तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्माई चेहरे का असर फीका पड़ना शुरू हो गया है,? क्या अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा मुश्किल में पड़ गयी है ? उत्तराखंड में भाजपा के तीन सांसद क्यों डेंजर जोन में खुद को पा रहे हैं?
उत्तराखंड में होता पलायन जिसकी सबसे बड़ी वजह है बेरोजगारी, उत्तराखंड में कई योजनाओं को लागू कर पहाड़ों में रोजगार पैदा करने की कोशिश की जा रही है, जिससे पलायन को रोका जा सके, आज के वीडियो में बात एक ऐसी ही योजना की करेंगे जो उत्तराखंड के कई बेरोजगार युवाओं के लिए वरदान साबित हुई, इस योजना के कारण कई युवाओं ने न केवल रिवर्स पलायन किया बल्कि आज खुद के साथ कई अन्य के रोजगार का माध्यम बने हैं,,,, उत्तराखंड के खाली होते गावों और छोटे शहरों में रहने वाली युवा पीढ़ी रोजगार की चाह में लगातार महानगरों की तरफ रुख करने को मजबूर हैं, जिस कारण पहाड़ और छोटे शहरों में लगातार पलायन होता जा रहा है,खासतौर पर युवाओं का प्रदेश छोड़कर जाना एक अच्छा संकेत नहीं है,,,
उत्तराखंड की सरकारों ने समय-समय पर कई योजनाओ को लागू किया है जिससे युवाओं को प्रदेश में ही रोजगार मिल पाए और पलायन थम सके, इन योजनाओ में सबसे कामयाब योजना रही होम स्टे योजना, जिसका असर आज धरातल पर दिख रहा है, इस योजना से जुड़े कई युवा न केवल वापस अपने गांव या शहर लौटे बल्कि आज खुद के रोजगार के साथ अन्य को भी रोजगार दे रहे हैं साथ ही उत्तराखंड पर्यटन उद्योग को भी खूब पंख लगा रहे हैं, उत्तराखंड में होमस्टे योजना का श्रेय पूर्व की त्रिवेंद्र रावत सरकार को जाता है,
उत्तराखंड में होमस्टे योजना की शुरुआत 20 अप्रैल 2018 को सीमावर्ती जनपद पिथौरागढ़ से पूर्व मुख़्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने की थी, इस योजना का मुख्य मकसद युवाओं को रोजगार देना और पलायन को रोकना था लेकिन देश में कोरोना काल के बाद अपने घर वापस लौटे बेरोजगार युवाओं के लिए ये रोजगार का एक अहम कदम साबित हुआ,कई युवाओं ने इस योजना के जरिये रोजगार शुरू किया,और अब तो ये योजना प्रदेश के युवाओं के लिए एक वरदान साबित हो रही है,इस योजना के लिए हर साल बड़ी संख्या में आवेदन हो रहे हैं,जबकि अब तक प्रदेश में हजारों होमस्टे संचालित हो रहे हैं,,,
पर्वतीय जिलों में होम स्टे से जुड़कर यहां के स्थानीय युवा स्वरोजगार को अपनाने के साथ ही पर्यटकों को उचित सेवा भी दे रहे हैं, जिससे उत्तराखंड के दुर्गम इलाकों के लोगों की आजीविका पर सुधार आया है और सीजन में स्थानीय लोग अच्छा रोजगार कमा रहे हैं. युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने और पहाड़ के गांवों से हो रहे पलायन को थामने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा होम स्टे योजना की शुरुआत की गयी थी, जिसमें पर्यटक स्थलों में स्थानीय लोग अपने ही घरों में देश-विदेश के पर्यटकों के लिए ग्रामीण परिवेश में साफ व किफायती आवास की सुविधा उपलब्ध करा सकते हैं. यहां पर पर्यटकों को स्थानीय व्यंजन परोसने के साथ ही उन्हें यहां की सभ्यता व संस्कृति से भी परिचित कराया जा रहा है, जो पर्यटक खूब पसंद कर रहे हैं.
