2014 में जो मोदी के साथ हुआ, अब वही राहुल गांधी के साथ भी हो रहा है !

2014 में जो मोदी के साथ हुआ, अब वही राहुल गांधी के साथ भी हो रहा है !

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देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ‘मोदी सरनेम’ मामले में राहत देते हुए उनकी सजा पर रोक लगा दी थी, अब लोकसभा सचिवालय की ओर से राहुल गांधी की सदस्यता बहाल होने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने ट्विटर अकाउंट से ‘अयोग्य सांसद’ से ‘संसद के सदस्य’ के रूप में अपडेट कर दिया है.  सदस्यता  बहाल होने के बाद राहुल गांधी संसद पहुंचे. संसद पहुंचते ही उन्होंने सबसे पहले गांधी प्रतिमा को नमन किया. लेकिन सदन में राहुल की एंट्री के साथ ही भाजपा ने फिर से उनको निशाने पर लेना शुरू कर दिया है, संसद में राहुल गांधी की वापसी पर बीजेपी नेता सुशील मोदी ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि राहुल की वापसी से कांग्रेसी भले ही खुश हो रही हों लेकिन उनके सहयोगी दुखी हैं. शरद पवार, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार।

 

 
 
क्यों की गई थी राहुल गांधी की सदस्यता रद्द- 
 
इसी साल 23 मार्च को राहुल गांधी को साल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार में दिए गए भाषण को लेकर सूरत की अदालत ने दो साल की सज़ा सुनाई थी. उस आदेश के ठीक अगले ही दिन लोकसभा सचिवालय ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी थी.’मोदी सरनेम’ को लेकर मानहानि का दावा कोई पहला मामला नहीं है जब राहुल गांधी को लेकर भारतीय जनता पार्टी इतनी हमलावर हुई हो. इस पर सत्तारूढ़ बीजेपी के नेता राकेश सिन्हा ने कहा था कि राहुल गांधी पश्चिमी देशों की ताक़तों के साथ मिलकर भारत की एकता, संप्रभुता की अवहेलना कर रहे हैं. इसी साल जून में राहुल गांधी अमेरिका के दौरे पर थे और राजधानी वाशिंगटन डीसी में उन्होंने कहा था कि “भारत में लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ना हमारा काम है.”उस दौरान उन्होंने वहां बसे भारतीयों से भारत वापस आने का अनुरोध करते हुए लोकतंत्र के साथ भारतीय संविधान की रक्षा में खड़े होने का आह्वान भी किया था. इससे कुछ महीने पहले राहुल गांधी की ब्रिटेन यात्रा को लेकर भी भारत में बहुत बवाल हुआ था. बीजेपी ने तब राहुल गांधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने विदेशी धरती पर भारतीय लोकतंत्र का अपमान किया है. हालांकि राहुल और पार्टी दोनों ने उस आरोप का खंडन किया था।

कई नेताओं के राहुल गांधी पर आरोप-

बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नक़वी ने तब कहा था, “राहुल गांधी विदेश में जा कर ये कहते हैं कि देश में प्रजातंत्र नहीं है.  नकवी ने कहा कि अगर देश में प्रजातंत्र न होता तो यहां का कोई नेता विदेश में जाकर भारत को, भारत के लोकतंत्र को, भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए नेता को, इस तरह के अपशब्द और दुष्प्रचार की भाषा बोल सकता था क्या ? “उस दौरे के बाद जून में ही स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के अमेरिकी दौरे को लेकर राहुल गांधी पर बड़ा आरोप लगाया. उन्होंने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की. उस दौरान उन्होंने एक तस्वीर दिखाई और बोलीं, “राहुल गांधी के अमेरिकी दौरे की इस तस्वीर में जो महिला सुनीता विश्वनाथन साथ बैठी हैं उनके जॉर्ज सोरोस के साथ संबंध हैं. यह पहले भी सामने आ चुका है कि जॉर्ज सोरोस भारत के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं.” स्मृति ईरानी ने यह भी दावा किया कि जॉर्ज सोरोस के संस्थान से जुड़े एक व्यक्ति का राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से संबंध भी था. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि “राहुल गांधी उनसे क्या बात कर रहे थे उन्हें इसकी जानकारी देश को देनी चाहिए.”अब जब सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की दो साल की सजा पर रोक लगा दी है तो बीजेपी की ओर से तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन निरहुआ के नाम से प्रसिद्ध आजमगढ़ से बीजेपी के सांसद दिनेश लाल यादव ने कहा कि राहुल गांधी को संसद में आ कर माफी मांगनी चाहिए।

