मणिपुर में वायरल वीडियो में जिसमें दो महिलाओं का यौन उत्पीड़न हुआ था. और उन्हें निर्वस्त्र कर घुमाया गया था. दो महिलाओं के साथ हुई उस दरिंदगी से देश को शर्मसार करने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 31 जुलाई को सुनवाई हुई. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कई सवाल किए।
CJI चंद्रचूड़ ने सरकार से पूछे कई सख्त सवाल-
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सरकार से पूछा की 4 मई की घटना पर पुलिस ने 18 मई को जाकर FIR दर्ज की, आखिर 14 दिन तक पुलिस ने कुछ क्यों नहीं किया? वायरल वीडियों में महिलाओं को जब निर्वस्त्र कर घुमाया जा रहा था,, तब पुलिस कहां थी और कुछ क्यों नहीं कर पाई?
1 अगस्त को ही होगी मामले की अगली सुनवाई- CJI
डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा की यदि महिलाओं पर अपराध के 1000 मामले दर्ज होते हैं, तो क्या सभी जांच सीबीआई कर पाएगी ? साथ ही इस पर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जांच टीम में सीबीआई की एक जॉइंट डायरेक्टर रैंक की महिला अधिकारी को रखा जाएगा. इस पर वहीं, सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमन ने कहा कि वो मंगलवार यानी, 1 अगस्त को हर केस पर तथ्यों के साथ जानकारी देंगे।
SC ने सभी FIR की जानकारी मांगी-
CJI चंद्रचूड़ ने कहा की हमें जानना है कि 6000 FIR का वर्गीकरण क्या है, और इसमें कितने जीरो FIR है. कितनी अभी तक गिरफ्तारी हुई, और अभी तक क्या-क्या कार्रवाई हुई है, डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा की हम कल फिर सुनवाई करेंगे. क्योंकि परसों से अनुच्छेद 370 पर सुनवाई शुरु हो रही है. इसलिए इस मामले पर कल ही सुनवाई होगी.. वहीं सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर तुषार मेहता ने कहा, “कल सुबह तक FIR का वर्गीकरण उपलब्ध करवा पाना मुश्किल होगा।
CJI ने कहा कि पीड़ित महिलाओं की शिकायत कौन दर्ज करेगा. एक महिला जो राहत शिविर में रह रही है और अपने पिता या भाई की हत्या से डरी हुई है. क्या ऐसा हो पाएगा कि न्यायिक प्रक्रिया उस तक पहुंच सके?” चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने SIT के लिए भी नाम दिए हैं. आप इस पर भी जवाब दीजिए. अपनी तरफ से नाम का सुझाव दीजिए. या तो हम अपनी तरफ से कमिटी बनाएंगे, जिसमें पूर्व महिला जज भी होंगी।
CJI ने निर्भया कांड का भी किया जिक्र-
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पीड़ितों के बयान हैं कि उन्हें पुलिस ने भीड़ को सौंपा था. ये निर्भया जैसी स्थिति नहीं है, जिसमें एक बलात्कार हुआ था, वो भी काफी भयावह था लेकिन इससे अलग था. यहां हम प्रणालीगत हिंसा से निपट रहे हैं, जिसे आईपीसी (IPC) एक अलग अपराध मानता है।
वहीं, सीजेआई ने मैतेई समुदाय के वकील से कहा कि इस बात पर आश्वस्त रहें कि किसी भी समुदाय के प्रति हिंसा हुई हो, हम उसे गंभीरता से लेंगे यह सही है कि ज़्यादातर याचिकाकर्ता पक्ष कुकी समुदाय की तरफ से हैं. उनके वकील अपनी बात रख रहे हैं लेकिन हम पूरी तस्वीर देख रहे हैं. ” सीजेआई ने आगे कहा, “निश्चित रूप से मैतेई समुदाय के लोग भी पीड़ित होंगे. हिंसा दोतरफा होती है इसलिए भी हम एफआईआर के वर्गीकरण को देखना चाहते हैं. इस पर मैतेई समुदाय के एक वकील ने कहा, “वहां लोगों से हथियार जब्त किए जाने की जरूरत है. कोर्ट इस पर भी विचार करे।
सीजेआई ने मैतेई समुदाय के वकील की बात पर कहा, “हां, ये भी जरूरी है. इस बात पर भी पूरा ध्यान दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि मामले की सुनवाई अब 1 अगस्त को दोपहर 2 बजे होगी।
क्या उत्तराखंड ने अंकिता भंडारी केस से कुछ सीख ली ? क्या मणिपुर बनने की राह पर है उत्तराखंड? उत्तराखंड की कानून व्यवस्था और सरकार के खोखले दावे तो यहीं दर्शाते हैं, ऐसा कहने को हम तब मजबूर हो जाते हैं जब ये सामने आता है कि देहरादून जिसे राजधानी भी कहते हैं और वहां के व्यस्ततम चौराहे से एक खबर आती है कि भरे बाजार में अपनी दुकान पर काम कर रही लड़की के साथ सरेआम एक ऐसी घटना हो जाती है जो न केवल हमे डराती है बल्कि आसपास के जितने भी लोग इस घटना को देखते हैं डर से सिहर उठते हैं और हमें ये सोचने को मजबूर करती है कि क्या लडकिया इस प्रदेश में सुरक्षित हैं, और कानून व्यवस्था की बात करने वाला पुलिस प्रशासन कहाँ सोया है, बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ वाली डबल इंजन सरकार कहाँ सोई है?