होम स्टे योजना की अब तक की तस्वीर देखें, तो वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रदेश के सभी जिलों में 965 होम स्टे पंजीकृत हुए. आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा बढ़कर 3 हजार 964 पहुंच गया. पर्वतीय जिलों में भी ये आंकड़ा बढ़ा है, बात अगर पिथौरागढ़ जिले की करें जहां इस योजना की शुरुआत हुई थी , तो 2021-22 में 608 लोगों ने और 2022-23 में 103 लोगों ने अपने घरों को होम स्टे में बदलने के लिए पर्यटन विभाग में पंजीकृत किया, जिसमें सबसे ज्यादा धारचूला में 423 लोग अपना पंजीकरण करा चुके हैं. धारचूला सीमांत जिले का उच्च हिमालयी क्षेत्र भी है, जहां की खूबसूरती का दीदार करने पर्यटक पहुंच रहे हैं. उनके रुकने की सुविधा यहां के गांवों में होम स्टे के रूप में विकसित हो रही है. इस योजना के माध्यम से सिर्फ साल 2020 में ही 5 हजार होमस्टे विकसित किए गए थे। इससे प्रदेश में रोजगार के अवसर को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है और लोगों को कामकाज या कारोबार के लिए दूसरे राज्य में पलायन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कोर्ट में मामला पहुंचते ही अनुच्छेद-370 को लेकर बयानबाजी तेज हो गई है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या फिर से जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 लागू हो सकता है? आपको बता दें कि पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद-370 खत्म कर दिया था। यह कानून जम्मू-कश्मीर में बीते करीब सात दशक से चला आ रहा था। दरअसल, अक्तूबर 1947 में, कश्मीर के तत्कालीन महाराजा, हरि सिंह ने भारत के साथ एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें कहा गया कि तीन विषयों के आधार पर यानी विदेश मामले, रक्षा और संचार पर जम्मू और कश्मीर भारत सरकार को अपनी शक्ति हस्तांतरित करेगा।
जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 3 में कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा। अनुच्छेद 5 में कहा गया कि राज्य की कार्यपालिका और विधायी शक्ति उन सभी मामलों तक फैली हुई है, जिनके संबंध में संसद को भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति है।
जम्मू-कश्मीर का संविधान 17 नवंबर 1956 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1957 को लागू हुआ था। पांच अगस्त 2019 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी जम्मू और कश्मीर के लिए आवेदन आदेश, 2019 (सीओ 272) द्वारा जम्मू और कश्मीर के संविधान को निष्प्रभावी बना दिया गया था।
आज की तारीख में एक से बढ़कर एक बढ़िया माइलेज वाले वाहन आने के बावजूद जेब पर सबसे ज्यादा बोझ पेट्रोल-डीजल के रेट का ही पड़ता है. पेट्रोल-डीजल के रेट में कुछ पैसे की बढ़ोतरी भी सोशल मीडिया पर बड़ी चर्चा का सबब बन जाती है. पेट्रोल के रेट 100 रुपये प्रति लीटर के भी पार हैं, लेकिन यदि आपसे कहा जाए कि जल्द ही यह कीमत 15 रुपये प्रति लीटर हो जाएगी तो शायद आप यकीन भी नहीं करेंगे. कम से कम केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का तो यही दावा है कि जल्द ही पेट्रोल की लागत 15 रुपये प्रति लीटर के बराबर की होगी. हालांकि गडकरी का इस बात से मतलब असली पेट्रोल के दाम से नहीं था बल्कि वह कार या किसी अन्य वाहन को चलाने वाले ईंधन की लागत की बात कर रहे थे. गडकरी ने यह दावा राजस्थान के प्रतापगढ़ में एक कार्यक्रम के दौरान किया है.
