Day: August 4, 2023

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई राहुल गांधी की सजा पर रोक, मोदी सरनेम मामले में बड़ा फैसला…

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मोदी सरनेम पर दिए एक बयान से राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता चली जाती है और उनको दो साल की सजा सुनाई जाती है, आज सुप्रीम कोर्ट राहुल ने राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी, लेकिन जिस याचिकाकर्ता ने राहुल के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी उनको लेकर भी कोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है, मोदी सरनेम को लेकर दिए एक बयान के बाद जहां गुजरात की कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी जिसके बाद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता चली गयी थी, अब काफी  समय से मोदी सरनेम को लेकर चल रही क़ानूनी लड़ाई में राहुल गांधी को राहत मिली है, मोदी सरनेम केस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए राहुल की सजा पर रोक लगाई है. जज ने राहुल गांधी को राहत देते हुए कहा, हम सेशन्स कोर्ट में अपील लंबित रहने तक राहुल की दोष सिद्धि पर रोक लगा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी को राहत मिलने पर कांग्रेस ने कहा, ये नफरत के खिलाफ मोहब्बत की जीत है. सत्यमेव जयते-जय हिंद… 

 

मोदी सरनेम को लेकर खुलासा- 

इस मामले में एक बड़ी बात सामने आयी है, दरअसल राहुल ने अपने एक बयान में कहा था कि सारे मोदी चोर क्यों हैं,,, जिसके बाद  पूर्णेश मोदी नाम के एक शख्स ने राहुल गांधी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी कि राहुल गांधी ने सभी मोदी सरनेम वालों का अपमान  किया है, इसी  शिकायत पर राहुल गांधी को कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई, जिसके चलते उनको अपनी सदस्य्ता गवानी पड़ी थी, लेकिन जिन पूर्णेश मोदी ने सारे मोदी सरनेम वालों का इसको अपमान बताकर शिकायत की थी उनका खुद का सरनेम मोदी नहीं है ,,, राहुल गांधी के इस मामले की सुनवाई जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही थी. राहुल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत में तर्क देते हुए कहा कि खुद शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी का मूल सरनेम ही मोदी नहीं है. उनका मूल उपनाम भुताला है. सिंघवी ने आगे कहा कि मोदी सरनेम और अन्य से संबंधित प्रत्येक मामला भाजपा के पदाधिकारियों द्वारा दायर किया गया है. यह एक सुनियोजित राजनीतिक अभियान है. इसके पीछे एक प्रेरित पैटर्न दिखाता है. राहुल गांधी इन सभी मामलों में केवल आरोपी हैं, दोषी नहीं है, जैसा कि हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है।  

 

क्या कहा राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने-
 

राहुल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राहुल गांधी ने अपने भाषण में जिन लोगों का नाम लिया था, उनमें से एक ने भी मुकदमा नहीं किया है. दिलचस्प बात ये है कि 13 करोड़ की आबाद वाले इस ‘छोटे’ समुदाय में जो भी लोग पीड़ित हैं, उनमें से केवल भाजपा के पदाधिकारी ही मुकदमा दायर कर रहे हैं. क्या ये बहुत अजीब नहीं है, उस 13 करोड़ की आबादी में न कोई एकरूपता है,, न पहचान की एकरूपता है,, न कोई सीमा रेखा है.. दूसरा कि ये पूर्णेश मोदी ने स्वयं कहा कि उनका मूल सरनेम मोदी नहीं था. अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में राहुल का पक्ष रखते हुए कहा कि इस मामले में मानहानि केस की अधिकतम सज़ा दे दी गई. इसका नतीजा ये होगा कि राहुल गांधी 8 साल तक जनप्रतिनिधि नहीं बन सकेंगे. उन्होंने शीर्ष अदालत को बताया हाईकोर्ट ने 66 दिन तक आदेश सुरक्षित रखा. राहुल लोकसभा के 2 सत्र में शामिल नहीं हो पाए हैं। 

