Day: November 2, 2023

OPS: रामलीला मैदान की तीसरी रैली, 18 फीसदी डीए और 8वें वेतन आयोग के गठन को लेकर हुंकार भरेंगे कर्मचारी .

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पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकारी कर्मियों की दो रैलियां हो चुकी हैं। अब 3 नवंबर को तीसरी बड़ी रैली होने जा रही है। इस रैली में सात सूत्री एजेंडे पर हुंकार भरी जाएगी, जिसमें पहले नंबर पर एनपीएस की समाप्ति और ओपीएस की बहाली है। इसके बाद केंद्र सरकार में रिक्त पदों को नियमित भर्ती के जरिए भरना, निजीकरण पर रोक, आठवें वेतन आयोग का गठन और कोरोनाकाल में रोके गए 18 महीने के डीए का एरियर जारी करना, ये बातें भी कर्मचारियों की मुख्य मांगों में शामिल हैं। यह रैली कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स के बैनर तले होगी। इसमें ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट एम्प्लाइज फेडरेशन सहित करीब 50 कर्मी संगठन हिस्सा लेंगे। 

निर्णायक लड़ाई की तरफ बढ़ने लगे कर्मचारी 
बता दें कि केंद्र एवं राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठन, ‘पुरानी पेंशन’ पर निर्णायक लड़ाई की तरफ बढ़ने लगे हैं। केंद्रीय कर्मियों की दो विशाल रैलियों के बाद अब तीन नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में ही तीसरी बड़ी रैली होने जा रही है। हालांकि इस रैली में ओपीएस के साथ कई दूसरे मुद्दे भी उठाए जाएंगे।

कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स के महासचिव एसबी यादव ने बताया कि केंद्र सरकार में रिक्त पदों को नियमित भर्ती के जरिए भरना, निजीकरण पर रोक लगाना, आठवें वेतन आयोग का गठन करना और कोरोना काल में रोके गए 18 महीने के डीए का एरियर जारी करना, ये बातें भी कर्मचारियों की मुख्य मांगों में शामिल हैं। सरकारी कर्मचारियों की लंबित मांगों को लेकर पिछले साल से ही चरणबद्ध तरीके से प्रदर्शन किए जा रहे हैं। दिसंबर 2022 को दिल्ली के तालकटोरा इंडोर स्टेडियम में कर्मियों के ज्वाइंट नेशनल कन्वेंशन के घोषणा पत्र के मुताबिक, कर्मचारियों की मुहिम आगे बढ़ाई जा रही है। राज्यों में भी कर्मियों की मांगों के लिए सम्मेलन/सेमिनार और प्रदर्शन आयोजित किए गए हैं। अब इस कड़ी में तीन नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली आयोजित की जाएगी। 

पीएफआरडीए एक्ट में संशोधन किया जाए-

यादव के मुताबिक, रैली की मुख्य मांगों में पीएफआरडीए एक्ट में संशोधन करना या उसे पूरी तरह खत्म करना, शामिल है। जब तक इस एक्ट को खत्म नहीं किया जाता, तब तक विभिन्न राज्यों में लागू हो रही ओपीएस की राह मुश्किल ही बनी रहेगी। वजह, एनपीएस के तहत कर्मियों का जो पैसा कटता है, वह पीएफआरडीए के पास जमा है। केंद्र सरकार कह चुकी है कि वह पैसा राज्यों को नहीं लौटाया जाएगा। ऐसे में जहां भी ओपीएस लागू हो रहा है, वहां पर सरकार बदलते ही दोबारा से एनपीएस लागू हो जाए, इस बाबत कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में राज्यों द्वारा की जा रही ओपीएस बहाली में कई पेंच फंसे रहेंगे।  

यादव ने बताया कि केंद्र और राज्यों के जिस विभाग में अनुबंध पर या डेली वेजेज पर कर्मचारी हैं, उन्हें अविलंब नियमित किया जाए। निजीकरण पर रोक लगे और सरकारी उपक्रमों को नीचे करने की सरकार की मंशा बंद हो। डेमोक्रेटिक ट्रेड यूनियन के अधिकारों का पालन सुनिश्चित हो। राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम का त्याग किया जाए और आठवें वेतन आयोग का गठन हो।  

