लोकसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे पर सहमति बन गई है। संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में पांच राज्यों के लिए सीट बंटवारे का एलान किया गया है। AAP और कांग्रेस के बीच दिल्ली, हरियाणा, गोवा, गुजरात और चंडीगढ़ की सीटों को लेकर आपसी सहमति बन गई है।
जानिए कौन कहां से लड़ेगा चुनाव?
आपको बता दें कि दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों में से 4 पर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ेगी और तीन सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी अपनी किस्मत को आजमाएंगे।
दिल्ली में लोकसभा की हैं 7 सीटें-
दिल्ली में AAP चार पर लड़ेगी
नई दिल्ली
वेस्ट दिल्ली
साउथ दिल्ली
ईस्ट दिल्ली
कांग्रेस तीन सीटों पर लड़ेगी चुनाव-
चांदनी चौक
नॉर्थ ईस्ट
नॉर्थ वेस्ट
गुजरात में 26 लोकसभा सीटें
कांग्रेस की हैं – 24
AAP की हैं – 2 (भरूच और भावनगर)
हरियाणा में 10 लोकसभा सीटें
9 सीटें पर कांग्रेस लड़ेगी चुनाव
AAP लड़ेगी एक सीट (कुरुक्षेत्र) पर चुनाव
चंडीगढ़ और गोवा की सीटों पर हुआ ये फैसला-
चंडीगढ़ में कांग्रेस का प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा।
गोवा में दोनों सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी।
पंजाब में नहीं बन पाई बात-
इसके अलावा AAP और कांग्रेस ने पंजाब में अलग-अलग चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। कांग्रेस महासचिव और सांसद मुकुल वासनिक ने बताया कि कांग्रेस और AAP के बीच आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सीट बंटवारे पर सहमति बन गई है। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ पर लंबी चर्चा के बाद अंत में यह निर्णय लिया गया कि कांग्रेस का उम्मीदवार वहां से चुनाव लड़ेगा।
‘देश को जिताने के लिए हुआ INDI गठबंधन का जन्म’
AAP सांसद संदीप पाठक ने कहा कि हर राज्य की अपनी राजनीतिक परिस्थिति है और उन्हीं परिस्थितियों को देखकर चुनाव जीतने के उद्देश्य से ये फॉर्मूला बनाया गया है। INDI गठबंधन का जन्म देश को जिताने के लिए हुआ है, देश की जनता को जिताने के लिए हुआ है किसी को हराने के लिए नहीं हुआ है।’
पाखरो रेंज घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग प्रकरण से संबंधित पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत समेत अन्य लोगों को ईडी ने अब समन भेजे हैं। ईडी ने हरक सिंह रावत को 29 फरवरी को पूछताछ के लिए अपने कार्यालय बुलाया है। इसके अलावा अन्य को अलग-अलग तिथियों में उपस्थित होने के लिए कहा गया है।
ईडी के छापे में कई जगहों से एक करोड़ रुपये से अधिक का कैश और 80 लाख रुपये से अधिक के जेवर बरामद हुए थे। ईडी ने पिछले दिनों हरक सिंह रावत, आईएफएस अफसर सुशांत पटनायक आदि के यहां छापे मारे थे। इस छापे में पटनायक के घर पर इतना कैश बरामद हुआ था कि वहां पर नोट गिनने के लिए मशीन भी मंगाई गई थी।
इसके अलावा पूर्व डीएफओ किशनचंद व अन्य अफसरों के घर भी कैश व गहने ईडी ने जब्त किए थे। इसी क्रम में ईडी ने रावत की करीबी लक्ष्मी राणा के लॉकर खुलवाकर वहां से 45 लाख रुपये के जेवर बरामद किए थे। इस कार्रवाई में ईडी ने करीब 80 करोड़ रुपये के जमीनों के कागजात जब्त किए। साथ ही छह लॉकर को भी फ्रीज कराया था।
ईडी इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जांच कर रही है। अब ईडी की ओर से इन सभी को समन भेजकर पूछताछ के लिए अपने कार्यालय बुलाया है। ईडी इस कैश और जमीन व सोने के जेवरों के संबंध में पूछताछ करेगी। सूत्रों के मुताबिक, ईडी को पटनायक के घर से कई लिफाफे भी अफसरों के नाम के मिले थे।
उन्हें भी ईडी जल्द समन भेजकर पूछताछ के लिए बुला सकती है। ईडी की इस कार्रवाई से घपले के वक्त तैनात रहे सभी अधिकारियों और नेताओं के खेमे में खलबली मची हुई है। सभी अपने-अपने हिसाब से ईडी की इस कार्रवाई से पार पाने का प्रयास कर रहे हैं।
पांच जिलों में नए साल से नई मेट्रो शराब बिकेगी। इस नई शराब को विदेशी मदिरा की दुकानों से बेचा जा सकेगा। उत्तराखंड गढ़वाल के इन पांचों जिलों में देसी शराब की बिक्री नहीं होती है। ऐसे में 40 प्रतिशत तीव्रता वाली इस शराब को देसी और विदेशी शराब के बीच का उत्पाद माना जा रहा है।
