Day: August 23, 2023

चंद्रयान-3 ने रचा इतिहास, चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर कदम…

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चांद के साउथ पोल पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही भारत ने अंतरिक्ष में इतिहास रच दिया है. इसरो (ISRO) के मुताबिक तय समय पर ये मिशन पूरा हुआ है. चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के साथ ही देश भर में खुशी का माहौल है. चंद्रयान-3 के चांद के पास पहुंचने के साथ ही भारत का नाम भी इतिहास के पन्नों में कैद हो गया है. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) का सपना भी इसी के साथ पूरा हो गया. 14 जुलाई को चंद्रयान-3 के लॉन्च होने के बाद से ही ये यात्रा जारी थी. पूरी दुनिया को इस दिन का बेसब्री से इंतजार था.

40 दिन का भारत का इंतजार आखिरकार खत्म हुआ। पृथ्वी से चंद्रमा तक 3.84 लाख किलोमीटर का सफर तय करने के बाद चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम चंद्रमा की धरती पर कामयाबी के साथ उतर गया। इसी के साथ भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला रूस, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा देश बन गया है। वहीं, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है।

अब नजरें प्रज्ञान रोवर पर है, जो स्थितियां सामान्य होने के बाद चांद की सतह पर चलेगा। इसके एक पहिये पर इसरो का चिह्न और दूसरे पहिये पर अशोक स्तंभ उकेरा हुआ है। जैसे ही प्रज्ञान रोवर चलना शुरू करेगा, इसरो का चिह्न और अशोक स्तंभ चंद्रमा की सतह पर अंकित हो जाएगा।

चंद्रयान-3 ने कैसे रच दिया इतिहास?

इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। यह चंद्रयान-2 की तरह ही दिखता है, जिसमें एक लैंडर और एक रोवर शामिल किए गए हैं। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है।

मिशन ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरी और योजना के अनुसार आज चंद्रमा पर उतरा। यह मिशन भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया।

 

पिछले दो मिशन-

चंद्रयान-1
यह अक्तूबर 2008 में भेजा गया था। चंद्रमा पर पानी की संभावना की खोज कर यह इतिहास रच चुका है। इसी के बाद विश्व की तमाम अंतरिक्ष एजेंसियों की चंद्रमा को लेकर उत्सुकता बढ़ गई।

चंद्रयान-2
जुलाई 2019: यह यान आज भी चंद्रमा की सौ किलोमीटर की कक्षा में घूम रहा है। इसे एक साल तक ही चलना था, लेकिन अब तक यह हमें जानकारी भेज रहा है। इसमें विश्व का सबसे बेहतरीन कैमरा लगा है, जो चंद्रमा के लगभग हर हिस्से की तस्वीरें ले चुका है।

वसुंधरा से दूरी बनाती भाजपा, नाराजगी मोदी को पड़ सकती है महंगी… 

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क्या वसुंधरा अब बीजेपी की ज़रूरत की लिस्ट से बाहर हो चुकी हैं? सवाल उठना लाजिमी भी है क्योंकि वसुंधरा राजे न सिर्फ़ दो बार की मुख्यमंत्री रही हैं, बल्कि प्रदेश में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा भी हैं.राजस्थान चुनाव की तैयारियों में जुटी पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे को बीजेपी ने बड़ा झटका दिया है. गुरुवार को बीजेपी ने चुनाव प्रबंधन समिति और संकल्प पत्र समिति के गठन का ऐलान किया. इन दोनों ही समितियों से वसुंधरा राजे का नाम गायब है. बीजेपी का ये फैसला चौंकाने वाला है.वसुंधरा के किसी समर्थक को भी इन कमेटियों में जगह नहीं मिली है. इसके उलट घनश्याम तिवाड़ी और डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा जैसे नेताओं को शामिल किया गया है, जो वसुंधरा राजे के घोर विरोधी माने जाते हैं. ये वही नेता हैं जो एक समय वसुंधरा राजे की वजह से बीजेपी छोड़कर चले गए थे. हालांकि, अभी कैंपेन कमेटी की घोषणा बाकी है, लेकिन इन दो कमेटियों से वसुंधरा का पत्ता कटने के बाद राजस्थान के राजनीतिक गलियारे में सुगबुगाहट तेज हो गई है. सवाल उठने लगे हैं कि क्या राजस्थान की सियासत में वसुंधरा राजे के साथ खेल हो गया? क्या बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद की सबसे बड़ी दावेदार वसुंधरा को साइड लाइन कर दिया?

