Day: August 14, 2023

सन्नी पाजी की ‘गदर 2’ ने मचाया गदर, लोगों में ऐसा क्रेज आज तक नहीं देखा होगा…

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सिनेमाघरों में पिछले कुछ सालों से मंदी का दौर चल रहा था। दर्शकों की संख्या कम थी। लेकिन गदर 2 ने आते की गदर मचा दिया। पहले शो के लिए सुबह आठ बजे से सिनेमाघरों में दर्शकों की लाइन लगने लगी है। हिंदुस्तान जिंदाबाद था, जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा। सनी देओल के इस डायलॉग को लोग 22 साल बाद भी नहीं भूले हैं। 22 साल बाद फिर से बड़े पर्दे पर गदर मचाने आए सनी देओल ने अपने दर्शकों को निराश नहीं किया है। गदर में हैंडपंप उखाड़ने वाले सनी देओल गदर 2 में भी पाकिस्तान जाकर कुछ उखाड़ते हैं, जो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा। दर्शक टिकट बुक कराने के लिए बेताब थे। सिनेमाघर मालिक दर्शकों के उत्साह से काफी खुश थे। लंबे समय बाद किसी फिल्म के लिए इतनी बेसब्री दर्शकों ने दिखाई है। गदर में तारा सिंह अपनी सकीना को बचाने पाकिस्तान गए थे तो इस फिल्म में वो अपने बेटे जीते को लेने जाएंगे। फिल्म में नाना पाटेकर की आवाज में पहली फिल्म की कहानी भी सुनाई देती है। बेटे के रूप में उत्कर्ष शर्मा के काम को पसंद किया जा रहा है।

 छोटे-छोटे थिएटर भी फुल- 

 

 सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद वॉलीवुड इंड्रस्ट्री पर ऐसा असर पड़ा कि उसका देश के एक बड़े तबके ने विरोध करना शुरू कर दिया, धीरे-धीरे इसका असर ये हुआ कि कई फिल्मों का भी बायकाट तक देश में ट्रेंड करने लगा  जिसका असर सीधे तौर पर पूरी फिल्म इंड्रस्ट्री पर पड़ा था, कई फ़िल्में जो अच्छी कमाई कर सकती थी, उनका कलेक्शन उम्मीद से काफी कम रहा, जिसका असर पूरे  वालीवुड पर देखने को मिल रहा था ,ऐसा नहीं है इस बीच फ़िल्में नहीं चली पठान और आदिपुरुष जैसी फ़िल्में विवादों के बाद भी अच्छी कमाई करने में कामयाब रही. लेकिन जो गदर इस बार सनी देओल की गदर 2 ने मचाया है. उसने पुरे वालीवुड इंडस्ट्री में एक नई जान फूक दी है, कुछ सालों से बड़े बड़े मल्टीप्लेक्स में ही फिल्मों का क्रेज देखा जा रहा था, छोटे थियेटर मानों बंद होने के कगार पर आ गए थे, लेकिन गदर टू ने एक बार फिर लोगों में वो क्रेज बनाया है कि अब सुने पड़े छोटे-छोटे थियटरों में भी लम्बी-लम्बी लाइने लगी है।

सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है फिल्म- 

 

इसकी सक्सेस को फिर भुनाता दिखाई दे रहा है.’गदर 2′ का क्रेज ऐसा है कि लोग इसे देखने ट्रैक्टर पर चढ़कर पहुंच रहे हैं. हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे सिनेमाघरों के अंदर लग रहे हैं,लोग इस फिल्म के गानों पर सिनेमा हाल के अंदर ही नाचते नजर आ रहे हैं, बड़े बड़े मल्टीफ्लेक्स के अलावा छोटे -छोटे सिनेमाघरों में उमड़ी भीड़ इस फिल्म को लेकर लोगों के क्रेज को दर्शा रही है,कई सालों बाद ऐसा क्रेज देखने को मिला है,ये फिल्म हो सकता है कमाई के मामले में आज शाहरुख़ की पठान को पीछे छोड़ दे लेकिन इसका क्रेज बता रहा है कि सनी देओल को लेकर लोगों में कितना क्रेज है खासकर उनके एंग्री और एक्शन रोल को लेकर।

