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2024 लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी सरकार को परेशानी में डाल सकते हैं ये सभी मुद्दे…

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बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार. ‘हम मोदी जी को लाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं..  2014 के लोकसभा चुनाव में जब ऐसे नारे सामने आए तो कांग्रेस सरकार से नाखुश जनता को एक उम्मीद दिखी. उम्मीद कि मोदी सरकार आने के बाद वाकई उनके ‘अच्छे दिन’ आ जाएंगे. इसी उम्मीद से 17 करोड़ से ज्यादा लोगों ने बीजेपी को वोट दे दिया. बीजेपी ने 282 सीटें जीतीं. ये पहली बार था जब किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी ने बहुमत हासिल किया था. 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.  2019 में दूसरी बार 23 करोड़ से ज्यादा लोगों ने बीजेपी को वोट दिया और  बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं. नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने.   प्रधानमंत्री मोदी ने 2025 तक भारत की GDP 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का टारगेट रखा है. हालांकि, अभी के हालात को देखते हुए ये टारगेट 2025  तक तो पूरा होना बहुत मुश्किल लगता है ।   

 
मोदी सरकार की नीतियों पर कई सवाल- 

मोदी सरकार कुछ समय बाद फिर देश के आम चुनाव में उतरने वाली है तो तीसरी बार सत्ता तक पहुंचने से पहले उनको जनता के कई सवालों के जवाब भी देने होंगे ? मोदी सरकार के इन 9 सालों के कार्यकाल पर नजर डालें तो कई ऐसे तथ्य  सामने आते  है, जो मोदी सरकार की नीतियों पर कई सवाल करती हैं,,, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनावों में  डॉलर की गिरती कीमत को लेकर कांग्रेस सरकार को खूब घेरा था, कि आखिर भारत का रुपया डॉलर के मुकाबले को लेकर इतना क्यों गिर रहा है, लेकिन 2014 में 72 पर चल रहा डालर मोदी सरकार में आज 82 पर पहुंच गया है।

 
अर्थव्यवस्था का क्या हुआ ? 

मोदी सरकार इन 9 सालों में कई मोर्चों पर विफल नजर आती है, मोदी सरकार में विदेशी कर्ज भी देश पर खूब  बढ़ा है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल औसतन 25 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज भारत पर बढ़ा है. मोदी सरकार से पहले देश पर करीब 409 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था, जो अब बढ़कर डेढ़ गुना यानी करीब 613 अरब डॉलर पहुंच गया है ।   

 
मोदी सरकार में बेरोजगारी का आंकड़ा- 

मोदी सरकार में सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा रोजगार को लेकर सामने आता है, मोदी सरकार में बेरोजगारी दर जमकर बढ़ी है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक  बेरोजगारी के आंकड़ों पर नजर रखने वाली निजी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी CMIE के मुताबिक, अभी देश में करीब 41 करोड़ लोगों के पास रोजगार है. जबकि  मोदी सरकार के आने से पहले 43 करोड़ लोगों के पास रोजगार था. यानी हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा करने वाली मोदी सरकार में रोजगार मिलने के बजाय उल्टा २ करोड़ रोजगार कम हो गए।

 
नौकरियों का क्या हुआ ? 

CMIE ने पिछले साल एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें दावा किया गया था कि भारत में अभी 90 करोड़ लोग नौकरी के लिए योग्य हैं. इनमें से 45 करोड़ लोगों ने तो अब  नौकरी की तलाश करना ही छोड़ दिया है. यानी कि इस देश के 45 करोड़ युवा इतने निराश हैं कि वो मान चुके हैं कि अब उनको नौकरी नहीं मिल पायेगी,, ये आंकड़ा निश्चित रूप से इस देश के भविष्य उन युवाओं की हताशा को दर्शाता है,,, 2019 के चुनाव के बाद सरकार के ही एक सर्वे में सामने आया था कि देश में बेरोजगारी दर 6.1% है. ये आंकड़ा 45 साल में सबसे ज्यादा था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मोदी सरकार के आने से पहले देश में बेरोजगारी दर 3.4% थी, जो इस समय बढ़कर 8.1% हो गई है. ये आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार किस तरह रोजगार के मुद्दे पर पूरी तरह विफल साबित हुई और आने वाले चुनावों में देश के युवा सरकार से इस पर जवाब मांगेंगे जो की सरकार की परेशानियां जरुर बढ़ाएगी।

शिक्षा पर मोदी सरकार के आंकड़े-

किसी भी देश के विकास के लिए अच्छी शिक्षा बहुत जरूरी है. मोदी सरकार में शिक्षा का बजट बढ़ा है,  9 साल में शिक्षा पर खर्च का बजट 30 हजार करोड़ रुपये  बढ़ा है. लेकिन देश में स्कूल भी कम हो गए हैं, शिक्षक भी बढ़े हैं लेकिन छात्र नहीं . मोदी सरकार के आने से पहले देश में 15.18 लाख स्कूल थे, जो अब घटकर 14.89 लाख हो गए हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक, देश में अभी भी करीब 30 फीसदी महिलाएं और 15 फीसदी पुरुष अनपढ़ हैं. 10 में से 6 लड़कियां 10वीं से ज्यादा नहीं पढ़ पा रही हैं. वहीं, 10 में से 5 पुरुष ऐसे हैं जो 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ रहे हैं।

 
मोदी सरकार में बेतहाशा बढ़ती महंगाई-

अब बात आती है देश के सबसे बड़े मुद्दे की,,जिस मुद्दे ने मोदी  को सत्ता के सबसे ऊँचे मुकाम पर पहुंचाया और भारतीय जनता पार्टी को अब तक का सबसे प्रचंड जनादेश दिलवाया,,, जी हाँ  ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का ये नारा था. जिसे पूरी भाजपा ने खूब जोर शोर से देश की जनता को सुनाया था लेकिन इसी मुद्दे पर सरकार सबसे ज्यादा मात खा रही है,,,  मोदी सरकार में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तो आग लग गई है. 9 साल में पेट्रोल की कीमत 24 रुपये और डीजल की कीमत 34 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा बढ़ी है. पेट्रोल-डीजल के अलावा गैस सिलेंडर की कीमत भी तेजी से बढ़ी है. मोदी सरकार से पहले सब्सिडी वाला सिलेंडर 414 रुपये में मिलता था. लेकिन अब सिलेंडर पर नाममात्र की सब्सिडी मिलती है. अभी रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 11 सौ रुपये तक पहुंच गई है. इतना ही नहीं, 9 साल में एक किलो आटे की कीमत 52%, एक किलो चावल की कीमत 43%, एक लीटर दूध की कीमत 56% और एक किलो नमक की कीमत 53% तक बढ़ गई है ।   

सभी चीजों पर बढ़ती महंगाई के आंकड़े- 

कुछ समय  पहले टमाटर के साथ सब्जियों के बढ़े दाम ने परेशानी बढ़ाई तो उसके बाद मसालों में आई तेजी ने खाने का स्वाद बिगाड़ दिया। वहीं अब दालों में भी महंगाई ने किचन का पूरा बजट ही गड़बड़ा दिया है। दालों के दाम में 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बीते तीन महीने में दाल-चावल और आटे के दामों में काफी वृद्धि हुई है। इससे लोग खासे परेशान हैं। किराना स्टोर से मिले दामों को अगर मिलाया जाए तो बीते तीन महीने में दाल-चावल और आटे के दामों में काफी वृद्धि हुई है। तीन माह पूर्व 140 से 150 रुपये में बिकने वाली अरहर की दाल  180 रुपये तक पहुंच गई है। चना दाल भी 150 से 190 रुपये किलो के भाव पर बिक रही है। दालों के साथ-साथ आटा और चावल का रेट भी तीन महीने में करीब 10 से 20 प्रतिशत बढ़ा है। पांच किलो आटे के बैग की कीमत 225 रुपये है।  कुछ ऐसी स्थिति मसालों की भी है। मसालों में जीरे के दाम में सबसे ज्यादा 40 फीसदी वृद्धि हुई है। तीन महीने पहले 100 ग्राम जीरा जहां 45 रुपये का था। वहीं अब ये 360 रुपये प्रति किलो  तक पहुंच गया है।  गैस सिलेंडर पहले से महंगा है। वहीं, तेल, सब्जियों, मसालों के बाद अब दाल भी और महंगी हो गयी है। ऐसे में घर चलाने के लिए हर चीज में बजट कटौती नहीं की जा सकती। जिसका असर मसालों व दालों में भी देखने को मिल रहा है। आटा चावल में भी वृद्धि हुई है। टमाटर, अदरक समेत अन्य हरी सब्जियां महंगी थीं तो लोग दाल व मसालों से काम चला लेते थे, लेकिन अब ये भी महंगे हो गए हैं। ऐसे में आम और गरीब लोगों पर सबसे अधिक असर पड रहा है।

 

हत्या, बलात्कार, सजा और फिर रिहाई, अब कोर्ट में फिर सुनवाई…

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पिछले  साल स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के लोगों से महिलाओं के प्रति अपना रवैया बदलने की गुज़ारिश की. उन्होंने कहा था कि महिला सशक्तिकरण के लिए महिलाओं को इज्जत देना बहुत ज़रूरी है. उन्होंने कहा था कि , “नारी का गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी बनने वाला है. पीएम मोदी के इस बयान की बहुत तारीफ की गई और महिला अधिकारों के लिए इसे एक ठोस बयान बताया गया. लेकिन इस बयान के कुछ ही देर बाद, उसी दिन बिलकिस बानो गैंगरेप मामले के 11 दोषियों को गुजरात सरकार की एक कमेटी ने गोधरा जेल से रिहा कर दिया. साल 2002 में गोधरा ट्रेन जलाए जाने के बाद ये केस काफ़ी चर्चा में था.

