Author: Manisha Rana

WHO की चेतावनी- इन चीजों के सेवन से हो सकती हैं ये बड़ी बीमारियां…

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क्या आप कोल्ड ड्रिंक के शौकीन हैं और एक दिन में कई-कई बोतल कोल्ड ड्रिंक पी जाते हैं, तो कृपया सावधान हो जाइए, क्योंकि कोल्ड ड्रिंक भी अब आपको कैंसर का रोग लगा सकती है.अगर आप भी डाइट सॉफ्ट ड्रिंक्स, आइसक्रीम और च्युइंग गम के आदी हैं तो अब वक्त आ गया है इन चीजों से दूरी बना ली जाए. क्योंकि एक रिसर्च में इनको लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है. रिसर्च में दावा किया गया है कि इन चीजों का सेवन करने से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का जोखिम पैदा हो सकता है. आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम इतना व्यस्त रहते हैं कि अपनी सेहत के बारे में कुछ सोच ही नहीं पाते,और अपने व्यस्त समय में ही कुछ ऐसा खा लेते हैं जो हमारी सेहत पर बहुत बुरा असर डालती हैं,अधिकतर नौकरीपेशा लोग  समय की कमी के चलते अपने खाने पीने में ऐसी चीजों का उपयोग करते हैं जो आसानी से उपलब्ध हो जाती है और यहीं हम लोग बड़ी गलती करते हैं,,, अधिकतर लोग अपने जीवन में सॉफ्ट ड्रिंक्स का लगातार इस्तेमाल करते हैं,घर हो या ऑफिस या कोई पार्टी सभी जगह  सॉफ्ट ड्रिंक्स का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं इससे आपको कैंसर जैसी भयानक और जानलेवा बीमारी हो सकती है? शायद आपको नहीं पता होगा कि  जिन सॉफ्ट ड्रिंक्स को हम मजे से पीते हैं दरअसल वो सॉफ्ट ड्रिंक भी दो तरह की होती हैं. एक नॉर्मल और दूसरी डाइट यानी शुगर फ्री. नॉर्मल कोल्ड ड्रिंक में मिठास के लिए चीनी का इस्तेमाल होता है. लेकिन डायट कोल्ड ड्रिंक में चीनी की बजाय आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल होता है.  कोल्ड ड्रिंक्स और च्यूइंगम में जो आर्टिफिशियल स्वीटनर इस्तेमाल होता है उसका नाम है एस्पार्टेम….  एस्पार्टेम, असल में मिथाइल एस्टर नामक एक कार्बनिक कंपाउंड है.और यही आर्टिफिशियल स्वीटनर कैंसर का कारण बन सकते हैं।

 

WHO की रिसर्च में बड़ा खुलासा- 

अगर आप भी डाइट कोक, आइसक्रीम और च्युइंग गम के आदी हैं तो अब वक्त आ गया है इन चीजों से दूरी बना ली जाए. क्योंकि एक रिसर्च में इनको लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है. रिसर्च में दावा किया गया है कि इन चीजों का सेवन करने से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का जोखिम पैदा हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिसर्च के मुताबिक, एस्पार्टेम एक कार्सिनोजेनिक है, जिसका मतलब है कि ये बॉडी में कैंसर सेल्स को ट्रिगर करने का काम कर सकता है. अगर आप किसी भी ऐसी चीज का सेवन कर रहे हैं, जिसमें एस्पार्टेम मौजूद है तो इसका साफ-सीधा मतलब यह है कि आप खुद कैंसर जैसी घातक बीमारी को निमंत्रण दे रहे हैं. डाइट ड्रिंक्स , डाइट सोडा और च्युइंग गम में एस्पार्टेम का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है. एस्पार्टेम एक तरह का आर्टिफिशियल स्वीटनर है, जिसका इस्तेमाल मिठास लाने के लिए किया जाता है।

 

कब और किसने खोजा एस्पार्टेम को- 

 

एस्पार्टेम को लैब में बनाया जाता है. ये चीनी से 200 गुना ज्यादा मीठा होता है. 1965 में जेम्स एम. श्लैटर नाम के एक केमिस्ट ने एस्पार्टेम को खोजा था. साल 1981 में अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट यानी FDA ने कुछ ड्राई फ्रूट्स में इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी और फिर साल 1983 से पेय पदार्थों में भी इसका इस्तेमाल शुरू हो गया।

 

क्या कहता है IARC –

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ (IARC) का कहना है कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी मात्रा में एस्पार्टेम से भरपूर चीजों का सेवन कर रहे हैं. अगर आप थोड़ी मात्रा में भी इस आर्टिफिशियल स्वीटनर का सेवन कर रहे हैं तो मतलब अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं. एस्पार्टेम सेहत के लिए कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि दानेदार चीनी की तुलना में एस्पार्टेम में 200 गुना मिठास ज्यादा होती है. आज 95 प्रतिशत Sugar Free Soft Drink industry में Aspartame का ही प्रयोग किया जाता है. इतना ही नहीं बाजार में उपलब्ध 97 प्रतिशत तक Sugar Free टेबलेट और पाउडर में एस्पार्टेम का ही इस्तेमाल होता है. इसी तरह शुगर फ्री Chewing Gum Industry में भी एस्पार्टेम का ही प्रयोग किया जाता है. यानी भले ही आप शुगर फ्री या डायट देखकर कोल्ड ड्रिंक पी रहे हैं और सोच रहे हैं कि इससे आपकी सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा तो आप ये समझ लीजिये कि ऐसा करके आप खुद को ही धोखा दे रहे हैं।

 

