क्या आप जानते हैं एक जगह ऐसी भी है, जहां इतना सोना है कि अगर वो सोना धरती पर आ जाय तो यहां सोने की वैल्यू ही खत्म हो जाएगी, ये इतना सोना है कि इस दुनिया में मौजूद हर शख्स करोड़पति बन सकता है,दो जगह ऐसी भी है जहां हीरों यानी डायमंड की बारिश होती है,ये सुनकर आप जरूर चौंक गए होंगे,लेकिन ये सौ प्रतिशत सच है।
स्पेस यानी अंतरिक्ष जहां हमारे वैज्ञानिक लगातार खोज कर रहे हैं, यहां इतने रहस्य छिपे हैं जिनका इंसानों को पता नहीं है,इंसान की जिज्ञासा लगातार स्पेस में मौजूद चीजों को जानने की रही है. इसी सौरमंडल में एक लघु ग्रह है जो लगातार सूर्य के चक्कर लगाता है. वैज्ञानिकों को कई साल पहले ये ग्रह मिला इसका आकार प्रकार आलू की तरह है लेकिन इसकी खास बात ये है कि इसमें सोने की धातु प्रचुर मात्रा में भरी हुई है. इसका नाम 16साइके है. इसे लघु ग्रह भी कहा जा सकता है. वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ वर्षों में कई क्षुद्र ग्रह खोजे हैं, ये उसी कतार में 16वां लघु ग्रह है।
इस लघुग्रह को 17 मार्च 1852 को इतालवी खगोलशास्त्री एनाबेल डी गैस्पारिस ने खोजा था. लेकिन इस पर इतना सोना भरा हुआ है. इसका पता बाद के बरसों में पता लगा, जब इस ग्रह आधुनिक अंतरिक्ष उपकरणों और मिशन के जरिए अध्ययन किया गया. 16 साइके नाम का ये लघुग्रह मंगल और बृहस्पति के बीच सूर्य की परिक्रमा करता है. इसका कोर निकल और लोहे से बना है. इसके अलावा इसमें बड़ी मात्रा में प्लैटिनम, सोना और अन्य धातुएं हैं.क्षुद्रग्रह 16 साइकी में मौजूद खनिजों की कीमत खरबों से भी कहीं अधिक बताई गई है. माना जाता है कि अगर इसका पूरा सोना धरती पर आ जाए तो वह हर शख्स $93 बिलियन यानी 763 अरब रुपए का धनवान बना देगा।
हालांकि इसका एक तर्क ये भी है कि अगर इस लघुग्रह का पूरा सोना धरती पर आ जाए तो सोने की कीमत बहुत गिर जाएगी और ये कीमती नहीं रह जाएगा. लेकिन ये सच्चाई है कि अब तक जितने ग्रहों या लघु ग्रहों का पता चला है, उसमें 16 साइके ऐसा लघुग्रह है जो सोने के अयस्क से लबालब है.ये वहां मध्यम आकार की बड़ी चट्टान के तौर पर घूम रहा है. डिस्कवरी के अनुसार , 16 साइकी में इतना सोना और अन्य कीमती धातुएं हैं कि धरती के हर शख्स को 100 अरब डॉलर मिल सकते हैं. नासा ने अक्टूबर 2013 में क्षुद्रग्रह पर एक मिशन भेजने की योजना बनाई थी, लेकिन ये अभियान टल गया. हालांकि इस मिशन का उद्देश्य लघुग्रह के खजाने को इकट्ठा करने की बजाए इसका अध्ययन करना था. यहां बहुत ही कीमती खजाना और हीरे, जवाहरात मिलने की संभावना जताई गई है।