 

क्या था बिलकिस बानो केस-

2002 के गुजरात  दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के लिए 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. लेकिन गुजरात सरकार ने बीते साल 15 अगस्त को उन्हें रिहा कर दिया था. 27 फरवरी 2002 को भीड़ ने बिलकिस बानो और उनके परिवार पर तब हमला किया था जब वो भाग रहे थे. उन्होंने बिलकिस का गैंगरेप किया और उनकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के 14 लोगों की हत्या कर दी थी ,, उस वक्त राज्य में बीजेपी की सरकार थी, अभी भी बीजेपी सत्ता में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे. विपक्षी पार्टियों ने दोषियों की रिहाई को लेकर सरकार की काफ़ी आलोचना की थी, लेकिन बीजेपी ने इस पर  कुछ नहीं कहा, न गुजरात में और न ही केंद्र में।

 

11 दोषियों को किया गया था रिहा-

उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को छोड़ने के गुजरात सरकार के फैसले की देशभर में आलोचना हुई थी .सज़ायाफ्ता दोषियों के जेल से बाहर आने के बाद माला और मिठाइयों से उनके स्वागत के वीडियो वायरल हुए थे , जिसके बाद कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी इस फैसले की व्यापक रूप से निंदा आज भी की जा रही है. सालों तक न्याय के लिए संघर्ष करने वाली बिलकिस गुजरात दंगों में अल्पसंख्यकों और महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों का चेहरा बन गई थीं। 

 

दोषियों को रिहा कर दिया गया था- 

जब आनंदीबेन पटेल 2014 में गुजरात की मुख्यमंत्री थीं तो उन्होंने महिलाओं से जुड़े किसी भी अपराध में रियायत नहीं देने का फ़ैसला किया था. उसके बाद ऐसे अपराधों में दोषी पाए गए वो लोग जो 20 साल से अधिक जेल में बिता चुके थे, उन्हें नहीं छोड़ा गया. लेकिन बिलकिस बानो मामले में, 1992 और 2014 दोनों के सर्कुलर को नजरअंदाज करते हुए दोषियों को रिहा कर दिया गया. गुजरात की जेलों में आज महिला संबंधित अपराधों में लगभग 450 दोषी बंद हैं. उन सभी को रिहा किया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, सिर्फ़ इन 11 लोगों को छोड़ा गया। 

सुप्रीम कोर्ट की पीठ कर रही है मामले की सुनवाई-

बिलकिस बानो ने सीपीआई नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा के साथ मिल कर इस फ़ैसले को चुनौती दी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ अब सुनवाई कर रही है.. बिलकिस बानो ने कोर्ट को बताया कि इन दोषियों ने उनका कई बार बलात्कार किया और उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी थी, इसलिए सज़ा से पहले रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को पलटा जाए.  बिलकिस बानो की वकील शोभा गुप्ता ने कहा, “घटना इतनी दर्दनाक थी कि बिलकिस आज भी पुरुषों का सामना करने से डरती हैं. भीड़ में या अजनबियों के आसपास नहीं रह सकतीं. वो अब तक उस ट्रॉमा से उबर नहीं पाए हैं. हमें लगा था कि न्याय मिल गया है, लेकिन फिर ये हो गया। 

सभी को कोर्ट के फैसले का इंतजार- 

बिलकिस की वकील ने कोर्ट से कहा, “अपराध की प्रकृति इतनी भयावह और क्रूर थी, गर्भवती होने पर बिलकिस के साथ गैंगरेप किया गया. बिलकिस की पहली बेटी को चट्टान पर पटक-पटक कर मार डाला गया. बिलकिस की माँ के साथ गैंगरेप किया गया और उनकी हत्या कर दी गई. चचेरी बहन के साथ भी गैंगरेप किया गया. याचिकाकर्ता के चार नाबालिग भाई-बहनों की हत्या कर दी गई थी.. ”शोभा गुप्ता ने कहा कि CRPC  की धारा 432 के तहत सीबीआई ने ट्रायल कोर्ट के जज से इस रिहाई पर उनकी राय पूछी थी. जज ने एक विस्तृत राय देते हुए कहा कि दोषी किसी भी उदारता या रिहाई के हकदार नहीं हैं. यहां तक कि सीबीआई ने ये भी कहा कि वे किसी भी तरह की नरमी के हकदार नहीं हैं. इसके बावजूद उन्हें रिहा किया गया.

अभी कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है देखना होगा की कोर्ट इस पर क्या फैसला देती है ? लेकिन कुल मिलाकर इस मामले में एक बार फिर नया मोड़ आ गया है,, अगर कोर्ट दोबारा बिलकिस के पक्ष में फैसला सुनाती है तो गुजरात सरकार के उनके रिहाई देने के फैसले पर फिर कई सवाल उठने शुरू हो जायेंगे और कहीं न कहीं विपक्ष को एक बार फिर सरकार को घेरने का मुद्दा मिल जायेगा।

 

दिल्ली सर्विस बिल पर हारे केजरीवाल, गठबंधन ने दिखाई एकता…

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दिल्ली सर्विस बिल लोकसभा और राजयसभा में पास हो गया है,आप के लिए ये एक बड़ा झटका है लेकिन जिस तरह से आप के समर्थन में इंडिया गठबंधन ने एकजुटता दिखाई उससे सभी विपक्षी दल खुश जरूर होंगें,केजरीवाल सरकार के लिए ये बिल पास होना जहां एक बड़ा झटका है. लेकिन 10 सांसदों  की संख्या वाली आप पार्टी पार्टी ने जिस तरह 102 वोट राजयसभा में इस बिल के विरोध में हासिल किये उससे केजरीवाल जरूर खुश होंगें

 
समर्थन में 131 वोट और विरोध में 102 वोट- 

 सोमवार को राज्यसभा में इस बिल के समर्थन और विरोध में मतदान हुआ तो समर्थन में 131 वोट पड़े और विरोध में 102 वोट .   राज्यसभा में बीजेपी के पास अकेले बहुमत नहीं है. उसके एनडीए सहयोगियों को भी मिला दें तब भी बहुमत का आंकड़ा दूर रहता है.लेकिन ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी के बीजेपी के साथ आने से समीकरण बदल गए. राज्यसभा में जब बिल पास करने के लिए मतदान हो रहा था तो एक तस्वीर ने सबका ध्यान खींचा. राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी व्हील चेयर पर मौजूद थे.90 साल के मनमोहन सिंह काफ़ी कमजोर दिख रहे थे. इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर ट्वीट कर लोगों ने आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को भी निशाने पर लिया.कई लोगों ने लिखा कि जिस अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में अपनी जगह बनाने के दौरान मनमोहन सिंह को क्या-क्या नहीं कहा, वही मनमोहन सिंह उनके समर्थन में 90 साल की उम्र में अच्छी सेहत नहीं होने के बावजूद मौजूद रहे

केजरीवाल को मिला गठबंधन का पूरा समर्थन- 

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा में महज़ 10 सांसद हैं लेकिन दिल्ली सर्विस बिल के विरोध में उसे 102 सांसदों का समर्थन मिला.मनमोहन सिंह की मौजूदगी को कांग्रेस के बीजेपी से दो-दो हाथ करने की प्रतिबद्धता से भी जोड़ा जा रहा है.इस बिल के समर्थन में इंडिया गठबंधन एकजुट रहा. इंडिया गठबंधन यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस पिछले महीने ही बना था.इंडिया गठबंधन में शामिल किसी भी पार्टी ने क्रॉस वोटिंग नहीं किया.अरविंद केजरीवाल को भले इंडिया गठबंधन का पूरा समर्थन मिला लेकिन उनकी पार्टी को गठबंधन के साथियों से तंज़ का भी सामना करना पड़ा

क्या कहा सांसद मनोज झा ने- 

राज्यसभा में बिल का विरोध करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन किया था और अब उन्हें सोचना चाहिए कि केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के अधिकारों में सेंधमारी कर रही है, तो उन्हें कैसा लग रहा है.मनोज झा ने कहा, ”आम आदमी पार्टी को सोचना चाहिए कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर में किसका साथ दिया था. अब उन्हें खुद ही भुगतना पड़ रहा है. जो इस बिल का समर्थन कर रहे हैं, उनकी वफादारी को भी हम समझते हैं. चूहे की पूँछ हाथी के पैर से दबा हो तो वफ़ादारी और मजबूरी में फ़र्क़ करना मुश्किल हो जाता है

कानून बनते ही दिल्ली सरकार के क्या-क्या अधिकार होंगे सीमित – 

लोकसभा और राज्यसभा में दिल्ली सर्विस बिल पास होने के बाद अब राष्ट्रपति के पास जाएगा और उनके हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा. इस कानून का असर दिल्ली के प्रशासन पर व्यापक रूप से पड़ेगा. इस बिल के कानून बनते ही दिल्ली सरकार के अधिकार सीमित हो जाएंगे और उपराज्यपाल के अधिकार और बढ़ जाएंगे.इस बिल से नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी बनेगी और इसी के पास नौकरशाहों की पोस्टिंग और तबादले का अधिकार होगा. हालांकि इस कमेटी के मुखिया मुख्यमंत्री होंगे लेकिन इसमें मुख्य सचिव और दिल्ली के गृह सचिव भी होंगे. फैसला बहुमत से लिया जाएगा. मुख्य सचिव और गृह सचिव दोनों केंद्र के अधिकारी होंगे ऐसे में डर बना रहेगा कि बहुमत से फैसले की स्थिति में दोनों केंद्र की बात सुनेंगे. कमेटी के फैसले के बाद भी आखिरी मुहर उपराज्यपाल को लगानी होगी. ऐसे में एक चुनी हुई सरकार के अधिकार ज़ाहिर तौर पर कम होंगे

पार्टी के एक भी सांसद ने नहीं की क्रॉस वोटिंग-

दिल्ली सर्विस बिल पास होने से दिल्ली में आम आदमी पार्टी के अधिकार भले सीमित हो गए हैं लेकिन राजनीतिक रूप से इंडिया गठबंधन यह संदेश देने में कामयाब रहा है कि वह बीजेपी को चुनौती देने के लिए एकजुट है. इंडिया गठबंधन के बने मुश्किल से एक महीना हुआ है और संसद के दोनों सदनों में यह गठबंधन पूरी तरह से एकजुट रहा. संसद के दोनों सदनों में आप की मौजूदगी बहुत अच्छी नहीं है, इसके बावजूद उसे अच्छा ख़ासा समर्थन मिला.कांग्रेस, डीएमके, एनसीपी, शिवसेना (उद्धव ठाकरे), आरजेडी, जेडीयू और इंडिया के बाकी साथियों का समर्थन मिला. राज्यसभा में बिल के विरोध में 102 वोट पड़ने का मतलब है कि इंडिया गठबंधन में शामिल किसी भी पार्टी के एक भी सांसद ने क्रॉस वोटिंग नहीं कीकई पार्टियों ने किया बिल का विरोध- 

कुछ पार्टियों का रुख न तो एनडीए के पक्ष में था और न ही इंडिया के पक्ष में, आखिर ये पार्टियां किस ओर जाएंगी इस पर सबकी नज़र थी.इनमें सबसे बड़ा नाम था बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी. जिन्होंने लोकसभा में ये बिल पेश होने के एक दिन पहले अपना रुख साफ़ किया और एनडीए को अपना समर्थन दिया.वहीं दूसरी ओर भारतीय राष्ट्र समिति और हनुमान बेनीवाल की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, दोनों ने इस बिल का विरोध किया. इसका मुख्य कारण यह था कि दोनों पार्टियां आम आदमी पार्टी के साथ बेहतर रिश्ते रखती हैं.बहुजन समाज पार्टी इस विधेयक पर वोटिंग में शामिल ही नहीं हुई और शिरोमणि अकाली दल ने विधेयक को ‘तमाशा’ बताया

अब केवल सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद-

अब केजरीवाल सरकार के पास जो उम्मीद बची है, वो है सुप्रीम कोर्ट, जहाँ ये मामला विचाराधीन है.अगर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला भी आप के पक्ष में नहीं आता है तो ये पार्टी के लिए एक बड़ी दुविधा पैदा कर देगा.इंडिया गठबंधन के नजरिए से देखें तो इससे विपक्ष का आत्मविश्वास बढ़ा है.विपक्ष में पार्टियों के बीच मजबूत एकता दिखी, ये आने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष की एकता रिहर्सल था. इस संशोधन पर चर्चा के दौरान विपक्ष की पार्टियां और क़रीब आई हैं.ख़ास कर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जो एक दूसरे के आमने-सामने होती थी, उनमें विश्वास गहराया है. कई आम आदमी पार्टी के नेताओं ने ये माना है कि कांग्रेस ने सदन में उन्हें पूरी मजबूती के साथ समर्थन दिया,मणिपुर को लेकर लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 8 से 10 अगस्त तक चर्चा होगी और संभव है कि विपक्ष इस चर्चा में और मजबूत नजर आएगा

2014 में जो मोदी के साथ हुआ, अब वही राहुल गांधी के साथ भी हो रहा है !

