77 Views -
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी में कुछ नेताओं को निपटाने के चक्कर में भाजपा को ही निपटा रहे हैं,,ऐसा हम नहीं मध्य प्रदेश और राजस्थान की राजनीति में आया सियासी बबाल बता रहा है,मध्य प्रदेश में जिस तरह भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की बात चल रही है उसके संकेत भी मिलने शुरू हो गए हैं.
जब देश में गुजरात मॉडल चर्चा में था तब एक बार शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि गुजरात मॉडल में क्या है,जरा मध्य प्रदेश का विकास मॉडल देखिए,और फिर वक्त ऐसा आया की इसी गुजरात मॉडल ने शिवराज को किनारे लगाने की तैयारी कर दी है,मगर शिवराज सिंह ऐसा लगता है की हार मानने वालों में से नहीं हैं,,उधर दूसरी तरफ वसुंधरा के साथ भी यही हो रहा है उनको भी धीरे धीरे किनारे करने की तैयारी चल रही है,लेकिन जिस तरह वसुंधरा अपने तेवर राजस्थान में दिखा रही है उससे ये आसान नहीं होने वाला. शिवराज और वसुंधरा दोनों ही ऐसे नेता है जो अपने अपने प्रदेश में मजबूत पकड़ रखते हैं ऐसे में कहीं इनको निपटाने के चक्कर में दोनों राज्यों में भाजपा ही न निपट जाय,,,,खैर इसके लिए थोड़ा इंतजार कर लेते हैं और फिर से राज्य राजनीति पर लौट चलते हैं.
MP में BJP में खलबली-
बात मध्य प्रदेश की करें तो यहां जिस तरह से कई सर्वे में पार्टी की हालात खराब दिखाई दे रही है,कई घोटालों के आरोप शिवराज सरकार पर लगे हैं, ऐसेे में अब मोदी के नाम पर मध्य प्रदेश को बचाने की कोशिस की जा रही है,, खुद मोदी हार के डर से शिवराज को किनारे करने लग गए हैं,, ऐसे संकेत मिलते हैं,, मोदी और भाजपा को हार का कितना डर है,इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अब भाजपा के बड़े बड़े केंद्रीय मंत्रीयों को चुनाव मैदान में उतारा गया है,और वो भी बिना उनको पूछे, बिना उनकी मर्जी के..भाजपा में हार का इतना डर वयाप्त है कि उन्होंने अपने बड़े- बड़े नेताओं को ही चुनावी रण में उतार दिया है,,,आलाकमान के इस फैसले से केंद्न की राजनीति करने वाले नेता मंत्री हैरान हैं, परेशान हैं, सूत्र बताते हैं की इस फैसले का उन तमाम दिग्गजों को पता ही नहीं था,,,अब इन साहब को ही देख लीजिये,जिनको लगता है कि अब वो ठहरे इतने बड़े नेता, विधायक जैसा छोटा चुनाव कैसे लडेंगे उनकी माने तो वो कहते हैं की मै इतना बड़ा नेता होने के बाद अब क्या लोगों के दरवाजे पर वोट मांगूंगा,,,, अब ये ना समझ लिजिएगा की ये हम कह रहे हैं,, हम नहीं बल्कि खुद बड़े नेता,, माफ़ करें भाजपा के राष्ट्रिय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कह रहे हैं,,,आप खुद देख लीजिये ,,,,,क्या कहा विजयवर्गीय ने-
पार्टी ने विजयवर्गीय को इंदौर-1 विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है। कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि बीजेपी ने उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका दिया है, मेरी चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं थी. मैं अंदर से खुश नहीं हूं. अब हम बड़े नेता हो गए हैं. हाथ जोड़ने कहां जाएं. मुझे अंदाजा नहीं था कि पार्टी मुझे टिकट देगी.” इससे ये तो साफ़ हो गया कि बीजेपी में हार का डर इतना है कि वो अपने बड़े नेताओं को ये तक नहीं पूछ रही कि आप लड़ना चाहते भी हैं या नहीं,,,
परिवारवाद का विरोध करने वाली बीजेपी के खुद के नेता किस तरह परिवारवाद से घिरे हैं इसकी पोल खुद भाजपा नेता ने ही खोल दी,, कैलाश विजयवर्गीय ने ये भी कहा,कि “मैं सोचता था कि मैं चुनाव क्यों लड़ू, क्योंकि आकाश ने इंदौर शहर में अपनी एक जगह बनाई है. मेरी वजह से उसका राजनीतिक अहित नहीं होना चाहिए, ,, मतलब वो यहां से अपने बेटे का टिकट चाहते थे,,,,आकाश विजयवर्गीय उनके बेटे हैं जो अभी विधायक हैं लेकिन अब पिता को टिकट मिलने के बाद आकाश यानी कैलाश विजयवर्गीय के बेटे की टिकट कटने की संभावना प्रबलतम है,
बता दें कि आकाश विजयवर्गीय उस वक्त सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने निगम अधिकारी पर बैट से हमला कर दिया था. इंदौर के गंजी कंपाउंड इलाके में तोड़फोड़ को लेकर बहस होने के बाद आकाश विजयवर्गीय का निगम अधिकारी पर क्रिकेट बैट से हमले का वीडियो वायरल हुआ था. इसके बाद उन्हें पुलिस ने उस वक्त गिरफ्तार कर लिया था. इसको लेकर मध्य प्रदेश में उस वक्त खूब राजनीति हुई थी. साथ ही आलोचना भी हुई थी,,
क्या इसलिए चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं विजयवर्गीय-