SC ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर भी उठाए सवाल-
राहुल पर फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा, कि राहुल की अपील सेशन कोर्ट में पेंडिंग है, इसलिए हम केस पर टिप्पणी नहीं करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाए और कहा कि जहां तक राहुल की सजा पर रोक की बात है, ट्रायल कोर्ट ने राहुल को मानहानि की अधिकतम सजा दी है लेकिन इसका कोई विशेष कारण नहीं दिया है. राहुल गांधी की सजा कम भी हो सकती थी। कोर्ट जानना चाहता है कि अधिकतम सजा क्यों दी गई? कोर्ट का मानना है कि अगर जज ने एक साल 11 महीने की सजा दी होती तो राहुल गांधी अयोग्य नहीं ठहराए जाते। 2 साल की सजा के चलते राहुल जनप्रतिनिधित्व कानून के दायरे में आ गए अगर उनकी सजा कुछ कम होती तो उनकी सदस्यता नहीं जाती. इसमें कोई शक नहीं है कि राहुल का बयान अच्छा नहीं था. सार्वजनिक जीवन मे बयान देते समय संयम बरतना चाहिए. ट्रायल कोर्ट के इस फैसले से राहुल के अलावा उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोगों का अधिकार भी प्रभावित हो रहा है. इसलिए हम सेशंस कोर्ट में अपील लंबित रहने तक राहुल की सजा पर रोक लगा रहे हैं।  

राहुल गांधी की सदस्यता फिर होगी बहाल ?

अब सवाल उठता है कि क्या राहुल की सदस्यता फिर से बहाल होगी ? दरअसल राहुल गांधी को दी गई ये राहत फौरी राहत है. अगर सेशंस कोर्ट दो साल की सजा सुनाता है तो यह अयोग्यता फिर से लागू हो जाएगी. लेकिन अगर राहुल गांधी को बरी कर देता है या सजा को घटाकर दो साल से कम कर देता है तो सदस्यता बहाल रहेगी. निचली अदालत के फैसले के बाद लोकसभा सचिवालय ने अधिसूचना जारी कर दी थी कि वायनाड की सीट खाली है. राहुल गांधी को कोर्ट के इस फैसले के बाद लोकसभा सचिवालय को प्रतिवेदन देना होगा. इसमें सुप्रीम कोर्ट के आज के आदेश का उल्लेख कर लोकसभा सदस्यता बहाल करने का अनुरोध किया जाएगा. इसके बाद लोकसभा सचिवालय के अधिकारी आदेश का अध्ययन करेंगे . जिसके बाद राहुल गांधी की सदस्यता बहाल करने का आदेश जारी किया जाएगा. हालांकि, इसकी कोई समय सीमा नहीं है. लेकिन इस प्रक्रिया को जल्द ही करना होगा। 

 

2019 में चुनाव प्रचार के दौरान दिया था बयान- 

अब आपको पूरा मामला बताते हैं ,,दरअसल 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार की एक रैली में राहुल गांधी ने कहा था, ‘कैसे सभी चोरों का उपनाम मोदी है?’ इसी को लेकर भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था। राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का  मामला दर्ज किया गया था। 23 मार्च को निचली अदालत ने राहुल को दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। इसके अगले ही दिन राहुल की लोकसभा सदस्यता चली गई थी। राहुल को अपना सरकारी घर भी खाली करना पड़ा था। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ दो अप्रैल को राहुल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।  हाईकोर्ट   ने मई में राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सात जुलाई को कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया और राहुल की याचिका खारिज कर दी थी। 

 

उच्च न्यायालय का आदेश स्वतंत्र भाषण, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है-

यदि लागू फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह “स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र बयान का गला घोंट देगा”। यह “लोकतांत्रिक संस्थाओं को व्यवस्थित, बार-बार कमजोर करने और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का गला घोंटने में योगदान देगा जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा”। यदि राजनीतिक व्यंग्य को आधार उद्देश्य माना जाए, तो कोई भी राजनीतिक भाषण जो सरकार की आलोचनात्मक हो, नैतिक अधमता का कार्य बन जाएगा। “यह लोकतंत्र की नींव को पूरी तरह से नष्ट कर देगा।”


अब देखना होगा कि राहुल गाँधी अपनी सदस्यता बहाल करने के लिए कदम आगे बढ़ाते हैं या फिर किसी और रणनीति के तहत आगे बढ़ते हैं ,पर फिलहाल कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस सिर्फ एक बात कह रही है,की ये  नफरत के खिलाफ मोहब्बत की जीत है. सत्यमेव जयते-जय हिंद.