इस शराब का निर्माण प्रदेश की डिस्टीलरियों में ही किया जा सकेगा। इसके लिए 31 मार्च से पहले राजस्व समेत विभिन्न नियम कायदे तय कर दिए जाएंगे। गौरतलब है कि गढ़वाल के उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, पौड़ी और चमोली में देसी शराब की बिक्री नहीं होती है। इन जगहों के लिए अब नई आबकारी नीति में नई तरह की शराब की बिक्री की व्यवस्था की गई है।
इस शराब का नाम मेट्रो होगा। बता दें कि भारत निर्मित अंग्रेजी शराब की तीव्रता 42.8 होती है। जबकि, देसी शराब 36 और 25 प्रतिशत की तीव्रता की होती है। लेकिन, मेट्रो की तीव्रता 40 प्रतिशत होगी। यानी इसमें एल्कोहल की मात्रा 40 प्रतिशत होगी है। ऐसे में लंबे समय से इन जनपदों में देसी शराब की बिक्री न होने के चलते इसे देसी का ही विकल्प माना जा रहा है। हालांकि, इसके लिए अलग से ठेके नहीं खोले जाएंगे। इसे विदेशी मदिरा दुकानों से ही खरीदा जा सकेगा।
देसी शराब की दुकानों पर समुद्र आयातित बीयर की बिक्री की अनुमति नहीं-
आगामी 31 मार्च मेट्रो शराब की आपूर्ति दर, देय एमजीडी, एक्साइज ड्यूटी, थोक लाइसेंस संबंधी नियम काय तय कर दिए जाएंगे। मेट्रो शराब फलों और वनस्पतियों के स्वाद से युक्त उच्च गुणवत्ता युक्त स्प्रिट से प्रदेश की डिस्टीलरियों में ही बनेगी। इसके अलावा भी नई आबकारी नीति में कई तरह की नई व्यवस्थाएं की गई हैं। देसी शराब की दुकानों पर समुद्र आयातित बीयर की बिक्री की अनुमति नहीं होगी। हालांकि, इन दुकानों से देश में निर्मित बीयर को बेचा जा सकेगा।
बीयर हो जाएगी महंगी-
नए वित्तीय वर्ष से बीयर महंगी होने जा रही है। इस बार बीयर को अधिभार की परिधि में लाया गया है। इसके साथ ही इस पर हैंडलिंग चार्ज भी लगाया गया है। इससे माना जा रहा है कि सभी तरह की बीयर पहले से काफी महंगी हो जाएगी। इसके साथ ही शराब के दामों पर भी इस बार असर पड़ेगा। बताया जा रहा है कि नई व्यवस्थाओं से प्रदेश में शराब पहले से अधिक महंगी हो जाएगी। नशा विरोधी प्रचार प्रसार के लिए इस बार एक करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया है।
कहीं भी हो सकेगा शराब का परिवहन-
दुकानदार अपनी शराब को जिले और प्रदेश में कहीं भी ले जा सकते हैं। इसके लिए जिले में यदि किसी दूसरी दुकान पर ले जाना है तो 50 रुपये प्रति पेटी शुल्क देना होगा। जबकि, जिले से बाहर ले जाने के लिए इस शुल्क को 100 रुपये किया गया है। परिवहन के लिए आबकारी आयुक्त से अनुमति ली जाएगी। हालांकि, इस परिवहन की ओर से इसको तभी किया जा सकेगा जब राजस्व की हानि न होने की गारंटी दी जाए।
दूसरा विभाग नहीं करेगा दुकानों की चेकिंग
दरअसल, विभिन्न तरह की शिकायतों पर अन्य विभाग भी शराब के ठेकों पर चेकिंग कर सकते हैं। मसलन टैक्स, पुलिस आदि। लेकिन, अब इसकी अनुमति शर्तों के साथ दी जाएगी। इसके लिए 48 घंटे पहले जिलाधिकारी से अनुमति ली जाएगी। इसके बाद ही चेकिंग की जा सकती है। ऐसे में माना यह भी जा रहा है कि यदि अनियमितताओं की शिकायत आज है तो दो दिन बाद वह रहेंगी या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के खिलाफ सीबीआई ने कार्रवाई की है। सीबीआई ने उनके परिसरों समेत 30 से अधिक स्थानों पर छापेमारी की है। न्यूज एजेंसी एएनआई सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली में गुरुवार सुबह से मलिक के यहां कार्रवाई चल रही है।
जानकारी मिली है कि जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के दिल्ली स्थित घर पर CBI ने छापेमारी की है। दरअसल, सीबीआई ने हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट मामले में यह छापा मारा है। बीमा घोटाले में सीबीआई मलिक के खिलाफ कार्रवाई कर चुकी है। बीमा घोटाले के मामले में सीबीआई सत्यपाल मलिक और उनके करीबियों के ठिकानों पर छापा मार चुकी है।
मुझे 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी: सत्यपाल मलिक
23 अगस्त 2018 से 30 अक्टूबर 2019 के बीच जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने दावा किया था कि उन्हें दो फाइलों को मंजूरी देने के लिए 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी। इसके बाद सीबीआई ने पिछले साल अप्रैल में एक मामला दर्ज किया था।
इस मामले में जांच एजेंसी ने कई अधिकारियों और व्यक्तियों से जुड़े परिसरों पर पिछले तीन मौकों पर तलाशी ली थी। मामला दर्ज करने के बाद सीबीआई ने पिछले साल अप्रैल में 10 स्थानों पर और जून 2022 में 16 स्थानों पर तलाशी ली। इस साल मई में भी 12 स्थानों पर तलाशी ली गई थी।