पहले ही दिन 40 करोड़ की कमाई- 

 

हर दिन फिल्म की कमाई में भी इजाफा हो रहा है. जहां पहले दिन इस फिल्म ने 40 करोड़ का बिजनेस किया था. वहीं दूसरे दिन इस फिल्म ने 43 करोड़ की दमदार कमाई की. गदर 2 को लेकर फैंस का क्रेज इतना जबरदस्त है कि ‘गदर 2’ ने रिलीज के पहले तीन दिन में ही 135.18 करोड़ रुपये की शानदार कमाई करते हुए न सिर्फ सनी देओल का करियर पटरी पर ला दिया है. बल्कि इस फ्रेंचाइजी की तीसरी फिल्म ‘गदर 3’ का रास्ता भी मजबूत कर दिया है। फिल्म का कलेक्शन स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त की छुट्टी के दिन नई ऊंचाइयां छूने की पूरी उम्मीद है।

OMG-2 को कड़ी टक्कर-

 

दिलचस्प बात ये है कि यदि ये प्रीडिक्शन सही साबित होता है तो ‘गदर 2’ शाहरुख खान स्टारर इस साल की सबसे बड़ी बॉलीवुड फिल्म ‘पठान’ को भी तीसरे दिन के कलेक्शन में पीछे छोड़ सकती है. आपको बता दें, पठान ने रिलीज के तीसरे दिन 39.25 करोड़ रुपए की कमाई की थी. तारा सिंह बनकर लौटे सनी देओल अक्षय कुमार स्टारर फिल्म ओएमजी 2 को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. जहां गदर 2 का बॉक्स ऑफिस ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है. वहीं ये फिल्म बॉक्स ऑफिस आंकड़ों में ओएमजी 2 को लगातार पछाड़ती नजर आ रही है। 

फिल्म जगत में एक नई उम्मीद- 

 

बॉक्स ऑफिस पर फिल्म का सूखा खत्म हो रहा है. कोरोना के बाद यानी 2022 में दर्शकों ने एक तरह से सिनेमाघरों  और बॉलीवुड फिल्म से मुंह मोड़ लिया था, लेकिन 2023 बॉलीवुड के लिए अच्छा साबित हो रहा है. उत्तराखंड के भी बड़े से लेकर छोटे सिनेमाघरों में इस फिल्म को देखने भारी भीड़ उमड़ रही है,,सड़कों में जाम लग रहा है,,रुड़की में हरिद्वार हाईवे किनारे स्थित सिनेमाघर  में बड़ी संख्या में लोग ‘गदर-2’ को देखने के लिए सिनेमा हाल का रुख कर रहे हैं। सिनेमा हाल पर टिकट के लिए मारामारी मची है। पहले से ही लोगों ने आनलाइन टिकट बुकिंग कर रखी है, जिसके चलते खिड़की पर टिकट नहीं मिल रहे हैं। यही हाल देहरादून के सिनेमाघरों में हैं,जहां बड़े- बड़े मल्टीफ्लेक्स से लेकर छोटे-छोटे सिनेमाघरों में भी भारी भीड़ देखने को मिल रही  है. अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में ये फिल्म और कौन से रिकार्ड तोड़ती है, बहरहाल इस फिल्म ने एक बार फिर सिनेमाघरों का सूखा तोडा है साथ ही फिल्म जगत में  एक नई उम्मीद पैदा की है। 

विकास की भेंट चढ़ा उत्तराखंड, केंद्र सरकार की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा…

