मणिपुर की आग से 24 तबाह, दक्षिण में ढहता भाजपा का किला…   

मणिपुर की आग से 24 तबाह, दक्षिण में ढहता भाजपा का किला…   

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मणिपुर हिंसा का भाजपा की दक्षिण की राजनीति पर असर दिखना शुरू हो गया है, वो लोग, जिन्हें उनके समुदाय के नेताओं के ये कहने से कोई आपत्ति नहीं थी कि बीजेपी से अल्पसंख्यकों को कोई दिक्कत नहीं है, उनके  सुर भी अब पूरी तरह से बदलते हुए दिखाई देते हैं,  पिछले कुछ हफ्तों से इस समुदाय के लोग मणिपुर में हो रहे हमलों, हत्याओं और चर्चों को जलाए जाने के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर रहे हैं जिनमें से कुछ प्रदर्शन ऐसे हैं जिनकी अगुवाई खुद वहां के पादरियों ने की है और लगातार कर भी रहे हैं. राज्य में चर्चों का प्रशासन देखने वाली संस्था केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल (केसीबीसी) ने तो यहां तक कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतने समय तक क्यों चुप्पी साधे रखी,, कुल मिलाकर केरल में जो समुदाय भाजपा के साथ दिखाई देता था अब वो उनसे दूरी बनाने लगा है। केरल ही नहीं, अब के हालात में मणिपुर में रहने वाले अधिकतर नागरिक जो या तो कुकी समुदाय से हैं या फिर मैतई से, कहीं न कहीं ये दूरी उनके मन में भी होगी, ऐसा वहां के हालात को देखकर महसूस किया जा सकता है

 

मणिपुर मामले जब फिर कुछ नहीं बोले PM-  
 
100 दिन से अधिक समय तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार 36 सेकंड और दूसरी बार तकरीबन 3 मिनट से कम समय ही निकाला है मणिपुर के मुद्दे पर बोलने के लिए, ये माना जा रहा था की संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जब  प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी बोलेंगे तो न केवल मणिपुर के लिए ज्यादा से ज्यादा केंद्रित होकर अपना भाषण देंगे बल्कि उम्मीद ये भी की जा रही थी कि तुरंत कोई बड़ा कदम उठाकर मणिपुर की जनता के जख्मों पर मरहम भी रखेंगे, पर न तो वहां हुई मौत के आंकड़ों पर और न ही नग्न अवस्था में परेड करवाई गयी महिलाओं के प्रति कोई गंभीर संवेदना दिखाई दी. अपने भाषण के दौरान उन्होंने ये जरुर कहा की अमित भाई यानी देश के गृहमंत्री अमित शाह इस मुद्दे पर सब कुछ पहले ही बोल चुके हैं
 2024 चुनाव में डाल सकता है असर- 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लगभग पूरा भाषण हंसी-ठट्टे, कांग्रेस को कोसने, विपक्षी दलों की असफलता, इंडिया को घमंडिया कहने में ही गुजर गया. सत्ता पक्ष का ये रवैया 2024 के लोकसभा चुनाव में खासा असर डाल सकता है. खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में जहां पर अल्पसंख्यकों की यानी ईसाइयों की संख्या थोड़ी ज्यादा है.  गौरतलब है की इन अल्पसंख्यकों के वोट बैंक पर बहुत पहले से भाजपा की नजर रही है, और इस वोट बैंक को हासिल करने में पूर्व में भाजपा कामयाब भी हुई है, मगर हालात अब थोड़े जुदा हैं. याद कीजिए जब एक वक्त ऐसा भी था की प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर के तीन राज्यों पर जीत के बाद अपनी सरकार बनाने के बाद कहा था, पूर्वोत्तर न दिल्ली से दूर है ना मेरे दिल से… पर 100 दिन से भी अधिक समय तक मणिपुर से दूरी बनाना ये संकेत जरुर देता है की दिल और दिल्ली दोनो से कम से कम मणिपुर से तो दूर ही है ।   