कई अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया-
सीबीआई ने पहले कहा था, “2019 में किरू हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट (एचईपी) के लगभग 2,200 करोड़ रुपये के सिविल कार्यों का ठेका एक निजी कंपनी को देने में कदाचार के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।”
एजेंसी ने चिनाब वैली पावर प्रोजेक्ट्स (पी) लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष नवीन कुमार चौधरी और अन्य पूर्व अधिकारियों एम एस बाबू, एम के मित्तल और अरुण कुमार मिश्रा और पटेल इंजीनियरिंग लिमिटेड के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि पिछले 3-4 दिनों से मैं बीमार हूं और अस्पताल में भर्ती हूं। इसके वावजूद मेरे मकान में तानाशाह द्वारा सरकारी एजेंसियों से छापे डलवाए जा रहे हैं। मेरे ड्राइवर, मेरे साहयक के ऊपर भी छापे मारकर उनको बेवजह परेशान किया जा रहा है। में किसान का बेटा हूं, इन छापों से घबराऊंगा नहीं। मैं किसानों के साथ हूं। सत्यपाल मलिक (पूर्व गवर्नर)
2024 का लोकसभा चुनाव देश की दहलीज पर खड़ा है, सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की झाड़ियां लगा रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं कि आरोप और प्रत्यारोप भारतीय लोकतंत्र के चुनावों में ब्रह्मास्त्र से भी बड़े अस्त्र है लोकसभा के चुनाव से पहले जनता को अपने पक्ष में करने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष आरोप -प्रत्यारोपों के साथ-साथ अपने कार्यकाल की उपलब्धियां भी गिना रहे हैं चलो उपलब्धियां गिनाने तक तो ठीक है मगर ये एक- दूसरे के कार्यकाल को अपशब्दों से भी अलंकृत कर रहे हैं बीजेपी के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी NDA ने कांग्रेस के 2004 से 2014 तक के कार्यकाल को अर्थव्यवस्था की बदहाली के आधार पर विनाश काल कहा जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलाइंस यानी UPA ने बीजेपी के 2014 से 2024 तक के कार्यकाल को अन्याय काल की संज्ञा दी. अब प्रश्न यह उठता है कि किसका कार्यकाल सबसे बेहतर रहा बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का या कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए का।
हाल ही में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए ने अपने और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के कार्यकाल के दौरान की आर्थिक नीतियों की तुलना के लिए एक श्वेत पत्र जारी किया इस श्वेत पत्र में एनडीए ने 2004 से 2014 तक की यूपीए के कार्यकाल को विनाश काल की संज्ञा दी तथा 2014 से 24 तक के स्वयं के कार्यकाल को अमृत काल कहा वहीं एनडीए के इस फैसले के जवाब में कांग्रेस ने एक ब्लैक पेपर जारी किया और 2014 से 24 तक के एनडीए के कार्यकाल को 10 साल अन्याय काल की संज्ञा दी इस बेहतर दिखने की प्रतियोगिता पर मुझे एक शेर याद आता है “खुद को ऊंचा दिखाने के लिए, दूसरे को नीचा दिखाओ. कोई तुम्हें ऊंचा माने या ना माने, खुद से ही मनवाओ”. दोनों ही दस्तावेज़ 50 से 60 पन्ने के हैं और इनमें आंकड़े और चार्ट की मदद से आरोप और दावे किए गए हैं।
बीजेपी ने कांग्रेस पर क्या क्या आरोप लगाए-
खैर बीजेपी ने अपने श्वेत पत्र में कांग्रेस पर बजट घाटे से भागने, कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला, 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, जैसे कई घोटालों की एक श्रृंखला बनाने का आरोप लगाया, और कहा कि इन घोटालों के कारण देश में निवेश की गति धीमी हुई , फलस्वरूप आर्थिक विकास पिछड़ता चला गया वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी जवाब देते हुए , एनडीए के कार्यकाल में बेरोजगारी बढ़ने नोटबंदी करने और आधे अधूरे तरीके से जीएसटी व्यवस्था लागू करने, जैसे विनाशकारी आर्थिक फैसले लेने का आरोप लगाया और कहा कि इन फैसलों से अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है।