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कर्नाटक में भी बीजेपी ने 25 सीटें जीती थीं, लेकिन विधानसभा चुनावकी हार के बाद कहा जा रहा है कि बीजेपी 14-15 तक में सिमट सकती है। यानी BJP को इन राज्यों से 50-60 सीटों की जो कमी होगी उसे मध्यप्रदेश, राजस्थान, UP, हिमाचल, गुजरात और उत्तराखंड से पूरा करना संभव नहीं है। क्योंकि यहां पर BJP पहले से ही 90% सीटें जीत चुकी है। यहां वह दोबारा 90% सीटें जीत भी जाती है, तो भी उसकी संख्या नहीं बढ़ेगी। इसलिए BJP इस तरह की कवायद कर रही है।
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि BJP का मानना है कि विपक्ष टूटता है तो इसका फायदा पार्टी को मिलता है। वहीं वोटर्स भी भ्रमित हो जाते हैं कि किसके साथ जाएं। BJP को लगता है कि लोग विचारधारा से ज्यादा बड़े नेताओं से जुड़ते हैं। अजित पवार के साथ 35 से 40 विधायक बताए जा रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो BJP के सामने से NCP की चुनौती तकरीबन खत्म हो जाएगी और पार्टी की बड़ी जीत होगी।महाराष्ट्र में सबसे बड़ा और मजबूत वोट बैंक मराठा है। BJP के पास प्रदेश में कोई स्ट्रॉन्ग मराठा चेहरा नहीं है। प्रदेश में पार्टी के सबसे बड़े नेता देवेंद्र फडणवीस ब्राह्मण हैं। अजित पवार एक मजबूत मराठा चेहरा हैं। मराठा समाज में उनकी वैल्यू एकनाथ शिंदे से भी ज्यादा है।
अभी तक BJP की तरफ मराठा मतदाता का पूर्ण रूप से झुकाव नहीं दिखाई देता है। NCP प्रमुख शरद पवार का BJP के साथ गठबंधन नहीं करने की एक बड़ी वजह भी यही है।दरअसल शरद पवार अपने मराठा कोर वोट बैंक को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि उनके BJP खेमे में जाने पर यह वोट उन्हें मिलेगा या नहीं। अजित पवार ने यह रिस्क लिया है। BJP को शिंदे के बाद पवार का साथ मिलने से मराठाओं के बीच इनकी पकड़ काफी मजबूत हो जाएगी।
BJP का पहला टारगेट लोकसभा चुनाव है। अजित पवार पहले ही नाराज चल रहे थे। उस पर शरद पवार ने एक गलती कर दी। उन्होंने अपनी बेटी को पोस्ट देकर आगे कर दिया और अजित पवार को कोई पोस्ट नहीं दी।यह रातों रात नहीं हुआ है। अजित पवार PM मोदी की तारीफ कर रहे थे। डिग्री को लेकर उन्होंने मोदी के पक्ष में कहा कि डिग्री महत्वपूर्ण नहीं होती। वो लगातार ये भी बोल रहे थे कि वो डिप्टी CM बनना चाहते हैं।दरअसल, अजित के लिए शिवसेना वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला वरदान साबित हुआ है। शिवसेना टूटने वाले केस में सुप्रीम कोर्ट ने जो बातें गैर कानूनी बताई थीं, अजित उन खामियों को दूर करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि शरद पवार अभी तक किसी तरह की कानूनी लड़ाई या लीगल ऑप्शन की बात नहीं कर रहे हैं।
कुछ राजनीती के जानकार ये मानते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में नेताओं के NCP छोड़ने का मतलब है कि सुप्रिया सुले अपने पिता या चाचा जैसी मजबूत नेता नहीं हैं। प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे नेता शरद के वफादार रहे हैं, लेकिन वे सुप्रिया सुले के सामने लाइन में खड़े नहीं रहना चाहते।
बीजेपी अजीत पंवार को इसलिए भी साथ रखना चाहती है क्योकि महाराष्ट्र में सहकारिता यानी कोऑपरेटिव का सियासत में बहुत महत्व है। चीनी मिल हों या स्पिनिंग मिल या सहकारी बैंक। महाराष्ट्र में इस समय करीब 2.3 लाख कोऑपरेटिव सोसाइटी और उनके 5 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं।इस पूरे ढांचे पर फिलहाल NCP की मजबूत पकड़ है। इस मामले में शरद पवार के बाद अजित पवार का नंबर आता है। BJP अजित के जरिए इस ढांचे और उससे जुड़े वोटरों पर काबिज होना चाहती है।
एक दूसरा कारण ये भी रहा कि एकनाथ शिंदे BJP की उम्मीद से काफी कम शिवसेना के वोटर तोड़ पाए हैं। BJP पिछले एक साल के दौरान महाराष्ट्र में हुए तकरीबन सभी उपचुनाव में हार गई। विधानपरिषद के दो चुनाव में BJP बुरी तरह हारी। विधानसभा में भी कसवापेट, पुणे, कोल्हापुर जैसी सीटों पर BJP को उम्मीद के हिसाब से वोट नहीं मिले।पार्टी को लगता है कि अकेले शिंदे के बूते महाराष्ट्र में पैर जमाना मुमकिन नहीं। इसलिए वह बार-बार ऐसे प्रयोग कर रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP और यूनाइटेड शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा और उसे 48 में 42 सीट मिली थीं। BJP अभी की स्थिति में महाराष्ट्र में अपने आप को कमजोर पा रही थी। इसकी वजह है कि महाविकास अघाड़ी 60% वोटों को प्रभावित कर सकता था।