 
राजस्थान में जहां भाजपा जीत की आस लगा रही है,पर कुछ ऐसे कारण राजस्थान में बन रहे हैं जिससे जहां कांग्रेस को थोड़ा राहत और भाजपा में बेचैनी दिखाई दे रही है, राजस्थान में भाजपा की जीत सबसे ज्यादा निर्भर करेगी वसुंधरा राजे पर, राजस्थान विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी ने हाल ही में दो समितियां गठित की हैं. इन दोनों समितियों में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम नहीं होने से उनके समर्थकों में नाराजगी है.बीजेपी में चुनाव समितियों का बड़ा महत्व माना जाता है.इसलिए दोनों समितियों में वसुंधरा राजे का नाम नहीं होने से फिर एक बार बीजेपी में उनकी अहमियत को लेकर चर्चा शुरू हो गई है.हालांकि, बीजेपी का कहना है कि वसुंधरा राजे बीजेपी की बड़ी नेता हैं. वे चुनावों में प्रचार-प्रसार करेंगी। 
 
 
राजस्थान में कैंपेनिंग कमेटी की घोषणा- 
 

दूसरी तरफ कांग्रेस ने राजस्थान में नाराज चल रहे सचिन पायलट को कांग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल कर लिया है. रविवार को कांग्रेस वर्किंग कमिटी की जो लिस्ट आई उसमें सचिन पायलट का भी नाम है.जहाँ कांग्रेस सचिन पायलट को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रही है, वहीं बीजेपी में वसुंधरा राज्य निर्णायक भूमिका में नहीं दिख रही हैं.बीजेपी पहली बार राजस्थान में कैंपेनिंग कमिटी की घोषणा भी करने वाली है. चुनावों में बीजेपी की कैंपेनिंग कमेटी को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है.ऐसे में वसुंधरा राजे की भूमिका को लेकर सबकी निगाहें अब कैंपेनिंग कमिटी की घोषणा पर टिकी हुई हैं.17 अगस्त के दिन जयपुर में बीजेपी ने कोर कमिटी की बैठक बुलाई थी. लेकिन, इस बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शामिल नहीं हुईं.इस बैठक से पहले बीजेपी ने आगामी राजस्थान विधानसभा चुनाव के दो समितियों की घोषणा की.प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति और प्रदेश संकल्प पत्र समिति. इन दोनों ही समितियों से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम नहीं है.वसुंधरा राजे के चेहरे पर 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई थी.इसके बाद से ही दिल्ली के बीच उनके मतभेद देखने को मिले हैं. चर्चाएं रहीं कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे को महत्व नहीं दे रहा है.इस बार इसलिए भी सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे का चुनावों के लिए बनाई गईं सभी समितियों में नाम था.तब चुनाव प्रबंधन समिति में भी वसुंधरा राजे शामिल रहीं थीं लेकिन इस बार उनका नाम नहीं है.वसुंधरा राजस्थान बीजेपी की सबसे बड़ी नेता है,भाजपा भले कुछ भी दावे करे लेकिन ये भी सच है कि वसंधुरा को अगर भाजपा राजस्थान से किनारे करती है तो आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को मुश्किलों के दौर से गुजरना पड़  सकता है