देहरादून जिसे इस प्रदेश की राजधानी भी कहा जाता है, जहां इस प्रदेश के मुखिया से लेकर उनके मंत्री और पूरी सरकार सहित सभी विभाग और अधिकारी बैठते हैं,कानून से जुड़े बड़े-बड़े अधिकारी भी यहीं रहते हैं अगर वहां पर दिन दहाड़े एक बेटी के साथ ऐसा होता है तो सीधा सवाल यहां की सरकार और पुलिस की कानून व्यवस्था पर उठते हैं ।
दुकानदार भी दहशत में-
दरसल पूरा मामला कुछ इस तरह है कि देहरादून के डीबीएस कालेज के सामने टिहरी जिले की एक युवती एक साइबर कैफे की दुकान चलाती है, अचानक दिन में 20 से 25 लड़के मुहँ ढक कर वहां पर आते हैं और दुकान के अंदर घुस जाते हैं,उस युवती के गल्ले से पैसे निकालते हैं और उस युवती को घसीटते है, और ये घटना कोई रात को नहीं भरी दोपहरी में होती है, दूर गाँव से आकर अपना स्वरोजगार कर रही युवती इस घटना के बाद इतने ख़ौफ़ में है और न केवल युवती बल्कि आसपास के दुकानदार भी दहशत में है,अब आप सोचिए अगर भरी दोपहरी में इतनी भीड़ भाड़ वाले इलाके में भी अगर एक पाहड़ कि बेटी सुरक्षित नहीं हैं तो फिर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बेटियां उत्तराखंड में कितनी सुरक्षित है,,और हमारी मित्र पुलिस शिकायत के बाद भी कई घण्टो तक घटना स्थल पर तक आने की जहमत नहीं उठाती, जबकि पास ही ssp ऑफिस से लेकर थाना चौकी मौजूद हो, जो दिखाता है कि हमारी पुलिस कितनी एक्टिव है। जब जाकर ये मामला मीडिया में उछला तब जाकर पुलिस ने इस पर रिपोर्ट लिखी।
कब तक महिलाएं सुरक्षित नहीं-
अब सवाल ये उठता है कि क्या पुलिस ये इंतजार कर रही थी कि मणिपुर या अंकिता भंडारी जैसी घटना इस युवती के साथ हो जाती तो क्या तब जाकर पुलिस यहां कोई कारवाही करती,और क्या इस तरह बेटी बचेगी और बेटी पढ़ेगी,जब राजधानी और बीच बाजार में एक युवती जो अपने परिवार का सहारा बनने की कोशिश कर रही हो उसके साथ ये सब हो जाता है तो क्या इस तरह के माहौल में कोई और बेटी घर से बाहर आकर स्वरोजगार कर सकती है, इस तरह के माहौल में क्या कोई आत्म निर्भर और स्वरोजगार करने की हिम्मत करेगा.
