“अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा” ये एक प्रसिद्ध हिंदी कहावत है जिसका अर्थ है कि एक अयोग्य शासक के नेतृत्व में कमी और अव्यवस्था के कारण परिस्थितियां खराब हो जाती हैं। ये कहावत उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं एक स्कूल की छत इतनी जर्जर हो चुकी है जो कि कभी भी गिर सकती है। ये छत कहीं और की नहीं बल्कि उत्तराखंड के शिक्षा हब कहे जाने वाले और खुद शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का गृह क्षेत्र श्रीनगर शहर के बालिका इंटर कॉलेज की है।
श्रीनगर बाजार के ऐतिहासिक बालिका इंटर कॉलेज के जर्जर भवन में बालिकाएं बिना शिक्षक के पढ़ रहीं हैं। ऐसे में सरकार के ‘पढ़ेगी बेटियां तो बढ़ेगी बेटियां’ का नारा जुमला साबित होता दिखाई दे रहा है कई क्षेत्रों से करीब 300 से अधिक छात्राएं यहां पढ़ती हैं अन्य सरकारी विद्यालयों की अपेक्षा यहां सबसे अधिक छात्र संख्या है बावजूद इसके 80 के दशक में बना विद्यालय भवन जर्जर हो चुका है आए दिन छत का प्लास्टर गिरने से छात्राओं के लिए खतरा बना हुआ है शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का क्षेत्र होने के कारण वो कई चक्कर यहां लगाते हैं लेकिन उनकी नजर इस पर कभी गयी नहीं।
इतना ही नहीं इसके अलावा विद्यालय में वर्षों से अध्यापिकाओं के कई पद रिक्त हैं. एक तरफ शिक्षा मंत्री अध्यापकों का वेतन बढ़ाने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अध्यापक ही नहीं है और बच्चे खुद ही अपने अध्यापक बन कर पढ़ाई करने को मजबूर हैं ऊपर से छत कब सर पर गिर जाए उसका अलग डर रहता है।विद्यालय में समाजशास्त्र व अर्थशास्त्र के प्रवक्ता का पद 2016-17 से खाली है, 2020 से जीव विज्ञान का पद खाली है, इसके अलावा गणित विषय का पद रिक्त होने से अन्य विद्यालय से अध्यापक की व्यवस्था की गई है भूगोल के प्रवक्ता अवैतनिक अवकाश पर जाने से इस विषय में अतिथि शिक्षक तैनात है वहीं अंग्रेजी विषय भी व्यवस्था के सहारे संचालित हो रहा है।
अभी हाल ही में उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने वैश्विक निवेशक सम्मेलन में निवेशकों को संबोधित करते हुए कहा कि उत्तराखंड में 10 नए निजी विश्वविद्यालय और तीन नए मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे ये एक अच्छा कदम भी है लेकिन बुनियादी शिक्षा का क्या जब बुनियाद ही सही नहीं पड़ेगी तो इन महाविद्यालयों और मेडिकल कालेज का क्या फायदा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार का लक्ष्य है कि उत्तराखंड में 2024 तक पाँच लाख बच्चे अन्य राज्यों से पढ़ने आए, जबकि एक लाख विदेशी बच्चे यहाँ आकर पढ़ें, लेकिन खुद के बच्चे जब अध्यापकों और एक अच्छे भवन के लिए तरस रहे हो तो फिर इस तरह की आशा करना बेमानी है