ये भी सवाल पैदा होते हैं कि आखिर क्यों विजयवर्गीय चुनाव नहीं लड़ना चाहते है,क्या सिर्फ अपने बेटे की वजह से या फिर वो मध्य प्रदेश की हवा भांप चुके हैं,और उनको लगता है कि इस बार तो मुश्किल है इसलिए चुनाव ही नहीं लड़ा जाय, या फिर जिस तरह कैलाश विजयवर्गीय कह रहे हैं कि वो सच में इतने बड़े नेता हो गए है कि अब वोट के लिए लोगों के सामने हाथ नहीं जोड़ सकते,,, इसका मतलब साफ है की भाजपा में मोदी से बड़े नेता और भी हैं,, यानी कैलाश,,अब कैलाश जी को ये कौन समझाए कि पीएम मोदी खुद जनता के दर पर हाथ जोड़ दिन-रात वोट की गुहार करते दिखाई देते हैं,, कैलाश को तो घर-घर जाकर वोट मांगने थे या कहें की हैं,, मगर विश्व गुरु को तो भरी दोपहर में सड़कों पर ही हाथ जोड़ वोट मांगने पड़ रहे हैं,, अब ऐसे में क्या वो उनसे भी बड़े नेता हैं,, जो घर-घर जाकर वोट नहीं मांग सकते।।
आखिर बीजेपी ने ऐसा क्यों किया-
भाजपा के डर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस बार भाजपा ने तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को विधायकी लड़ाने के लिए उतारा है, लेकिन बीजेपी को उनका ये फैसला उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है,,अब एक और सांसद रह चुके नेता जिनको लगता है कि पार्टी अब मनमानी करने लगी है,लेकिन पार्टी ने यहां उनकी बात नहीं मानी और उनकी जगह यानी रत्नाकर सिंह की जगह गणेश सिंह को सतना विधानसभा से बीजेपी का उम्मीदवार बनाया है,जिससे नाराज सांसद रत्नाकर सिंह ने बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं.
टिकट न मिलने से नाराज रत्नाकर अब पार्टी पर मनमानी का आरोप लगा रहे हैं और अब निर्दलीय चुनाव लड़ने की धमकी भी दे रहे हैं,,, उनका कहना है जनता कहेगी तो निर्दलिय ही चुनाव लड़ूंगा,, अब इसका मतलब तो साफ है की बीजेपी टिकट दे या ना दे रत्नाकर सिंह चुनावी मैदान में तो ताल ठोकेंगे ही.. अब चाहे वो निर्दलीय लड़ें या किसी अन्य पार्टी के दामन को थाम कर..
दरअसल, बीजेपी इस साल मई में कर्नाटक में मिली हार और इस महीने की शुरुआत में हुए उप चुनावों में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के हाथों हुई 3-4 की हार से चिंतित नजर आ रही है,चुनावों में पार्टी किसी भी उम्मीदवार को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं करेगी। खासकर मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे हिंदी भाषी राज्यों में, पार्टी क्षेत्रीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं और आपसी द्वंद को इस तरह से कम करने की कोशिश भर कर रही है, या पुराने छत्रपों को निपटाने की, बीजेपी को ये भी उम्मीद है कि बड़े नाम वाले कैंडिडेट उन सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहेंगे जहां वह कमजोर है। भाजपा को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील से पार्टी चुनाव का एक और दौर जीतेगी, और मुख्यमंत्री पद का खुला रहना क्षेत्रीय नेताओं को कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करने का काम करेगा.
आखिर क्यों नहीं है कैंडिडेट लिस्ट में शिवराज का नाम-
अब एक हैरान करने वाली बात ये भी है, की प्रदेश यानी मध्य प्रदेश की सत्ता पर विराजमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम अभी तक चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट की लिस्ट में नहीं है। ये संकेत 64 वर्षीय चौहान के भविष्य के लिए अच्छा तो नहीं ही कहा जा सकता है। संभावना ये भी है कि कोई भी बड़ा नेता चुनाव के बाद सीएम बन सकता है।
अब जरा राजस्थान में एक नजर-
राजस्थान में, संभावित मुख्यमंत्री चेहरों में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल शामिल हैं, और संभावित उम्मीदवारों में राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और लोकसभा सांसद दीया कुमारी, राज्यवर्धन राठौड़ और सुखबीर सिंह जौनपुरिया भी शामिल हैं। राज्य में दो बार सीएम रह चुकीं 70 साल की वसुंधरा राजे के लिए ये चुनाव काफी अहम रहने वाला है। राज्य में पार्टी की सबसे प्रभावशाली नेता के रूप में वसुंधरा की पहचान है। लेकिन इस बार पार्टी ने यहां भी सामूहिक नेतृत्व के रूप में उतरने का फैसला किया है। देखना रोचक होगा कि राजे पार्टी के इस दांव से कैसे निपटती है। ये भी माना जा रहा है कि वह किसी अन्य सीएम के अधीन विधानसभा में तो नहीं जाएंगी। मतलब यहां के राजनीतिक हालात भी अभी काबू से बाहर हैं.
ऐसे हालातो से ये तो साफ़ है कि भाजपा चुनावी राज्यों में हवा का कुछ हद तक अंदाजा लगा चुकी है और समझ चुकी है कि राह बेहद मुश्किल है, ऐसे में वो हर काम किया जा रहा है जिससे किसी भी डेमेज कंट्रोल को रोका जा सके,लेकिन इतने नेताओ की नारज करना बीजेपी के लिए उल्टा दावं भी साबित हो सकता है, परिणाम क्या होंगे वो आने वाला वक्त साफ़ करेगा.