सिर्फ कैंसर ही नहीं, कई बीमारियां पैदा कर सकता है एस्पार्टेम-

अब तक आर्टिफिशियल स्वीटनर एस्पार्टेम को फूड कैटेगरी में रखा गया था. इसलिए WHO भी इसके इस्तेमाल को खतरनाक नहीं मानता था. हालांकि एस्पार्टेम पर सवाल तो काफी पहले से उठते रहे हैं. कई इंटरनेशनल स्टडीज में ये बात सामने आ चुकी है कि एस्पार्टेम स्वीटनर का लगातार इस्तेमाल शरीर के कई अंगों में करीब 92 तरह के दुष्प्रभाव पैदा करते हैं. जिनमें से कुछ हम आपको  बताते हैं.स्टडी के मुताबिक एस्पार्टेम का लंबे समय तक सेवन करने की वजह से आंखों में धुंधलेपन की शिकायत हो सकती है. गंभीर स्थिति में ये अंधेपन की वजह भी बन सकता है. लंबे वक्त तक एस्पार्टेम के सेवन से कान में भिनभिनाने और तेज आवाज में परेशानी आना शामिल है. ये बहरेपन की वजह भी बन सकता है. एस्पार्टेम के लगातार सेवन से हाई ब्लड प्रेशर और सांस लेने में कठिनाई की समस्या हो सकती है.इतना ही नहीं माइग्रेन, कमजोर याददाश्त और मिर्गी के दौरे जैसी बीमारियों की वजह भी लंबे समय तक एस्पार्टेम का इस्तेमाल हो सकता है.एस्पार्टेम के सेवन की वजह करने की वजह से मरीज डिप्रेशन का शिकार भी हो सकता है. चिड़चिड़ापन और नींद ना आने की समस्या हो सकती है. एस्पार्टेम के इस्तेमाल के चलते, डायबिटीज के नियंत्रण में परेशानी, बालों का झड़ने, वजन घटने या बढने जैसी चीजें भी हो सकती हैं।

 

IARC ने किया ये ऐलान-

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर यानी IARC ने ऐलान किया है कि वो जल्द ही एस्पार्टेम को कार्सिनोजेनिक (carcinogenic) कैटेगरी में शामिल करने वाली है. दरअसल कार्सिनोजेंस वो पदार्थ होते हैं जो इंसानों में किसी ना किसी तरीके से कैंसर की वजह बन सकते हैं.  WHO की रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि एस्पार्टेम से तैयार कोल्ड ड्रिंक और अन्य चीजें कैंसर करवा सकती हैं. और अब बाजार में शुगर फ्री के नाम पर जो कुछ भी चीजें आएंगी. उन पर वॉर्निंग लिखी होगी कि – इससे कैंसर होता है. वैसे ही जैसे सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है. बता दें कि पिछले साल फ्रांस में एस्पार्टेम के प्रभावों को लेकर एक लाख से अधिक लोगों पर एक रिसर्च की गई थी. इस रिसर्च में सामने आया था कि जो लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं, उनमें कैंसर का रिस्क ज्यादा रहता है. तो सोचिये इतने खतरनाक आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल कोल्ड ड्रिंक को मीठा बनाने में हो रहा है. इंग्लैंड में न्यू हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल लगभग दो लाख मौतों के लिए आर्टिफिशियल स्वीटनर से तैयार ड्रिंक्स ही सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं।

 

इन बातों पर जरूर गौर करें-

गौर करने वाली बात तो ये भी है कि इतने नुकसानों के बारे में पता होने के बावजूद कोल्ड ड्रिंक इंडस्ट्री दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही है. रिपोर्ट के मुताबिक. वर्ष 2016 में भारत में एक व्यक्ति सालाना औसतन 44 बोतल कोल्ड ड्रिंक पीता था. इसके बाद वर्ष 2021 में एक व्यक्ति सालाना औसतन 84 बोतल कोल्ड ड्रिंक पीने लगा.यानी लगभग डबल ,,,,,,लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि भारत के लोग ही सबसे ज्यादा कोल्ड ड्रिंक पी रहे हैं तो गलत सोच रहे हैं. अमेरिका जैसे देशों की तुलना में ये खपत बहुत कम है.अमेरिका में एक व्यक्ति सालभर में औसतन 1496 बोतल कोल्ड ड्रिंक पी जाता है. मेक्सिको में 1489, जर्मनी में 1221 और ब्राजील में एक व्यक्ति सालाना औसतन 537 बोतल कोल्ड ड्रिंक पीता है. और ये तो तब है जब सबको पता है कि जितना ज्यादा कोल्ड ड्रिंक का सेवन उतना ज्यादा बीमारियों को निमंत्रण,,,लेकिन आज भी इन चीजों की इतनी बड़ी संख्या में हो रहा उपयोग ये बताता है कि लोग अपनी सेहत के प्रति कितने गंभीर है,,अगर आप भी स्वस्थ रहना चाहते हैं तो इन बातों पर जरूर गौर करिये।

मणिपुर की घटना से पूरा देश शर्मसार !

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भारत देश जिसे भारत माता के नाम से जाना जाता है, जिस देश में महिलाओं के अपमान पर महाभारत हो जाती है. उसी देश के पूर्वोत्तर इलाके मणिपुर से दिल दहलाने वाली घटना सामने आई. जो की इंसानियत को शर्मसार और हैवानियत की हदों को पार कर देने वाली इस घटना का वायरल वीडियो देखकर लोगों की रूह कांप गई. इस वायरल वीडियो में दो महिलाओं को निर्वस्त्र अवस्था में लोगों के बीच घुमाते हुए दिखाया गया. इतना ही नहीं, आरोप ये भी है कि इस खौफनाक परेड कराने से पहले उनके साथ दरिंदगी भी की गई.  इस घटना ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है.  नेताओं से लेकर आम जनता तक, हर कोई इस घटना की कड़ी निंदा कर रहा है.  मणिपुर में पिछले 83 दिनों से हिंसा जारी है। पुलिस ने इस घटना के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. जानकारी के मुताबिक, इस घटना को बीती 4 मई को अंजाम दिया गया था. इस घटना को लेकर हिंसा की आग में जलने वाले मणिपुर का माहौल और बिगड़ गया है. लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार भी मणिपुर नहीं गए,भले ही वो विदेश में जाकर भारत का खूब डंका बजाते रहे हों लेकिन ये भी उतना ही सच है कि उन्हीं की सरकार वाले राज्य में पिछले दो महीने से आग लगी है,कई लोग मौत के मुँह में समा गए,हजारों लोग  बेघर हो गए,सैनिकों के हथियार तक छीने जा रहे हैं, इस  घटना की तस्वीर  इतनी विचलित करती  है कि इसको दिखाया भी नहीं जा सकता, केंद्र और राज्य सरकार की नाकामी का इससे बड़ा कारण नहीं हो सकता कि इतने समय से प्रदेश में हिंसा जारी है और न तो राज्य सरकार इस पर कोई ठोस कार्रवाई कर पायी न केंद्र की सरकार। पीएम मोदी ने कहा कि दोषियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को स्वत: संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए है।