क्या कहती है BBC की रिपोर्ट- 

बीबीसी की एक  रिपोर्ट के अनुसार केरल के लोगों का कहना है कि “मणिपुर के लोग इसी भारत के सम्मानित नागरिक हैं. उनके घर जला दिए गए हैं और अब दिखाने के लिए उनके पास कोई रिकॉर्ड भी नहीं बचा है हालात ये हैं कि वो भारतीय हैं. ये साबित करना भी अब उनके लिए मुश्किल हो सकता है, आखिर वो अपनी पहचान कैसे साबित करेंगे बिना कागजों के, अपनी ही ज़मीन पर बाहरी होते ये लोग दोनो तरफ से हैं चाहे फिर वो कुकी समुदाय हो या फिर मैतई… ”राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ईसाई समुदाय में कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट  के मजबूत आधार में सेंध लगाने के लिए बीजेपी के मेलजोल कार्यक्रम को केरल में ‘तगड़ा झटका’ लगा है.आपको बता दें कि राज्य में अल्पसंख्यकों की आबादी लगभग 46% है, जिसमें 26.56% मुसलमान और 18.38% ईसाई हैं

एक ऐसा भी समय रहा है, जब सीपीएम नीत लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ़) इन दोनों समुदायों से वोट हासिल करने में सफल रहा. लेकिन आम तौर पर अल्पसंख्यकों का वोट यूडीएफ के साथ ही रहा है. बीजेपी इसी में सेंध लगाने की कोशिश में थी, जिसमे वो काफी हद तक कामयाब होती भी दिखाई दे रही थी,लेकिन मणिपुर की हिंसा ने इन कोशिशों पर मानो पानी फेर दिया है।


क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक- 

राजनीतिक विश्लेषक एमजी राधाकृष्णन के अनुसार, “मणिपुर निश्चित रूप से बीजेपी के लिए एक झटका है, जो कि ईसाई वोटरों को रिझाने की कोशिश करती रही है. पिछले कुछ समय से वे इस ओर अच्छी खासी सफलता भी हासिल करती दिखाई दे रही थी. ”एमजी राधाकृष्णन कहते हैं, “अभी पिछले ईस्टर में ही कार्डिनल जॉर्ज एलेनचेरी ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि बीजेपी बहुत अच्छी है और अल्पसंख्यकों को इस पार्टी से कोई दिक्कत नहीं है. इससे पहले एक और बिशप ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि अगर केंद्र सरकार रबर की सही कीमत दिलाए तो केरल से एक बीजेपी सांसद भेजा जा सकता है


2024 चुनाव में बीजेपी को लग सकता है झटका-

पूर्वोत्तर राज्यों में अल्पसंख्यक वोट कितने महत्वपूर्ण हैं उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ईसाई समुदाय को अपनी तरफ लाने के अभियान की बागडोर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथ में ले रखी थी. चाहे वो पोप फ़्रांसिस को भारत आमंत्रित करना हो या मलंकारा चर्च में 400 साल पुराने विवाद को हल करने की कोशिश हो या इसी साल अप्रैल में केरल में आठ प्रमुख चर्चों के प्रमुखों के साथ डिनर हो.  इसी डिनर में भारत के सबसे बड़े सायरो मालाबार चर्च के प्रमुख कार्डिनल एलेनचेरी ने प्रधानमंत्री की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी. इसके बाद ही एक के बाद एक बिशप ने विवादास्पद बयान दिए थे. एक बिशप ने ईसाइयों को ‘नार्को टेररिज़्म’ के भ्रम में फंसने को लेकर चेताया था जबकि दूसरे ने लव जिहाद को लेकर सावधानी बरतने की बात कही थी.लेकिन लगता है मणिपुर हिंसा ने इन सब कोशिशों पर एक झटके में पानी फेर दिया है।