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जल, जंगल और जमीन उत्तराखंड की यही पहचान मानी जाती है, इन्ही तीनों चीजों से बचने के लिए एक पृथक राज्य की मांग की गयी थी, जल,जंगल और जमीन पर उत्तराखंड के लोगों का हक हो और इन संसाधनों से प्रदेश तरक्की की तरफ बढ़े, इसको लेकर अनेकों लोगों ने बलिदान भी दिए और काफी समय तक उत्तराखंड बनने को लेकर जबरदस्त आंदोलन भी किए. आखिरकार उत्तराखंड का निर्माण हुआ और विकास का जन्म भी हुआ, ऐसा ना केवल तमाम मुख्यमंत्रियों के भाषणों में भी आया और एसी कमरों में बैठकर विकास को बड़ा करने की बड़ी-बड़ी बातें भी उन उत्तराखंडियों के सामने की जो स्वभाव से सरल और सौम्या की मिसाल के तौर पर पूरे देश में पहचान रखते हैं. मगर इसका मतलब ये नहीं की वो झूटे वादों की हकीकत से रुबरु नहीं है,,, बाकी रही-सही कसर भारत के लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा में खुलकर सामने आ गयी. जब उत्तराखंडियों को उत्तराखंड की हकीकत सामने दिखाई देने लगी।

 

हिल चुकी है पहाड़ों की नींव- 

संसद में रखी एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी राज्यों में सबसे अधिक उत्तराखंड के जंगल विकास की भेंट चढ़ गए हैं, यही कारण है कि जिस प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है, अब उसे आपदा प्रदेश के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें गर्मी में धधकती आग जंगल जला देती है, सर्दी में बर्फीली चोटियां नदियों के आवेग को अचानक बड़ा देती है, और तेज बारिश, फटते बादल जिंदगियों को तबाह कर देती हैं. ये तीनों ही मुश्किल हालात विकास की सीमा को पार कर भोले-भाले मासूम लोगों की जिंदगी को असमय लील लेती हैं.. और काल के गाल में समाते लोग इन मुश्किल हालातों में कुछ नहीं कर पाते हैं.. घर तबाह, खेत तबाह, जिंदगी तबाह। उत्तराखंड में जिस तरह विकास के नाम पर जंगलों से लेकर जल विधुत परियोजनाओं और सड़कों के निर्माण में भूमि का कटान हो रहा है उससे इस प्रदेश के मजबूत पहाड़ों की नीवं इस कदर हिल चुकी हैं कि जरा सा झटका भी यहां के पहाड़ झेल नहीं पाते हैं और भरभरा कर जमीदोज हो जाते हैं. जगह-जगह भूस्खलन से लोगों की जान जा रही है. पूरे प्रदेश में जो सबसे बड़ा उदाहरण है वो इस समय जोशीमठ और उत्तरकाशी है. जहां भूस्ख्लन की वजह से सालों साल से रह रहे लोग अब घर छोड़ने को मजबूर हैं।

 

सरकारों से ये कुछ सवाल- 

सवाल ये उठता है कि क्या उत्तराखंड की स्थापना का उद्देश्य पूरा हो गया है ?

क्या हमारे शहीदों ने इसी विकास के लिए राज्य मांगा था ?

हमारी सरकारें इस प्रदेश को किस दिशा की तरफ ले जा रही है ?

हमारी सरकारों और यहां के नेताओं में कोई भी एक नेता ऐसा नहीं दिखाई देता जिसके पास इस प्रदेश के विकास के लिए यहां के अनुकूल कोई विजन हो, जिससे इस प्रदेश के यहां की परिस्थितियों के हिसाब से विकास हो सके. आखिर कैसे सिर्फ एक अंधी विकास की दौड़ में इस प्रदेश को जो क्षती पहुंच रही है उससे प्रदेश को बचाया जा सके. उत्तराखंड को विकास की दरकार है लेकिन जिस तरह से अनियोजित तरिके से ये काम चल रहे हैं उससे आने वाले भविष्य में इस प्रदेश के लोगों को इस विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी और शायद कीमत वो चुका भी रहे हैं. बड़ी-बड़ी जल विधुत परियोजनाओं के लिए पहाड़ों को अंदर से खोखला किया जा रहा है, नदियों के प्रवाह  को पूरी तरह से रोका जा रहा है, आल वेदर रोड हो या फिर रेल प्रोजेक्ट जिस तरह से पहाड़ों में अंधाधुंध कटान हो रहा है वो कहीं न कहीं इन पहाड़ों की नीव को कमजोर कर  रहा है।

 