आपको बताते चले की इस जगह पर इतनी ज्यादा मात्रा में हीरे जवाहरात और कीमती रत्न मौजूद हैं, आलू के आकार में दिखाई दिखने वाला ये ग्रह सोने सहित कई और बहुमूल्य धातुओं जैसे प्लेटिनम, आयरन से बना हुआ है. नासा के मुताबिक इस क्षुद्रग्रह का व्यास लगभग सवा दो सौ किलोमीटर है. इस ग्रह पर सोने और लोहे की मात्रा बहुतायत है. अंतरिक्ष विशेषज्ञों के मुताबिक 16-साइकी पर लगभग 8000 क्वॉड्रिलियन पाउंड कीमत के बराबर लोहा मौजूद है. इस ग्रह की खोज के बाद वैज्ञानिक और खनन विशेषज्ञ स्कॉट मूर ने बताया कि यहां यहां पर इतना सोना हो सकता है कि अगर ये धरती पर आ जाए तो दुनियाभर की सोने की इंडस्ट्री के लिए खतरा बन जाएगा. धरती पर अचानक से इतनी अधिक मात्रा में आए सोने की वजह से सोने की कीमत गिर जाएगी और ये कौड़ियों के भाव आ जाएगा।
आपको बता दें अब नासा स्पेस एक्स के मालिक एलन मस्क की मदद से इस एस्टेरॉयड के बारे में और पता लगाने की कोशिश कर रहा है. स्पेस एक्स अपने अंतरिक्षयान से रोबोटिक मिशन इस एस्टेरॉयड पर भेजे सकता है। हालांकि इसे वहां जाने और स्टडी करके वापस आने में सात साल का समय लग जाएगा.उसकी वजह ये भी है कि अधिकांश क्षुद्रग्रह चट्टान, बर्फ या दोनों के संयोजन से बने होते हैं, लेकिन ये क्षुद्रग्रह धातु का एक विशाल टुकड़ा है जो बताता है कि यह एक प्रोटोप्लैनेट का खुला कोर हो सकता है. क्षुद्रग्रह पर कोई यान या मिशन भेजने पर खगोलविदों को ये देखने का मौका मिलेगा कि यहां पर वास्तव में क्या क्या है. ये संभव है कि इसी साल अक्टूबर में नासा का एक मिशन 16 साइकी के लिए रवाना किया जाए, जो 2030 तक इस क्षुद्रग्रह पर पहुंचेगा।
दशकों पहले किए गए अपोलो मिशनों के जरिए भी चंद्रमा पर सोना और चांदी होने का अनुमान लगाया गया था. वैसे तो कहा ये भी जाता है कि बुध ग्रह में हीरे भरे हुए हैं, जो पृथ्वी की तुलना में 17 गुना अधिक हीरे हो सकते हैं. वैज्ञानिकों का ये भी आकलन है कि मंगल और बृहस्पति जैसे ग्रहों पर जो स्थितियां हैं, उसमें वहां भी सोने की बड़ी मात्रा हो सकती है. वैसे वैज्ञानिक शोध ये भी बताती हैं कि अध्ययन यूरेनस और नेपच्यून जैसे ग्रहों पर हीरे की बारिश होती है. आप सोचेंगे ये कैसे सम्भव है,पर ये भी सच है और इसके पीछे विज्ञान का एक नियम काम करता है।
हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं। इन आठ ग्रहों में से हमारा ज्यादातर फोकस मंगल, बृहस्पति और शनि ग्रह पर होता है। सौरमंडल के बाहर तमाम तरह के अजीबोगरीब ग्रह हैं। कई ग्रह ऐसे हैं जहां रात में आग की बारिश होती है। हमारे सौरमंडल में ही दो ऐसे ग्रह हैं जिन पर हीरे की बारिश होती है। ये ग्रह यूरेनस और नेपच्यून हैं। सुनने में भले ही ये आपको किसी फिल्म की तरह लगे लेकिन ये सच है। NASA के ग्रेविटी एसिस्ट शोधकर्ता नाओमी रोवे-गर्ने बताती है कि इन ग्रहों पर हीरे की बारिश होती है। हीरे की बारिश सुन कर आप इसे पृथ्वी पर होने वाली बारिश जैसा मत समझ लीजिएगा. जिसमें जलवाष्प वायुमंडल में इकट्ठा होकर ठंडे होते हैं और फिर से पानी के रूप में बरसते हैं। ये हीरे पहले से किसी बादल में मौजूद नहीं होते हैं, बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण बनते हैं।