चुनावी रणनीति पर दिल्ली की पकड़ मजबूत- 


वसुंधरा राजे का पिछले चुनावों में जो क़द था, वो इस बार नहीं रहा है. इसका अब कारण दिल्ली से राज्यों का चुनाव संचालन हो सकता है.चुनाव में प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनावी रणनीति तक सभी फ़ैसलों पर दिल्ली की पकड़ मजबूत हो गई है. इसके बाद से ऐसा देखा नहीं गया कि वसुंधरा राजे को कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई हो,वसुंधरा समर्थक चाहते हैं कि उनको राजस्थान सीएम का चेहरा बनाया जाए.बीजेपी में सबसे महत्वपूर्ण कैंपेन कमेटी मानी जाती है. इस कमेटी का चेहरा चुनावों का चेहरा माना जाता है और इसलिए सब की निगाहें कैंपेन कमेटी पर टिकी हैं.राजस्थान में पहली बार कैंपेन कमेटी की घोषणा होने जा रही है.माना जा रहा है कि कैंपेन कमेटी में वसुंधरा राजे को शामिल किया जा सकता है. अगर नहीं किया जाएगा तो बीजेपी आलाकमान का यह सीधा संदेश होगा कि वसुंधरा राजे को दरकिनार करके चुनावों में जा रहे हैं.पहली बार साल 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान कैंपेनिंग कमेटी बनाई गई थी, जिसका अध्यक्ष नरेंद्र मोदी को बनाया गया था. इसलिए माना जाता है कि कैंपेनिंग कमिटी का चेहरा ही आगामी चुनाव का चेहरा होगा

 

बीजेपी ने प्रदेश संकल्प पत्र समिति का संयोजक बीकानेर से सांसद और केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को सौंपी है.राजस्थान में अर्जुन राम मेघवाल बीजेपी के बड़े दलित चेहरा हैं.राजनीति में आने से पहले वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हैं.संकल्प पत्र समिति में राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी और राज्यसभा सांसद डॉ किरोड़ी लाल मीणा हैं.ये दोनों ही नेता एक समय पर वसुंधरा राजे के धुर विरोधी रहे हैं. संकल्प पत्र समिति में छह सह संयोजक और 17 सदस्य समेत कुल 25 नेता शामिल हैं.प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक नारायण पंचारिया को बनाया गया है.पंचारिया बीजेपी से पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष और सांसद रहे हैं. वे केंद्रीय नेतृत्व के करीबी माने जाते हैं.बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और जयपुर ग्रामीण सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौर समेत छह सह संयोजक और 14 सदस्यों समेत 21 नेताओं को समिति में शामिल किया गया है

 
क्या वसुंधरा की अहमियत भाजपा में कम?


ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या वसुंधरा राजे की अहमियत भाजपा में कम हो रही है,वसुंधरा राजे एक समय में पार्टी में मजबूत कद रखती थी,वसुंधरा अटल और आडवाणी के दौर में एक समय 2014 से पहले प्रधानमंत्री के पद की दावेदार के रूप में थी,लेकिन मोदी सत्ता में उनको इतना महत्व नहीं दिया गया,वसुंधरा राजे के चेहरे पर 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई थी.इसके बाद से ही दिल्ली के बीच उनके मतभेद देखने को मिले हैं. चर्चाएं रहीं कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे को महत्व नहीं दे रहा है.इस बार इसलिए भी सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे का चुनावों के लिए बनाई गईं सभी समितियों में नाम था.तब चुनाव प्रबंधन समिति में भी वसुंधरा राजे शामिल रहीं थीं लेकिन इस बार उनका नाम नहीं है