कांग्रेस के अनुसार उसका दस्तावेज़ सत्ताधारी बीजेपी के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ‘अन्यायों’ पर केंद्रित है जबकि सरकार का जारी श्वेत पत्र यूपीए सरकार की आर्थिक गलतियों पर रोशनी डालने तक सीमित है अर्थव्यवस्था को लेकर कांग्रेस का कहना है कि पीएम मोदी का कार्यकाल भारी बेरोजगारी, नोटबंदी और आधे-अधूरे तरीके से गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) व्यवस्था लागू करने जैसे विनाशकारी आर्थिक फ़ैसलों, अमीरों-गरीबों के बीच बढ़ती खाई और निजी निवेश के कम होने का गवाह रहा है दूसरी तरफ बीजेपी ने बैड बैंक लोन में उछाल, बजट घाटे से भागना, कोयला से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम तक हर चीज़ के आवंटन में घोटालों की एक श्रृंखला और फैसला लेने में अक्षमता जैसे कई आरोप कांग्रेस पर लगाए हैं बीजेपी का कहना है कि इसकी वजह से देश में निवेश की गति धीमी हुई है।
विभिन्न विश्लेषणों से शायद ये पता चले कि दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे के बारे में जो दावे कर रही हैं, कुछ हद तक वो सही बातें भी हैं दोनों ओर के आरोपों में कुछ सच्चाई है. दोनों ने बुरे फैसले लिए,, कांग्रेस ने टेलीकॉम और कोयला में और बीजेपी ने नोटबंदी में,, यूपीए और एनडीए के एक दूसरे पर लगाए गए आरोप सत्य है या भ्रामक इसके लिए हमने सबसे पहले दोनों पार्टियों के पिछले 10-10 वर्षों के दौरान लिए गए आर्थिक फैसलों का आंकड़ों सहित अध्ययन किया, और आज हम इन आंकड़ों का विस्तृत विवरण आपके सामने रख रहे हैं, जिससे आप स्वयं यह फैसला ले सके कि किसका 10 वर्ष का कार्यकाल बेहतर रहा, यूपीए का 2004 से 2014 तक का या फिर एनडीए का 2014 से 2024 तक का।
अब बात जीडीपी की-
सबसे पहले बात करते हैं आर्थिक विकास के मुख्य संकेतक जीडीपी यानी ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट की, आईएमएफ के अनुसार -यूपीए के 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान 2008-09 के बीच के वैश्विक आर्थिक संकट को छोड़ दिया जाए तो औसत जीडीपी दर 8.1% रही, आपको बता दे 2008- 9 के दौरान पूरे विश्व में आर्थिक मंदी छाई हुई थी और लगभग आर्थिक गतिविधियां स्थिर हो गई थी, जबकि एनडीए के 10 वर्षों के कार्यकाल में 2020-21 में कोविड महामारी को छोड़ दिया जाए तो औसत जीडीपी दर 7.1% रही,, जो कि यूपीए के कार्यकाल की जीडीपी से एक प्रतिशत कम रही लेकिन सच ये है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक संकट के मुकाबले कोविड महामारी के कहर का असर अधिक था इसलिए ताज्जुब नहीं कि एनडीए सरकार के दौरान एक दशक का जीडीपी औसत कम रहा कोविड ने अर्थव्यवस्था के सामने जो बाधा पैदा की वो बहुत बड़ी थी इस महामारी ने इस दशक के दौरान कुछ सालों के लिए अर्थव्यवस्था की गति को धीमा कर दिया।
अब बात करते हैं भारतीय युवाओं की मुख्य आवश्यकता रोजगार की विश्लेषकों का मानना है कि रोजगार देने के मामले में बीजेपी सरकारों का अभी तक का इतिहास बहुत काला रहा,,, सच क्या है / इसकी वास्तविकता जानने के लिए हमने “सेंटर फॉर मॉनेटरी इंडियन इकॉनमी के Prowess IQ ” डेटाबेस का अध्ययन किया और पाया कि यूपीए के कार्यकाल के अंतिम वर्ष जनवरी 2014 में बेरोजगारी दर 5.42 पर्सेंट थी जबकि एनडीए के कार्यकाल के अंतिम वर्ष जनवरी 2024 में बेरोजगारी दर बढ़कर 6.57 % हो गई,
देखा जाए तो यह बेरोजगारी दर अब भी लगातार बढ़ती जा रही है, ,,जबकि एनडीए सरकार ने 2019 के अपने घोषणा पत्र में लाखों लोगों को रोजगार देने की बात कही थी सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, 2017-18 में बेरोज़गारी बीते 45 सालों में सबसे अधिक यानी 6.1% पर थी,, प्यू रिसर्च के अनुसार, 2021 की शुरुआत से अब तक 2.5 करोड़ से अधिक लोग अपनी नौकरी गँवा चुके हैं और 7.5 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा पर पहुँच चुके हैं, जिनमें 10 करोड़ मध्यम वर्ग का एक तिहाई शामिल है हालाँकि यहाँ एक बात और confusion पैदा करती है की ,गरीबी के आंकड़े विभिन्न माध्यमों से देखा जाए तो कई बार अलग अलग दिखाई देते हैं,, उसका आंकलन इस बात से भी लगाया जा सकता है की भारत में मोदी सरकार के द्वारा 60 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है खैर, हर साल देश की अर्थव्यवस्था को 2 करोड़ नौकरियाँ चाहिए लेकिन भारत में बीते दशक में हर साल केवल 43 लाख नौकरियाँ ही पैदा हुईं। इन आंकड़ों को देखकर पता चलता है कि वर्तमान मोदी सरकार पूर्व की मनमोहन सरकार से रोजगार देने के मामले में काफी पीछे रही।
अब बात देश की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार निर्यात की-