वादों और दावों का उत्तराखंड, जमीनी हकीकत से मुंह छुपाती सरकारें…

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हर देश में रहने वाले लोग पहले अपना राजा चुनते हैं,,, ताकि उसे किसी भी समस्या से जूझना ना पड़े, और राजा का भी यही कर्तव्य होता है  कि वो अपनी  प्रजा को  होने वाली हर समस्या और परेशानियों से  बाहर निकाले. लेकिन जब उसी जनता की जरूरत और बढ़ती परेशानियों को उसे खुद ही झेलना पड़े तो राजा का कर्तव्य और उसकी प्रजा के लिए उसके मायने वहीं पर खत्म हो जाते हैं


उत्तराखंड प्रदेश में दम तोड़ती सभी सेवाएं-

सभी जानते हैं कि वादों और दावों में गठन के समय से ही उत्तराखंड में विकास तेजी से भाग रहा है. भले ही वो कागजों तक ही हुआ हो, क्योकि धरातल पर जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी को बयां करती है. और ये सिर्फ आज ही नहीं बल्कि हमेशा से होता आया है. उत्तराखंड जैसा राज्य आज किसी भी चीज में पीछे नहीं रह गया  है,,, फिर चाहे वो अपराध हो, पलायन को मजबूर वो लोग हों जो ना चाहते हुए भी सब कुछ त्याग कर चले गए… ‘एक नई जगह अपनी दुनिया बसाने,  फिर चाहे वो बेरोजगारी हो, या फिर दम तोड़ती हुई स्वास्थ्य सेवाएं हो, चाहे वो बेहतर शिक्षा का विषय ही क्यो न हो.  ये सभी चीजें धरातल पर दावों और वादों की हकीकत को पूरी बदलकर रख देती है और सोचने को मजबूर करती है उन सभी लोगों को. जो अब तब बड़ी  संख्या में पलायन कर चुके हैं, बेरोजगारी के नारे लगा रहे हैं, और आज भी कई जगह सड़कों के ना होने के चलते लोगों को डंडी और कंडी का सहारा देना पड़ रहा है, कई लोग आज भी खराब सड़कों के कारण रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं,,तो वहीं अस्पताल में कभी लिफ्ट के पास तो कभी फर्श पर महिलाओं का प्रसव हो रहा है

 

सबसे पहले बात उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था की- 

एक बच्चे के लिए स्कूल, घर और दुनिया को जोड़ने वाले पुल की तरह काम करता है,,, जिसे अब हर कोई पार करना चाहता है. लेकिन दावों और वादों की पहली हकीकत यही सामने आ जाती हैं.  प्रदेश में 12 जुलाई 2022 को नई शिक्षा नीति  लागू की गयी  थी, उत्तराखंड नई शिक्षा नीति लागू करने वाला देश का पहला राज्य तो  बन गया. लेकिन आज कई उच्च प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कठिन विषयों के शिक्षक नहीं हैं। विशेषकर दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक से लेकर माध्यमिक विद्यालयों को छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए भी वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। तंत्र की इस लापरवाही का परिणाम ये हुआ है कि दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा की रोशनी पहुंचाने के लिए खोले गए विद्यालयों में भी छात्र संख्या घट रही है। और यदि कहीं छात्र है भी तो वहां शिक्षक ही नहीं हैं. हाल ये हैं कि बेटी पढ़ाओ अभियान का नारा दे रही  सरकार के ये नारे दम तोड़ रहे हैं। 

10 हजार से अधिक बेटियों का भविष्य संकट में-

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात में शिक्षा के महत्व को बताते हैं तो मानो लगता है कि ये सिर्फ उन पर लागू होता है जो उसे सुन रहे हैं. क्योकि उस पर अमल करने और उसे पूरा करने में शायद सत्ता में बैठे मंत्री और मुख्यमंत्री फेल हो गए हैं. इसका एक उदाहरण अल्मोड़ा जिले में देखने को मिलता है, जहां बेटियों के लिए संचालित 21 जीजीआईसी में शिक्षिकाओं के 117 पद लंबे समय से खाली हैं। शिक्षिकाएं न होने से इन विद्यालयों में पढ़ने वाली 10 हजार से अधिक बेटियों का भविष्य संकट में हैं। अभिभावक काफी समय से शिक्षिकाओं के रिक्त पदों को भरने की मांग कर रहे हैं पर कोई सुनवाई नहीं हुई। बेटियों को बेहतर शिक्षा देकर उन्हें सफल और आत्मनिर्भर बनाने के दावों के बीच उन्हें पढ़ाने के लिए विद्यालयों में शिक्षिकाएं ही नहीं हैं।