मणिपुर की घटना से बीजेपी को झटका- 

एमजी राधाकृष्णन ने कहा कि समुदाय में बीजेपी समर्थक रवैया दिखाई देता रहा है. समुदाय के ख़ासकर संपन्न लोगों में सोशल मीडिया पर इस्लामोफोबिया अभियान चल रहा है और समाज में बीजेपी के प्रति नरम रुख साफ़ दिखता है.. वो कहते हैं, “कुल मिलाकर बीजेपी बहुत आरामदायक स्थिति में थी. लेकिन अब मणिपुर की घटना ने उन्हें झटका दिया है, चर्च सत्तारूढ़ पार्टी के ख़िलाफ़ खुलकर सामने आ गए हैं.और अब  इस रिश्ते में अब बड़ी बाधा खड़ी हो गई है.”  राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि “इस हालात में ईसाई समुदाय में बीजेपी का प्रचार ठप पड़ सकता है क्योंकि ईसाई नेतृत्व सार्वजनिक रूप से बीजेपी का समर्थन करने का बहाना नहीं ढूंढ पाएंगे.”“मणिपुर की घटनाओं से अब एक जटिल स्थिति पैदा हो गई है. एक छोटा समूह था जो बीजेपी की ओर झुकाव रख रखा था. अब उन्हें फिर से अपना मन बनाना पड़ेगा कि वो बीजेपी के साथ हैं या नहीं

क्या कहते हैं लेखक राधाकृष्णन-

लेखक और एकेडमिक केएस राधाकृष्णन कहते हैं कि “ईसाई समुदाय के पास किसी भी संगठन या विचारधारा के साथ स्थायी राजनीतिक वफादारी नहीं है. वे अपने हित देखते हैं. अगर वे सोचते हैं कि बीजेपी उनका शुभचिंतक है तो वे उसका समर्थन कर देंगे. अगर ये उनके लिए फायदेमंद होगा तो वो बीजेपी के साथ चले जाएंगे.” उनके मुताबिक, “ईसाई समुदाय कांग्रेस और एलडीएफ दोनों का समर्थन कर चुका है. इन सबके बीच कांग्रेस परिस्थितियों पर बारीक नज़र बनाए हुए है. एर्नाकुलम से कांग्रेस के सांसद हिबी इडेन ने कहा, “मणिपुर के बाद, बीजेपी का समर्थन करने वाले कुछ ईसाई नेता समझ गए कि उस पार्टी का अल्पसंख्यकों के प्रति यही बुनियादी बर्ताव है.”

एमजी राधाकृष्णन का कहना है कि ईसाई समुदाय में बीजेपी समर्थक कूटनीतिक रूप से कम मुखर रहेंगे. जब मणिपुर मुद्दा खत्म हो जाएगा, वे बीजेपी के साथ जाने का कोई और बहाना ढूंढ लेंगे. लेकिन 2024 के लिए तो ये मुश्किल होगा क्योंकि अब बहुत समय बचा नहीं है. इसलिए सार्वजनिक रूप से वो कोई पक्ष नहीं लेंगे.  फ़ादर जैकब पालाकाप्पिल्ली कहते हैं, “मणिपुर के हालात के बारे में हम बहुत दुखी और सदमे में हैं. प्रधानमंत्री ने पीड़ितों को ढांढस तक नहीं बंधाया. शांति के लिए हम किस से कहेंगे


पूरे देश में मणिपुर हिंसा का असर- 

ये वो तमाम घटनाक्रम और बयान है जो बताते हैं कि मणिपुर में हिंसा का असर अब राजनीतिक रूप से भी दिखना शुरू हो गया है,  और साथ ही  2024 में बीजेपी को यहां झटका लग सकता है। भाजपा दक्षिणी राज्यों में अपना आधार पहले ही खोती दिखाई दे रही है. और मणिपुर की घटना से पूर्वोत्तर में भी वोट बैंक पर असर पड़ना तय माना जा रहा है.सिर्फ दक्षिण ही नहीं बल्कि देश के कई ऐसे राज्य जहां पर अल्पसंख्यक बहुतायत में हैं याद रहे ये अल्पसंख्यक कहने से मतलब सिर्फ मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र ही नहीं बल्कि अन्य अल्पसंख्यक समुदाय पर भी असर पड़ना तय माना जा रहा है.. क्योकिं मणिपुर हिंसा से सरकार की छवि न केवल आसपास के राज्यों में खराब हुई है बल्कि पूरे देश मे इसका असर पड़ा है, जैसे केरल में ये असर देखने को मिल रहा रहा है. मोदी सरकार से पहले ही किसान, बेरोजगार, महंगाई से त्रस्त लोग नाराज हैं

 

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