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देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ‘मोदी सरनेम’ मामले में राहत देते हुए उनकी सजा पर रोक लगा दी थी, अब लोकसभा सचिवालय की ओर से राहुल गांधी की सदस्यता बहाल होने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने ट्विटर अकाउंट से ‘अयोग्य सांसद’ से ‘संसद के सदस्य’ के रूप में अपडेट कर दिया है.  सदस्यता  बहाल होने के बाद राहुल गांधी संसद पहुंचे. संसद पहुंचते ही उन्होंने सबसे पहले गांधी प्रतिमा को नमन किया. लेकिन सदन में राहुल की एंट्री के साथ ही भाजपा ने फिर से उनको निशाने पर लेना शुरू कर दिया है, संसद में राहुल गांधी की वापसी पर बीजेपी नेता सुशील मोदी ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि राहुल की वापसी से कांग्रेसी भले ही खुश हो रही हों लेकिन उनके सहयोगी दुखी हैं. शरद पवार, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार।

 

 
 
क्यों की गई थी राहुल गांधी की सदस्यता रद्द- 
 
इसी साल 23 मार्च को राहुल गांधी को साल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार में दिए गए भाषण को लेकर सूरत की अदालत ने दो साल की सज़ा सुनाई थी. उस आदेश के ठीक अगले ही दिन लोकसभा सचिवालय ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी थी.’मोदी सरनेम’ को लेकर मानहानि का दावा कोई पहला मामला नहीं है जब राहुल गांधी को लेकर भारतीय जनता पार्टी इतनी हमलावर हुई हो. इस पर सत्तारूढ़ बीजेपी के नेता राकेश सिन्हा ने कहा था कि राहुल गांधी पश्चिमी देशों की ताक़तों के साथ मिलकर भारत की एकता, संप्रभुता की अवहेलना कर रहे हैं. इसी साल जून में राहुल गांधी अमेरिका के दौरे पर थे और राजधानी वाशिंगटन डीसी में उन्होंने कहा था कि “भारत में लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ना हमारा काम है.”उस दौरान उन्होंने वहां बसे भारतीयों से भारत वापस आने का अनुरोध करते हुए लोकतंत्र के साथ भारतीय संविधान की रक्षा में खड़े होने का आह्वान भी किया था. इससे कुछ महीने पहले राहुल गांधी की ब्रिटेन यात्रा को लेकर भी भारत में बहुत बवाल हुआ था. बीजेपी ने तब राहुल गांधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने विदेशी धरती पर भारतीय लोकतंत्र का अपमान किया है. हालांकि राहुल और पार्टी दोनों ने उस आरोप का खंडन किया था।

कई नेताओं के राहुल गांधी पर आरोप-

बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नक़वी ने तब कहा था, “राहुल गांधी विदेश में जा कर ये कहते हैं कि देश में प्रजातंत्र नहीं है.  नकवी ने कहा कि अगर देश में प्रजातंत्र न होता तो यहां का कोई नेता विदेश में जाकर भारत को, भारत के लोकतंत्र को, भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए नेता को, इस तरह के अपशब्द और दुष्प्रचार की भाषा बोल सकता था क्या ? “उस दौरे के बाद जून में ही स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के अमेरिकी दौरे को लेकर राहुल गांधी पर बड़ा आरोप लगाया. उन्होंने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की. उस दौरान उन्होंने एक तस्वीर दिखाई और बोलीं, “राहुल गांधी के अमेरिकी दौरे की इस तस्वीर में जो महिला सुनीता विश्वनाथन साथ बैठी हैं उनके जॉर्ज सोरोस के साथ संबंध हैं. यह पहले भी सामने आ चुका है कि जॉर्ज सोरोस भारत के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं.” स्मृति ईरानी ने यह भी दावा किया कि जॉर्ज सोरोस के संस्थान से जुड़े एक व्यक्ति का राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से संबंध भी था. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि “राहुल गांधी उनसे क्या बात कर रहे थे उन्हें इसकी जानकारी देश को देनी चाहिए.”अब जब सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की दो साल की सजा पर रोक लगा दी है तो बीजेपी की ओर से तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन निरहुआ के नाम से प्रसिद्ध आजमगढ़ से बीजेपी के सांसद दिनेश लाल यादव ने कहा कि राहुल गांधी को संसद में आ कर माफी मांगनी चाहिए।

क्या कहते हैं वरिष्ट पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक- 

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक बताते  हैं,कि  “जिस तरह से राहुल गांधी की सदस्यता गई उससे जमीनी स्तर पर लोगों को अच्छा नहीं लगा. विपक्ष के नेताओं पर ईडी का उपयोग किया गया उससे आम  लोग उतने परेशान नहीं थे लेकिन राहुल गांधी के मामले में ये कहा जा रहा था कि देखो उन्हें संसद तक से निकाल दिया गया. “ये कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बीजेपी ने ही राहुल गांधी को देश का हीरो बना दिया है. पहले उनको पप्पू-पप्पू कह कर नीचा दिखाते थे. कहते थे कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस प्रचारक हैं तो यह हमारे लिए बहुत आशादायक है. कांग्रेस का नेतृत्व राहुल करेंगे तो फिर जीवन भर बीजेपी जीतती रहेगी. राहुल गांधी को हीन भाव से टैग किया करते थे.”लेकिन राहुल गांधी ने इन सभी चीज़ों का जवाब अपनी भारत जोड़ो यात्रा से दे दिया. उन्होंने बता दिया कि वो गंभीर राजनीति करना चाहते हैं,  और कर भी रहे हैं. उनमें मेहनत करने की ताकत है और देश के लोग उनसे प्यार करते हैं.””ठीक ऐसा ही 2014 के चुनाव के दौरान हुआ था, उस समय कांग्रेस के कई नेताओं ने मोदी को लेकर ऐसे बयान दिए थे जिससे मोदी को ही फायदा पहुंचा,,आज वही बीजेपी राहुल के साथ दोहरा रही है,,राजनीतिक जानकार  कहते हैं, कि “राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के तुरंत बाद लोकसभा में हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर सरकार को जिस आक्रामकता से घेरा उससे एक बात तो समझ में आ गई कि आने वाले समय में बीजेपी के आगे एक सबसे बड़ी चुनौती राहुल गांधी के रूप में होगी.””मोदी शब्द को लेकर राहुल गांधी के कोलार में दिए गए वक्तव्य पर चार साल बाद सज़ा दी गई. उन्हें अधिकतम दो वर्ष की सज़ा दी गई थी. इससे उनकी संसद की सदस्यता चली गई. इस घटना ने उनके राजनीतिक भविष्य पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया था. इस मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने जो टिप्पणी की वो राज्य स्तर की जूडिशियरी पर गंभीर चीज़ों को रेखांकित करती है।

 

क्या कहा वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने- 

लोकसभा में वापसी पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, कि “लोकसभा की सदस्यता वापस होने की स्थिति में राहुल गांधी फिर केंद्रीय भूमिका में होंगे. लेकिन इससे विपक्ष के नए गठबंधन ‘इंडिया’ में कुछ उथल-पुथल हो सकती है. हां वो विपक्ष के केंद्र बिंदु ज़रूर होंगे क्योंकि सवाल उन पर होंगे और उनसे ही पूछे जाएंगे. बीजेपी उनको फिर खारिज करेगी, उन पर हमला करेगी. तो कांग्रेस उनका सामने आकर राहुल का समर्थन करेगी.  ऐसी स्थिति में वो केंद्र बिंदु तो बनेंगे ही बनेंगे।

 


 प्रधानमंत्री विपक्ष के नए गठबंधन को लेकर चिंतित-

अब अगर अविश्वास प्रस्ताव से पहले राहुल गांधी संसद में वापस आए हैं तो उसी आक्रामकता के साथ वो अपनी बातें रखेंगे क्योंकि वो मणिपुर हो कर आए हैं. वहां की स्थिति को देख कर आए हैं.””ऐसी स्थिति में 2024 के चुनाव को जीतकर सत्ता में वापसी करने की राह में राहुल गांधी बीजेपी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो सकते हैं “”बीजेपी लगातार राहुल गांधी को डिसक्रेडिट करने का प्रयास करती रही है. वो जितना राहुल गांधी को डिसक्रेडिट करने की कोशिश करती है, उनकी स्वीकार्यता उतनी ही बढ़ रही है. ठीक 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी के साथ हुआ था… बीजेपी की स्वीकार्यता पर सवाल उठ रहे हैं. माना ये भी जा रहा है कि प्रधानमंत्री विपक्ष के नए गठबंधन को लेकर चिंतित हैं जब भी एनडीए की बात करते हैं तो विपक्ष के नए गठबंधन ‘इंडिया’ पर भड़कते जरुर हैं.” जिस इंडिया शब्द को लेकर कभी वो गर्व से कहते आए है की वोट फॉर इंडिया, वोट फॉर इंडिया अब उसी इंडिया को लेकर प्रधानमंत्री अपने बयानों में तुलना करते दिखाई देते हैं।

 

 


क्या कहा अशोक वानखेड़े ने- 
वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े ज़ोर देकर कहते हैं, “राहुल गांधी कभी ‘पप्पू’ नहीं थे. ये बनाए गए थे. इसमें जहां बीजेपी का हाथ था वहीं कांग्रेस के नेताओं का भी हाथ था. कांग्रेसियों का ज़्यादा था.””अशोक वानखेड़े मानते हैं आज जब हिंडनबर्ग और मणिपुर जैसे मुद्दे सामने हैं तो ये भी पूछा जा रहा है कि क्या नोटबंदी, जीएसटी, चीन, कोविड, महंगाई, किसानों पर लाए गए तीन बिल, मणिपुर पर उठाए गए सवाल क्या ग़लत थे. ये सभी सवाल बाद में विकराल रूप लेकर सामने आये हैं .”वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े ये भी बताते हैं कि “राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद को ठुकराया है. इसके बाद भी उन पर परिवारवाद का टैग लगता है, क्योंकि बीजेपी के तरकश में अब कोई तीर बचा नहीं. वर्तमान में जब आपके पास बताने के लिए कुछ बचा ही नहीं तो भविष्य की जीत के लिए  उसी पुराने परिवारवाद, नेहरू की बात कर के इतिहास के पीछे छुपते हैं. यही बीजेपी करती आ रही है।

 