इतना ही नहीं आज सुबह ही खबर आयी है कि राजधानी देहरादून के VVIP इलाकों में शुमार कैंट रोड में एक महिला का शव मिला है. महिला के साथ दुराचार के बाद हत्या की आशंका व्यक्त की जा रही है. हालांकि पुलिस ने महिला का शव बरामद करते हुए एक संदिग्ध युवक को भी हिरासत में ले लिया है, और मामले की जांच की जा रही है. आपको बता दें कि सेंटीरियो मॉल के सामने महिला का शव मिलने से आस-पास के लोगों में सनसनी फैल गयी। महिला के सिर और पैर में गहरी चोट के निशान है। सूचना मिलने पर पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को बरामद किया। जिसके बाद पुलिस ने बॉडी मोर्चरी में रखवाई। आशंका जताई जा रही है कि महिला के साथ दुराचार के बाद हत्या कर दी गई।
आरोपियों की तलाश जारी-
एक ऐसी ही खबर हरिद्वार श्यामपुर थाना क्षेत्र से आयी है, जहां एक किशोरी को रुड़की में तीन दिन तक बंधक बनाकर उससे सामूहिक दुष्कर्म का मामला भी सामने आया है। बहादराबाद क्षेत्र में श्यामपुर क्षेत्र के एक गांव निवासी किशोरी दो महीने से दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए आ रही थी। दिहाड़ी पर आने के बाद चार दिन पहले उसका नंबर बंद हो गया। संपर्क न होने पर परिजन बहाराबाद पहुंचे तो किशोरी उन्हें नहीं मिली। परिजनों ने पुलिस को शिकायत दी। श्यामपुर पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर तलाश शुरू की। दिहाड़ी मजदूरी करने वाली किशोरी को उसकी परिचित युवती ने तीन युवकों के हवाले किया था। जबकि आरोपी युवक और युवती की तलाश शुरू कर दी गई है। पुलिस ने शिकायत मिलने के बाद किशोरी को रुड़की से बरामद कर लिया है। पुलिस ने बताया कि आरोपियों की तलाश की जा रही है. जल्द ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा. ये पता चलते ही परिजनों के होश उड़ गए। इस घटना ने सरकार और कानून व्यवस्था की महिला सुरक्षा को लेकर पोल खोल कर रख दी है. ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब उत्तराखंड की बेटियों का घर से बाहर आना मुश्किल हो जाएगा।
सोनिया गांधी,, वो नाम जो यूपीए की जीत के दौरान प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे था, और माना जा रहा था कि सोनिया गांधी ही देश की प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं, लेकिन अचानक इन अटकलों को विराम देते हुए सोनिया ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने सबको चौंका दिया और वो था प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन का नाम घोषित करना, इतना ही नहीं दूसरी बार भी प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने मनमोहन सिंह को ही चुना,सोनिया गांधी के ये वो फैसले थे जिसके बाद देश में हर जगह उनकी चर्चा हुई, एक बार फिर मोदी सरकार को हटाने में सोनिया गांधी की एक अहम भूमिका होने वाली है,, बहुत समय से स्वास्थ्य कारणों से राजनीती में कम ही सक्रिय रही सोनिया गांधी के एक बार फिर से सक्रिय होने के क्या मायने हैं, इससे कांग्रेस पर क्या असर पड़ सकता है।
17 और 18 जुलाई को हुई थी बैठक-
सोनिया गांधी ने हाल ही के दिनों में अपनी राजनीतिक गतिविधि भले ही कम कर दी हों, मगर उनकी एक गरिमा है,, गठबंधन को चलाने का अनुभव है,, नेतृत्व देने की क्षमता है,, इसलिए अब सबकी निगाहें 17 और 18 जुलाई को बेंगलुरु में होने होने वाली बैठक पर थी. बेंगलुरु में 17 और 18 जुलाई को होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में सोनिया गांधी भी मौजूद रही. 17 जुलाई को सोनिया गांधी ने सभी विपक्षी नेताओं को डिनर पर भी बुलाया था. अभी तक सोनिया गांधी ने अपनी राजनीतिक गतिविधि को कम कर रखा था, मगर बेंगलुरु की बैठक के लिए वो पूरी तरह तैयार थी. उनके इस बैठक में शामिल होने से ये भी तय हो गया कि मोर्चा के नेतृत्व के सवाल पर कांग्रेस गंभीर है, और अपना दावा बनाए रखना चाहती है।
सोनिया गांधी के आने से स्थिति साफ-
