना था कि अब इस तरह के विवाद नहीं खड़े होंगे वही कुछ का दावा था कि अब ऐसे कई मामले सामने आएंगे जिसकी वजह थी वो नारा जो बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला आने के बाद लगा था,, और वो नारा था अयोध्या तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाकी है. ये नारा काफी दिनों तक भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों की जुबांन पर चढ़ा रहा. हिन्दू संघटनों ने पहले ज्ञानवापी मस्जिद पर दावा किया इसके बाद उनके निशाने पर आ गया मथुरा का श्री कृष्ण शाही ईदगाह मस्जिद।
कहीं ये 2024 की तैयारी तो नहीं ?
इसलिए सवाल उठने लगे हैं कि क्या ये सिलसिला कभी रुक पायेगा, वहीं कुछ लोगों का दावा है की 2024 चुनाव नजदीक आते-आते अभी ऐसे तमाम विवाद खड़े होंगे जिससे हिंदू -मुस्लिम का माहौल पैदा हो सके. जिसका फायदा लोकसभा चुनावों मे मिल सके. जैसे-जैसे चुनावों का समय पास आयेगा मुद्दे तूल पकड़ेंगे। इस मुद्दे पर मूल बात की सुनवाई सीधे तौर पर हाई कोर्ट में हो रही है. दूसरी अर्जियों में अमीन के जरिये सर्वेक्षण कराये जाने की भी मांग की गयी है अमीन सर्वेक्षण और दूसरी अर्जियों पर हाई कोर्ट 18 दिसम्बर के बाद सुनवाई करेगा।
श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन विवाद को लेकर हिन्दू पक्ष की तरफ से उत्तर प्रदेश के मथुरा की अदालत में कई याचिकाएं दाखिल की गयी. वहीँ दूसरी तरफ इस फैसले के आने के बाद AIMIM सांसद असुद्दीन ओवेसी का भी बयान सामने आ गया. उन्होंने ट्वीट कर सवाल उठाते हुए कहा की क़ानून का मजाक बना दिया है हैदराबाद सांसद असुदुद्दीन ओवेसी ने कहा की इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे कराने की इजाजत दे दी. बाबरी मस्जिद केस के फैसले के बाद मैने कहा था ” कि बाबरी फ़ैसले से अब और मुश्किलें पैदा होंगी क्योंकि वो फ़ैसला धार्मिक आस्था के आधार पर दिया गया था.
” दरअसल वाराणसी की ज़िला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में देवी-देवताओं की पूजा की मांग को लेकर की गई पाँच महिलाओं की याचिका को सुनवाई के लिए सोमवार को स्वीकार कर लिया और मुस्लिम पक्ष की अपील को खारिज कर दी. ओवेसी ने आगे कहा की मथुरा विवाद दशकों पहले कमेटी और मंदिर ट्रस्ट ने आपसी सहमति से सुलझा लिया था. काशी मथुरा या फिर लखनऊ की मस्जिद हो कोई भी इस समझौते को पढ़ सकता है, प्लेस ऑफ वर्शिश एक्ट अभी भी है लेकिन इस ग्रुप ने क़ानून और न्याय प्रक्रिया का मजाक बना दिया है।
सुप्रीम कोर्ट को मामले में 9 जनवरी को सुनवाई करनी थी तो फिर ऐसी क्या जल्दी थी कि सर्वे कराने का फैसला देना पड़ा। यानी ओवेसी का कहना है कि ये सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ साजिश हो रही है सभी दल इस तरह के मुद्दे को गरमा कर अपनी रोटियां सेक रहे हैं. ओवेसी ने आगे कहा की जब एक पक्ष मुस्लिमों को लगातार निशाना बनाने में रूचि रखता है तो कृपया हमें गिव एंड टेक यानी देने लेने का उपदेश ना दें क़ानून मायने नहीं रखता मुसलमानों के सम्मान को ठेस पहुँचाना ही मकसद है.