कहते हैं जिस देश में निर्यात अधिक और आयात कम होते हैं वहां की अर्थव्यवस्था संपन्न अर्थव्यवस्था मानी जाती है, चलो देखते हैं यूपीए और एनडीए के कार्यकालों में किसके समय निर्यात अधिक रहा,, “प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो के अनुसार” जहां 2004 में भारत से निर्यात 80 अरब डॉलर का होता था वह 10 सालों में साढ़े तीन गुना बढ़कर 2014 तक 300 अरब डॉलर का हो गया,,, फिर 2014 में एनडीए का कार्यकाल आया और उसके 10 सालों के दौरान निर्यात 300 अरब डॉलर से से बढ़कर 437 अरब डालर तक ही पहुंच पाया यानी निर्यात में मात्र डेढ़ गुना की वृद्धि हुई अर्थात यूपीए के समय के आधे, ये दोनों ही कई कारकों की वजह से हैं, जैसे भूमि अधिग्रहण और फैक्ट्रियों के लिए पर्यावरण की मंजूरी मिलने में मुश्किलें. साथ ही एक सच्चाई ये भी है कि भारत उस तरह वैश्विक व्यापार से नहीं जुड़ा है जैसा उसे होना चाहिए।लंबे समय से ये कारक देश के मैन्युफ़ैक्चरिंग और निर्यात वृद्धि को कम रखने का कारण रहे हैं देखा जाए तो यूपीए की तुलना में एनडीए इस मोर्चे पर भी असफल रही।
अब बात करते हैं अर्थव्यवस्था की रीढ़ देश के नागरिकों की,, किसी देश के समृद्ध नागरिक वहां के लिए संसाधन माने जाते हैं संयुक्त राष्ट्र का अभिकरण यूएनडीपी विभिन्न देशों के लिए मानव विकास सूचकांक जारी करता है. यह सूचकांक किसी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य , शिक्षा तथा जीवन स्तर पर आधारित होता है इस सूचकांक में देशो को रैंक दी जाती है यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक में जहां 2004 में भारत विश्व के 191 देश में 131 वे स्थान पर था,, वही आज 20 साल गुजरने पर भी हम एक स्थान नीचे गिरकर 2023 में 132 में स्थान पर आ गए है जो कि देश के लिए बहुत ही चिंताजनक है। इस पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा था ” कि फिजिकल कैपिटल बनाने में बहुत ध्यान दिया जा रहा है लेकिन ह्यूमन कैपिटल बनाने में और शिक्षा स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सुधार पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है” उन्होंने कहा कि सच्चाई ये है कि भारत में कुपोषण अफ़्रीकी देशों के कुछ हिस्सों से भी अधिक था यह ऐसे देश के लिए ‘अस्वीकार्य’ है जिसकी विकास दर दुनिया के अधिकांश हिस्से को पीछे छोड़ रही है।
2004 से 2013 के बीच भारत के एचडीआई मूल्य में 15 फीसदी का सुधार-
मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के मामले में भी एनडीए का प्रदर्शन यूपीए के मुकाबले बुरा रहा है यह सूचकांक, स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रगति, शिक्षा तक पहुंच और व्यक्ति के जीवन स्तर में प्रगति का मानक है 2004 से 2013 के बीच भारत के एचडीआई मूल्य में 15 फीसदी का सुधार हुआ, हालांकि यूएनडीपी के ताज़ा उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2014 और 2021 के बीच इसमें केवल 2 फीसदी का सुधार हुआ. अगर कोविड महामारी के दो सालों को छोड़ भी दिया जाए तो भी 2019 तक एचडीआई में, यूपीए के पांच सालों के 7 फीसदी के मुकाबले केवल 4 फीसदी का सुधार रहा है।
अब बात पूंजीगत निर्माण को लेकर,,, मोदी सरकार ने पूर्व की मनमोहन सरकार से सड़क निर्माण जैसे पूंजीगत व्यय पर अधिक ख़र्च किया, बात करें यूपीए सरकार के 10 सालों की तो इस दौरान 10 सालों में सिर्फ 27 हजार किलोमीटर सड़कों का निर्माण हुआ जबकि इस मामले में मोदी सरकार के 10 साल बेहतर साबित हुए,,,मोदी सरकार के 10 सालों में 54 हजार किलोमीटर के राष्ट्रिय राजमार्गो का निर्माण हुआ है. जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की बात करें तो एनडीए के शासनकाल में जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का जो हिस्सा होता है उसमें कमी आई है विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार जिन 10 सालों में यूपीए सरकार सत्ता में थी, उन सालों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का औसत 15 से 17 फीसदी के बीच था, वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल में ‘मेक इन इंडिया’ जैसी मुहिम और उत्पादन से जुड़ी छूट पर अरबों डॉलर खर्च करने के बावजूद, 2022 के लिए उपलब्ध ताज़ा आंकड़ों के अनुसार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का जीडीपी में हिस्सा गिरकर 13 फीसदी आ गया।
NDA vs UPA में आर्थिक प्रदर्शन में कौन आगे है ?