 

चार मई की घटना-

दरअसल, मणिपुर इन दिनों जातीय हिंसा की चपेट में है, लेकिन अब एक वीडियो को लेकर मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में तनाव फैल गया है, जिसमें दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह वीडियो चार मई का है और दोनों महिलाएं कुकी समुदाय से हैं, वहीं जो लोग महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमा रहे हैं वो सभी मैतई समुदाय से हैं। आदिवासी संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।

 
 

पहले पीएम मोदी और चीफ जस्टिस की टिप्पणी-

संसद के मानसून सत्र से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से बातचीत की। उन्होंने मणिपुर हिंसा का जिक्र करते हुए आक्रोश व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरा हृदय पीड़ा से भरा है, क्रोध से भरा है। मणिपुर की जो घटना सामने आई है, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाली घटना है। पाप करने वाले, गुनाह करने वाले, कितने हैं-कौन हैं, यह अपनी जगह है, लेकिन बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है। सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वे माताओं-बहनों की रक्षा करने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाएं। अपने राज्यों में कानून व्यवस्था को और मजबूत करें। घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ की हो या मणिपुर की हो, हम राजनीतिक विवाद से ऊपर उठकर कानून व्यवस्था और नारी के सम्मान का ध्यान रखें। किसी भी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा। मणिपुर की इन बेटियों के साथ जो हुआ है, उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता।’
 
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ –
 
‘हम सरकार को कार्रवाई करने के लिए थोड़ा समय देंगे नहीं तो हम खुद इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे। हमारा विचार है कि अदालत को सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि अपराधियों पर हिंसा के लिए मामला दर्ज किया जा सके। मीडिया में जो दिखाया गया है और जो दृश्य सामने आए हैं, वे घोर संवैधानिक उल्लंघन को दर्शाते हैं और महिलाओं को हिंसा के साधन के रूप में इस्तेमाल करके मानव जीवन का उल्लंघन करना संवैधानिक
लोकतंत्र के खिलाफ है।’
 
 
दिगज्ज पत्रकारों के बयान-
 
इस घटना के बाद न केवल राजनीतिक पार्टियों ने बल्कि देश की दिग्गज पत्रकारों ने भी केंद्र और राज्य की सरकारों को आड़े हाथों लिया ..भले ही ये पिछले कई वर्षों में देखने को नहीं मिला हो पर अब दिखाई दिया जो कि इशारा करता है  वाकई घटना कितनी बड़ी है,,,,भले ही पहलवानों के मुद्दों पर या अन्य कई मुद्दों पर ऐसा कोई ट्वीट देखने को पिछले कई वर्षों में नहीं दिखाई दिया ..लेकिन इस बार कई पत्रकारों ने इस पर खुल कर विरोध जताया और सरकार को खूब
खरी खोटी सुनाई।
 
मणिपुर घटना पर फूटा सेलेब्स का गुस्सा-
 
मणिपुर से दिल दहला देने वाली जो वीडियो सामने आया है उस ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है. दो महिलाओं को निर्वस्त्र परेड कराने के  वीडियो पर कई सेलेब्स का भी गुस्सा फूटा है, इस भयावह वीडियो पर अभिनेता अक्षय कुमार ने भी इस घटना की निंदा करते हुए कहा कि दोषियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए, वहीं इस पर रिचा चड्ढा, उर्फी जावेद, रेणुका सहारे भी एक्टिव है. उन्होंने भी इस घटना की निंदा की है
 
महिलाओं को नग्न कराकर घूमाने का किन पर लगा है आरोप-
 
रिपोर्ट्स के मुताबिक, वायरल वीडियो में जिन दो महिलाओं को नग्न करके घुमाया जा रहा है, वो कुकी समुदाय की हैं। यह वीडियो चार मई का बताया जा रहा है, जब हिंसा शुरुआती चरण में थी। महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का आरोप मैतई समुदाय के लोगों पर लगा है।
इस मामले में पुलिस ने अज्ञात हथियारबंद बदमाशों के खिलाफ थौबल जिले के नोंगपोक सेकमाई पुलिस स्टेशन में अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और हत्या का मामला दर्ज किया है। उधर, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी मामले की जांच के लिए अलग टीम गठित कर दी है। केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार से इस मसले पर रिपोर्ट मांगी है। केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने भी मुख्यमंत्री से बात की। 

 

 
 मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा?

इसे समझने के लिए हमें मणिपुर का भौगोलिक स्थिति जानना चाहिए। दरअसल, मणिपुर की राजधानी इम्फाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10% हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 43% आबादी रहती है। इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है। आंकड़ें देखें तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं।
वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नगा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है।

भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुई हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती। ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़े हैं।

 

 
 हिंसा की शुरुआत कब हुई-

मौजूदा तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था। देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे।
इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए।

एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नगा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा। चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी। पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी। सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया। अब तक इस हिंसा के चलते 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तीन हजार से ज्यादा लोग घायल बताए  जा रहे हैं।

 

 
 हिंसा की तीन वजहें-

1. मैतेई समुदाय के एसटी दर्जे का विरोध-
मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले कई सालों से मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है। मामला मणिपुर हाईकोर्ट पहुंचा। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है।कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने का आदेश दे दिया। अब हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला बेंच केस की सुनवाई कर रही है।

 

2. सरकार की अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई-

 आरक्षण विवाद के बीच मणिपुर सरकार ने अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई ने आग में घी डालने का काम किया। मणिपुर सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं। ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक अभियान चला रही है।

वहीं, आदिवासियों का कहना है कि ये उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया। जिससे आक्रोश फैला।