क्या कहते हैं भूपेंद्र यादव- 

केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में जो आंकड़े रखे वो कही न कहीं इस प्रदेश की उस जनता को रास नहीं आएंगे,जो इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचते हैं,,,संसद में रखें इन आंकड़ों के मुताबिक पिछले डेढ़ दशक के दौरान हिमालयी राज्यों में सबसे अधिक जंगल उत्तराखंड राज्य में गैर वानिकी उपयोग यानी विकास की भेंट चढ़े हैं। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 15 वर्षों में 14 हजार 141 हेक्टेयर वन भूमि अन्य उपयोग के लिए ट्रांसफर की गई।

 

उत्तराखंड देश के 10 राज्यों में शामिल- 

आंकड़ों के मुताबिक, वन भूमि डायवर्सन मामले में उत्तराखंड देश के प्रमुख 10 राज्यों में शामिल है। राज्य में औसतन प्रत्येक वर्ष 943 हेक्टेयर भूमि दी जा रही है। वर्ष 2008 से लेकर 2009…वर्ष 2022 से लेकर 2023 के दौरान सभी राज्यों में 30 लाख 5 हजार 945.38 हेक्टेयर भूमि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत गैर वानिकी उपयोग के लिए लाई गई। अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर बाकी कोई हिमालयी राज्य उत्तराखंड के आसपास नहीं है। पड़ोसी राज्य हिमाचल में 6 हजार 696 हेक्टेयर वन भूमि दूसरे उपयोग के लिए इस्तेमाल हुई। जो उत्तराखंड के मुकाबले आधी से भी कम है,, ये सभी भूमि सड़क.. रेलवे..पुनर्वास.. शिक्षा.. उद्योग.. सिंचाई.. ऑप्टिकल फाइबर.. नहर.. पेयजल.. पाइपलाइन.. उत्खनन..जल.. ऊर्जा.. सौर ऊर्जा जैसे कार्यों के लिए दी गयी है, हालाकि प्रदेश के विकास के लिए ये सभी चीजें जरूरी भी हैं, लेकिन इसके कुछ मानक तय नहीं किए गए हैं,,, मसलन इन सबके लिए बेहिसाब तरिके से पहाड़ों का दोहन किया जाता है,,, पर्यावरण विद कई बार सरकार को इस पर चेता चुके हैं कि इस प्रदेश में बड़ी जल विधुत परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए बल्कि छोटी-छोटी परियोजनाओं को बनाया जाना चाहिए लेकिन सरकारें इन पर गौर करने को शायद तैयार ही नहीं है. जिसका नतीजा ये हैं कि प्रदेश में बड़ी-बड़ी जल विधुत परियोजनाओं को ह्री हरी झंडी मिलती रही है।

 

पहले भी दी जा चुकी है चेतावनी- 

जोशीमठ भू धसाव के बाद स्थानीय लोगों ने जिस तरह वहां बन रही जल विधुत परियोजना को भू-धसाव का कारण माना वो अनायास ही नहीं बल्कि उसके पीछे ये परियोजना भी एक बड़ा कारण बनी है ऐसा पर्यावरण विद मानकर चलते हैं. इसके नतीजे अब देखने को भी मिल रहे हैं. चमोली जिले में सबसे ज्यादा पहाड़ हिल रहे हैं, भूस्खलन हो रहा है. हालात आज के दौर के ये हो चले हैं कि अपराध को रोकने के लिए बनी पुलिस खासकर चमोली पुलिस मानसून सीजन में सभी काम छोड़ कर सिर्फ यही बताने में लगी रहती है कि यहां रास्ता बंद है और यहां खुला है. जब से आल वेदर सड़क का काम शुरू हुआ है तब से नए नए भूस्खलन जोन बन चुके हैं, जिससे लगातार कटाव बढ़ रहे हैं. जिसकी चेतावनी भी  पहले दी जा चुकी है. याद कीजिए जब सुप्रीम कोर्ट की एक हाइ पावर कमेटी ने सिफारिश की थी कि ये प्रोजेक्ट पहाड़ के लिए बेहद खतरनाक है, लेकिन इस कमेटी की भी सलाह को नजरअंदाज कर दिया गया।