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तुत श्वेत पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के कार्यकाल के 10 वर्षों में देश का आर्थिक प्रदर्शन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के 10 वर्षों की तुलना में बेहतर रहा है,,,,इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीते 10 वर्षों में हालात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन सरकारी ऋण और आम सरकारी घाटा ऊंचे स्तर पर बना हुआ है,,, राजकोषीय घाटे की बात करें तो 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में इसका संशोधित अनुमान 5.8 के स्तर पर रहा जबकि 2013-14 में यह 4.4 के स्तर पर था।
ऐसा मोटे तौर पर इसलिए हुआ कि कोविड-19 ने कई तरह की बाधाएं पैदा की थीं। बहरहाल एक तथ्य यह भी है कि UPA सरकार को भी 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से जूझना पड़ा था जिसकी वजह से राजकोषीय घाटे में काफी इजाफा हुआ था। पर सच ये भी है की कोविड-19 महामारी का आर्थिक प्रभाव कहीं अधिक गहरा था केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 2024-25 में जीडीपी के 3.4 फीसदी के स्तर पर है। इससे न केवल अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी बल्कि सरकार को समय के साथ व्यय को सीमित करने का अवसर भी मिलेगा। एक बार निजी निवेश के गति पकड़ने के बाद सरकार पूंजीगत व्यय कम कर सकती है और अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत करने पर विचार कर सकती है। पूंजीगत व्यय की बात करें तो 2023-24 में यह कुल व्यय का 28 फीसदी था जबकि 2013-14 में यह उसका केवल 16 फीसदी था इस बीच NDA सरकार का राजस्व व्यय UPA की तुलना में धीमी गति से बढ़ा है, राजस्व व्यय में NDA के कार्यकाल में सालाना 9.9 फीसदी की दर से वृद्धि हुई जबकि उससे पहले के 10 वर्षों में यह 14.2 फीसदी की दर से बढ़ा था ।
अब कुछ और मुख्य बिंदु-
पहला मुद्रास्फीति- जो तब FY 2004 – FY 2014 के बीच मुद्रास्फीति का सीएजीआर 8.2% रहा जबकि वित्त वर्ष 2014 – वित्तीय वर्ष 23 के बीच मुद्रास्फीति का सीएजीआर 5.0% रहा है।
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP Per Capita वित्त वर्ष 2005 से वित्त वर्ष 2014 के बीच तब :3,889 $ जबकि वित्त वर्ष 2015-वित्त वर्ष 23 के बीच: $6,016 रही।
वित्त वर्ष 2014 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय तब 1.7% था,जबकि वित्त वर्ष 2024 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय अब 3.2% है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तब $305 बिलियन था जबकि अब $596.5 बिलियन है बहुआयामी गरीबी 2013-14 के अंत तक तब 29.2% थी, जबकि अब 2023 के अंत तक अनुमानित 11.3% है।
अप्रत्यक्ष कर की दर तब 15% अब 12.2% तक है,स्टार्ट-अप की संख्या 2014 तक,, तब मात्र 350 थी, जबकि 31 दिसंबर 2023 तक इनकी संख्या अब जबरदस्त तरीके से बढ़ कर 1,17,257 हो गयी है।
मेट्रो रेल वाले शहरों की संख्या 2014 के अंत तक सिर्फ 5 थी,जबकि 2023 के अंत तक यह संख्या 20 हो गयी है, राजमार्ग निर्माण की गति 2013-14 में तब 12 किलोमीटर प्रतिदिन थी जबकि 2022-23 में गति 28 किलोमीटर प्रतिदिन है. वित्तीय वर्ष 2005 और वित्तीय वर्ष 2014 के बीच देश में रेल दुर्घटनाओं की औसत संख्या 233 थी जो अब वित्त वर्ष 2015 और वित्तीय वर्ष 23 के बीच दुर्घटनाओं की औसत घटकर संख्या 34 हो गयी है,,,2014 तक विद्युतीकृत ब्रॉड-गेज रेल नेटवर्क 21.8 हजार किमी थी जो अब 60.8 हजार किमी है,,,हवाई अड्डों की संख्या 2014 के अंत तक 74 थी जबकि 2024 तक ये संख्या 149 है. कुल स्थापित बिजली क्षमता मार्च 2014 तक 249 गीगा वाट थी, जो अब दिसंबर 2023 तक 429 गीगावाट है ।
ये कुछ ऐसे बिंदु है जिसमें आप दोनों सरकारों के कामकाज का आकलन कर सकते हैं। इस तरह हमने एनडीए और यूपीए के कार्यकाल के 10-10 सालों की आर्थिक नीतियों का विवरण आपके सामने आंकड़ों तथा तथ्यों के साथ रखा है अब आप खुद ही फैसला कीजिये कि किसका कार्यकाल बेहतर रहा, 2004 से 2014 यूपीए का या फिर 2014 से 2024 एनडीए का ?
Uttarakhand Weather: उत्तराखंड में मौसम का मिजाज बदला रहेगा डीआरडीओ के रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान ने प्रदेश के कई जिलों उत्तरकाशी सहित रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ और बागेश्वर में हिमस्खलन की भी चेतावनी दी है।
हालांकि देहरादून में आज हलकी धूप खिली हुई है लेकिन ऊंचाई वाले इलाकों में मौसम विभाग ने आज बर्फ़बारी के आसार बताये हैं, वहीँ मैदानी इलाकों में भी मौसम शुष्क बना रहेगा।
जानिए आज कहां कैसा रहेगा मौसम-
मसूरी, धनोल्टी और कैम्पटी में मौसम साफ, चटक धूप खिली।
प्रदर्शन कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध खत्म नहीं हो रहा. फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी (MSP) पर नरेंद्र मोदी सरकार ने जो प्रस्ताव रखा था,उसे किसानों ने खारिज कर दिया है और कहा कि वो 21 फरवरी की सुबह अपना ‘दिल्ली चलो’ मार्च फिर से शुरू करेंगे. किसान नेताओं का कहना है कि सरकारी प्रस्ताव में स्पष्टता नहीं है और वो उनके हित में भी नहीं है.
किसानों की दो प्रमुख मांगें हैं पहली कि सरकार MSP गारंटी पर कानून बनाए. भले ही सरकार उनकी पूरी फसल न ख़रीदे, पर अगर किसान खुले बाजार में भी अपनी उपज बेचता है, तो उसे न्यूनतम कीमत की गारंटी मिले. क़ानून बन जाने से सरकार, प्राइवेट कंपनियां या पब्लिक सेक्टर एजेंसियां, कोई भी मनमाने दाम पर फसल नहीं खरीद पाएगा.