 

3. कुकी विद्रोही संगठनों ने सरकार से हुए समझौते को तोड़ दिया-

 हिंसा के बीच कुकी विद्रोही संगठनों ने भी 2008 में हुए केंद्र सरकार के साथ समझौते को तोड़ दिया। दरअसल, कुकी जनजाति के कई संगठन 2005 तक सैन्य विद्रोह में शामिल रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार के समय, 2008 में तकरीबन सभी कुकी विद्रोही संगठनों से केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन यानी SoS एग्रीमेंट किया।

इसका मकसद राजनीतिक बातचीत को बढ़ावा देना था। तब समय-समय पर इस समझौते का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा, लेकिन इसी साल 10 मार्च को मणिपुर सरकार कुकी समुदाय के दो संगठनों के लिए इस समझौते से पीछे हट गई। ये संगठन हैं जोमी रेवुलुशनरी आर्मी और कुकी नेशनल आर्मी। ये दोनों संगठन हथियारबंद हैं। हथियारबंद इन संगठनो के लोग भी मणिपुर की हिंसा में शामिल हो गए और सेना और पुलिस पर हमले करने लगे।

 

 
 अब सवाल पीएम से भी यही- 
 
अब सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी यही है कि आख़िरकार मणिपुर के ऐसे हालात होने के बाद और उस पर ये विभत्स घटना होने के बाद भी आखिरकार मुख्यमंत्री एन बिरेन जी अपने पद पर बने हुए हैं जिनको नैतिकता के शायद मायने क्या हैं उसकी पूरी तरह से जानकारी नहीं होगी,,,मगर ऐसा नहीं है कि उनकी नैतिकता ने पहले हिल्लोरे नहीं मारे थे. और फ़ैसला भी किया था त्यागपत्र देने का ..मगर फिर अपने समर्थकों की दुहाई देने पर अपने ही फैसले को वापिस ले लिया और फिर से मुख्यंत्री की गद्दी पर विराजमान हो गए  ..पर ऐसा नहीं है कि दिल्ली दरबार इससे अंजान रहा होगा ..पर अब दिल्ली दरबार को ही क़दम आगे बढ़ाना होगा ..  फिलहाल पुलिस ने इस घटना के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. जानकारी के मुताबिक, इस घटना को बीती 4 मई को अंजाम दिया गया था. इस घटना को लेकर हिंसा की आग में जलने वाले मणिपुर का माहौल और बिगड़ गया है।

 

केदारनाथ में पैदा हो रहा नया खतरा, जल्द नहीं दिया ध्यान तो सकती है बड़ी मुश्किलें…

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केदारनाथ मंदिर  में अब कोई रील्स नहीं बना पाएंगे , केदारनाथ में पैदा हो रहा है एक बार फिर बड़ा संकट, खुद भगवान ही अब खतरे में आ गए हैं,केदारनाथ भगवान शिव का वो धाम जो हिमालय की गोद में स्थित है,पहले केदारनाथ की यात्रा काफी कठिन मानी जाती थी लेकिन आज के समय में सभी लोग वह पहुंच रहे हैं. एक समय था जब केदारनाथ जाने का रास्ता काफी कठिन था,और लोग यहां अपने अंत समय में जाया करते थे, क्योकि उस वक्त  यहां पहुंचने के लिए न सड़क थी और ना ही आज की तरह कोई हैली या अन्य सुविधाएं थी. कहते हैं पुराने समय में हरिद्वार के बाद पूरा रास्ता काफी मुश्किल भरा हुआ करता था, इसलिए श्रद्धालु अपने अंत समय में यहां जाया करते थे, और जाने के बाद ये भी उम्मीद कम ही रहती थी कि इंसान लौट कर आएगा या नही, इसलिए कई लोग यात्रा पर जाने से पहले अपना पिंड दान कर दिया करते थे। लेकिन आज धाम की स्तिथि कुछ और ही बयां करती  है।

2013 की आपदा के बाद लोगो की भीड़ बढ़ने लगी-

2013 की आयी भीषण आपदा के बाद केदारनाथ धाम सिर्फ मंदिर को छोड़कर पूरी तरह तहस नहस हो गया था,जिसके बाद सबसे पहले उस समय के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदारनाथ यात्रा को सुचारु और मंदिर परिसर को फिर से खड़ा करने की काफी कोशिश की, लेकिन 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह केदारनाथ को पुनः सवार कर खड़ा किया उसके बाद से ही केदारनाथ जाने के लिए लोगों में उत्सुकता बढ़ी,,,और श्रद्धालुओं की संख्या में यहां बहुत इजाफा होने लगा,,, लेकिन आज के समय में केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं के साथ-साथ मनोरंजन के लिए पहुंचने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है,सोशल मीडिया के इस दौर में कई वीडियो केदारनाथ से वायरल हुए जिससे केदारनाथ धाम ज्यादा चर्चा में बना है,ऐसे वीडियो से लगातार धार्मिक भावनाएं आहत होने का आरोप लगते रहे हैं, जिसके लिए मंदिर समिति पर एक्शन लेने का दबाव भी बन रहा थ।

मंदिर में फ़ोन और फोटोग्राफी पर प्रतिबंध-

लगातार ऐसे मामलों के सुर्ख़ियों में आने के बाद केदारनाथ मंदिर समिति ने अब बड़ा फैसला किया है,,, मंदिर समिति ने केदारनाथ मंदिर में अब मोबाइल फोन से फोटोग्राफी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की और से इस संबंध में धाम में जगह-जगह साइन बोर्ड भी लगाए गए हैं। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि केदारनाथ मंदिर के अंदर यदि कोई श्रद्धालु फोटो खींचता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। केदारनाथ मंदिर में आने वाले कई श्रद्धालु रील्स बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं। जिससे धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंच रही है। हाल ही में केदारनाथ धाम में एक महिला द्वारा गर्भ ग्रह में नोट बरसाने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। जबकि गर्भगृह में फोटो खिंचवाना वर्जित है, हालांकि सरकार ने कई बार खुद ही इस नियम की अनदेखी की है, बीकेटीसी के अध्यक्ष ने कहा कि धाम में अभी तक क्लॉक रूम की व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालु मोबाइल फोन लेकर दर्शन कर सकते हैं। लेकिन मंदिर के अंदर फोटो और वीडियो नहीं खींच सकते हैं। इस पर प्रतिबंध है। यदि कोई श्रद्धालु आदेशों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