एक ही शिक्षक कई विषयों को पढाने को मजबूर- 

अल्मोड़ा जिले में बेटियों के लिए खोले गए विद्यालय इसकी बानगी हैं। जिले में 21 जीजीआईसी संचालित हैं जिनमें 10 हजार से अधिक बेटियां पढ़ रही हैं। इन विद्यालयों में प्रवक्ताओं के 193 और एलटी संवर्ग में शिक्षिकाओं के 289 (नवासी) पद सृजित हैं। आश्चर्य की बात ये है कि इनमें प्रवक्ताओं के 68 और एलटी संवर्ग में शिक्षिकाओं के 49 पद सालों से रिक्त हैं। ऐसे में बेटियां बगैर शिक्षकों के पढ़ने के लिए मजबूर हैं और उनके भविष्य को लेकर अभिभावक चिंतित हैं। अब इस पर कई टॉपर्स बच्चों ने भी उत्तराखंड  सीएम के सामने  ये मांग उठायी है. ये कोई एकलौता मामला नहीं है,, उत्तराखंड के कई जूनियर हाईस्कूलों ऐसे है जहां पर सामाजिक विषय के शिक्षक बच्चों को हिंदी, अंग्रेजी और गणित पढ़ा रहे हैं। खासकर एकल शिक्षक वाले जूनियर स्कूलों में ये हालात  है। इस तरह के राज्य में इक्का दुक्का नहीं बल्कि 170 स्कूल हैं।  तीन हजार प्राथमिक विद्यालयों में एक से पांचवीं कक्षा तक के बच्चे एक ही क्लास  में पढ़ रहे हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि 1 से 5 तक के बच्चे कैसे एक ही क्लास में पढ़ रहे हैं.. क्या ये  शिक्षा विभाग का कोई मिक्स लर्निंग का अभिनव प्रयोग तो नहीं ?  ऐसा नहीं है बल्कि स्कूलों में घट रही छात्र संख्या और शिक्षकों की कमी की वजह से ऐसा किया जा रहा है। बता दें कि राज्य सेक्टर के जूनियर हाईस्कूलों में मानक के अनुसार चार सहायक अध्यापक और एक प्रधानाध्यापक होना चाहिए। जबकि सर्व शिक्षा के जूनियर हाई स्कूलों में तीन सहायक अध्यापक के पद हैं, लेकिन स्कूलों में मानक के अनुसार शिक्षक न होने से 170 एकल शिक्षकों वाले इन स्कूलों में एक शिक्षक को 21 विषयों को पढ़ाना पड़ रहा है।  इसमें कुछ स्कूल देहरादून जिले के हैं। जहां पूरी सरकार रहती है , जिले के जूनियर हाईस्कूल रावना विकासखंड चकराता में पिछले तीन साल से मात्र एक शिक्षक है। सामाजिक विषय के शिक्षक  को हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, संस्कृत व कला सभी विषय पढ़ाने पड़ रहे हैं। यही स्थिति इसी ब्लॉक के जूनियर हाईस्कूल बिसऊ घणता की है। स्कूल एकल शिक्षक के भरोसे है, स्कूल के एकल शिक्षक  का भी वर्ष 2016 में चकराता ब्लॉक से विकासनगर ब्लॉक के मदरसा स्कूल में तबादले का आदेश हुआ था, लेकिन रिलीवर न मिलने की वजह से शिक्षक नई तैनाती पर नहीं जा सके।

एक ही कक्षा में पढ़ने को मजबूर हैं कई कक्षाओं के छात्र-छात्राएं-  

राजकीय प्राथमिक विद्यालय मन टाड के शिक्षक  के मुताबिक स्कूल में मात्र सात छात्र-छात्राएं हैं। कम छात्र होने की वजह से कक्षा एक से पांचवीं तक के सभी छात्र-छात्राएं एक कक्षा में पढ़ते हैं। विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक देहरादून जिले में इस तरह के 72 स्कूल हैं। इतने स्कूलों में छात्र एक ही कक्षा में पढ़ते हैं,  प्रदेश का पिथौरागढ़ ऐसा जिला है, जिसमें एकल शिक्षक वाले सबसे अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। स्कूल में कम छात्र संख्या की वजह से एक से पांचवीं तक के छात्र एक ही कक्षा में पढ़ते हैं। जिले में इस तरह के 486 स्कूल हैं। जबकि अल्मोड़ा में 442, बागेश्वर में 293, चमोली में 396, चंपावत में 135, हरिद्वार में 36, नैनीताल में 228, पौड़ी में 273, रुद्रप्रयाग में 221, टिहरी में 302, ऊधमसिंह नगर में 98 एवं प्राथमिक विद्यालय उत्तरकाशी में 208 स्कूल हैं।