क्या कहा नीरजा चौधरी ने- 

देश में इस साल कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. उसमें कांग्रेस और बीजेपी की स्थिति फिलहाल कैसी दिखती है.सीनियर पत्रकार और राजनीतिक जानकर नीरजा चौधरी कहती हैं,अगर ये दिखा कि राहुल गांधी जैसे ही कांग्रेस की केंद्रीय भूमिका में आएंगे नए गठबंधन ‘इंडिया’ की कमजोरी या कहें डर सामने आ जाएगा. पटना में जो मीटिंग हुई थी उसमें मेरी जानकारी में आया कि राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने यह स्पष्ट कर दिया कि वो पूरी तरह सहयोग करेंगे. उसमें उन्होंने यह बता दिया कि ऐसा नहीं है कि मैं प्रधानमंत्री के पद का दावेदार होना चाहता हूं, ये चीज़ें नतीजे आने पर तय होती रहेंगी. उस दौरान उन्होंने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को ही आगे रखा है. यह राहुल गांधी की तरफ से एक रोचक पहल रही है.”नीरजा चौधरी कहती हैं, “राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ज़रूर उत्साहित कर दिया है. लेकिन हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस को मिली जीत को राहुल गांधी से नहीं जोड़ सकते. वहां मिली जीत वहां के स्थानीय नेतृत्व की वजह से हुई।

क्या कहा अशोक वानखेड़े ने- 

इस पर अशोक वानखेड़े कहते हैं, कि”कांग्रेस इन विधानसभा चुनावों में ऊंचे मनोबल के साथ जा रही है. जब केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व मजबूत होगी तो निचले स्तर पर एकजुटता भी बढ़ेगी, जिसका अच्छा उदाहरण हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनाव में देखने को मिला. आने वाले समय में ये देखेंगे कि तेलंगाना में कांग्रेस की सीटें क्या बढेगी ? वहीं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी बैकफ़ुट पर दिखती है.”वानखेड़े बताते हैं  कि बीजेपी का संगठन कमज़ोर पड़ रहा है. उन्होंने कहा, “हर जगह ब्रांड मोदी मात खाते हुए दिखाई देता है. पन्ना प्रमुख तब काम करेंगे जब कार्यकर्ता साथ होगा. कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहा है. उनको लग रहा है कि उनके नेताओं की बेइज्जती हो रही है. केंद्र के कुछ लोग ही प्रदेश की सभी चीज़ें तय कर रहे हैं. इससे  बीजेपी को बहुत अधिक नुकसान होता दिख रहा है. तो वर्तमान परिस्थिति में बीजेपी आगामी चुनावों को जीतती हुई दिखाई दे नहीं रही है।
नीरजा चौधरी कहती हैं, “राज्यों में कांग्रेस की जीत वहां के स्थानीय नेतृत्व की वजह से मिलेगी. राजस्थान में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच एक समझौता करवा दिया है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ हैं, वहां स्थानीय नेतृत्व मजबूत है. वहां इतने सालों की एंटी इनकम्बेंसी है.”अशोक वानखेड़े कहते हैं, “विधानसभा चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा गया तो इसके जो भी नतीजे आएंगे उसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा. याद करें कि कर्नाटक में उन्होंने कहा था कि नब्बे गालियां मुझे दी जा रही हैं, जिसका बदला आपको लेना है. तो हार होने की स्थिति में यह उनकी हार है जिसका असर 2024 के चुनाव पर ज़रूर पड़ेगा।

क्या मोदी ही होंगे PM या कोई और करेगा NDA का नेतृत्व- 
नीरजा चौधरी भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखती हैं कि अगर 2024 के चुनाव से पहले ‘इंडिया’ गठबंधन ने अपनी एकता दिखाई और सोच समझ कर उम्मीदवार उतारे तो उसका असर पड़ेगा.लेकिन साथ ही वो ये भी कहती हैं कि, “विपक्षी गठबंधन ने बहुत अच्छा प्रदर्शन भी किया तो बीजेपी की 60-70 सीटें कम हो जाएंगी..  हो सकता है उन्हें गठबंधन की सरकार बनानी पड़े लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ही रहेगी. उन्होंने एनडीए में 38 दलों को इकट्ठा कर लिया है. हालांकि ऐसी स्थिति में सरकार तो बीजेपी बनाएगी लेकिन नेतृत्व पर सवाल उठ सकता है कि क्या मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे या कोई और NDA का नेतृत्व करेगा।
 
 
 
 

संसद की कार्यवाही पर प्रति घंटे खर्च होते हैं करोड़ों रुपये, केवल 80 दिन ही होता है काम…

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क्या आपको ये पता है कि संसद में एक दिन सत्र को कराने में कितनी मोटी रकम खर्च होती है? हमारे और आपके द्वारा चुने गए नेताओं के संसद में शोर और हल्ला करने से देश की इकोनॉमी पर काफी असर पड़ रहा है,आप जान कर हैरान होंगे कि देश में रहने वाले टैक्सपेयर्स के  पैसों का नुकसान हर घंटे केवल संसद में नेताओं के हो-हल्ले के कारण हो रहा है।आप भी जानकर हैरान हो जाएंगे जब आपको संसद पर खर्च होने वाली रकम के बारे में पता चलेगा ? संसद की कार्यवाही पर कितना खर्च आता है.



क्या है मांनसून सत्र-

देश की संसद में 20 जुलाई से मानसून सत्र जारी है, जो 11 अगस्त, 2023 तक चलेगा।  मणिपुर मामले को लेकर दोनों ही सदनों में खूब हंगामा हो रहा है। इसी को देखते हुए पिछले कुछ समय से संसद में कामकाज को लेकर सवाल उठते रहे हैं। संसद में होने वाले हंगामे और बहिष्कार के बीच जो समय खराब होता है, इसको लेकर भी सवाल खड़े किए जाते है। सबसे पहले बताते हैं की क्या है संसद के मानसून सत्र का शेड्यूल? देश का मानसून सत्र  20 जुलाई, 2023 से शुरू हुआ और 11 अगस्त को यह खत्म होगा।इस दौरान संसद में हुए विरोध प्रदर्शन के कारण किसी भी मुद्दे पर ठीक से चर्चा नहीं हो पाई है।अब तक दोनों ही सदन लोकसभा और राज्यसभा हंगामेदार रहा।सुबह 11 बजे से संसद की कार्यवाही शुरू होती है, जो शाम 6 बजे तक चलती है। इस बीच सांसदों को लंच ब्रेक भी मिलता है, जो दोपहर 1 से 2 के बीच होता है।शानिवार और रविवार को छोड़ 5 दिन संसद की कार्यवाही जारी रहती है।अगर सत्र के दौरान कोई त्योहार पड़ जाए तो संसद का अवकाश माना जाता है। आपको ये भी बताते चलें कि संसद के तीन सत्र  होते हैं? पहला बजट सत्र जो फरवरी से लेकर मई,जबकि दूसरा मानसून सत्र जो चल रहा है ये जुलाई से अगस्त-सितंबर जबकि तीसरा सत्र शीत सत्र जो नवंबर से दिसंबर के बीच चलता है।

 
 
संसद की कार्यवाही पर इतना खर्च आता है- 

अब आपको बताते हैं कि संसद की कार्यवाही पर कितना खर्च आता है। संसद की प्रत्येक कार्यवाही पर करीब हर मिनट में ढाई लाख (2.5 लाख) रुपये खर्च का अनुमान है। आसान भाषा में समझें तो एक घंटे में डेढ़ करोड़ रुपये (1.5 करोड़) खर्च हो जाता है।संसद सत्र के 7 घंटों में एक घंटा लंच को हटाकर बचते है 6 घंटे।इन 6 घंटों में दोनों सदनों में केवल विरोध, हल्ला और शोर होता है, जिसके कारण हर मिनट में ढाई लाख रुपये बर्बाद हो रहे हैं।संसद में हंगामा होने के कारण आम आदमी का ढाई लाख रुपए हर मिनट बर्बाद होता है।

 

सांसदों को मिलने वाला वेतन- 

अब आपको बताते हैं कि ये पैसा कैसे खर्च होता है ? ये पैसा सांसदों के वेतन,संसद सचिवालय पर आने वाले खर्च,संसद सचिवालय के कर्मचारियों के वेतन।सत्र के दौरान सांसदों की सुविधाओं पर होने वाले खर्च के रूप में ये पैसे खर्च होते है।दरअसल संसद की कार्यवाही के लिए जो पैसे खर्च किए जाते हैं वो हमारी और आपकी कमाई का हिस्सा होता है।ये वहीं रकम होती है, जिसे हम टैक्स के रूप में भरते हैं। लोकसभा की आंकड़ों के मुताबिक, सांसदों को हर महीने 50,000 रुपये सैलरी दी जाती है। वहीं, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता के रूप में सांसदों को 45,000 रुपये वेतन दिया जाता है।इसके अलावा सांसदों का कार्यालय खर्च भी होता है, जो 15,000 रुपये होता है।साथ ही सचिवीय सहायता के रूप में सांसदों को 30,000 रुपये दिए जाते हैं।इसका मतलब है कि सांसदों को प्रति माह 1.4 लाख रुपये सैलरी दी जाती है।सांसदों को सालभर में 34 हवाई यात्राओं का लाभ मिला हुआ है।सांसद ट्रेन और सड़क यात्रा के लिए सरकारी खजाने का इस्तेमाल कर सकते है।

इस पर क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट-

लोकसभा के पूर्व सचिव एस के शर्मा से जब संसद में प्रतिदिन कुल खर्च को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने संसद की तुलना सफेद हाथी से की। उन्होंने कहा कि संसद सफेद हाथी है, जिसको पालना यानी कि चलाना एक अलग ही टास्‍क है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि संसद में पूछे जाने वाले एक सवाल के लिए लाखों टन पेपर प्रिंट होते हैं, जिन्‍हें अलग-अलग मंत्रालयों में भेजा जाता है। जिसके लिए प्रिंट करने के लिए कागज, स्‍याही, लोग, गाड़ी, पेट्रोल-डीजल से जैसे तमाम खर्चे होते हैं। आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि संसद की एक दिन की कार्यवाही में कितना पैसा खर्च होता है। आशा है अब अच्छी तरह समझ गए होंगे कि इस देश की संसद पर हर एक घण्टे में करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं और इसके बावजूद  संसद चल नहीं रही और इस देश की जनता का पैसा किस तरह इस देश के राजनेता उड़ा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई राहुल गांधी की सजा पर रोक, मोदी सरनेम मामले में बड़ा फैसला…

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मोदी सरनेम पर दिए एक बयान से राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता चली जाती है और उनको दो साल की सजा सुनाई जाती है, आज सुप्रीम कोर्ट राहुल ने राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी, लेकिन जिस याचिकाकर्ता ने राहुल के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी उनको लेकर भी कोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है, मोदी सरनेम को लेकर दिए एक बयान के बाद जहां गुजरात की कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी जिसके बाद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता चली गयी थी, अब काफी  समय से मोदी सरनेम को लेकर चल रही क़ानूनी लड़ाई में राहुल गांधी को राहत मिली है, मोदी सरनेम केस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए राहुल की सजा पर रोक लगाई है. जज ने राहुल गांधी को राहत देते हुए कहा, हम सेशन्स कोर्ट में अपील लंबित रहने तक राहुल की दोष सिद्धि पर रोक लगा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी को राहत मिलने पर कांग्रेस ने कहा, ये नफरत के खिलाफ मोहब्बत की जीत है. सत्यमेव जयते-जय हिंद… 

 

