उत्तराखंड में अक्सर प्राकृतिक आपदा आती हैं लेकिन उत्तराखंड बनने से अब तक भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने पुरे प्रदेश का जो नुकसान पहुंचाया है शायद ही किसी आपदा ने इतना नुकसान प्रदेश को पहुंचा होगा, कोई भी पार्टी या उसकी कोई भी सरकार प्रदेश में रही हो सबने प्रदेश में खूब लूट और मनमर्जी की है,, यहां की सरकारों ने इस प्रदेश के युवाओं का शोषण और उनके हक पर खूब डाका डाला है शायद किसी राज्य में आज तक ऐसा हुआ हो, शायद यहीं कारण रहा है कि हमारा प्रदेश आज भी उसी हालात में खड़ा है जैसा बनने के समय पर था,, तो क्या भाजपा और कांग्रेस बारी बारी इस प्रदेश को नुकसान पहुंचाने पर लगे हुए हैं ? वो तो शुक्र है हमारी न्यायपालिका का जिनकी वजह से राजनैतिक दलों की मनमानी पर थोड़ा रोक है.
सरकार के सपथ पत्र से हुआ बड़ा खुलासा ….
भर्ती घोटालों में तो उत्तराखंड नंबर 1 बना हुआ है,अब चाहे वो आयोग की भर्तियां हो या विधानसभा या सचिवालय की भर्तियां रही हो,,, आपको बता दें कि अभी हाल ही में नैनीताल हाईकोर्ट ने विधानसभा और सचिवालय भर्ती को लेकर सरकार से सपथ पत्र के माध्यम से राज्य बनने से लेकर अब तक हुई भर्तियों का ब्योरा मांगा था,हाई कोर्ट में दायर जनहित याचिका में पारित आदेश के अनुपालन में विधानसभा सचिवालय की ओर से करीब साढ़े चार सौ पेज से अधिक का शपथ पत्र दाखिल किया गया है। सरकार ने जो ब्योरा कोर्ट में दिया है उसे जानकर आप हैरान हो जायेंगे,इसमें साफ़ है कि किस तरह सरकारों ने नियम कायदों को रद्दी की टोकरी में डाल कर मनमानी की है..
इसमें सामने आया है कि विधानसभा सचिवालय में राज्य बनने से पिछली विधानसभा तक में नियुक्तियों में नियमों का घोर उल्लंघन किया गया है । आरक्षण के प्रावधानों को दरकिनार करने के साथ ही चयनित अभ्यर्थियों की शैक्षिक योग्यता व अन्य योग्यता की सक्षम अधिकारियों ने जांच नहीं की और नियुक्ति दे दी। शपथ पत्र में साफ कहा है कि कार्मिक विभाग के मना करने तथा वित्त विभाग की आपत्तियों को दरकिनार कर नियुक्तियां की गई, साथ ही सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों ने नियुक्ति व वेतन के आदेश जारी किए हैं ।
शपथ पत्र के अनुसार विधानसभा सचिवालय में 2001 में 53, 2002 में 28, 2004 में 18, 2006 में 21,2007 में 27, 2016 में सर्वाधिक 149, 2021 में 72 सहित कुल 396 नियुक्तियां गई हैं, जो सर्विस रूल्स के आधार पर नहीं हैं। 2011 के नियमों के नियम-सात में सरकार के प्रचलित आदेशों के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अन्य श्रेणियों के लिए आरक्षण का प्रावधान है, नियुक्ति करते समय नियम सात के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया है. नियुक्तियां करने के लिए शैक्षिक एवं अन्य योग्यताओं की जांच सक्षम प्राधिकारियों से की जानी आवश्यक है, जो नहीं की गई।
कुल मिलाकर जिसकी सरकार रही उसने अपने लोगों को बिना किसी नियम को पूरा किये ही नौकरी दे डाली। विधानसभा की ओर से दाखिल शपथ पत्र में संलग्न जांच कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा है कि 2016, 2020 और 2021 में नियुक्तियां की गई, जिसमें नियमानुसार चयन समिति का गठन, आवेदन आमंत्रित करने, प्रतियोगी परीक्षाओं आदि सहित भर्ती के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित है, लेकिन नियमों में निर्धारित किसी भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। कार्मिक विभाग ने ऐसी नियुक्तियों पर आपत्ति जताई थी। परिणामस्वरूप नियुक्तियां अवैध थीं और उन्हें उचित रूप से समाप्त कर दिया गया।
भारत का सविधान कहता है कि कानून का शासन संविधान की मूल विशेषता है। कोई भी प्राधिकारी कानून से ऊपर नहीं है और कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 13 में प्रावधान है कि ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जा सकता जो संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के विपरीत हो। कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। चाहे आप कितने भी ऊंचे क्यों न हों, कानून आपसे ऊपर है। सभी पर लागू होता है, चाहे उसकी स्थिति, धर्म, जाति, पंथ, लिंग या संस्कृति कुछ भी हो। संविधान सर्वोच्च कानून है. संविधान के तहत बनाई जा रही सभी संस्थाएं, चाहे वह विधायिका हो, कार्यपालिका हो या न्यायपालिका, इसकी अनदेखी नहीं कर सकतीं। लेकिन उत्तराखंड की सरकारें खुल्लेआम सविधान का मजाक उड़ाती रही ,, अब सरकार के सपथ पत्र के बाद कोर्ट को इस पर फैसला देना हैं,कोर्ट के फैसले के बाद साफ़ हो जाएगा कि सरकार ने जिन चहेतों को नियम विरुद्ध नियुक्ति दी है वो रहेंगे या अन्य की तरह वो भी बाहर जायेंगे,कोर्ट के फैसले का फिलहाल सभी को इन्तजार है…..