बच्चों ने मुख्यमंत्री को गिनाई पहाड़ की कई समस्याएं- 

अभी एक कार्यक्रम में  उत्तराखंड सरकार ने 10वीं और 12वीं के टॉपर बच्चों के प्रोत्साहन के लिए उन्हें सम्मानित किया.. वहां  पर भी कई बच्चों ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को अपनी कई परेशानियां गिनाई बच्चों ने मुख्यमंत्री से संवाद करते हुए ये भी कहा कि 12वीं के बाद फिर से वही समस्या होती है। छात्रों ने कहा कि सिविल सेवा या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए मैदानी जनपदों में जाना उनकी मजबूरी बन जाता है। इसलिए ऐसा कुछ इंतजाम किए जाए की शिक्षा पाने के लिए पहाड़ की प्रतिभाओं को घर न छोड़ना पडे। अभी कई मेधावी मैदानी जनपदों में आने में सक्षम नहीं होते और पिछड़ जाते हैं। ये पीड़ा पहाड़ी क्षेत्रों के बच्चों ने शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत से कही।

अब बात स्वास्थ्य सेवाओं की- 

गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछाने के दावों के बीच कई गांव ऐसे हैं जहां मोटर मार्ग तो दूर. ठीक से चलने के लिए पैदल मार्ग तक नहीं है। उत्तराखंड में सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर लगातार सरकारों पर सवाल उठते रहे हैं. इसके बाद भी आज तक सभी सेवाओं का हाल बेहाल है. सरकारें लगातार सड़कों का जाल गांव-गांव तक पहुंचाने की बातें कहती हैं और अपने दावों को मजबूत भी करती हैं. लेकिन इस बीच दावे और हकीकत में लगातार अंतर सामने आते रहते है. ऐसा ही एक मामला बागेश्वर जिले के गांव लीती डांगती से सामने आता है. यहां गांव के एक बीमार व्यक्ति को ग्रामीण डोली में लेकर अस्पताल जाते हैं। पुरुषों की संख्या कम होने पर महिलाओं ने बारी-बारी से डोली को कंधा दिया। इसके बाद मरीज को अस्पताल पहुंचाया. डांगती से लीती गांव की पैदल दूरी सात किमी है। गांव में किसी के बीमार होने पर उसे डोली के सहारे सड़क तक लाना मजबूरी है। यहां से 108 की मदद से मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है। हालात ये है कि युवाओं के रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर जाने से गांव में पुरुषों की संख्या कम है। वहीं इस पर गांव के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी ने कहा कि सरकार को इन जमीनी मुद्दों को समझना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से गांव की महिलाओं को मरीजों को ले जाने के लिए आगे आना पड़ रहा है, इससे साफ पता चलता है कि रोजगार, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य के दावे पूरी तरह से झूठे हैं, जनप्रतिनिधियों को उन्हें पूरा करने के लिए आगे आना होगा. लिहाजा, महिलाओं को डोली को कांधा देना पड़ता है। 

 
 
राजधानी देहरादून के सबसे बड़े अस्पताल का भी यही हाल-

देहरादून के सबसे बड़े अस्पताल दून अस्पताल का भी यही हाल है,जहां दूर दराज से लोग इस आस में आते हैं कि वहां अच्छी व्यवस्था उनको मिलेगी और उनका इजाल अच्छे से होगा। अभी हाल ही में एक ऐसा नजारा यहां देखने को मिला जब दून अस्पताल के महिला वार्ड में एक ही बेड पर दो- दो प्रसूताएं भर्ती दिखाई दी। उसी पर नवजात को भी लिटाना पड़ रहा है . इस मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ. कांग्रेस  ने स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठाते हुए कहा, मंत्री और नेता दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने में व्यस्त हैं. यहां स्वास्थ्य सेवा पटरी से उतर गई है। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कभी लिफ्ट के पास तो कभी फर्श पर महिलाओं का प्रसव हो रहा है। जच्चा-बच्चा वार्ड में एक ही बेड पर दो महिलाएं और दो नवजात भर्ती हो रहे हैं। ऋषिकेश एम्स में स्ट्रेचर नहीं मिलने पर गाड़ी में ही प्रसव कराना पड़ रहा है। 



प्रदेश सरकार पर कई सवाल- 

अब सवाल ये उठता है कि राज्य में फिर कौन सा विकास हो रहा है जिसका दावा हमारी सरकारें करती आ रही हैं,, दावों और वादों की हकीकत जब ऐसे दिखाई देती है तो हमारे प्रदेश की सरकारों पर कई सवाल खड़े उठते हैं, कि आखिर राज्य बनने के इतने साल बाद भी हम आज उन चीजों की मांग कर रहे हैं जो सभी की रोजमर्रा जिंदगी के लिए बेहद जरूरी है।