वसुंधरा का सबसे बड़ा इम्तेहान,वसुंधरा राजस्थान में राज करेंगी या फिर दिल्ली का रास्ता पकड़ेंगी ?

वसुंधरा का सबसे बड़ा इम्तेहान,वसुंधरा राजस्थान में राज करेंगी या फिर दिल्ली का रास्ता पकड़ेंगी ?

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राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है। 74 फीसदी की बंपर वोटिंग भी यह संकेत दे रहे हैं कि राजस्थान में पांच साल बाद सरकार बदलने की परंपरा कायम रह सकती है। मतलब बीजेपी की राह आसान हो सकती है,,,चुनाव से पूर्व के सर्वेक्षणों में बीजेपी ने कांग्रेस पर बढ़त ली थी। सट्टा बाजार भी बीजेपी को 120 से ज्यादा सीटें देकर सरकार बदलने की संभावना को प्रबल बना रहा है। बीजेपी ने मिजाज भांपते हुए पहले ही कई नेताओं को विधानसभा चुनाव मैदान में उतारकर संकेत दिए हैं,, कि राजस्थान को दस साल बाद नया नेतृत्व मिल सकता है। सीएम की रेस में राज्यवर्धन सिंह राठौर, दीया और गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम आगे है। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व लोकसभा चुनावों से पहले नया चेहरे पर दांव लगाने के मूड में है। चुनाव से पहले राजकुमारी दीया कुमारी को नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान तवज्जो देकर बता दिया था कि राजस्थान में पार्टी ने वसुंधरा राजे की काट ढूंढ ली है।

 क्या नए चेहरों को मौका देकर वसुंधरा को साफ़ -साफ़ संदेश देने की कोशिश की गयी है ?

तो आपको बता दें कि 2002 में भैरों सिंह शेखावत के उपराष्ट्रपति बनने के बाद राजस्थान की कमान वसुंधरा राजे को सौंपी गई। तब बीजेपी के पुराने नेताओं को यह बदलाव रास नहीं आया। पार्टी के बड़े नेता गुलाबचंद कटारिया ने राजे का विरोध किया। हालांकि तत्कालीन केंद्रीय नेतृत्व के आशीर्वाद से वसुंधरा राजे 2003 में मुख्यमंत्री बनीं। अपने कार्यकाल में वसुंधरा महिलाओं में काफी लोकप्रिय रहीं, मगर गुटबाजी बनी रही। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की। मोदी लहर का आगाज हो चुका था। पार्टी को 163 सीटें मिलीं और कांग्रेस सिर्फ 21 विधानसभा सीटों पर सिमट गईं। वसुंधरा दोबारा मुख्यमंत्री बनी। इसके बाद से ही वसुंधरा के नेतृत्व पर सवाल उठने शुरु हो गए। 2023 विधानसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में गुटबाजी खत्म करने के लिए बड़ी कवायद की। गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बना दिया गया और राजस्थान में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला किया गया। जनता को नए चेहरे का संदेश देने के लिए ही सांसद राज्यवर्धन राठौड़, बाबा बालक नाथ, किरोड़ी लाल मीना, भागीरथ चौधरी और देवजी पटेल को पार्टी ने विधानसभा चुनाव में उतार दिया।

 

 वसुंधरा राजे से नरेंद्र मोदी क्यों नाराज चल रहे हैं ?

दरअसल वसुंधरा राजे और नरेंद्र मोदी के बीच दूरियां 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही बढ़ने लगी थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद जीत का सेहरा समर्थकों ने वसुंधरा को पहना दिया, जबकि उस चुनाव में नरेंद्र मोदी के जादू चला था। मध्यप्रदेश समेत अन्य राज्यों के नेता जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी को दे रहे थे। 2014 में वसुंधरा राजे ने फिर चूक कर दी। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटें जीत लीं। मोदी लहर में बड़ी जीत के मायने निकाले गए, तब वसुंधरा राजे ने इसका श्रेय सामूहिक नेतृत्व को दिया। उन्होंने नरेंद्र मोदी को जीत का श्रेय देने से परहेज किया। बताया जाता है कि 2014 में नरेंद्र मोदी जब मंत्रिमंडल का गठन कर रहे थे, तब वसुंधरा राजे ने उन्हें अपने समर्थकों के नाम भेजे। तब उन्होंने नरेंद्र मोदी पर अपने समर्थकों को केंद्र में मंत्री बनाने का दबाव बनाया। बात तब बिगड़ गई जब वसुंधरा शपथ ग्रहण समारोह में नहीं पहुंची और दिल्ली के बीकानेर हाउस में बैठी रहीं। इसके बाद से दोनों नेताओं में अनबन शुरू हो गई। इसके बावजूद अड़ो और लड़ो पर कायम रहने वाली वसुंधरा अपने जनाधार के कारण राजस्थान में प्रासंगिक बनी रहीं।

 

 

 बीजेपी राजस्थान में नया नेतृत्व क्यों चाह रही है ?

इस पर एक रणनीति बीजेपी की तरफ से दिखाई देती है,,,, पार्टी न सिर्फ राजस्थान में बल्कि पूरे देश के कई राज्यों में एक नये नेतृत्व को खड़ा करना चाहती है, जो अगले 25 साल तक लीड कर सकें। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को राज्यों में ताकतवर नेतृत्व की जरूरत होगी, इसलिए युवा नेताओं में संभावना टटोली जा रही हैं। भैरों सिंह शेखावत भी 76 साल की उम्र में राजस्थान की जिम्मेदारी युवा नेताओं को सौंप दी थी। जब वसुंधरा राजे ने कमान संभाली थी, तब वह करीब 51 साल की थी। अब वह 71 वर्ष की हैं और राजस्थान में युवा नेतृत्व को कमान सौंपने की बारी फिर आ गई है। दीया कुमारी और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ युवा चेहरे हैं, जिनमें भविष्य की संभावनाएं दिख रही हैं। बताया जा रहा है कि आरएसएस भी बीजेपी में युवा चेहरों को आगे लाने के पक्ष में है। सवाल यह है कि अगर 3 दिसंबर के बाद राजस्थान में सरकार बदलती है तो वसुंधरा राजे को क्या रोल मिलेगा ? सबसे बड़ा सवाल कि पूर्व मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा के सहयोग के बिना राजस्थान में सरकार कैसे चलेगी? क्योकि राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा समर्थकों की संख्या काफी है,,,जो किसी भी तरह का विवाद होने की स्तिथि में बीजेपी हाईकमान को असहज कर सकते हैं,,, चर्चा ये भी है कि वसुंधरा को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देकर संतुष्ट किया जाएगा और 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद उनकी केंद्र की राजनीति में एंट्री हो सकती है।लेकिन सबसे अहम सवाल क्या वसुंधरा इस सब के लिए तैयार होगी,,क्योकि वो पहले भी साफ़ कह चुकी है कि वो राजस्थान से कहीं नहीं जा रही,,,मतलब साफ़ है कि बीजेपी हाईकमान के लिए वसुंधरा को राजस्थान से अलग करना काफी मुश्किल और चुनौती पूर्ण भी हो सकता है,,,मतलब राजस्थान में बीजेपी की जीत की स्तिथि के बाद वसुंधरा का सबसे बड़ा इम्तेहान होना लगभग तय है,,,,,अब जल्द ही वक्त बताएगा कि वसुंधरा राजस्थान में राज करेंगी या फिर दिल्ली का रास्ता पकड़ेंगी ?

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