मोदी सरनेम को लेकर खुलासा- 

इस मामले में एक बड़ी बात सामने आयी है, दरअसल राहुल ने अपने एक बयान में कहा था कि सारे मोदी चोर क्यों हैं,,, जिसके बाद  पूर्णेश मोदी नाम के एक शख्स ने राहुल गांधी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी कि राहुल गांधी ने सभी मोदी सरनेम वालों का अपमान  किया है, इसी  शिकायत पर राहुल गांधी को कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई, जिसके चलते उनको अपनी सदस्य्ता गवानी पड़ी थी, लेकिन जिन पूर्णेश मोदी ने सारे मोदी सरनेम वालों का इसको अपमान बताकर शिकायत की थी उनका खुद का सरनेम मोदी नहीं है ,,, राहुल गांधी के इस मामले की सुनवाई जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही थी. राहुल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत में तर्क देते हुए कहा कि खुद शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी का मूल सरनेम ही मोदी नहीं है. उनका मूल उपनाम भुताला है. सिंघवी ने आगे कहा कि मोदी सरनेम और अन्य से संबंधित प्रत्येक मामला भाजपा के पदाधिकारियों द्वारा दायर किया गया है. यह एक सुनियोजित राजनीतिक अभियान है. इसके पीछे एक प्रेरित पैटर्न दिखाता है. राहुल गांधी इन सभी मामलों में केवल आरोपी हैं, दोषी नहीं है, जैसा कि हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है।  

 

क्या कहा राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने-
 

राहुल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राहुल गांधी ने अपने भाषण में जिन लोगों का नाम लिया था, उनमें से एक ने भी मुकदमा नहीं किया है. दिलचस्प बात ये है कि 13 करोड़ की आबाद वाले इस ‘छोटे’ समुदाय में जो भी लोग पीड़ित हैं, उनमें से केवल भाजपा के पदाधिकारी ही मुकदमा दायर कर रहे हैं. क्या ये बहुत अजीब नहीं है, उस 13 करोड़ की आबादी में न कोई एकरूपता है,, न पहचान की एकरूपता है,, न कोई सीमा रेखा है.. दूसरा कि ये पूर्णेश मोदी ने स्वयं कहा कि उनका मूल सरनेम मोदी नहीं था. अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में राहुल का पक्ष रखते हुए कहा कि इस मामले में मानहानि केस की अधिकतम सज़ा दे दी गई. इसका नतीजा ये होगा कि राहुल गांधी 8 साल तक जनप्रतिनिधि नहीं बन सकेंगे. उन्होंने शीर्ष अदालत को बताया हाईकोर्ट ने 66 दिन तक आदेश सुरक्षित रखा. राहुल लोकसभा के 2 सत्र में शामिल नहीं हो पाए हैं। 

SC ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर भी उठाए सवाल-
राहुल पर फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा, कि राहुल की अपील सेशन कोर्ट में पेंडिंग है, इसलिए हम केस पर टिप्पणी नहीं करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाए और कहा कि जहां तक राहुल की सजा पर रोक की बात है, ट्रायल कोर्ट ने राहुल को मानहानि की अधिकतम सजा दी है लेकिन इसका कोई विशेष कारण नहीं दिया है. राहुल गांधी की सजा कम भी हो सकती थी। कोर्ट जानना चाहता है कि अधिकतम सजा क्यों दी गई? कोर्ट का मानना है कि अगर जज ने एक साल 11 महीने की सजा दी होती तो राहुल गांधी अयोग्य नहीं ठहराए जाते। 2 साल की सजा के चलते राहुल जनप्रतिनिधित्व कानून के दायरे में आ गए अगर उनकी सजा कुछ कम होती तो उनकी सदस्यता नहीं जाती. इसमें कोई शक नहीं है कि राहुल का बयान अच्छा नहीं था. सार्वजनिक जीवन मे बयान देते समय संयम बरतना चाहिए. ट्रायल कोर्ट के इस फैसले से राहुल के अलावा उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोगों का अधिकार भी प्रभावित हो रहा है. इसलिए हम सेशंस कोर्ट में अपील लंबित रहने तक राहुल की सजा पर रोक लगा रहे हैं।  

राहुल गांधी की सदस्यता फिर होगी बहाल ?

अब सवाल उठता है कि क्या राहुल की सदस्यता फिर से बहाल होगी ? दरअसल राहुल गांधी को दी गई ये राहत फौरी राहत है. अगर सेशंस कोर्ट दो साल की सजा सुनाता है तो यह अयोग्यता फिर से लागू हो जाएगी. लेकिन अगर राहुल गांधी को बरी कर देता है या सजा को घटाकर दो साल से कम कर देता है तो सदस्यता बहाल रहेगी. निचली अदालत के फैसले के बाद लोकसभा सचिवालय ने अधिसूचना जारी कर दी थी कि वायनाड की सीट खाली है. राहुल गांधी को कोर्ट के इस फैसले के बाद लोकसभा सचिवालय को प्रतिवेदन देना होगा. इसमें सुप्रीम कोर्ट के आज के आदेश का उल्लेख कर लोकसभा सदस्यता बहाल करने का अनुरोध किया जाएगा. इसके बाद लोकसभा सचिवालय के अधिकारी आदेश का अध्ययन करेंगे . जिसके बाद राहुल गांधी की सदस्यता बहाल करने का आदेश जारी किया जाएगा. हालांकि, इसकी कोई समय सीमा नहीं है. लेकिन इस प्रक्रिया को जल्द ही करना होगा। 

 

2019 में चुनाव प्रचार के दौरान दिया था बयान- 

अब आपको पूरा मामला बताते हैं ,,दरअसल 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार की एक रैली में राहुल गांधी ने कहा था, ‘कैसे सभी चोरों का उपनाम मोदी है?’ इसी को लेकर भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था। राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का  मामला दर्ज किया गया था। 23 मार्च को निचली अदालत ने राहुल को दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। इसके अगले ही दिन राहुल की लोकसभा सदस्यता चली गई थी। राहुल को अपना सरकारी घर भी खाली करना पड़ा था। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ दो अप्रैल को राहुल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।  हाईकोर्ट   ने मई में राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सात जुलाई को कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया और राहुल की याचिका खारिज कर दी थी। 

 

उच्च न्यायालय का आदेश स्वतंत्र भाषण, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है-

यदि लागू फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह “स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र बयान का गला घोंट देगा”। यह “लोकतांत्रिक संस्थाओं को व्यवस्थित, बार-बार कमजोर करने और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का गला घोंटने में योगदान देगा जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा”। यदि राजनीतिक व्यंग्य को आधार उद्देश्य माना जाए, तो कोई भी राजनीतिक भाषण जो सरकार की आलोचनात्मक हो, नैतिक अधमता का कार्य बन जाएगा। “यह लोकतंत्र की नींव को पूरी तरह से नष्ट कर देगा।”


अब देखना होगा कि राहुल गाँधी अपनी सदस्यता बहाल करने के लिए कदम आगे बढ़ाते हैं या फिर किसी और रणनीति के तहत आगे बढ़ते हैं ,पर फिलहाल कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस सिर्फ एक बात कह रही है,की ये  नफरत के खिलाफ मोहब्बत की जीत है. सत्यमेव जयते-जय हिंद.

वादों और दावों का उत्तराखंड, जमीनी हकीकत से मुंह छुपाती सरकारें…

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हर देश में रहने वाले लोग पहले अपना राजा चुनते हैं,,, ताकि उसे किसी भी समस्या से जूझना ना पड़े, और राजा का भी यही कर्तव्य होता है  कि वो अपनी  प्रजा को  होने वाली हर समस्या और परेशानियों से  बाहर निकाले. लेकिन जब उसी जनता की जरूरत और बढ़ती परेशानियों को उसे खुद ही झेलना पड़े तो राजा का कर्तव्य और उसकी प्रजा के लिए उसके मायने वहीं पर खत्म हो जाते हैं


उत्तराखंड प्रदेश में दम तोड़ती सभी सेवाएं-

सभी जानते हैं कि वादों और दावों में गठन के समय से ही उत्तराखंड में विकास तेजी से भाग रहा है. भले ही वो कागजों तक ही हुआ हो, क्योकि धरातल पर जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी को बयां करती है. और ये सिर्फ आज ही नहीं बल्कि हमेशा से होता आया है. उत्तराखंड जैसा राज्य आज किसी भी चीज में पीछे नहीं रह गया  है,,, फिर चाहे वो अपराध हो, पलायन को मजबूर वो लोग हों जो ना चाहते हुए भी सब कुछ त्याग कर चले गए… ‘एक नई जगह अपनी दुनिया बसाने,  फिर चाहे वो बेरोजगारी हो, या फिर दम तोड़ती हुई स्वास्थ्य सेवाएं हो, चाहे वो बेहतर शिक्षा का विषय ही क्यो न हो.  ये सभी चीजें धरातल पर दावों और वादों की हकीकत को पूरी बदलकर रख देती है और सोचने को मजबूर करती है उन सभी लोगों को. जो अब तब बड़ी  संख्या में पलायन कर चुके हैं, बेरोजगारी के नारे लगा रहे हैं, और आज भी कई जगह सड़कों के ना होने के चलते लोगों को डंडी और कंडी का सहारा देना पड़ रहा है, कई लोग आज भी खराब सड़कों के कारण रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं,,तो वहीं अस्पताल में कभी लिफ्ट के पास तो कभी फर्श पर महिलाओं का प्रसव हो रहा है

 

सबसे पहले बात उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था की- 

एक बच्चे के लिए स्कूल, घर और दुनिया को जोड़ने वाले पुल की तरह काम करता है,,, जिसे अब हर कोई पार करना चाहता है. लेकिन दावों और वादों की पहली हकीकत यही सामने आ जाती हैं.  प्रदेश में 12 जुलाई 2022 को नई शिक्षा नीति  लागू की गयी  थी, उत्तराखंड नई शिक्षा नीति लागू करने वाला देश का पहला राज्य तो  बन गया. लेकिन आज कई उच्च प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कठिन विषयों के शिक्षक नहीं हैं। विशेषकर दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक से लेकर माध्यमिक विद्यालयों को छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए भी वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। तंत्र की इस लापरवाही का परिणाम ये हुआ है कि दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा की रोशनी पहुंचाने के लिए खोले गए विद्यालयों में भी छात्र संख्या घट रही है। और यदि कहीं छात्र है भी तो वहां शिक्षक ही नहीं हैं. हाल ये हैं कि बेटी पढ़ाओ अभियान का नारा दे रही  सरकार के ये नारे दम तोड़ रहे हैं। 

10 हजार से अधिक बेटियों का भविष्य संकट में-

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात में शिक्षा के महत्व को बताते हैं तो मानो लगता है कि ये सिर्फ उन पर लागू होता है जो उसे सुन रहे हैं. क्योकि उस पर अमल करने और उसे पूरा करने में शायद सत्ता में बैठे मंत्री और मुख्यमंत्री फेल हो गए हैं. इसका एक उदाहरण अल्मोड़ा जिले में देखने को मिलता है, जहां बेटियों के लिए संचालित 21 जीजीआईसी में शिक्षिकाओं के 117 पद लंबे समय से खाली हैं। शिक्षिकाएं न होने से इन विद्यालयों में पढ़ने वाली 10 हजार से अधिक बेटियों का भविष्य संकट में हैं। अभिभावक काफी समय से शिक्षिकाओं के रिक्त पदों को भरने की मांग कर रहे हैं पर कोई सुनवाई नहीं हुई। बेटियों को बेहतर शिक्षा देकर उन्हें सफल और आत्मनिर्भर बनाने के दावों के बीच उन्हें पढ़ाने के लिए विद्यालयों में शिक्षिकाएं ही नहीं हैं।