बीजेपी राजस्थान में परिवर्तन यात्रा निकाल रही है,हालांकि, इस बार परिवर्तन यात्रा एक चेहरे पर नहीं बल्कि चार दिशाओं से चार चेहरों पर टिकी होगी.ऐसे में यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार यह यात्रा सिर्फ़ वसुंधरा राजे को साइड लाइन करने के लिए किया गया है. राजनीतिक विश्लेषक मिलाप चंद डांडी कहते हैं, “राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा. मुझे नहीं लगता कि वसुंधरा राजे का चेहरा सामने किया जाएगा. क्योंकि उन पर गहलोत से मिले होने के आरोप हैं.अभी तक तो ऐसा लग रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव मोदी बनाम गहलोत होगा. मीडिया में भी मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर वसुंधरा से अलग नाम तैर रहे हैं.. कभी गजेंद्र सिंह शेखावत, कभी सतीश पूनिया तो कभी अश्विनी वैष्णव. मतलब साफ़ है, वसुंधरा के लिए संकेत अच्छे नहीं हैं. शायद, वसुंधरा राजे को भी इसका अहसास हो चुका है, इसलिए अक्सर वो पार्टी की बैठकों से नदारद रहती हैं. गुरुवार को भी राजस्थान में भाजपा का विशेष सदस्यता अभियान चल रहा था, लेकिन कोर कमेटी की मेंबर होने के बावजूद वसुंधरा नहीं पहुंचीं

क्या बीजेपी के लिए आसान होगा ये?


अब सवाल उठता है  की क्या  वसुंधरा को किनारे करना बीजेपी के लिए आसान होगा ? पार्टी के अंदर ही वसुंधरा राजे के खिलाफ एक बड़ी लॉबी बन गई है. हाल में अमित शाह के दौरे में इसकी झलक भी दिखी थी. उदयपुर में मंच पर अमित शाह के साथ वसुंधरा राजे भी थीं. नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने वसुंधरा की अनदेखी कर भाषण के लिए अमित शाह का नाम लिया. हालांकि, अमित शाह ने वसुंधरा राजे की ओर इशारा कर भाषण के लिए कहा. अब सवाल है कि क्या बीजेपी के लिए वसुंधरा राजे को साइड लाइन करना आसान होगा? जवाब है- बिल्कुल नहीं. वसुंधरा राजे का एक अपना व्यक्तित्व है जो सियासत को किसी करवट बदलने का माद्दा रखता है. अगर राजस्थान की सियासत में वसुंधरा के दुश्मन हैं तो दोस्त भी. वसुंधरा के करीबी और सात बार के विधायक रहे देवीसिंह भाटी ने तो वसुंधरा को चेहरा न बनाए जाने की स्थिति में तीसरा मोर्चा बनाने तक की बात कह दी है. हालांकि, वसुंधरा राजे अभी वेट और वॉच वाली स्थिति में हैं. इलेक्शन कैंपेन कमेटी की घोषणा अभी बाक़ी है. माना जाता है कि इलेक्शन कैंपेन कमेटी का संयोजक ही चुनाव में पार्टी का चेहरा होता है. ऐसे में इस पद के लिए वसुंधरा प्रेशर पॉलिटिक्स से नहीं चूकेंगी. लेकिन, अगर ऐसा नहीं हुआ तो इतना तो तय है कि वसुंधरा को साइड लाइन करना बीजेपी के लिए फायदे का सौदा नहीं होगा

 
 
क्या खतरनाक प्रतिद्वंद्वी साबित हो सकती हैं ये- 


फिलहाल, BJP के बड़े नेता अपनी तरफ से गुटबाजी पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं क्योंकि गुटबाजी भगवा कुनबे की चुनावी संभावनाओं के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है,राजस्थान में नेतृत्व की दुविधा हल करने में BJP की नाकामी के इन चुनावों में तकलीफदेह नतीजे हो सकते हैं. राजस्थान में पार्टी की सबसे लोकप्रिय नेता वसुंधरा राजे की अपरिभाषित भूमिका BJP की चुनावी संभावनाओं पर किस तरह असर करेगी, यह एक जटिल सवाल है. अगर उनके कुछ वफादारों के नाराजगी भरे बयान कोई इशारा हैं,  तो ‘एंग्री वूमेन’ अपनी ही पार्टी के लिए एक खतरनाक प्रतिद्वंद्वी साबित हो सकती है !