 

इस कारण बेमौत मर रहे हैं लोग- 

2018 में  इस प्रोजेक्ट को एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में चेलेंज किया था, इस याचिका में कहा गया कि सड़क के लिए पहाड़ो को जरूरत से अधिक काटना पहाड़ के ईको सिस्टम को तबाह कर रहा है… और इससे आपदाएं भी लगातार बढ़ रही हैं… कोर्ट ने इस पर फैसला देते हुए सड़क की चौड़ाई साढ़े पांच मीटर तक रखने का आदेश दिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ही चेलेंज कर दिया…. सरकार ने चीन सीमा,,, सैनिकों को सुविधाएं पहुंचाने जैसे अनेक तथ्य रखे, जिसके बाद कोर्ट ने केंद्र की सलाह को माना और सड़क को 10 मीटर तक चौड़ा करने का फैसला दे दिया,,, अब पहाड़ पर हो रहे इस अंधाधुंध कटाव और सड़क चौड़ीकरण के लिए कट रहे पेड़ों का ही नतीजा है कि पूरे यात्रा मार्ग में नए-नए भूस्खलन जोन लगातार बनते चले जा रहे हैं। जिसका खामीयाजा आखिरकार भुगतना तो पड़ेगा ही.. और मासूम लोग भुगत भी रहे हैं…हालांकि सुप्रीम कोर्ट के दिए किसी भी फैसले पर टिप्पणी करना हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है मगर शायद बेमौत मर रहे लोग, तबाह होते घर हमें जुबान देने को मजबूर कर देते हैं।

 

क्या कहते हैं सामाजिक कार्यकर्ता- 

सामाजिक कार्यकर्ता और उत्तराखंड की सटीक जानकारी रखने वाले अनूप नौटियाल मानते हैं कि उत्तराखंड राज्य की संवेदनशीलता को देखते हुए ये आंकड़े चिंता में डालने वाले हैं। हर साल राज्य आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का सामना कर रहा है। नीति नियंताओं को गंभीरता से पर्यावरण संतुलन के बारे में सोचना होगा। ऐसा ना हो की देर हो जाए…ऐसा नहीं है कि प्रदेश की जनता ये सब नहीं समझ रही है बल्कि अब वो अपने जल,जंगल और जमीन को बचाने के लिए आंदोलन भी कर रही है,यही कारण है कि प्रदेश में अब एक शसक्त भू कानून की मांग को लेकर भी एक बड़ा आंदोलन पनप रहा है,सशक्त भू-कानून  लागू करने की मांग को लेकर राज्य आंदोलनकारियों, संगठनों और दलों ने मुख्यमंत्री आवास कूच किया।आंदोलनकारियों ने  मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा और मांगों पर कार्रवाई न होने पर बड़े से बड़े आंदोलन की चेतावनी दी।

 

एक दिन बड़ी त्रासदी झेल सकता है प्रदेश- 

कुल मिलाकर अपने प्रदेश के जल जंगल और जमीन बचाने के लिए अब प्रदेश की जनता भी आवाज उठा रही है. ऐसा नहीं है कि प्रदेश में विकास नहीं हुआ. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या जिस तरह के उत्तराखंड की कल्पना  की गई थी हम उसी ओर बढ़ रहे हैं. क्या इस तरह के विकास से हम इस हिमालयी राज्य का संतुलन बिगाड़ रहे हैं. ये एक बड़ा सवाल है. जिसका जवाब मिलना बाकी है? अगर जल्दी ही इस विषय पर इस प्रदेश की प्रबुद्ध जनता और राजनेताओं ने नहीं सोचा तो एक दिन ये प्रदेश एक बड़ी त्रासदी झेलने को मजबूर हो जाएगा। याद रहे 2013 की वो 16 और 17 जून की याद जो अभी तक भी हमे झकझोर कर रख देती है. यकीन है की उस काली रात की कल्पना एक बार फिर से ना तो उत्तराखंड की सरकार करेगी और ना ही केंद्र में बैठी मोदी सरकार करेगी।