अभी तक लग रहा था कि विपक्ष का नेतृत्व नीतीश कुमार या शरद पवार कर रहे हैं. जाहिर है विपक्षी दलों की पहली बैठक पटना में हुई. उससे पहले सभी नेता शरद पवार से मिलने मुंबई का चक्कर काट रहे थे. मगर सोनिया गांधी के आने से स्थिति साफ हो गई है. वजह है, कि सोनिया गांधी UPA की चेयरपर्सन हैं. वो 2004 और 2009 में सत्ता में UPA को ला चुकी हैं. उन्हें गठबंधन चलाने का पूरा अनुभव है. 2004 में सोनिया को उस वक्त सफलता मिली थी, जब उनके खिलाफ वाजपेयी और आडवाणी जैसे क़द्दावर नेता थे. सोनिया गांधी को सक्रिय राजनीति में आए 10 साल भी नहीं हुए थे. हां… ये बात जरूर है कि इस बार उनके खिलाफ मोदी और शाह की जोड़ी है. उनके पास ना तो सलाहकार के तौर पर अहमद पटेल हैं. न ही राजनीति सूझबूझ रखने वाले हरकिशन सिंह सुरजीत. मगर इस बार उनके पास शरद पवार, खरगे और नीतीश कुमार हैं।
आखिर क्यों चुना बैठक के लिए बेंगलुरु को-
सोनिया गांधी ने बैठक में शामिल होने के लिए बेंगलुरु को चुना है, जहां कांग्रेस की सरकार है, अपना मुख्यमंत्री है, और जिसने बीजेपी को हरा कर सत्ता हासिल की है. पटना में जेडीयू-आरजेडी की सरकार है. जबकि कांग्रेस गठबंधन में है. कर्नाटक से गांधी परिवार का रिश्ता काफ़ी पुराना है. इंदिरा गांधी इमरजेंसी के बाद कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव लड़ी थीं. सोनिया गांधी ने भी राजनीति में शुरुआत बेल्लारी से पर्चा भर कर किया था. सोनिया गांधी का विपक्ष के उन नेताओं से भी रिश्ते काफी अच्छे हैं, जो राहुल गांधी के सामने अपने आप को असहज पाते हैं. जैसे ममता बनर्जी… लालू यादव भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी के जबरदस्त फैन हैं. शरद पवार से उनके राजनीतिक संबंध काफी मधुर हैं. क्योंकि एनसीपी बनाने के तुरंत बाद ही सोनिया ने पवार के साथ गठबंधन में महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी, जब विलास राव देशमुख मुख्यमंत्री बने थे।
सोनिया गांधी के आने से कई को राहत-
नीतीश कुमार ने भी पिछले साल सितंबर में विपक्षी एकता के लिए उनसे मुलाकात की थी. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सोनिया गांधी के बेंगलुरु की बैठक में शामिल होने पर कांग्रेस का विपक्ष को नेतृत्व करने का दावा मज़बूत हो जाएगा. कई नेता ये मान चुके हैं कि बिना कांग्रेस के विपक्ष का कोई मोर्चा संभव नहीं है.. इस बात को लेकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव गठबंधन से अलग हो गए मगर ममता बनर्जी ने ना-ना करते हुए आखिर में हां कर दी. अब सोनिया गांधी के आने से उन्हें भी राहत मिली होगी।
यूपी-बिहार राज्यों में विपक्षी एकता को मिलेगी मजबूती-
अभी हाल ही में जिस तरह अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्षी दलों में नाराजगी देखने को मिली थी. जिसे सोनिया गाँधी ने ही संभाला. इससे ये तो साफ़ है कि सोनिया में पुरे विपक्ष को एकजुट रखने की क्षमता है, और सभी दल सोनिया की कहि बात पर विश्वास भी करते हैं,सोनिया गांधी की उपस्थिति और अनुभव मददगार हो सकती है. खासकर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ। अतीत में दोनों दलों के बीच समीकरण अच्छे नहीं रहे हैं.अगर इनसे बात बनती है तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में विपक्षी एकता को मजबूती मिलेगी.. माना जा रहा है कि अखिलेश या तेजस्वी यादव जो कि राहुल गांधी के लगभग हमउम्र हैं, वो सोनिया गांधी की बात को तवज्जो देंगे। यहां तक कि ममता और लालू यादव जैसे वरिष्ठ नेताओं के बीच भी सोनिया फैक्टर ज्यादा मददगार होगा। मल्लिकार्जुन खड़गे का अनुभव और राहुल गांधी का उत्साह इसे और बेहतर बनाएगा। इसके जरिए विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस को फिर से उभारने और सोनिया को केंद्र में रखना अहम होगा।
INDIA के लिए भी हो सकता है अच्छा संकेत साबित-