5 राज्यों का खेला, किसने किसको पेला, ये बिगाड़ देंगे भाजपा-कांग्रेस दोनों का ही खेल…

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अगले दो-तीन महीनों में पांच राज्यों की विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं। इनमें से हिंदी पट्टी के तीन राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। इस बीच आ रहे अलग-अलग सर्वे में कहीं भारतीय जनता पार्टी, कहीं कांग्रेस तो कहीं किसी को भी स्पष्ट बहुमत मिलता दिखाई नहीं दे रहा है।  इनमें से दो छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, जबकि मध्य प्रदेश में भाजपा की शिवराज सिंह चौहान की सरकार है। ये चुनाव 2024 लोकसभा का सेमीफाइनल की तरह होगा और इनके नतीजे 24 के लोकसभा पर बड़ा असर डालेंगे,, इन तीनों ही राज्यों में भाजपा और कांग्रेस  दोनों दल बड़े खिलाड़ी हैं लेकिन तीनों राज्यों में 9 ऐसे छोटे दल हैं जो दोनों ही बड़ी पार्टियों का खेल बिगाड़ने को आतुर हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि अगर दोनों ही बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने छोटे दलों को नहीं साधा तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।2024 लोकसभा  से पहले जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, मोदी सरकार के लिए ये सबसे अहम चुनाव साबित होंगें,तीसरी बार सत्ता तक पहुंचने के लिए भाजपा को इन चुनावों में जीत बेहद जरूरी है,इनमे सबसे अधिक सीट वाले मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनावी नतीजे कई हद तक 2024 की दिशा तय करेंगे,इन राज्यों में जीत दर्ज करने वाली पार्टी एक बड़े मनोबल से 24 के रण में उतरेगी,भाजपा अगर यहां जीत दर्ज करने में कामयाब होती है तो पुरे देश में उनका माहौल बनेगा,और अगर कांग्रेस इसमें कामयाब हुई तो न केवल गटबंधन में कांग्रेस का पक्ष सबसे मजबूत होगा बल्कि पुरे देश में कांग्रेस एक नए उत्त्साह से चुनाव लड़ेगी और ये विपक्षी खेमें में भी जोश भरेगी,, लेकिन मध्य प्रदेश,राजस्थान,छतीशगढ में कुछ छोटे ऐसे दल भी हैं जो इन दोनों पार्टियों में किसी की भी पार्टी का गणित बिगाड़ सकते हैं,इन राज्यों का समीकरण हम आपको सिलसिलेवार तरिके बताते हैं।

123 सीटों पर होने वाला है खेल-

पहले बात मध्य प्रदेश की जहां लोकसभा की 29 सीट हैं,,जहां से 2019 में मोदी सरकार 28 सीट जितने में कामयाब रही थी,लेकिन विधानसभा में कांग्रेस ने उसको नजदीकी मुकाबले में हरा दिया और राज्य की सत्ता पाने में कामयाबी हासिल की,हलाकि कुछ समय बाद ज्योतिराज सिंधिया कुछ विधयकों को लेकर भाजपा में शामिल हो गए और कांग्रेस की कमलनाथ सरकार अल्पमत के कारण गिर गयी,और शिवराज फिर मुख़्यमंत्री बन गए,लेकिन इस बार कांग्रेस मध्य प्रदेश में भाजपा को फिर कड़ी चुनौती देती दिखाई दे रही है और एक बार फिर भाजपा कांग्रेस में यहां कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है,लेकिन इस बार छोटे दल और निर्दलीय यहां किसी भी पार्टी का समीकरण बिगाड़ने को तैयार है,ये भी सम्भव है कि चुनाव नतीजों के बाद ये किंग मेकर की भूमिका निभा सकते हैं, मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। इनमें से 47 अनुसूचित जनजाति और 35 अनुसूचित जाते के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों के अलावा 41 और सामान्य सीटें हैं, जहां SC/ST वोटर हार-जीत तय करते हैं। यानी कुल 123 सीटों पर तगड़ा खेल होने वाला है क्योंकि इन सीटों पर तीन छोटे दलों की मौजूदगी और अच्छी पकड़  मानी जाती है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे बुंदेलखंड क्षेत्र में मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी एक प्रमुख सियासी खिलाड़ी है। ग्वालियर चंबल क्षेत्र में दलित (SC) मतदाताओं पर बसपा का अच्छा प्रभाव माना जाता है।