नाओमी रोवे-गर्नी बताती हैं कि ‘मीथेन गैस के कारण ये दोनों ग्रह नीले दिखाई देते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि मीथेन में कार्बन होता है। लेकिन इन ग्रहों पर वायुमंडलीय दबाव बहुत ज्यादा है। इस कारण मीथेन से कार्बन कई बार अलग हो जाता है और भारी दबाव के कारण ये क्रिस्टल बनने लगते हैं जो एक हीरा होता है। ये हीरे लगातार जमा होते रहतें हैं और भारी होकर ये सतह पर गिरते हैं। अगर हम ग्रह पर मौजूद रहें तो ये देखने में हीरे की बारिश जैसा ही लगेगा।
नाओमी ने आगे बताती हैं कि ये एक ऐसी बारिश है जिसे हम देख नहीं सकते हैं, क्योंकि यहां के वायुमंडल में भारी दबाव है। इंसान यहां इसी कारण कभी नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर ये हीरे हैं भी तो हम कभी इन्हें ला नहीं सकते हैं। बता दें कि मीथेन का रासायनिक नाम CH4 है। वातावरण के दबाव के चलते इससे कार्बन यानी C अलग हो जाता हे। अगर पृथ्वी के हिसाब से देखें तो जिस तरह वायुमंडलीय दबाव के कारण बारिश की बूंदें ओला बनती हैं वैसे ही इन हीरों का निर्माण होता है। पृथ्वी और नेपच्यून की दूरी 4.4 अरब किमी दूर है। वहीं यूरेनस की दूरी 3 अरब किमी है।
2017 में शोधकर्ताओं ने पहली बार “हीरे की बारिश” देखी, क्योंकि यह उच्च दबाव की स्थिति में हुई थी, जैसा कि यूरेनस और नेपच्यून पर अनुभव किया गया था। यह अत्यंत उच्च दबाव है, जो इन ग्रहों के आंतरिक भाग में पाए जाने वाले हाइड्रोजन और कार्बन को निचोड़ कर ठोस हीरे बनाता है जो धीरे-धीरे आंतरिक भाग में डूब जाते हैं।शोधकर्ताओं ने इन ग्रहों की संरचना को अधिक सटीक रूप से पुन: पेश करने के लिए पीईटी प्लास्टिक का उपयोग किया, जिसका उपयोग नियमित रूप से खाद्य पैकेजिंग और प्लास्टिक की बोतलों में किया जाता है। उन्होंने एस.एल.एसी के लीनाक कोहेरेंट लाइट सोर्स में मैटर इन एक्सट्रीम कंडीशन उपकरण पर उच्च शक्ति वाले ऑप्टिकल लेजर की ओर रुख किया और प्लास्टिक में शॉकवेव्स बनाई. एक्स-रे पल्स का उपयोग करते हुए. उन्होंने शॉकवेव्स से प्लास्टिक में होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण किया और देखा कि सामग्री के परमाणु छोटे हीरे के क्षेत्रों में पुनर्व्यवस्थित हो गए।
टीम ने तब मापा कि वे क्षेत्र कितनी तेजी से और बड़े हुए और पाया कि ये हीरे के क्षेत्र कुछ नैनोमीटर चौड़े तक बढ़ गए। विश्लेषण से पता चला कि यह सामग्री में ऑक्सीजन की उपस्थिति थी. जिसने नैनोडायमंड को पहले की तुलना में कम दबाव और तापमान पर बढ़ने के लिए प्रेरित किया और अनुमान लगाया कि नेपच्यून और यूरेनस पर हीरे इन प्रयोगों में उत्पादित नैनोडायमंड की तुलना में बहुत बड़े हो जाएंगे।