भविष्या के लिए एक बड़ा डर-
केदारनाथ धाम की सिर्फ यही चिंता नहीं है, बल्कि यहां उमड़ रही भारी भीड़ भी एक बड़ा डर भविष्य के लिए खड़ा हो रहा है, केदारनाथ हिमालय के सेंसिटिव जोन  में बसा है यहां पर इतनी भीड़ पहुंचने से भी कई तरह का प्रभाव पड़ रहा हैं,भारी भीड़ से यहां दबाव भी बढ़ता है,केदार वैली में हेलीकॉप्टर से बढ़ रहे शोर से भी यहां के पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है, कई बार शोधकर्ता इस विषय पर भी सरकार को चेता चुके हैं, लेकिन उनकी बात पर कोई गौर करने को तैयार नहीं है।
आपदा के बाद तापमान में बड़ा बदलाव-
केदारनाथ धाम में आई आपदा के बाद से यहां के तापमान में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहा हैं. पहले जहां धाम में बर्फबारी और बारिश समय पर होने से तापमान सही रहता था. ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थीं. वहीं अब कुछ सालों से धाम में ग्लेशियर चटकने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं. इसके साथ ही यहां के बुग्यालों को नुकसान पहुंचने से वनस्पति और जीव जंतु भी विलुप्ति के कगार पर हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पर्यावरण को लेकर कोई कार्य नहीं किये जाने से पर्यावरण विशेषज्ञ भी भविष्य के लिए चिंतित नजर आ रहे है।

पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर-

केदारनाथ आपदा को नौ साल का समय बीत चुका है. तब से लेकर आज तक धाम में पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर चल रहे हैं. धाम को सुंदर और दिव्य बनाने की दिशा में निरंतर काम किया जा रहा है, लेकिन इन पुनर्निर्माण कार्यों और बढ़ती मानव गतिविधियों के साथ ही हेली सेवाओं ने धाम के स्वास्थ्य को बिगाड़ कर रख दिया है. यहां के पर्यावरण को बचाने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया जा रहा है, जिससे आज केदारनाथ की पहाड़ियां धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई है।

केदार घाटी के लिए हो रहा नया संकट खड़ा-

केदारनाथ घाटी के लिए एक बड़ी चिंता भी है- कंपन पैदा करता हेलिकॉप्टरों का शोर।  हर 5 मिनट में एक हेलिकॉप्टर केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में गड़गड़ा रहा है ,यही है नया संकट। क्योंकि, विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ये पवित्र मंदिर ग्लेशियर को काटकर बनाया गया है। इसलिए शोर से घाटी के दरकने और हेलिकॉप्टरों के धुंए के कार्बन से पूरा इलाका खतरे की जद में है। हमने भगवान तक पहुंचने के इतने सरल व अवैज्ञानिक रास्ते बना दिए हैं कि अब भगवान पर ही मुसीबत आ गई है। केदारनाथ के लिए 1997-98 तक एक ही हेलिपैड था। अब 9 हेलीपैड बन गए हैं। ये देहरादून से फाटा तक फैले हैं और 9 कंपनियों के लिए उड़ान सुविधा देते हैं। 8 साल पहले तक केदारनाथ के लिए कुल 10-15 उड़ानें थीं। अब केदारनाथ वैली में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक हेलिकॉप्टर रोजाना 250 से ज्यादा राउंड लगाते हैं। इनका शोर और इनसे निकलने वाले कार्बन ने ग्लेशियर काटकर बनाए मंदिर और उसकी पूरी घाटी के लिए नया संकट खड़ा कर दिया है।

धीरे-धीरे धाम में हो रहा है भू धसाव-

 

केदारनाथ धाम में पाये जानी वाली घास विशेष प्रकार की है. वनस्पति विज्ञान में इसे माँस घास कहा जाता है. ये जमीन को बांधने का काम करती है. साथ ही यहां के ईको सिस्टम को भी सही रखती है. बताया जा रहा है कि यह माॅस घास जमीन में कटाव होने से रोकती है और हिमालय के तापमान को व्यवस्थित रखने में मददगार होती है. केदारनाथ धाम चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा है. यहां धीरे-धीरे भू धसाव हो रहा है. यहां मानव का दबाव ज्यादा बढ़ गया है. भैरवनाथ मंदिर, वासुकी ताल और गरूड़चट्टी जाने के रास्ते से इस घास को रौंदा जाता है.  बुग्यालों में खुदाई करके टेंट लगाए गए हैं. जिन स्थानों पर टेंट लगाए गए हैं, वहां के बुग्यालों को पुनर्जीवित करने के लिए कोई कार्य नहीं किया जाता है, जिससे पानी का रिसाव होता जाता है और भूस्खलन की घटनाएं सामने आती है।

 

मंदिर की पहाड़ियों पर एवलांच की घटनाएं-
केदारनाथ धाम की पहाड़ियों में लगातार एवलांच की घटनाएं सामने आ रही हैं. इसके लिए पर्यावरणविद धाम में हो रहे तापमान बदलाव का कारण मानते हैं. पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली की माने तो केदारनाथ धाम के तापमान में ग्लोबल वार्मिंग के कारण वृद्धि देखने को मिल रही है. ग्लेशियर खिसक रहे हैं. केदारनाथ धाम में अनियंत्रित लोगों के जाने से वातावरण को नुकसान पहुंच रहा है. हिमालय क्षेत्र में हेलीकॉप्टर सेवाएं टैक्सी की तरह कार्य कर रही हैं, जबकि इनकी उड़ानों को विशेष इमरजेंसी की सेवाओं में उपयोग किया जाना चाहिए।
खतरे में हैं कई पशु और जानवर-