दूसरी मांग- MSP गारंटी के साथ किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाना चाहते हैं,, इसके अलावा किसानों और खेतिहर मजदूरों को पेंशन मिले, बिजली दरों में बढ़ोतरी न हो, किसानों का कर्ज माफ हो, भूमि अधिग्रहण अधिनियम (2013) बहाल किया जाए, लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में न्याय मिले 2020-21 में हुए आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा दिया जाए और पुलिस ने जो मामले दर्ज किए थे, वो भी वापस लिए जाएं.
कृषि केंद्रीय मंत्रियों ने रखा सरकार की ओर से ये प्रस्ताव-
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल, कृषि व किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने चंडीगढ़ में किसान नेताओं के साथ चौथे दौर की बातचीत की केंद्रीय मंत्रियों के पैनल ने सरकार की ओर से प्रस्ताव रखा. सरकार का कहना है कि मसूर, उड़द, तुअर, मक्का और कपास उगाने वाले किसानों के साथ दो सहकारी एजेंसियां राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ और भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ 5 साल का एग्रीमेंट करेंगी और इस एग्रीमेंट के ज़रिए सीधे किसानों से ये फसलें MSP पर खरीदा जाएंगी ख़रीद की मात्रा पर कोई सीमा नहीं होगी, और इसके लिए एक पोर्टल बनाया जाएगा.
इससे पहले, 18 फरवरी की रात केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि साल 2004 से 2014 के बीच UPA सरकार ने केवल साढ़े 5 लाख करोड़ रुपये की फसलों की ख़रीद MSP पर की थी और मोदी सरकार ने बीते दस सालों में 18 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की ख़रीद की है बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा था कि वो अपने संगठन के साथ सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और दो दिनों में आगे की रणनीति तय करेंगे.
केंद्रीय मंत्री ने तो दावा कर दिया. मगर किसान इससे खुश नहीं हैं. उनका सीधा कहना है कि केवल पांच नहीं, सभी 23 फसलों पर MSP की गारंटी चाहिए किसान मजदूर मोर्चा के नेता सरवन सिंह ने शंभू सीमा पर मीडिया से कहा, कि हम सरकार से अपील करते हैं कि या तो हमारे मुद्दों का समाधान करें या बैरिकेड हटा दें और हमें शांतिपूर्वक विरोध करने के लिए दिल्ली जाने की अनुमति दें.
क्या कहते हैं इस पर विशेषज्ञ-
अब सवाल ये है कि आगे का रास्ता क्या हो सकता है विशेषज्ञ मानते हैं अब इसके दो तरीके हैं. पहला कि खरीदारों को MSP पर फसल खरीदने के लिए फोर्स किया जाए मसलन, क़ानून कहता है कि गन्ना उत्पादकों को चीनी मिलों की तरफ से खरीद के 14 दिनों के अंदर ‘उचित और लाभकारी’ या राज्य-सलाहित मूल्य मिलेगा लेकिन ये व्यावहारिक नजरिए से मुश्किल है हो सकता है MSP देने के ‘डर’ से फसल खरीदी ही न जाए दूसरा तरीका ये है कि सरकार ही किसानों की पूरी फसल MSP पर खरीद ले मगर ये भी वित्तीय लिहाज़ से टिकाऊ प्लान नहीं है.
इन दोनों तरीकों के अलावा कृषि विशेषज्ञ एक तीसरे तरक़े की ओर इशारा करते हैं मूल्य कमी भुगतान यानी PDP इसमें सरकार को किसी भी फसल को खरीदने या स्टॉक करने की ज़रूरत नहीं है बस अगर बाजार मूल्य और MSP कम है, तो सरकार सुनिश्चित कर दे कि किसानों को इन दोनों के बीच का अंतर मिल जाए मगर राष्ट्र के स्तर पर इसे लागू करने के लिए बहुत सोचा-समझा एक प्लान चाहिए. अब सरकार और किसानों के अगले रुख पर अब सबकी नजरें टिकी हुई हैं.