एक ही शिक्षक कई विषयों को पढाने को मजबूर- 

अल्मोड़ा जिले में बेटियों के लिए खोले गए विद्यालय इसकी बानगी हैं। जिले में 21 जीजीआईसी संचालित हैं जिनमें 10 हजार से अधिक बेटियां पढ़ रही हैं। इन विद्यालयों में प्रवक्ताओं के 193 और एलटी संवर्ग में शिक्षिकाओं के 289 (नवासी) पद सृजित हैं। आश्चर्य की बात ये है कि इनमें प्रवक्ताओं के 68 और एलटी संवर्ग में शिक्षिकाओं के 49 पद सालों से रिक्त हैं। ऐसे में बेटियां बगैर शिक्षकों के पढ़ने के लिए मजबूर हैं और उनके भविष्य को लेकर अभिभावक चिंतित हैं। अब इस पर कई टॉपर्स बच्चों ने भी उत्तराखंड  सीएम के सामने  ये मांग उठायी है. ये कोई एकलौता मामला नहीं है,, उत्तराखंड के कई जूनियर हाईस्कूलों ऐसे है जहां पर सामाजिक विषय के शिक्षक बच्चों को हिंदी, अंग्रेजी और गणित पढ़ा रहे हैं। खासकर एकल शिक्षक वाले जूनियर स्कूलों में ये हालात  है। इस तरह के राज्य में इक्का दुक्का नहीं बल्कि 170 स्कूल हैं।  तीन हजार प्राथमिक विद्यालयों में एक से पांचवीं कक्षा तक के बच्चे एक ही क्लास  में पढ़ रहे हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि 1 से 5 तक के बच्चे कैसे एक ही क्लास में पढ़ रहे हैं.. क्या ये  शिक्षा विभाग का कोई मिक्स लर्निंग का अभिनव प्रयोग तो नहीं ?  ऐसा नहीं है बल्कि स्कूलों में घट रही छात्र संख्या और शिक्षकों की कमी की वजह से ऐसा किया जा रहा है। बता दें कि राज्य सेक्टर के जूनियर हाईस्कूलों में मानक के अनुसार चार सहायक अध्यापक और एक प्रधानाध्यापक होना चाहिए। जबकि सर्व शिक्षा के जूनियर हाई स्कूलों में तीन सहायक अध्यापक के पद हैं, लेकिन स्कूलों में मानक के अनुसार शिक्षक न होने से 170 एकल शिक्षकों वाले इन स्कूलों में एक शिक्षक को 21 विषयों को पढ़ाना पड़ रहा है।  इसमें कुछ स्कूल देहरादून जिले के हैं। जहां पूरी सरकार रहती है , जिले के जूनियर हाईस्कूल रावना विकासखंड चकराता में पिछले तीन साल से मात्र एक शिक्षक है। सामाजिक विषय के शिक्षक  को हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, संस्कृत व कला सभी विषय पढ़ाने पड़ रहे हैं। यही स्थिति इसी ब्लॉक के जूनियर हाईस्कूल बिसऊ घणता की है। स्कूल एकल शिक्षक के भरोसे है, स्कूल के एकल शिक्षक  का भी वर्ष 2016 में चकराता ब्लॉक से विकासनगर ब्लॉक के मदरसा स्कूल में तबादले का आदेश हुआ था, लेकिन रिलीवर न मिलने की वजह से शिक्षक नई तैनाती पर नहीं जा सके।

एक ही कक्षा में पढ़ने को मजबूर हैं कई कक्षाओं के छात्र-छात्राएं-  

राजकीय प्राथमिक विद्यालय मन टाड के शिक्षक  के मुताबिक स्कूल में मात्र सात छात्र-छात्राएं हैं। कम छात्र होने की वजह से कक्षा एक से पांचवीं तक के सभी छात्र-छात्राएं एक कक्षा में पढ़ते हैं। विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक देहरादून जिले में इस तरह के 72 स्कूल हैं। इतने स्कूलों में छात्र एक ही कक्षा में पढ़ते हैं,  प्रदेश का पिथौरागढ़ ऐसा जिला है, जिसमें एकल शिक्षक वाले सबसे अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। स्कूल में कम छात्र संख्या की वजह से एक से पांचवीं तक के छात्र एक ही कक्षा में पढ़ते हैं। जिले में इस तरह के 486 स्कूल हैं। जबकि अल्मोड़ा में 442, बागेश्वर में 293, चमोली में 396, चंपावत में 135, हरिद्वार में 36, नैनीताल में 228, पौड़ी में 273, रुद्रप्रयाग में 221, टिहरी में 302, ऊधमसिंह नगर में 98 एवं प्राथमिक विद्यालय उत्तरकाशी में 208 स्कूल हैं।


बच्चों ने मुख्यमंत्री को गिनाई पहाड़ की कई समस्याएं- 

अभी एक कार्यक्रम में  उत्तराखंड सरकार ने 10वीं और 12वीं के टॉपर बच्चों के प्रोत्साहन के लिए उन्हें सम्मानित किया.. वहां  पर भी कई बच्चों ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को अपनी कई परेशानियां गिनाई बच्चों ने मुख्यमंत्री से संवाद करते हुए ये भी कहा कि 12वीं के बाद फिर से वही समस्या होती है। छात्रों ने कहा कि सिविल सेवा या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए मैदानी जनपदों में जाना उनकी मजबूरी बन जाता है। इसलिए ऐसा कुछ इंतजाम किए जाए की शिक्षा पाने के लिए पहाड़ की प्रतिभाओं को घर न छोड़ना पडे। अभी कई मेधावी मैदानी जनपदों में आने में सक्षम नहीं होते और पिछड़ जाते हैं। ये पीड़ा पहाड़ी क्षेत्रों के बच्चों ने शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत से कही।

अब बात स्वास्थ्य सेवाओं की- 

गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछाने के दावों के बीच कई गांव ऐसे हैं जहां मोटर मार्ग तो दूर. ठीक से चलने के लिए पैदल मार्ग तक नहीं है। उत्तराखंड में सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर लगातार सरकारों पर सवाल उठते रहे हैं. इसके बाद भी आज तक सभी सेवाओं का हाल बेहाल है. सरकारें लगातार सड़कों का जाल गांव-गांव तक पहुंचाने की बातें कहती हैं और अपने दावों को मजबूत भी करती हैं. लेकिन इस बीच दावे और हकीकत में लगातार अंतर सामने आते रहते है. ऐसा ही एक मामला बागेश्वर जिले के गांव लीती डांगती से सामने आता है. यहां गांव के एक बीमार व्यक्ति को ग्रामीण डोली में लेकर अस्पताल जाते हैं। पुरुषों की संख्या कम होने पर महिलाओं ने बारी-बारी से डोली को कंधा दिया। इसके बाद मरीज को अस्पताल पहुंचाया. डांगती से लीती गांव की पैदल दूरी सात किमी है। गांव में किसी के बीमार होने पर उसे डोली के सहारे सड़क तक लाना मजबूरी है। यहां से 108 की मदद से मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है। हालात ये है कि युवाओं के रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर जाने से गांव में पुरुषों की संख्या कम है। वहीं इस पर गांव के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी ने कहा कि सरकार को इन जमीनी मुद्दों को समझना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से गांव की महिलाओं को मरीजों को ले जाने के लिए आगे आना पड़ रहा है, इससे साफ पता चलता है कि रोजगार, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य के दावे पूरी तरह से झूठे हैं, जनप्रतिनिधियों को उन्हें पूरा करने के लिए आगे आना होगा. लिहाजा, महिलाओं को डोली को कांधा देना पड़ता है। 

 
 
राजधानी देहरादून के सबसे बड़े अस्पताल का भी यही हाल-

देहरादून के सबसे बड़े अस्पताल दून अस्पताल का भी यही हाल है,जहां दूर दराज से लोग इस आस में आते हैं कि वहां अच्छी व्यवस्था उनको मिलेगी और उनका इजाल अच्छे से होगा। अभी हाल ही में एक ऐसा नजारा यहां देखने को मिला जब दून अस्पताल के महिला वार्ड में एक ही बेड पर दो- दो प्रसूताएं भर्ती दिखाई दी। उसी पर नवजात को भी लिटाना पड़ रहा है . इस मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ. कांग्रेस  ने स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठाते हुए कहा, मंत्री और नेता दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने में व्यस्त हैं. यहां स्वास्थ्य सेवा पटरी से उतर गई है। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कभी लिफ्ट के पास तो कभी फर्श पर महिलाओं का प्रसव हो रहा है। जच्चा-बच्चा वार्ड में एक ही बेड पर दो महिलाएं और दो नवजात भर्ती हो रहे हैं। ऋषिकेश एम्स में स्ट्रेचर नहीं मिलने पर गाड़ी में ही प्रसव कराना पड़ रहा है। 



प्रदेश सरकार पर कई सवाल- 

अब सवाल ये उठता है कि राज्य में फिर कौन सा विकास हो रहा है जिसका दावा हमारी सरकारें करती आ रही हैं,, दावों और वादों की हकीकत जब ऐसे दिखाई देती है तो हमारे प्रदेश की सरकारों पर कई सवाल खड़े उठते हैं, कि आखिर राज्य बनने के इतने साल बाद भी हम आज उन चीजों की मांग कर रहे हैं जो सभी की रोजमर्रा जिंदगी के लिए बेहद जरूरी है। 

मणिपुर मामले में CJI ने सरकार से किए सख्त सवाल, कहा- 14 दिन तक पुलिस ने कुछ क्यों नहीं किया…

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मणिपुर में वायरल वीडियो में जिसमें दो महिलाओं का यौन उत्पीड़न हुआ था. और उन्हें निर्वस्त्र कर घुमाया गया था.  दो महिलाओं के साथ हुई उस दरिंदगी से देश को शर्मसार करने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 31 जुलाई को सुनवाई हुई. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कई सवाल किए।

CJI चंद्रचूड़ ने सरकार से पूछे कई सख्त सवाल- 

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सरकार से पूछा की 4 मई की घटना पर पुलिस ने 18 मई को जाकर FIR दर्ज की, आखिर 14 दिन तक पुलिस ने कुछ क्यों नहीं किया? वायरल वीडियों में महिलाओं को जब निर्वस्त्र कर घुमाया जा रहा था,, तब पुलिस कहां थी और कुछ क्यों नहीं कर पाई?