ओपीएस पर हो चुकी हैं कर्मियों की दो रैलियां  
केंद्र और राज्यों के कर्मचारी संगठनों ने सरकार को स्पष्ट तौर से बता दिया है कि उन्हें बिना गारंटी वाली ‘एनपीएस’ योजना को खत्म करने और परिभाषित एवं गारंटी वाली ‘पुरानी पेंशन योजना’ की बहाली से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। नई दिल्ली के रामलीला मैदान में दस अगस्त को कर्मियों की रैली हुई थी। ओपीएस के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति के राष्ट्रीय संयोजक एवं स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद ‘जेसीएम’ के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने रैली में कहा था कि लोकसभा चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू नहीं होती है तो भाजपा को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। कर्मियों, पेंशनरों और उनके रिश्तेदारों को मिलाकर यह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। चुनाव में बड़ा उलटफेर करने के लिए यह संख्या निर्णायक है।  

‘पेंशन शंखनाद महारैली’ में जुटे थे लाखों कर्मी-


एक अक्तूबर को रामलीला मैदान में ही ‘पेंशन शंखनाद महारैली’ आयोजित की गई। इसका आयोजन नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के बैनर तले हुआ था। एनएमओपीएस के अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा कि पुरानी पेन्शन कर्मियों का अधिकार है। वे इसे लेकर ही रहेंगे। दोनों ही रैलियों में केंद्र एवं राज्य सरकारों के लाखों कर्मियों ने भाग लिया था। उसके बाद 20 सितंबर को हुई राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) स्टाफ साइड की बैठक के एजेंडे में ‘ओपीएस’ का मुद्दा टॉप पर रहा था। कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते हुए अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने कहा था कि हमने सरकार के समक्ष एक बार फिर अपनी मांग दोहराई है। एनपीएस को खत्म किया जाए और पुरानी पेंशन योजना’ को जल्द से जल्द बहाल करें। अगर सरकार नहीं मानती है तो देश में कलम छोड़ हड़ताल होगी, रेल के पहिये रोक दिए जाएंगे।

चुनावी चंदे का हिसाब देने से सरकार का इनकार, CJI चंद्रचूड़ लेने जा रहे बड़ा फैसला !

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कह रहे हैं कि देश की जनता का पाई-पाई का हिसाब देश की जनता को मिलना चाहिए लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड का हिसाब बिलकुल नहीं मिलेगा,  चुनावी बांड की शुरुआत केंद्र सरकार ने ये कहकर की थी कि इससे राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन अब मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कह रही है कि देश की जनता को चुनावी फंड का सोर्स यानी पार्टी को कहां से पैसा मिल रहा है ये जानने का अधिकार ही नहीं है. केंद्र की सरकार के इस हलफनामे के बाद देश की जनता नरेंद्र मोदी के इस बयान को याद कर रही है. 

 

इस बयान में पीएम मोदी बड़े ही जोश से देश की जनता को पाई-पाई का हिसाब जानने की बात कर रहे हैं, कह रहे हैं कि इसलिए ही तो हम विकास की यात्रा को तेज चला रहे हैं लेकिन ये विकास की यात्रा इतनी तेज चल पड़ी है कि अब जनता से ही जनता के पैसों का हिसाब छुपाया जा रहा है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के द्वारा लाये गए इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई कर रहा है.

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड –


इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है.भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानून लागू कर दिया था.  इस योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को धन देने के लिए बांड जारी कर सकता है. इन्हें कोई भी दाता ख़रीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी KYC की जानकारियां उपलब्ध हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है.योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1 हजार रुपये, 10 हजार रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं.
चुनावी बॉन्ड की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ़ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है.केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधान सभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो.योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं.  इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जा सकता है.https://youtu.be/kllhVYNM_8A

कई लोगों ने किये ट्वीट- 

भारत सरकार ने इस योजना की शुरुआत करते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड देश में राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था को साफ कर देगा.लेकिन अब केंद्र सरकार अपने ही किये वादे  से मुकरने लगी है,,तो अब जनता मोदी जी को उन्ही का भाषण याद दिला रही है,
मोहित नाम के युवक इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा है, जुमला, पाई -पाई का हिसाब मिलना चाहिए  और हकीकत जब पीएम केयर फंड और इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी मांगी तो जानने का अधिकार नहीं है,,  कॉमेडियन राजीव निगम भी इस वीडियो को शेयर करते हुए  लिखते हैं कि खुद न पीएम केयर फंड और न अपने चंदे का हिसाब देंगे,  कितने बड़े बहरूपिया है ये सज्जन,संजय सिंह भी इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखते हैं कि फिर सुप्रीम कोर्ट में क्यों अर्जी लगा रहे हो कि हमारे फंड की जानकारी जनता तक नहीं पहुंचेगी, सब माल हड़प कर अपने दोस्त को देना चाहते हो, अन्याय है, देश के कोष की जानकारी देश की जनता को होनी चाहिए, झोला लेकर जाने से पहले. 