महाराष्ट्र में सियासी भूचाल आया हुआ है। शिवसेना के बाद NCP में फूट पड़ गई है। पार्टी के मुखिया शरद पवार से उनके भतीजे अजित पवार ने बगावत कर दी है। अजित ने 40 विधायकों के समर्थन का दावा करते हुए एनडीए का दामन थाम लिया है। महाराष्ट्र में हुए इस सियासी घटना के बाद यूपी-बिहार समेत कई राज्यों में हलचल तेज हो गई है। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि जल्द ही यूपी और बिहार से कई विपक्षी दल एनडीए में शामिल हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को बड़ा झटका लगेगा। .
उत्तर प्रदेश में भी तेजी से सियासी समीकरण बदलते हुए दिख रहे हैं। सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाली ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की नजदीकियां एक बार फिर से भाजपा के साथ बढ़ती दिख रहीं हैं। अटकलें हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले ओम प्रकाश राजभर फिर से एनडीए में शामिल हो सकते हैं। महाराष्ट्र के घटनाक्रम के बाद राजभर ने दावा किया कि सपा में भी ऐसी ही टूट हो सकती है। उन्होंने कहा कि सपा के विधायकों पार्टी में कोई भविष्य नहीं दिख रहा है। जल्द ही कई विधायक पार्टी से अलग होकर सरकार में शामिल हो सकते हैं।
पिछले एक दशक में हिमाचल की बिगड़ी आर्थिक सेहत को सुधारने के लिए खुद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक बहुत ही अच्छी पहल की है।जिसकी पूरे हिमाचल प्रदेश में तारीफ हो रही है..
सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हिमाचल को कर्ज मुक्त और ग्रीन स्टेट बनाने के लिए हेलीकॉप्टर छोड़कर सामान्य यात्रियों की तरह विमान में सफर करना और छोटी ई-कार से यात्रा करना शुरू कर दिया है। वह बिना काफिले के जरूरी चार सामान्य कारों और सामान्य सुरक्षा के साथ चल रहे हैं। उन्होंने अपने मंत्रियों को भी इसी तरह बचत करने का सुझाव दिया है। मुख़्यमंत्री की इस पहल की पूरे हिमांचल में सराहना की जा रही है,और अब अधिकारीयों से लेकर मंत्रियों पर भी खर्च कम करने को लेकर दबाव बढ़ गया है, इससे राज्य में हर माह 3 करोड़ की बचत होती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी की है। पीएम मोदी के इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक बहस फिर से शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को कहा कि भारत दो कानूनों पर नहीं चल सकता और समान नागरिक संहिता संविधान का हिस्सा है। पीएम के बयान से देश भर में बहस छिड़ गई है क्योंकि कई विपक्षी नेताओं ने पीएम मोदी पर कई राज्यों में चुनाव नजदीक आने पर राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी मुद्दा उठाने का आरोप लगाया है।
भारत में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी. इससे वे कम से कम ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी. वहीं, गांव स्तर तक शादी के पंजीकरण की सुविधा पहुंचाई जाएगी. अगर किसी की शादी पंजीकृत नहीं होगी तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा. पति और पत्नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे. एक से ज्यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी. नौकरी पेशा बेटे की मौत होने पर पत्नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी शामिल होगी. उत्तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा.
पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी पति की होगी. वहीं, मुस्लिम महिलाओं को बच्चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा. उन्हें हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा. लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा. पति और पत्नी में अनबन होने पर उनके बच्चे की कस्टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी. बच्चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी.इस तरह के कई प्रावधान इसमें हो सकते हैं….