1 अगस्त को ही होगी मामले की अगली सुनवाई- CJI

डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा की यदि महिलाओं पर अपराध के 1000 मामले दर्ज होते हैं, तो क्या सभी जांच सीबीआई कर पाएगी ? साथ ही इस पर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जांच टीम में सीबीआई की एक जॉइंट डायरेक्टर रैंक की महिला अधिकारी को रखा जाएगा. इस पर वहीं, सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमन ने कहा कि वो मंगलवार यानी, 1 अगस्त को हर केस पर तथ्यों के साथ जानकारी देंगे।

SC ने सभी FIR की जानकारी मांगी- 

 

CJI चंद्रचूड़ ने कहा की हमें जानना है कि 6000 FIR का वर्गीकरण क्या है, और इसमें कितने जीरो FIR है. कितनी अभी तक गिरफ्तारी हुई, और अभी तक क्या-क्या कार्रवाई हुई है, डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा की हम कल फिर सुनवाई करेंगे. क्योंकि परसों से अनुच्छेद 370 पर सुनवाई शुरु हो रही है. इसलिए इस मामले पर कल ही सुनवाई होगी.. वहीं सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर तुषार मेहता ने कहा, “कल सुबह तक FIR का वर्गीकरण उपलब्ध करवा पाना मुश्किल होगा।

CJI ने कहा कि पीड़ित महिलाओं की शिकायत कौन दर्ज करेगा. एक महिला जो राहत शिविर में रह रही है और अपने पिता या भाई की हत्या से डरी हुई है.  क्या ऐसा हो पाएगा कि न्यायिक प्रक्रिया उस तक पहुंच सके?”  चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने SIT के लिए भी नाम दिए हैं. आप इस पर भी जवाब दीजिए. अपनी तरफ से नाम का सुझाव दीजिए. या तो हम अपनी तरफ से कमिटी बनाएंगे, जिसमें पूर्व महिला जज भी होंगी।

 

CJI ने निर्भया कांड का भी किया जिक्र- 
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पीड़ितों के बयान हैं कि उन्हें पुलिस ने भीड़ को सौंपा था. ये निर्भया जैसी स्थिति नहीं है, जिसमें एक बलात्कार हुआ था, वो भी काफी भयावह था लेकिन इससे अलग था. यहां हम प्रणालीगत हिंसा से निपट रहे हैं, जिसे आईपीसी (IPC) एक अलग अपराध मानता है।

क्या कहा मैतेई समुदाय के वकील ने- 

वहीं, सीजेआई ने मैतेई समुदाय के वकील से कहा कि इस बात पर आश्वस्त रहें कि किसी भी समुदाय के प्रति हिंसा हुई हो, हम उसे गंभीरता से लेंगे यह सही है कि ज़्यादातर याचिकाकर्ता पक्ष कुकी समुदाय की तरफ से हैं. उनके वकील अपनी बात रख रहे हैं लेकिन हम पूरी तस्वीर देख रहे हैं. ” सीजेआई ने आगे कहा, “निश्चित रूप से मैतेई समुदाय के लोग भी पीड़ित होंगे. हिंसा दोतरफा होती है इसलिए भी हम एफआईआर के वर्गीकरण को देखना चाहते हैं. इस पर मैतेई समुदाय के एक वकील ने कहा, “वहां लोगों से हथियार जब्त किए जाने की जरूरत है. कोर्ट इस पर भी विचार करे।

सीजेआई ने मैतेई समुदाय के वकील की बात पर कहा, “हां, ये भी जरूरी है. इस बात पर भी पूरा ध्यान दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि मामले की सुनवाई अब 1 अगस्त को दोपहर 2 बजे होगी।

इंडियन नेशनल डेवोलपमेंटल इंक्लूसिव अलाइंस में सोनिया गांधी की एंट्री…

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सोनिया गांधी,, वो नाम जो यूपीए की जीत के दौरान प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे था, और माना जा रहा था कि सोनिया गांधी ही देश की प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं, लेकिन अचानक इन अटकलों को विराम देते हुए सोनिया ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने सबको चौंका दिया और वो था प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन का नाम घोषित करना, इतना ही नहीं दूसरी बार भी प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने मनमोहन सिंह को ही चुना,सोनिया गांधी के ये वो फैसले थे जिसके बाद देश में हर जगह उनकी चर्चा हुई, एक बार फिर मोदी सरकार को हटाने में सोनिया गांधी की एक अहम भूमिका होने वाली है,, बहुत समय से स्वास्थ्य कारणों से राजनीती में कम ही सक्रिय रही सोनिया गांधी के एक बार फिर से सक्रिय होने के क्या मायने हैं, इससे कांग्रेस पर क्या असर पड़ सकता है।

 

17 और 18 जुलाई को हुई थी बैठक-

सोनिया गांधी ने हाल ही के दिनों में अपनी राजनीतिक गतिविधि भले ही कम कर दी हों, मगर उनकी एक गरिमा है,,  गठबंधन को चलाने का अनुभव है,, नेतृत्व देने की क्षमता है,,  इसलिए अब सबकी निगाहें 17 और 18 जुलाई को बेंगलुरु में होने होने वाली बैठक पर थी. बेंगलुरु में 17 और 18 जुलाई को होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में सोनिया गांधी भी मौजूद रही. 17 जुलाई को सोनिया गांधी ने सभी विपक्षी नेताओं को डिनर पर भी बुलाया था. अभी तक सोनिया गांधी ने अपनी राजनीतिक गतिविधि को कम कर रखा था, मगर बेंगलुरु की बैठक के लिए वो पूरी तरह तैयार थी. उनके इस बैठक में शामिल होने से ये भी तय हो गया कि मोर्चा के नेतृत्व के सवाल पर कांग्रेस गंभीर है, और अपना दावा बनाए रखना चाहती है।

 

सोनिया गांधी के आने से स्थिति साफ-

 अभी तक लग रहा था कि विपक्ष का नेतृत्व नीतीश कुमार या शरद पवार कर रहे हैं. जाहिर है विपक्षी दलों की पहली बैठक पटना में हुई. उससे पहले सभी नेता शरद पवार से मिलने मुंबई का चक्कर काट रहे थे. मगर सोनिया गांधी के आने से स्थिति साफ हो गई है. वजह है, कि सोनिया गांधी UPA की चेयरपर्सन हैं. वो 2004 और 2009 में सत्ता में UPA   को ला चुकी हैं. उन्हें गठबंधन चलाने का पूरा अनुभव है.  2004 में सोनिया को उस वक्त सफलता मिली थी, जब उनके खिलाफ वाजपेयी और आडवाणी जैसे क़द्दावर नेता थे. सोनिया गांधी को सक्रिय राजनीति में आए 10 साल भी नहीं हुए थे. हां… ये बात जरूर है कि इस बार उनके खिलाफ मोदी और शाह की जोड़ी है. उनके पास ना तो सलाहकार के तौर पर अहमद पटेल हैं. न ही राजनीति सूझबूझ रखने वाले हरकिशन सिंह सुरजीत. मगर इस बार उनके पास शरद पवार, खरगे और नीतीश कुमार हैं।

 

आखिर क्यों चुना बैठक के लिए बेंगलुरु को-

सोनिया गांधी ने बैठक में शामिल होने के लिए बेंगलुरु को चुना है, जहां कांग्रेस की सरकार है, अपना मुख्यमंत्री है, और जिसने बीजेपी को हरा कर सत्ता हासिल की है. पटना में जेडीयू-आरजेडी की सरकार है. जबकि कांग्रेस गठबंधन में है. कर्नाटक से गांधी परिवार का रिश्ता काफ़ी पुराना है. इंदिरा गांधी इमरजेंसी के बाद कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव लड़ी थीं. सोनिया गांधी ने भी राजनीति में शुरुआत बेल्लारी से पर्चा भर कर किया था. सोनिया गांधी का विपक्ष के उन नेताओं से भी रिश्ते काफी अच्छे हैं, जो राहुल गांधी के सामने अपने आप को असहज पाते हैं. जैसे ममता बनर्जी… लालू यादव भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी के जबरदस्त फैन हैं. शरद पवार से उनके राजनीतिक संबंध काफी मधुर हैं. क्योंकि एनसीपी बनाने के तुरंत बाद ही सोनिया ने पवार के साथ गठबंधन में महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी, जब विलास राव देशमुख मुख्यमंत्री बने थे।

 

सोनिया गांधी के आने से कई को राहत-

नीतीश कुमार ने भी पिछले साल सितंबर में विपक्षी एकता के लिए उनसे मुलाकात की थी. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सोनिया गांधी के बेंगलुरु की बैठक में शामिल होने पर कांग्रेस का विपक्ष को नेतृत्व करने का दावा मज़बूत हो जाएगा. कई नेता ये मान चुके हैं कि बिना कांग्रेस के विपक्ष का कोई मोर्चा संभव नहीं है.. इस बात को लेकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव गठबंधन से अलग हो गए मगर ममता बनर्जी ने ना-ना करते हुए आखिर में हां कर दी. अब सोनिया गांधी के आने से उन्हें भी राहत मिली होगी।

 

यूपी-बिहार राज्यों में विपक्षी एकता को मिलेगी मजबूती-

अभी हाल ही में जिस तरह अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्षी दलों में नाराजगी  देखने को मिली थी. जिसे सोनिया गाँधी ने ही संभाला. इससे ये तो साफ़ है कि सोनिया में पुरे विपक्ष को एकजुट रखने की क्षमता है, और सभी दल सोनिया की कहि बात पर विश्वास भी करते हैं,सोनिया गांधी की उपस्थिति और अनुभव मददगार हो सकती है. खासकर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ। अतीत में दोनों दलों के बीच समीकरण अच्छे नहीं रहे हैं.अगर इनसे बात बनती है तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में विपक्षी एकता को मजबूती मिलेगी.. माना जा रहा है कि अखिलेश या तेजस्वी यादव जो कि राहुल गांधी के लगभग हमउम्र हैं, वो सोनिया गांधी की बात को तवज्जो देंगे। यहां तक कि ममता और लालू यादव जैसे वरिष्ठ नेताओं के बीच भी सोनिया फैक्टर ज्यादा मददगार होगा। मल्लिकार्जुन खड़गे का अनुभव और राहुल गांधी का उत्साह इसे और बेहतर बनाएगा। इसके जरिए विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस को फिर से उभारने और सोनिया को केंद्र में रखना अहम होगा।

 

INDIA के लिए भी हो सकता है अच्छा संकेत साबित-

सोनिया गांधी ने हाल के दिनों में अपनी राजनीतिक गतिविधि भले ही कम कर दी हों, मगर उनकी एक गरिमा है,, गठबंधन को चलाने का अनुभव है,, नेतृत्व देने की क्षमता है,, इसलिए अब सबकी निगाहें आने वाली  गटबंधन की  बैठक पर है, जहां संभव है की 2024 के लिए 24 दलों के इस मोर्चा इंडिया का कोई प्रारूप  दिया जाए. अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी जैसा कोई नाम सामने आए या नीतीश कुमार या शरद पवार जैसा संयोजक. गठबंधन द्वारा  कुछ  वर्किंग ग्रुप बनाए जाने की भी संभावना है, जो गठबंधन के मुद्दे, उनकी रणनीति, रैलियों की प्लानिंग, और विपक्ष का एक ही उम्मीदवार मैदान में हो उसकी रूपरेखा तैयार करेगा. अब देखना होगा की क्या पहले की तरह सोनिया गाँधी पुरे विपक्ष को एकजुट रख पाएगी और उनका प्रमुख भूमिका में रहना क्या गठबंधन के सभी दलों को भायेगा,अगर ऐसा हुआ तो निश्चित् ही गठबंधन में कांग्रेस का दावा सबसे ऊपर हो सकता है, ये न केवल कांग्रेस बल्कि मोदी विरोधी धड़े INDIA के लिए भी अच्छा संकेत साबित हो सकता है।

आखिर महिला आयोग की अध्यक्ष ने मणिपुर में ऐसा क्या देखा जो हो गयी हैरान ?