केदारनाथ में नीचे उड़ते हेलीकाप्टर दुर्लभ प्रजातियों के कई जीवों का ब्रीडिंग साइकल बिगड़ा है। उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल और राजकीय पशु कस्तूरी मृग इस सेंचुरी में अब नहीं दिखते। तितलियों की कई दुर्लभ प्रजातियां तो गायब हो चुकी हैं। स्नो लैपर्ड, हिमालयन थार और ब्राउन बीयर्स भी खतरे में हैं।

NGT के नियमों की उड़ती धज्जियां-

NGT ने सुनिश्चित करने को कहा था कि हेलिकॉप्टर केदारनाथ सेंचुरी में 600 मीटर के नीचे न उड़ें। आवाज 50 डेसिबल हो। लेकिन फेरे जल्दी पूरे करने और फ्यूल बचाने के लिए हेलिकॉप्टर 250 मी. ऊंचाई तक उड़ते हैं। आवाज भी दोगुनी होती है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीटूयट  में ग्लेशियर विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ डीबी डोभाल कहते हैं- सरकार को ये रिपोर्ट दे चुके हैं कि इससे मंदिर और घाटी को बड़ा खतरा हो सकता है।पद्मभूषण पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी बताते हैं कि हिमालय के इस सबसे संवेदनशील व शांत क्षेत्र में 100 डेसिबल शोर और कार्बन उत्सर्जन हर 5 मिनट में होगा तो मंदिर-पर्यावरण-वन्य जीवों के लिए खतरा तय है।

 

हिमाचल में बारिश का कहर जारी, अब तक 98 लोगों की मौत, फिर अलर्ट जारी…

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    देश के कई राज्यों में झमाझम बारिश हो रही है. मौसम विभाग (IMD) ने कई राज्यों के लिए भारी बारिश का ऑरेंज अलर्ट जारी किया है. कुछ राज्य सरकारों ने स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने का फैसला लिया है. दिल्ली में भी भारी बारिश के बीच मौसम विभाग ने येलो अलर्ट जारी किया था. तो वहीं सबसे ज्यादा हिमाचल प्रदेश में बारिश का कहर बरपा रहा है.  हिमाचल में लगातार हो रही भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालात बने हुए है. कई लोगों की मौतें भी हो चुकी है.तो वहीं राज्य में बारिश से करोड़ों का नुकसान भी हुआ है. वहीं भारी बारिश को लेकर एक बार फिर अलर्ट जारी कर दिया गया है। मौसम विभाग का मानना है कि 14 से 16 जुलाई के बीच भारी बारिश हो सकती है। हिमाचल प्रदेश में मानसून सीजन (जून से सितंबर) में होने वाली कुल बारिश की करीब 30 फीसदी बारिश इस बार चार दिन में ही हो गई जोकि रिकॉर्ड के अनुसार अप्रत्याशित है। प्रदेश में 7 से 10 जुलाई के दौरान तीव्र मानसून की स्थिति बनी रही।  इस अवधि के दौरान राज्य के अधिकांश हिस्सों में बहुत भारी से अत्यधिक भारी बारिश हुई।

 

अब तक इतने लोगों की हुई मौत- 

हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदा से अब तक 98 लोगों की जान जा चुकी है। बुधवार को मलबे में दबे 6 लोगों के शव निकाले गए। एक दिन पहले तक मृतकों की संख्या 92 थी, जोकि बढ़कर 98 पहुंच गई है। चौथे दिन भी राहत एवं बचाव कार्य युद्धस्तर पर जारी है और 16 लोगों की अभी तक तलाश जारी है। समूचा प्रशासन राहत कार्यों में लगा हुआ है।

 

2800 पेयजल योजनाएं बहाल- 

वर्षा से हुई तबाही के चलते प्रदेश के कई जिलों चंबा, मंडी, कांगड़ा, शिमला सहित अन्य स्थानों पर 3737 पेयजल योजनाएं बहाल करने में लगे कर्मचारियों के प्रयासों से 2800 योजनाओं को शुरू करने से पेयजल की स्थिति में सुधार आया है। इसके साथ-साथ सिंचाई की 994 योजनाएं ठप हो गई हैं।

 

कई पशुओं की भी मौत- 

भारी बारिश के कारण सैकड़ों जानवरों की भी मौत हो गई है. राज्य सरकार के एक आंकड़े के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में तबाही की बारिश के कारण राज्य में जहां 98 लोगों की जान चली गई है, और कई लोग लापता बताए जा रहे हैं तो वहीं 100 से अधिक लोग घायल हुए हैं. वहीं राज्य भर में 492 जानवरों की भारी बारिश के कारण मौत हो चुकी है.

 

मौसम विभाग का पूर्वानुमान-

मौसम विभाग की ओर से 14 से 16 जुलाई तक भारी वर्षा का येलो अलर्ट जारी किया गया है। वहीं, बुधवार को प्रदेश के कई हिस्सों में हल्की वर्षा हुई। मौसम विभाग के निदेशक डॉ. सुरेंद्र पाल का कहना है कि 15 जुलाई से दो दिन तक प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में भारी बारिश होगी।

 

 

बारिश से प्रदेश भर में 1299 सड़कें बंद-

हिमाचल प्रदेश डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के मुताबिक मंगलवार शाम तक प्रदेश भर में 1299 सड़कें बंद हैं. इसके अलावा नेशनल हाईवे 21 मंडी-कुल्लू, नेशनल हाईवे 505 ग्राम फू-लोसर, नेशनल हाईवे 03 कुल्लू-मनाली और नेशनल हाईवे 707 शिलाई पर आवाजाही ठप हो गई है. भारी बारिश के कारण हिमाचल सड़क परिवहन निगम के 876 बस मार्ग प्रभावित हैं. वहीं 403 बसें कई जगहों पर फंस गई हैं.