क्या कहते हैं वरिष्ट पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक- 

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक बताते  हैं,कि  “जिस तरह से राहुल गांधी की सदस्यता गई उससे जमीनी स्तर पर लोगों को अच्छा नहीं लगा. विपक्ष के नेताओं पर ईडी का उपयोग किया गया उससे आम  लोग उतने परेशान नहीं थे लेकिन राहुल गांधी के मामले में ये कहा जा रहा था कि देखो उन्हें संसद तक से निकाल दिया गया. “ये कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बीजेपी ने ही राहुल गांधी को देश का हीरो बना दिया है. पहले उनको पप्पू-पप्पू कह कर नीचा दिखाते थे. कहते थे कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस प्रचारक हैं तो यह हमारे लिए बहुत आशादायक है. कांग्रेस का नेतृत्व राहुल करेंगे तो फिर जीवन भर बीजेपी जीतती रहेगी. राहुल गांधी को हीन भाव से टैग किया करते थे.”लेकिन राहुल गांधी ने इन सभी चीज़ों का जवाब अपनी भारत जोड़ो यात्रा से दे दिया. उन्होंने बता दिया कि वो गंभीर राजनीति करना चाहते हैं,  और कर भी रहे हैं. उनमें मेहनत करने की ताकत है और देश के लोग उनसे प्यार करते हैं.””ठीक ऐसा ही 2014 के चुनाव के दौरान हुआ था, उस समय कांग्रेस के कई नेताओं ने मोदी को लेकर ऐसे बयान दिए थे जिससे मोदी को ही फायदा पहुंचा,,आज वही बीजेपी राहुल के साथ दोहरा रही है,,राजनीतिक जानकार  कहते हैं, कि “राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के तुरंत बाद लोकसभा में हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर सरकार को जिस आक्रामकता से घेरा उससे एक बात तो समझ में आ गई कि आने वाले समय में बीजेपी के आगे एक सबसे बड़ी चुनौती राहुल गांधी के रूप में होगी.””मोदी शब्द को लेकर राहुल गांधी के कोलार में दिए गए वक्तव्य पर चार साल बाद सज़ा दी गई. उन्हें अधिकतम दो वर्ष की सज़ा दी गई थी. इससे उनकी संसद की सदस्यता चली गई. इस घटना ने उनके राजनीतिक भविष्य पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया था. इस मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने जो टिप्पणी की वो राज्य स्तर की जूडिशियरी पर गंभीर चीज़ों को रेखांकित करती है।

 

क्या कहा वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने- 

लोकसभा में वापसी पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, कि “लोकसभा की सदस्यता वापस होने की स्थिति में राहुल गांधी फिर केंद्रीय भूमिका में होंगे. लेकिन इससे विपक्ष के नए गठबंधन ‘इंडिया’ में कुछ उथल-पुथल हो सकती है. हां वो विपक्ष के केंद्र बिंदु ज़रूर होंगे क्योंकि सवाल उन पर होंगे और उनसे ही पूछे जाएंगे. बीजेपी उनको फिर खारिज करेगी, उन पर हमला करेगी. तो कांग्रेस उनका सामने आकर राहुल का समर्थन करेगी.  ऐसी स्थिति में वो केंद्र बिंदु तो बनेंगे ही बनेंगे।

 


 प्रधानमंत्री विपक्ष के नए गठबंधन को लेकर चिंतित-

अब अगर अविश्वास प्रस्ताव से पहले राहुल गांधी संसद में वापस आए हैं तो उसी आक्रामकता के साथ वो अपनी बातें रखेंगे क्योंकि वो मणिपुर हो कर आए हैं. वहां की स्थिति को देख कर आए हैं.””ऐसी स्थिति में 2024 के चुनाव को जीतकर सत्ता में वापसी करने की राह में राहुल गांधी बीजेपी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो सकते हैं “”बीजेपी लगातार राहुल गांधी को डिसक्रेडिट करने का प्रयास करती रही है. वो जितना राहुल गांधी को डिसक्रेडिट करने की कोशिश करती है, उनकी स्वीकार्यता उतनी ही बढ़ रही है. ठीक 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी के साथ हुआ था… बीजेपी की स्वीकार्यता पर सवाल उठ रहे हैं. माना ये भी जा रहा है कि प्रधानमंत्री विपक्ष के नए गठबंधन को लेकर चिंतित हैं जब भी एनडीए की बात करते हैं तो विपक्ष के नए गठबंधन ‘इंडिया’ पर भड़कते जरुर हैं.” जिस इंडिया शब्द को लेकर कभी वो गर्व से कहते आए है की वोट फॉर इंडिया, वोट फॉर इंडिया अब उसी इंडिया को लेकर प्रधानमंत्री अपने बयानों में तुलना करते दिखाई देते हैं।

 

 


क्या कहा अशोक वानखेड़े ने- 
वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े ज़ोर देकर कहते हैं, “राहुल गांधी कभी ‘पप्पू’ नहीं थे. ये बनाए गए थे. इसमें जहां बीजेपी का हाथ था वहीं कांग्रेस के नेताओं का भी हाथ था. कांग्रेसियों का ज़्यादा था.””अशोक वानखेड़े मानते हैं आज जब हिंडनबर्ग और मणिपुर जैसे मुद्दे सामने हैं तो ये भी पूछा जा रहा है कि क्या नोटबंदी, जीएसटी, चीन, कोविड, महंगाई, किसानों पर लाए गए तीन बिल, मणिपुर पर उठाए गए सवाल क्या ग़लत थे. ये सभी सवाल बाद में विकराल रूप लेकर सामने आये हैं .”वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े ये भी बताते हैं कि “राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद को ठुकराया है. इसके बाद भी उन पर परिवारवाद का टैग लगता है, क्योंकि बीजेपी के तरकश में अब कोई तीर बचा नहीं. वर्तमान में जब आपके पास बताने के लिए कुछ बचा ही नहीं तो भविष्य की जीत के लिए  उसी पुराने परिवारवाद, नेहरू की बात कर के इतिहास के पीछे छुपते हैं. यही बीजेपी करती आ रही है।

