भारत देश जिसे भारत माता के नाम से जाना जाता है, जिस देश में महिलाओं के अपमान पर महाभारत हो जाती है. उसी देश के पूर्वोत्तर इलाके मणिपुर से दिल दहलाने वाली घटना सामने आई. जो की इंसानियत को शर्मसार और हैवानियत की हदों को पार कर देने वाली इस घटना का वायरल वीडियो देखकर लोगों की रूह कांप गई. इस वायरल वीडियो में दो महिलाओं को निर्वस्त्र अवस्था में लोगों के बीच घुमाते हुए दिखाया गया. इतना ही नहीं, आरोप ये भी है कि इस खौफनाक परेड कराने से पहले उनके साथ दरिंदगी भी की गई. इस घटना ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है. नेताओं से लेकर आम जनता तक, हर कोई इस घटना की कड़ी निंदा कर रहा है. मणिपुर में पिछले 83 दिनों से हिंसा जारी है। पुलिस ने इस घटना के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. जानकारी के मुताबिक, इस घटना को बीती 4 मई को अंजाम दिया गया था. इस घटना को लेकर हिंसा की आग में जलने वाले मणिपुर का माहौल और बिगड़ गया है. लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार भी मणिपुर नहीं गए,भले ही वो विदेश में जाकर भारत का खूब डंका बजाते रहे हों लेकिन ये भी उतना ही सच है कि उन्हीं की सरकार वाले राज्य में पिछले दो महीने से आग लगी है,कई लोग मौत के मुँह में समा गए,हजारों लोग बेघर हो गए,सैनिकों के हथियार तक छीने जा रहे हैं, इस घटना की तस्वीर इतनी विचलित करती है कि इसको दिखाया भी नहीं जा सकता, केंद्र और राज्य सरकार की नाकामी का इससे बड़ा कारण नहीं हो सकता कि इतने समय से प्रदेश में हिंसा जारी है और न तो राज्य सरकार इस पर कोई ठोस कार्रवाई कर पायी न केंद्र की सरकार। पीएम मोदी ने कहा कि दोषियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को स्वत: संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए है।
चार मई की घटना-
पहले पीएम मोदी और चीफ जस्टिस की टिप्पणी-
रिपोर्ट्स के मुताबिक, वायरल वीडियो में जिन दो महिलाओं को नग्न करके घुमाया जा रहा है, वो कुकी समुदाय की हैं। यह वीडियो चार मई का बताया जा रहा है, जब हिंसा शुरुआती चरण में थी। महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का आरोप मैतई समुदाय के लोगों पर लगा है।इस मामले में पुलिस ने अज्ञात हथियारबंद बदमाशों के खिलाफ थौबल जिले के नोंगपोक सेकमाई पुलिस स्टेशन में अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और हत्या का मामला दर्ज किया है। उधर, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी मामले की जांच के लिए अलग टीम गठित कर दी है। केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार से इस मसले पर रिपोर्ट मांगी है। केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने भी मुख्यमंत्री से बात की।
इसे समझने के लिए हमें मणिपुर का भौगोलिक स्थिति जानना चाहिए। दरअसल, मणिपुर की राजधानी इम्फाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10% हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 43% आबादी रहती है। इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है। आंकड़ें देखें तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं।वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नगा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है।
भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुई हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती। ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़े हैं।
मौजूदा तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था। देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे।इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए।
एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नगा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा। चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी। पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी। सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया। अब तक इस हिंसा के चलते 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तीन हजार से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं।
1. मैतेई समुदाय के एसटी दर्जे का विरोध-
2. सरकार की अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई-
वहीं, आदिवासियों का कहना है कि ये उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया। जिससे आक्रोश फैला।
3. कुकी विद्रोही संगठनों ने सरकार से हुए समझौते को तोड़ दिया-
इसका मकसद राजनीतिक बातचीत को बढ़ावा देना था। तब समय-समय पर इस समझौते का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा, लेकिन इसी साल 10 मार्च को मणिपुर सरकार कुकी समुदाय के दो संगठनों के लिए इस समझौते से पीछे हट गई। ये संगठन हैं जोमी रेवुलुशनरी आर्मी और कुकी नेशनल आर्मी। ये दोनों संगठन हथियारबंद हैं। हथियारबंद इन संगठनो के लोग भी मणिपुर की हिंसा में शामिल हो गए और सेना और पुलिस पर हमले करने लगे।