 

’12 घंटे में बहाल करेंगे 700 सड़कें’-

लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन बाधित सड़क मार्गों को बहाल करने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। मौसम अगर अनुकूल रहा तो अगले 12 घंटे में 700 सड़कें बहाल कर ली जाएंगी। बारिश और बाढ़ से प्रदेश में 1299 सड़कें अवरुद्ध हुई हैं। इसके अलावा नेशनल हाईवे 21 मंडी-कुल्लू, नेशनल हाईवे 505 ग्राम फू-लोसर, नेशनल हाईवे 03 कुल्लू-मनाली और नेशनल हाईवे 707 शिलाई पर आवाजाही ठप हो गई है. भारी बारिश के कारण हिमाचल सड़क परिवहन निगम के 876 बस मार्ग प्रभावित हैं. वहीं 403 बसें कई जगहों पर फंस गई हैं. सड़कों को खोलने का काम तेज गति से किया जा रहा है।  प्रदेश में लोक निर्माण विभाग को करीब 13 सौ करोड़ के नुकसान का अनुमान है।

 

4,680 परियोजनाएं हुई क्षतिग्रस्त-

पिछले एक सप्ताह से हिमाचल प्रदेश में हो रही भारी बारिश के कारण पूरे प्रदेश में सामान्य जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है तथा प्रदेश को करोड़ों रुपए की क्षति हुई है उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने बताया की केवल जल शक्ति विभाग में ही  4680 योजनाएं क्षतिग्रस्त हुई हैं,  जिससे प्रदेश को 323.30 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। प्रदेश में करीब 2500 ट्रांसफार्मर बंद पड़े हैं. इनमें ऊना जिला की 257 क्षतिग्रस्त योजनाएं भी शामिल है जहां पर लगभग  20 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

‘राष्ट्रीय आपदा घोषित करे सरकार’-

सांसद प्रतिभा सिंह ने कहा कि प्रदेश सरकार पूरी तत्परता के साथ लोगों को राहत प्रदान करने में जुटी है। सरकार मजबूती से बाढ़ प्रभावितों के साथ खड़ी है। उन्होंने केंद्र सरकार से प्रदेश को तुरंत राहत पैकेज जारी करने की मांग के साथ हिमाचल में आई आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का आग्रह किया।

 

प्रदेश में फिर से भारी बारिश का अलर्ट- 
हिमाचल प्रदेश में फिर भारी बारिश का अलर्ट जारी हुआ है। मौसम विज्ञान केंद्र शिमला की ओर से प्रदेश के कई भागों में 15 व 16 जुलाई को भारी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया गया है। राज्य के कई भागों में 18 जुलाई तक बारिश का सिलसिला जारी रह सकता है। वहीं, राजधानी शिमला में आज हल्की धूप खिलने के साथ बादल छाए हुए हैं। धौला कुआं में 144.5, रेणुका जी 87.0,  रिकांगपिओ 42 और कोटखाई में 30.1 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है।

किन्नौर के सांगला में फंसे 95 पर्यटकों को किया रेस्क्यू-

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में फंसे विदेशियों सहित कुल 95 पर्यटकों को पांच उड़ानों में सांगली से चोलिंग (किन्नौर) पहुंचाया गया है। हिमाचल प्रदेश पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि छठी उड़ान तैयार है। बचाव अभियान युद्ध स्तर पर चलाया जा रहा है। सेना और आईटीबीपी की टीम बचाव अभियान में सहयोग कर रही है।
4 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन-
लगातार हो रही बारिश से सबसे ज्यादा तबाही हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी और कुल्लू में हुई है. इस प्राकृतिक मार से राज्य को अब तक चार हजार करोड़ रुपए के नुकसान की आशंका है. हालांकि वास्तविक नुकसान के आकलन के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में कमेटी गठित की है. यह कमेटी नुकसान का सही आकलन करेगी. फिलहाल मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक हिमाचल को तीन हजार करोड़ रुपए से चार हजार करोड़ रुपए तक के नुकसान की बात कही है. आज हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू मंडी और कुल्लू जाकर नुकसान का जायजा लेंगे।
न्यूनतम तापमान-
शिमला में न्यूनतम तापमान 15.4, सुंदरनगर 22.0, भुंतर 18.0, कल्पा 11.1, धर्मशाला 19.2, ऊना 21.6, नाहन 20.9, पालमपुर 17.5, सोलन 19.5, मनाली 13.8, कांगड़ा 20.6, मंडी 21.5, बिलासपुर 21.0, चंबा 21.1, डलहौजी 14.5, कुफरी 14.4, रिकांगपिओ 14.2, धौलाकुआं 23.8, बरठी 23.1, मशोबरा 15.3 और देहरागोपीपुर में 15.0 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।

उत्तराखंड में बारिश का कहर जारी, बिगड़ेंगे अभी और हालात…

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उत्तराखंड में मानसून ने भयानक तबाही मचा रखी है. उत्तराखंड  में मानसून का सीजन हर साल आफत लेकर आता है. हर साल आपदा की वजह से सैकड़ों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. तो वहीं सैकड़ों मकान भी तबाह हो जाते हैं. इतना ही नहीं आपदा की वजह से मरने वाले मवेशियों की तो कोई गिनती ही नहीं होती है. क्योंकि हर साल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश से तबाही मचती है  कई लोग बेघर हो जाते हैं और कई लोग अपनी जान तक गंवा देते हैं.  भारी बारिश के चलते आम जनजीवन भी अस्त-व्यस्त है. मौसम विभाग की मानें तो राज्य में अभी बारिश का ये सिलसिला जारी ही रहेगा. IMD ने कुछ इलाकों के लिए रेड अलर्ट भी जारी किया है. देश के कई राज्यों में मूसलाधार बारिश देखने को मिल रही है.  तो वहीं मैदान से लेकर पहाड़ी इलाकों तक भारी बारिश के चलते तबाही की तस्वीरें सामने आ रही हैं. सबसे ज्यादा तबाही उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में देखने को मिल रही है. उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश के चलते नदियां उफान पर हैं.  इस बीच मौसम विभाग ने अभी आफत कम नहीं होने की संभावना जताई है. मौसम विभाग ने उत्तराखंड में अगले पांच दिनों तक बारिश की चेतावनी दी है.