इसी तरह महाकोशल क्षेत्र की कई सीटों पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) की मजबूत पकड़ मानी जाती है। पांच साल पहले यानी 2018 के चुनावों में जीजीपी ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन बनाकर कुल 125 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उस गठबंधन को सिर्फ एक सीट ही मिली थी। इन दोनों के अलावा हीरालाल अलावा के नेतृत्व  वाले जय आदिवासी युवा शक्ति (JAYS) इस साल मई में मध्य प्रदेश में एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों सहित कुल 80 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। पिछली बार उन्होंने कांग्रेस के साथ समझौता किया था और उसी की टिकट पर हीरालाल विधायक चुने गए थे। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इन छोटे दलों की खींचतान की वजह से भाजपा या कांग्रेस किसी को भीनुकसान  हो सकता है।  इन छोटे दलों का वोट प्रतिशत लोकसभा चुनाव में  देखें तो एक बड़ा अंतर् दिखाई देता है लेकिन वही मत प्रतिशत विधानसभा चुनावों के नतीजों पर  बड़ा असर डालता दिखाई देता है और किसी भी सीट पर जितने वाले प्रत्याशी का समीकरण खराब कर सकता है।

 

छत्तीसगढ़ में दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था की तुलना-

बात छत्तीसगढ़ की करें तो यहां भी कई दल दोनों राष्टीय दलों का गेम बिगाड़ने के लिए तैयार हैं,, छत्तीसगढ़ में भी मुख्य लड़ाई आदिवासी वोट बैंक और सीटों की है। राज्य की 90 सीटों में से 29 सीटें एसटी कैटगरी के लिए आरक्षित हैं, जबकि अन्य 20 सीटें पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) ने 2018 का विधानसभा चुनाव बसपा के साथ गठबंधन में लड़ा था और कुल 11% वोट परसेंट के साथ सात सीटें जीतीं थी। इस बीच, अनुभवी आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम द्वारा स्थापित पार्टी (हमर राज) तेजी से अपने विस्तार कर रहा है। नेताम बस्तर क्षेत्र से आते हैं। वह बसपा और सीपीआई (एम) के साथ गठबंधन कर 50 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं। बसपा का राज्य भर में दलित वोटों के एक वर्ग पर खासा प्रभाव माना  जाता है। ये भी यहां भाजपा और कांग्रेस किसी भी पार्टी का गणित बिगाड़ सकते हैं ।

लेकिन इस बार राष्ट्रिय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद केजरीवाल की पार्टी आप भी यहां अपना दम दिखाने जा रही है, जो कांग्रेस और बीजेपी का समीकरण बिगाड़ सकती है ,छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 9 गारंटी दी। उन्होंने इस दौरान दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था से छत्तीसगढ़ की शिक्षा की तुलना की। आप नेता व दिल्ली के सीएम ने अपने सहयोगी कांग्रेस पार्टी की सरकार को निशाने पर लिया।अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान ने शुक्रवार का छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाने की अपील की।दरअसल, कांग्रेस की छत्तीसगढ़ सरकार पर केजरीवाल ने ऐसे वक्त में ये टिप्पणी की हैस जब दोनों पार्टियों के बीच अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में दिल्ली में कौन कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा इसको लेकर बहस छिड़ी हैं। केजरीवाल के यहां चुनाव लड़ने का असर कांग्रेस पर ज्यादा पड़ने के आसार लग रहे हैं,अगर आप यहां थोड़े वोट काटने में कामयाब हुई तो किसी भी पार्टी का समीकरण बिगड़ सकता है।