ये हैं किसानों की प्रमुख मांगें
स्वामीनाथन रिपोर्ट के अनुसार सभी फसलों की एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग
किसानों और खेत मजदूरों की कर्ज माफी की मांग
लखीमपुर खीरी में जान गंवाने वाले किसानों को इंसाफ और आशीष मिश्रा की जमानत रद्द कर सभी दोषियों को सजा की मांग
लखीमपुर खीरी कांड में घायल सभी किसानों को वादे के मुताबिक 10 लाख रुपये मुआवजे की मांग
किसान आंदोलन के दौरान दर्ज केस रद्द करने की मांग
पिछले आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों के आश्रितों को नौकरी
200 दिन मनरेगा की दिहाड़ी मिले
700 रुपये प्रतिदिन मजदूरी की मांग
फसल बीमा सरकार खुद करे
किसान और मजदूर को 60 साल होने पर 10 हजार रुपये महीना मिले
उत्तराखंड में आज सोमवार शाम को मौसम ने फिर करवट ली। पहाड़ में दूसरे दिन भी मौसम खराब रहा और चारों धामों में बर्फबारी हुई। वहीं हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी, औली, नंदा घुंघटी, रुद्रनाथ, लाल माटी, नीती व माणा घाटी में बर्फ गिरी जबकि निचले क्षेत्रों में बारिश हुई। बदरीनाथ में आधा फीट, केदारनाथ में एक फीट, औली में दो इंच, गंगोत्री-यमुनोत्री में छह इंच ताजी बर्फ जमी। जबकि निचले क्षेत्रों में बारिश हुई जिससे ठंड लौट आई है।
बदरीनाथ धाम में भी हुई बर्फबारी-
बदरीनाथ धाम में दिनभर रुक-रुककर बर्फबारी हुई जो देर शाम तक जारी रही। बर्फबारी से हनुमान चट्टी से बदरीनाथ धाम तक हाईवे फिसलन भरा हो गया है। हाईवे पर करीब आधा फीट तक बर्फ जम गई है। गोपेश्वर-मंडल-चोपता और जोशीमठ-मलारी हाईवे पर भी बर्फ जम गई है।
वहीं जिले के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पर्यटन ग्राम रामणी, घूनी, पडेरगांव, ईराणी, पाणा, झींझी आदि गांवों में भी बर्फबारी हुई लेकिन बर्फ जल्दी पिघल गई। बाजारों में ठंड से बचने के लिए दुकानदारों व राहगीरों ने अलाव का सहारा लिया। पोखरी, नंदानगर, पीपलकोटी, नंदप्रयाग आदि क्षेत्रों में भी दिनभर रुक-रुक कर बारिश हुई।
हर्षिल घाटी में भी खूब बर्फबारी-
गंगोत्री और यमुनोत्री धाम, हर्षिल घाटी और अन्य ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी हुई। हालांकि अभी तक सभी सड़कों पर आवाजाही सुचारु है। पिछले दो दिन से जिले में गर्मी का अहसास होने लगा था।
अब बर्फबारी हुई तो ठंड लौट आई। वहीं आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने बताया कि बर्फबारी को देखते हुए सभी विभाग अलर्ट मोड पर हैं। सभी बर्फीले इलाकों में विभागों से सड़क, बिजली, पानी और राशन की आपूर्ति की जानकारी ली जा रही है।
सोमवार को केदारनाथ धाम सहित मद्महेश्वर, तुंगनाथ, चंद्रशिला आदि क्षेत्रों में बर्फबारी हुई जबकि पर्यटक स्थल चोपता दुगलविट्टा में भी हल्की बर्फ गिरी।
हल्द्वानी में नगर निगम ने हिंसा के मास्टरमाइंडअब्दुल मलिक के खिलाफ 2.68 करोड़ की आरसी जारी कर दी है। इस आरसी को वसूली के लिए डीएम को भेज दिया गया है। अब तहसील के माध्यम से वसूली की जाएगी।
सोमवार को नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने आरसी जारी की। वसूली को लेकर डीएम को पत्र भी भेज दिया है। पत्र में कहा गया है कि अब्दुल मलिक के कब्जे में सरकारी जमीन को हटाने के दौरान हुई हिंसा में निगम के कई वाहन समेत सामान जल गया। इनकी लागत 2.44 करोड़ है। कहा कि निगम की ओर से अब्दुल मलिक के घर में नोटिस चस्पा किया गया था। 15 फरवरी तक पैसा जमा करने के लिए कहा गया था। इसके बाद निगम ने वसूली के सभी प्रयास किए। इसके बाद भी वसूली नहीं हो पाई।
पत्र में कहा गया है कि राजस्व विभाग 10 प्रतिशत की संग्रह व्यय लेता है। इसे लगाकर मलिक से 2.68 करोड़ की वसूली कराई जाए। अब डीएम तहसील के माध्यम से वसूली कराएंगी।
संपत्ति बेचकर होगी इसकी वसूली-
नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने बताया कि तहसील वसूली का कार्य करेगी। अब्दुल मलिक अगर पैसा नहीं देता है तो मलिक के बैंक खाते फ्रिज किए जाएंगे। साथ ही उसकी संपत्ति को नीलाम करके वसूली की जाएगी।
नगर निगम ने शुक्रवार को आधे टूटे धर्मस्थल को पूरी तरह तोड़कर मलबा हटाने का काम शुरू कर दिया है। बीती आठ फरवरी को बनभूलपुरा के मलिक का बगीचा क्षेत्र में अवैध रूप से बनाए गए मदरसे और मस्जिद को ढहाने के दौरान पथराव, आगजनी और हिंसा हुई थी। पथराव होने के कारण तब नगर निगम की टीम मदरसे और नमाज स्थल को आधा तोड़कर ही बाहर निकल भागी थी। इस हिंसा में छह लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई जवान और नगर निगम कर्मचारी घायल भी हुए थे। हिंसा के बाद क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया था। 14 फरवरी को हाईकोर्ट में इस मामले में सुनवाई भी हुई थी। वहीं अब कर्फ्यू के बीच ही नगर निगम ने आधे टूटे अवैध धर्मस्थल को भी ढहा दिया है।
शुक्रवार सुबह नगर निगम से टीम बनभूलपुरा के लिए रवाना हुई थी। सहायक नगर आयुक्त गणेश भट्ट ने बताया कि शेष अवैध मदरसा, मस्जिद तोड़ दिया गया है। मलबा भी यहां से सामान हटाया जा रहा है।