दरअसल पिछले कुछ सालों में ये सवाल बार-बार उठा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी गई है. इसलिए इससे काले धन की आमद को बढ़ावा मिल सकता है. एक आलोचना यह भी है कि यह योजना बड़े कॉरपोरेट घरानों को उनकी पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए बनाई गई थी.
इस योजना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई है. पहली याचिका साल 2017 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और ग़ैर-लाभकारी संगठन कॉमन कॉज़ द्वारा संयुक्त रूप से दायर की गई थी और दूसरी याचिका साल 2018 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने दायर की थी.  सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि इस योजना की वजह से भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा असीमित राजनीतिक दल और राजनीतिक दलों के गुमनाम फ़ंडिंग के  द्वार” खुल जाते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैध बना दिया जाता है. याचिकाओं में ये भी कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की गुमनामी एक नागरिक को ‘जानने के अधिकार’ का उल्लंघन करती है, उस अधिकार का जिसे सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों ने संविधान के अनुच्छेद 19- (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक पहलू माना है.सबसे अधिक हिस्सेदारी बीजेपी की-

चुनाव निगरानी संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 और 2021-22 के बीच पांच वर्षों में कुल सात राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बॉण्ड से कुल 9,188 करोड़ रुपये मिले.  इस 9,188 करोड़ रुपये में से अकेले भारतीय जनता पार्टी की हिस्सेदारी लगभग 5 हजार 272 करोड़ रुपये थी. यानी कुल इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए दिए गए चंदे का करीब 58 फीसदी बीजेपी को मिला. इसी अवधि में कांग्रेस को इलेक्टोरल बॉन्ड से क़रीब 952 करोड़ रुपये मिले, जबकि तृणमूल कांग्रेस को 767 करोड़ रुपये मिले.

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2021-22 के बीच राष्ट्रीय पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिलने वाले चंदे में 743 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. एडीआर ने अपने विश्लेषण में पाया कि इन पांच सालों में से वर्ष 2019-20 जो लोकसभा चुनाव का वर्ष था उसमें सबसे ज़्यादा 3 हजार 439 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये आया. इसी तरह वर्ष 2021-22 में जिसमें 11 विधानसभा चुनाव हुए उसमें भी राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये क़रीब 2 हजार 664 करोड़ रुपये का चंदा मिला.

क्या कहा था चुनाव आयोग ने-

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के सामने दायर एक हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को ख़त्म कर देंगे और इसका इस्तेमाल भारतीय राजनीति को प्रभावित करने के लिए विदेशी कॉर्पोरेट शक्तियों को आमंत्रण देने जैसा होगा. चुनाव आयोग ने ये भी कहा था कि कई प्रमुख कानून में किए गए संशोधनों की वजह से ऐसी शेल कंपनियों के खुल जाने की संभावना बढ़ जाएगी, जिन्हें सिर्फ़ राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के इकलौते मकसद से बनाया जाएगा.

 

एडीआर की याचिका के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बार-बार चेतावनी दी थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल काले धन के प्रसार, मनी लॉन्ड्रिंग, और सीमा-पार जालसाज़ी को बढ़ाने के लिए हो सकता है. इलेक्टोरल बॉन्ड को एक ‘अपारदर्शी वित्तीय उपकरण’ कहते हुए आरबीआई ने कहा था कि चूंकि ये बॉन्ड मुद्रा की तरह कई बार हाथ बदलते हैं, इसलिए उनकी गुमनामी का फ़ायदा मनी-लॉन्ड्रिंग के लिए किया जा सकता है.

कई लोग और संस्थाए इस पर सवाल उठा रही है और केंद्र सरकार हिसाब न देकर इन सवालों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है, भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही है. ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से ज़्यादा वक़्त से लंबित है और इस पर सभी निगाहें इसलिए भी टिकी हैं क्योंकि इस मामले का नतीजा साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है.