Uttarakhand: वन विभाग में करोड़ों का घोटाला, अपने ऐशो-आराम पर लुटा दिया फंड !
उत्तराखंड में कैग यानि CAG की रिपोर्ट आने के बाद उत्तराखंड सरकार के वन विभाग में हड़कंप मचा हुआ है. कैग ने राज्य में 2019-20 से 2021-23 के दौरान कैंपा के तहत हुए कार्याें का मूल्यांकन किया है। इसमें कई अनियमितता का खुलासा किया.. CAG रिपोर्ट में वन विभाग के CAMPA फंड में घोटालों की लंबी फेहरिस्त सामने आयी जिससे वन विभाग के अधिकारीयों के साथ-साथ वन मंत्री सुबोध उनियाल पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
उत्तराखंड में वनों के संरक्षण और पुनर्वनीकरण के लिए आवंटित फंड को घोर लापरवाही और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया गया। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताजा रिपोर्ट (2019-2022) में ₹13.86 करोड़ की अवैध निकासी और वित्तीय अनियमितताओं का पर्दाफाश हुआ है, सवाल यही है कि क्या वन मंत्री को इस घोटाले का कुछ भी पता नहीं था, जो इतने साल तक उनके सामने नहीं आ सका.. सबसे पहले आपको बताते हैं कि CAMPA फंड कहां-कहां बर्बाद हुआ।
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सरकारी अधिकारी ऐशो-आराम का सामान खरीदते रहे जिनमें iPhones, लैपटॉप, फ्रिज और कूलर की खरीद की बात सामने आयी है सरकारी इमारतों की मरम्मत और साज-सज्जा के पैसे से वन विभाग के ऑफिस और अफसरों के आवास चमकते रहे, लेकिन जंगल उजड़ते रहे जंगल बचाने के बजाय CAMPA फंड को कानूनी लड़ाइयों पर लुटाया गया ऐसी जगह को पौध रोपण के लिए चुना गया जहां हकीकत में पेड़ टिक ही नहीं सकते थे. 7 मामलों में 8 साल से ज्यादा की देरी से वृक्षारोपण किया गया.. देर से वृक्षारोपण, लागत में बेतहाशा बढ़ोतरी से धन को लुटाया गया वनीकरण की स्थिति एकदम नाकाम रही. CAG के अनुसार, लगाए गए पेड़ों का सिर्फ 33.51% ही जिंदा बचा, जबकि Forest Research Institute के मानकों के अनुसार 60-65% सफलता दर होनी चाहिए थी.. मतलब वन विभाग लगाए गए पेड़ों को भी बचाने में नाकमयाब रहा, अफसरों की मिलीभगत ऐसी कि बिना सही जांच किए ही भूमि को उपयुक्त बताया गया और ऐसे अधिकारीयों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इतना ही नहीं सरकार की बड़ी लापरवाही और वित्तीय घोटाले का भी कैग की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है विभाग द्वारा 275 करोड़ का ब्याज नहीं चुकाया गया CAMPA ने कई बार अनुरोध किया, लेकिन राज्य सरकार ने 2019-22 के दौरान ब्याज नहीं चुकाया. 76.35 करोड़ के मंजूर प्लान पर कोई फंड जारी नहीं किया गया. सरकार ने स्वीकृत योजनाओं पर भी पैसा नहीं दिया, जिससे परियोजनाएं ठप पड़ी रहीं जबकि जुलाई 2020 से नवंबर 2021 के बीच CEO ने Head of Forest Force की अनुमति के बिना फंड जारी किया, जो नियमों के खिलाफ था बिना केंद्र की मंजूरी के जंगलों की कटाई की गयी, राज्य सरकार ने केंद्र की मंजूरी के बिना ही जंगलों को उद्योगों और इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए सौंप दिया।
ये हाल वन विभाग के तब हैं जब उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाओं में साल दर साल बेतहाशा वृद्धि हो रही है। 2002 में जंगल की आग की 922 घटनाएं हुई थीं जिनकी संख्या 2024 में 21 हजार पार हो गई। इन घटनाओं में एक लाख 80 हजार हेक्टेयर से अधिक जंगल जल गए, भारतीय वन सर्वेक्षण की हाल में जारी हुई रिपोर्ट पर गौर करें तो नवंबर 2023 से जून 2024 के बीच देश में वनों में दो लाख से अधिक घटनाएं हुईं। इनमें सर्वाधिक 74% की वृद्धि उत्तराखंड में रिकॉर्ड की गई। इसी कारण वनाग्नि में पिछले वर्ष 13वें नंबर पर रहा उत्तराखंड अब पहले स्थान पर है, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी में न्याय मित्र की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि उत्तराखंड में वनाग्नि प्रबंधन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी है इसमें अग्निशमन उपकरणों, गश्ती वाहन और समन्वय के लिए संचार उपकरणों की कमी शामिल है.. लेकिन इस पर धायण देने के बजाय अधिकारी पैसा अपने ऐशो-आराम का सामान जुटाने में पैसे लुटा रहे हैं।
वन विभाग का काम करने का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अभी हाल ही में हल्द्वानी में आग से बचाने के लिए की जाने वाली कंट्रोल बर्निग में कई नए लगाए पौधे भी जल गए इस पुरे घटनाक्रम से वन विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं कि वन विभाग आग बुझाने के बजाय नए पौधे ही जलाने में लग गया है,,, अब सवाल ये है इस सबके जिम्मेदारों पर क्या कोई कार्रवाई होगी भी या नहीं CAG की रिपोर्ट ने वन विभाग की लापरवाही और भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया है,,, क्या उत्तराखंड सरकार दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करेगी या ये रिपोर्ट भी अन्य घोटालों की तरह फाइलों में ही दफन हो जाएगी ?