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देश आज कारगिल शहीदों की याद में विजय दिवस मना रहा है और मणिपुर में आज उसी कारगिल में जीत दिलाने वाला सैनिक इस हिंसा में अपना सब कुछ खो चुका है, लेकिन सरकार ने उसकी कोई सुध लेना उचित नहीं समझा,,,  मणिपुर हिंसा और महिलाओं के साथ हुई अभद्र घटना के बाद अब ऐसा लग रहा है कि मानो सरकार की संवेदनाएँ भी मर चुकी है,  केंद्र और ना ही  राज्य सरकार को उन महिलाओं पर हुए अत्याचार से मानों कोई मतलब नहीं है? ,,,दिल्ली की महिला आयोग की अध्यक्ष ने आखिर मणिपुर में जाकर ऐसा क्या देखा कि वो गुस्से से भर उठी ? मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर पुरे विश्व में चर्चा है, मणिपुर का वीडियो वायरल होने के बाद राज्य और केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना पुरे देश में हो रही है, लेकिन इतनी हिंसा और महिलाओं के साथ हुई इस अभद्र घटना के बाद  राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अभी तक कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई, उल्टा मणिपुर के मुख़्यमंत्री एन बीरेन सिंह कहते हैं कि ऐसी तो सैकड़ों घटनाएं प्रदेश में इस दौरान हुई है, मुख़्यमंत्री के इस बयान से तो लगता है कि मुख़्यमंत्री को 3 महिलाओं के साथ हुई इस घटना से कोई अधिक फर्क नहीं  पड़ा क्योंकि उनके लिए तो ये उन सैकड़ों घटनाओं की ही तरह है,,,  सवाल आज भी वही बना हुआ है कि क्या इस घटना के बाद राज्य और केंद्र सरकार मणिपुर को लेकर कितनी चिंतित है ? इसका जवाब आपको दिल्ली की महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल उस बयान से मिल जायेंगे जो उन्होंने मणिपुर के उन पीड़ित परिवारों से मिलने के बाद के  दिया।

 

कारगिल युद्ध का एक सैनिक जिसने मणिपुर हिंसा में अपना सब कुछ गंवा दिया – 

कितनी हैरानी की बात है कि मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई इस अभद्र घटना के बाद वहां के मुख़्यमंत्री एन बीरेन सिहं को अब तक उन पीड़ितों से मिलने का समय नहीं मिला, न तो मुख़्यमंत्री उन पीड़ितों से मिलने गए और न दर्द से भरे प्रधानमंत्री या उनकी तरफ से कोई नुमाइंदा, हद तो तब और ज्यादा हो गयी जब ये पता चलता है कि मुख़्यमंत्री और प्रधानमंत्री  तो छोड़िये इन लोगों तक कोई सरकारी मदद तक नहीं पहुंची,, हालांकि दिल्ली से एक महिला जो अक्सर महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आवाज उठाती है वो इन हिंसाग्रस्त इलाकों में पहुंच कर उन महिलाओं का दर्द कुछ कम करने की कोशिश करती है,,, दिल्ली से इतना लम्बा सफर कर एक महिला तो उन इलाकों में पहुंच सकती है जहां महिलाएं सुरक्षित न हो लेकिन उसी राज्य की सरकार और उनकी कोई राहत वहां तक नहीं पहुंच पाती,,,,वो भी तब जब उन पीड़ित परिवारों में वो लोग भी शामिल हों जिन्होंने देश के लिए सीमाओं पर जंग लड़कर देश को गर्व करने का मौका दिया हो,,,आज देश कारगिल शहीदों की याद में विजय दिवस मना रहा है,जबकि इसी मणिपुर में उन पीड़ितों के बीच आज भी कारगिल वार का एक ऐसा सैनिक हैं जो इस हिंसा में अपना सब कुछ गवां चुका है, भले ही वो  देश की सीमा पर बाहरी दुश्मनों से देश को बचाने के लिए सफल रहा हो  लेकिन देश के अंदर के दुश्मनों से वो अपने परिवार को नहीं बचा पाया,, हमारी सरकार आज हर जगह कारगिल के शहीदों को श्रधांजलि अर्पित कर  रहे हैं, पर इस कारगिल में देश के लिए जी जान से लड़ने वाला एक सैनिक आज इस तरह बर्बाद हो गया लेकिन न वहां की राज्य सरकार और न केंद्र सरकार उसकी कोई सुध ले रही हैं।

 

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने की पीड़ित परिवार से मुलाकात-

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने महिला आयोग की सदस्य वंदना सिंह के साथ बंदूक की गोलीबारी के बीच चुराचांदपुर, मणिपुर की यात्रा की और यौन हिंसा की पीड़िताओं की मां और पति से मुलाकात की। स्वाति मालीवाल  ने मोड़ रांग और इंफाल जिलों की भी यात्रा की, जहां उन्होंने कई राहत शिविरों में विस्थापित लोगों से बातचीत की। मणिपुर के चुराचांदपुर में लगातार हिंसा और भारी गोलीबारी हो रही है और दो दिन पहले भी वहां एक स्कूल में आग लगा दी गई थी. स्वाति मालीवाल के मुताबिक, मणिपुर सरकार ने उन्हें वहां जाने या हिंसा के पीड़ित लोगों से मिलने में कोई सहायता नहीं दी. ऐसे में स्वाति मालीवाल ने स्वयं अपनी मर्जी से, बिना किसी सुरक्षा के चुराचांदपुर जिले की यात्रा की और हिंसा के पीड़ित लोगों से बातचीत की।

यात्रा के दौरान अपने चुनौतीपूर्ण अनुभव को साझा करते हुए मालीवाल ने दावा किया कि राज्य सरकार ने संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा के लिए उनके सहयोग से इनकार कर दिया। स्वाति मालीवाल के साथ मुलाकात को लेकर कुछ वीडियो भी सामने आए हैं। जिसमें पीड़ित परिवार भावुक नजर आ रहा है और स्वाति मालीवाल उन्हें गले लगाकर उनका ढाढ़स बढ़ा रही हैं। स्वाति मालीवाल ने कहा- “मणिपुर की बर्बरता की पीड़ित बेटियों के परिवार से मिली…. इनके ये आंसू बहुत दिन तक सोने नहीं देंगे।

 

 

जरूरत की घड़ी में पूरा देश उनके साथ‘-

पीड़ित परिवार के परिजनों ने बताया कि आज तक न तो मुख्यमंत्री, न ही कोई  कैबिनेट मंत्री और न ही राज्य का कोई वरिष्ठ अधिकारी उनसे मिलने आया है. स्वाति मालीवाल उनसे मिलने वाली पहली थी. उन्होंने बताया कि उन्हें अब तक सरकार से कोई काउंसलिंग, कानूनी सहायता या मुआवजा नहीं मिला है. वे इस बात से नाराज थे कि उनके मामले में किसी भी पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. स्वाति मालीवाल ने दोनों से विस्तार से बात की और उन्हें आश्वासन दिया कि वे अकेले नहीं हैं बल्कि जरूरत की घड़ी में पूरा देश उनके साथ है।

 

 

अब तक नहीं मिली कोई सरकारी मदद-

स्वाति मालीवाल ने कहा, “ये तीन दिन मेरे लिए बेहद कठिन रहे. मुझे मणिपुर में प्रवेश करने के लिए सरकार ने किसी भी सहायता से इनकार कर दिया था लेकिन फिर भी मैं बड़े व्यक्तिगत जोखिम पर यहां आई. वायरल वीडियो ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया और मैं हर कीमत पर बचे लोगों से मिलना चाहती थी. मुझे स्थानीय लोगों ने बताया कि पीड़ित लोगों के परिवारों से मिलने के लिए चुराचांदपुर की यात्रा करना बहुत कठिन है, फिर भी मैंने भारी गोलीबारी के बीच बिना किसी सुरक्षा के वहां जाने का फैसला किया.”उन्होंने कहा, ”किसी तरह मैं उनसे मिलने में कामयाब रही. वे कल्पना से भी बदतर नरक से गुजरे और यह जानकर बहुत दुख हुआ कि न तो मुख्यमंत्री और न ही कोई सरकारी अधिकारी उनसे मिले. अब तक न ही सरकार की ओर से उन्हें कोई सहयोग दिया गया है. अगर मैं दिल्ली से यहां की यात्रा कर सकती हूं और बिना किसी सुरक्षा के उन तक पहुंच सकती हूं तो निश्चित रूप से मणिपुर के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य बुलेट प्रूफ कार में जा सकते हैं और उनसे मिल सकते हैं. अब तक उन्हें काउंसलिंग, कानूनी सहायता और मुआवजा क्यों नहीं दिया गया?”

स्वाति मालीवाल ने कहा, ”मणिपुर में हिंसा बेहद परेशान करने वाली है और जहां भी मैं जा रही हूं वहां डरावनी कहानियां हैं जो दिमाग को सुन्न कर देती है. लोगों ने अपने घर और प्रियजनों को खो दिया है और सरकार उनकी रक्षा करने में पूरी तरह से विफल रही है. मुझे लगता है कि केंद्र को तत्काल मणिपुर के मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगना चाहिए.”उन्होंने कहा, ”प्रधानमंत्री को गृह मंत्री और महिला और बाल विकास मंत्री के साथ तत्काल मणिपुर का दौरा करना चाहिए. मणिपुर के लोग बहुत अच्छे और दयालु होते हैं. ये एक खूबसूरत भूमि है. इनकी सुरक्षा के लिए केंद्र से तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए.।

 

 

महिला आयोग अध्यक्ष ने केंद्र व राज्य सरकार पर उठाए कई सवाल- 

स्वाति मालीवाल ने मणिपुर के महिला आयोग पर भी कई सवाल उठाए और उनके अधिकार और कर्तव्य उनको याद दिलाए,, स्वाति मालीवाल उन महिला अध्यक्ष में से एक है जो महिला अपराधों से लेकर कई अन्य मामलों में खुल कर सरकारों की आलोचना करती हैं, चाहे वो किसी की भी सरकार हो,,,स्वाति मालीवाल के मणिपुर को लेकर किए इन खुलासों से सरकार की नीयत पर भी कई सवाल उठते हैं, सरकार के इस रवैये से तो लगता है कि मानों न केंद्र और न ही राज्य सरकार किसी को भी इनका दर्द दिखाई नहीं देता क्योकि अगर इनको ये दर्द दिखाई देता तो आखिर क्यों सरकार या कोई सरकारी मदद  अभी तक इन तक नहीं पहुंची ?   इस रवैये से  राज्य सरकार पर तो सवाल उठते ही हैं, लेकिन केंद्र भी सवालों के घेरे में आता है कि आखिर क्यों केंद्र सरकार अब तक बिरेन सरकार से जवाब तलब नहीं कर रही है ?