 

छोटे दलों को मिल सकता है फायदा-

राजस्थान में भी तीन छोटे दल सत्ताधारी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी भाजपा के लिए चुनौती बने हुए हैं। इनमें राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) की स्थापना पूर्व भाजपा नेता और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने की है। वह तीन कृषि कानूनों का विरोध करते हुए एनडीए से बाहर हो गए थे। उनका जाटों के बीच प्रभाव है। इसके अलावा, जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली आरएलडी भी एक सियासी खिलाड़ी है जिसने पिछली बार एक विधानसभा सीट जीती थी। आरएलडी का यूपी से सटी सीमा खासकर भरतपुर, धौलपुर और अलवर के इलाकों में जाट वोटरों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। इनके अलावा मायावती की बसपा भी राजस्थान में दोनों बड़े दलों के लिए सियासी शत्रु है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने कुल चार फीसदी वोट बैंक पर कब्जा जमाते हुए छह सीटें जीती थीं। हालांकि बाद में बसपा के विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे।ये छोटे दल हलाकि ज्यादा सीट तो नहीं जीत पाती है लेकिन ये कई सीट पर इतना प्रभाव रखती है कि इनको मिलने वाला वोट प्रतिशत किसी भी दल के प्रत्याशी की जीत को हार में बदल सकता है,,,जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस में यहां अंदरूनी जंग छिड़ी है उसका थोड़ा फायदा भी छोटे दलों को मिल सकता है।

 

2024 की राह कितनी आसान-

राजस्थान में जातिगत समीकरणों का भी बड़ा असर रहता है,चुनाव नजदीक आने के साथ जातीय गणित को लेकर भी पार्टियां मंथन में जुटी है। लेकिन राजस्थान की बात करें तो यहां वर्षों से जातिगत समीकरण कई पार्टियों के लिए चौंकाने वाले रहे हैं। पूर्वी बेल्ट राजस्थान का महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो मीणा और गुर्जर वोटों के प्रभुत्व के लिए जाना जाता है, जबकि शेखावाटी और मारवाड़ बेल्ट महत्वपूर्ण जाट वोटों के लिए जाना जाता है। मीणाओं ने 2018 में अपने समुदाय के सबसे बड़े नेता किरोड़ी लाल मीणा को खारिज कर सबको चौंका दिया था। जाटों में हनुमान बेनीवाल ने रिकॉर्ड अंतर से जीत हासिल की, क्योंकि उन्होंने खुद को जाट नेता के रूप में प्रचारित किया। ऐसे उदाहरणों से समझा जा सकता है कि राजस्थान में पार्टियों के लिए जातीय समीकरणों का अनुमान लगाना कितना कठिन है।

इन राज्यों में सत्ता किसके पास जाएगी यह अभी स्‍पष्‍ट नहीं है लेकिन अलग-अलग सर्वे में कहीं भारतीय जनता पार्टी, कहीं कांग्रेस तो कहीं किसी भी दल को भी स्पष्ट बहुमत मिलता दिखाई नहीं दे रहा है।ऐसे में ये छोटे दल किंग मेकर की भूमिका में आ सकते हैं,जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई है, उनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना शामिल हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश, मिजोरम और तेलंगाना में एक चरण में चुनाव होंगे, जबकि छत्तीसगढ़ में दो चरणों में चुनाव होंगे. सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए 11 दिसंबर को मतगणना होगी और इसी दिन नतीजे आएंगे ,इसी दिन साफ़ हो जायेगा कि 2024 की राह किसकी आसान होगी और किसकी मुश्किलों में इजाफा होगा।