 

क्या कहा नीरजा चौधरी ने- 

देश में इस साल कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. उसमें कांग्रेस और बीजेपी की स्थिति फिलहाल कैसी दिखती है.सीनियर पत्रकार और राजनीतिक जानकर नीरजा चौधरी कहती हैं,अगर ये दिखा कि राहुल गांधी जैसे ही कांग्रेस की केंद्रीय भूमिका में आएंगे नए गठबंधन ‘इंडिया’ की कमजोरी या कहें डर सामने आ जाएगा. पटना में जो मीटिंग हुई थी उसमें मेरी जानकारी में आया कि राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने यह स्पष्ट कर दिया कि वो पूरी तरह सहयोग करेंगे. उसमें उन्होंने यह बता दिया कि ऐसा नहीं है कि मैं प्रधानमंत्री के पद का दावेदार होना चाहता हूं, ये चीज़ें नतीजे आने पर तय होती रहेंगी. उस दौरान उन्होंने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को ही आगे रखा है. यह राहुल गांधी की तरफ से एक रोचक पहल रही है.”नीरजा चौधरी कहती हैं, “राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ज़रूर उत्साहित कर दिया है. लेकिन हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस को मिली जीत को राहुल गांधी से नहीं जोड़ सकते. वहां मिली जीत वहां के स्थानीय नेतृत्व की वजह से हुई।

क्या कहा अशोक वानखेड़े ने- 

इस पर अशोक वानखेड़े कहते हैं, कि”कांग्रेस इन विधानसभा चुनावों में ऊंचे मनोबल के साथ जा रही है. जब केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व मजबूत होगी तो निचले स्तर पर एकजुटता भी बढ़ेगी, जिसका अच्छा उदाहरण हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनाव में देखने को मिला. आने वाले समय में ये देखेंगे कि तेलंगाना में कांग्रेस की सीटें क्या बढेगी ? वहीं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी बैकफ़ुट पर दिखती है.”वानखेड़े बताते हैं  कि बीजेपी का संगठन कमज़ोर पड़ रहा है. उन्होंने कहा, “हर जगह ब्रांड मोदी मात खाते हुए दिखाई देता है. पन्ना प्रमुख तब काम करेंगे जब कार्यकर्ता साथ होगा. कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहा है. उनको लग रहा है कि उनके नेताओं की बेइज्जती हो रही है. केंद्र के कुछ लोग ही प्रदेश की सभी चीज़ें तय कर रहे हैं. इससे  बीजेपी को बहुत अधिक नुकसान होता दिख रहा है. तो वर्तमान परिस्थिति में बीजेपी आगामी चुनावों को जीतती हुई दिखाई दे नहीं रही है।
नीरजा चौधरी कहती हैं, “राज्यों में कांग्रेस की जीत वहां के स्थानीय नेतृत्व की वजह से मिलेगी. राजस्थान में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच एक समझौता करवा दिया है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ हैं, वहां स्थानीय नेतृत्व मजबूत है. वहां इतने सालों की एंटी इनकम्बेंसी है.”अशोक वानखेड़े कहते हैं, “विधानसभा चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा गया तो इसके जो भी नतीजे आएंगे उसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा. याद करें कि कर्नाटक में उन्होंने कहा था कि नब्बे गालियां मुझे दी जा रही हैं, जिसका बदला आपको लेना है. तो हार होने की स्थिति में यह उनकी हार है जिसका असर 2024 के चुनाव पर ज़रूर पड़ेगा।

क्या मोदी ही होंगे PM या कोई और करेगा NDA का नेतृत्व- 
नीरजा चौधरी भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखती हैं कि अगर 2024 के चुनाव से पहले ‘इंडिया’ गठबंधन ने अपनी एकता दिखाई और सोच समझ कर उम्मीदवार उतारे तो उसका असर पड़ेगा.लेकिन साथ ही वो ये भी कहती हैं कि, “विपक्षी गठबंधन ने बहुत अच्छा प्रदर्शन भी किया तो बीजेपी की 60-70 सीटें कम हो जाएंगी..  हो सकता है उन्हें गठबंधन की सरकार बनानी पड़े लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ही रहेगी. उन्होंने एनडीए में 38 दलों को इकट्ठा कर लिया है. हालांकि ऐसी स्थिति में सरकार तो बीजेपी बनाएगी लेकिन नेतृत्व पर सवाल उठ सकता है कि क्या मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे या कोई और NDA का नेतृत्व करेगा।
 
 
 
 

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