 

अब तक आपदा की वजह से 36 लोगों की हुई मौत

उत्तराखंड आपदा के हिसाब से अति संवेदनशील राज्य है. यहां पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा की कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें सैकड़ों लोग जान गवा चुके हैं. बात 2013 केदारनाथ आपदा की हो या फिर रैणी गांव में आई आपदा की.  हर साल बरसात के सीजन में ऐसी तबाही मचती है कि सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा देते हैं. इस साल ही अब तक आपदा की वजह से 36 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. यह आंकड़े आपदा परिचालन केंद्र के अनुसार हैं,, इसके अलावा 53 लोग ऐसे हैं जो घायल हुए हैं और 13 लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं बात सिर्फ इंसानों की नहीं है बल्कि ढाई सौ से ज्यादा छोटे बड़े पशु भी काल के मुंह में समा गए. नुकसान की अगर बात की जाए तो कच्चे-पक्के भवनों को सैकड़ों की संख्या में नुकसान हुआ है.

 

इन जिलों में हुई इतने लोगों और पशुओं की मौतें

इसी के साथ अगर जिलों में मौतों की बात की जाए तो बागेश्वर में 1, चमोली में 5, चंपावत में 2, देहरादून में 2, हरिद्वार में 2, नैनीताल में 2,पौड़ी में 2, पिथौरागढ़ में 5, रुद्रप्रयाग में 4, टिहरी में 5, उधम सिंह नगर में 2 और उत्तरकाशी में 4 लोगों की मौत हुई है. साल 2021 की बात की जाए तो आपदा की वजह से कुल 303 लोग मारे गए थे, जबकि 87 लोग घायल हुए थे. 61 लोग आज भी लापता सूची में दर्ज है. आपदा में 412 बड़े पशु और 740 छोटे पशु आपदा की चपेट में आकर मारे गए हैं.

 

अब तक 1500 से अधिक सड़कें हुई बंद-

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मानसून की बारिश हमेशा आफत लेकर आती है। सबसे अधिक कहर सड़कों पर बरसता है। बारिश में स्लिप आने और क्रॉनिक लैंडस्लाइड जोन (अति संवेदनशील) सड़कों के बंद होने का बड़ा कारण बनते हैं। पहले से चिह्नित भूस्खलन क्षेत्रों के अलावा हर साल नए क्रॉनिक जोन विकसित हो रहे हैं, जो सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय हैं। लोनिवि की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल अब तक कुल 1,508 सड़कें बंद हो चुकी हैं। इनमें 1,120 सड़कें लोनिवि, 7 NH और 381 PMGSY यानि (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) की हैं। इनमें से अब तक 1,235 सड़कों को खोला जा चुका है, जबकि 273 अब भी बंद हैं। इन सड़कों को चालू हालत में लाने के लिए 1,776.24 लाख रुपये खर्च होंगे, जबकि पूर्व की हालत में लाने के लिए 3,560.66 लाख रुपये की जरूरत पड़ेगी। यह आकलन लोनिवि की ओर से अपनी रिपोर्ट में किया गया है।

 

7 पुल भी हुए क्षतिग्रस्त-

प्रदेश में भारी बारिश के बाद उपजे हालात के कारण सात पुलों को भी नुकसान पहुंचा है। इनको चालू करने के लिए 14 लाख रुपये खर्च होंगे, जबकि पूर्व की हालत में लाने के लिए कुल 337.50 लाख रुपये खर्च होंगे। 

 

तेज बारिश से जन जीवन अस्त-व्यस्त-

उत्तराखंड में लगातार हो रही भारी बारिश के कारण जगह-जगह से तबाही के मंजर की तस्वीरें सामने आ रही हैं. ऋषिकेश में भी गंगा का पानी ऋषिकेश में स्थित परमार्थ निकेतन की शिव मूर्ति को छू कर बहने लगा है. शिव मूर्ति तक पहुंचने के लिए बनाई गई छोटी पुलिया भी पूरी तरह से नदी में डूब चुकी है. गंगा का बढ़ता जल स्तर अब डरा रहा है कि कहीं पानी का तेज बहाव एक बार फिर प्रतिमा को डूबो न दे. इसके साथ ही ऋषिकेश से गुजरने वाली चंद्रभागा नदी, सॉन्ग नदी, सुखवा नदी, बीन नदी के साथ-साथ नाले भी अपना रौद्र रूप दिखा रहे हैं. उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भी अब भारी बारिश के कारण झीलों का जल स्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है. तो वहीं, भारी बारिश के चलते नेशनल हाइवे में कटाव देखने को मिला. उत्तरकाशी में भी लगातार तेज बारिश के बाद गंगोत्री-यमुुनोत्री हाइवे पर कई जगह रास्ते बंद हो चुके हैं. जिसके कारण जगह-जगह फंसे कांवड़ियों का रेस्क्यू किया जा रहा है.

 

 

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प्रदेश में अभी टला नहीं बारिश का कहर. इन इलाकों में ऑरेंज अलर्ट-

IMD की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक, कल यानी गुरुवार को नैनीताल, उधम सिंह नगर, पौड़ी, चंपावत  में बारिश का रेड अलर्ट जारी किया गया है. इसके अलावा पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली, और अल्मोड़ा में बारिश का ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है. वहीं, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, देहरादून, टिहरी और हरिद्वार में भी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया गया है.

 

क्या कहता है मौसम का रेड, ऑरेंज और येलो अलर्ट-

मौसम विभाग मौसम के बहुत खराब होने पर रेड अलर्ट जारी करता है. इसमें प्रशासन को तुरंत सक्रिय होने का संकेत मिलता है. ऑरेंज अलर्ट मौसम के खराब होने पर जारी होता है और इसमें प्रशासन को तैयार रहने का इशारा मिलता है. येलो अलर्ट प्रशासन को सतर्क रहने के लिए कहता है.

 

मदद के लिए सरकार ने जारी किए हेल्पलाइन नंबर-

उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों एवं हिमाचल प्रदेश में फंसे उत्तराखंड के नागरिकों की सहायता के लिए सरकार ने आपदा राहत नंबर जारी किए हैं। किसी भी मदद के लिए लोग इन नंबरों 9411112985, 01352717380, 01352712685 पर संपर्क कर सकते हैं। साथ ही 9411112780 नंबर पर व्हाट्सएप मैसेज कर सकते हैं। सीएम धामी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है।