सोनिया गांधी ने हाल के दिनों में अपनी राजनीतिक गतिविधि भले ही कम कर दी हों, मगर उनकी एक गरिमा है,, गठबंधन को चलाने का अनुभव है,, नेतृत्व देने की क्षमता है,, इसलिए अब सबकी निगाहें आने वाली गटबंधन की बैठक पर है, जहां संभव है की 2024 के लिए 24 दलों के इस मोर्चा इंडिया का कोई प्रारूप दिया जाए. अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी जैसा कोई नाम सामने आए या नीतीश कुमार या शरद पवार जैसा संयोजक. गठबंधन द्वारा कुछ वर्किंग ग्रुप बनाए जाने की भी संभावना है, जो गठबंधन के मुद्दे, उनकी रणनीति, रैलियों की प्लानिंग, और विपक्ष का एक ही उम्मीदवार मैदान में हो उसकी रूपरेखा तैयार करेगा. अब देखना होगा की क्या पहले की तरह सोनिया गाँधी पुरे विपक्ष को एकजुट रख पाएगी और उनका प्रमुख भूमिका में रहना क्या गठबंधन के सभी दलों को भायेगा,अगर ऐसा हुआ तो निश्चित् ही गठबंधन में कांग्रेस का दावा सबसे ऊपर हो सकता है, ये न केवल कांग्रेस बल्कि मोदी विरोधी धड़े INDIA के लिए भी अच्छा संकेत साबित हो सकता है।
देश आज कारगिल शहीदों की याद में विजय दिवस मना रहा है और मणिपुर में आज उसी कारगिल में जीत दिलाने वाला सैनिक इस हिंसा में अपना सब कुछ खो चुका है, लेकिन सरकार ने उसकी कोई सुध लेना उचित नहीं समझा,,, मणिपुर हिंसा और महिलाओं के साथ हुई अभद्र घटना के बाद अब ऐसा लग रहा है कि मानो सरकार की संवेदनाएँ भी मर चुकी है, केंद्र और ना ही राज्य सरकार को उन महिलाओं पर हुए अत्याचार से मानों कोई मतलब नहीं है? ,,,दिल्ली की महिला आयोग की अध्यक्ष ने आखिर मणिपुर में जाकर ऐसा क्या देखा कि वो गुस्से से भर उठी ? मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर पुरे विश्व में चर्चा है, मणिपुर का वीडियो वायरल होने के बाद राज्य और केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना पुरे देश में हो रही है, लेकिन इतनी हिंसा और महिलाओं के साथ हुई इस अभद्र घटना के बाद राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अभी तक कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई, उल्टा मणिपुर के मुख़्यमंत्री एन बीरेन सिंह कहते हैं कि ऐसी तो सैकड़ों घटनाएं प्रदेश में इस दौरान हुई है, मुख़्यमंत्री के इस बयान से तो लगता है कि मुख़्यमंत्री को 3 महिलाओं के साथ हुई इस घटना से कोई अधिक फर्क नहीं पड़ा क्योंकि उनके लिए तो ये उन सैकड़ों घटनाओं की ही तरह है,,, सवाल आज भी वही बना हुआ है कि क्या इस घटना के बाद राज्य और केंद्र सरकार मणिपुर को लेकर कितनी चिंतित है ? इसका जवाब आपको दिल्ली की महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल उस बयान से मिल जायेंगे जो उन्होंने मणिपुर के उन पीड़ित परिवारों से मिलने के बाद के दिया।
कारगिल युद्ध का एक सैनिक जिसने मणिपुर हिंसा में अपना सब कुछ गंवा दिया –
कितनी हैरानी की बात है कि मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई इस अभद्र घटना के बाद वहां के मुख़्यमंत्री एन बीरेन सिहं को अब तक उन पीड़ितों से मिलने का समय नहीं मिला, न तो मुख़्यमंत्री उन पीड़ितों से मिलने गए और न दर्द से भरे प्रधानमंत्री या उनकी तरफ से कोई नुमाइंदा, हद तो तब और ज्यादा हो गयी जब ये पता चलता है कि मुख़्यमंत्री और प्रधानमंत्री तो छोड़िये इन लोगों तक कोई सरकारी मदद तक नहीं पहुंची,, हालांकि दिल्ली से एक महिला जो अक्सर महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आवाज उठाती है वो इन हिंसाग्रस्त इलाकों में पहुंच कर उन महिलाओं का दर्द कुछ कम करने की कोशिश करती है,,, दिल्ली से इतना लम्बा सफर कर एक महिला तो उन इलाकों में पहुंच सकती है जहां महिलाएं सुरक्षित न हो लेकिन उसी राज्य की सरकार और उनकी कोई राहत वहां तक नहीं पहुंच पाती,,,,वो भी तब जब उन पीड़ित परिवारों में वो लोग भी शामिल हों जिन्होंने देश के लिए सीमाओं पर जंग लड़कर देश को गर्व करने का मौका दिया हो,,,आज देश कारगिल शहीदों की याद में विजय दिवस मना रहा है,जबकि इसी मणिपुर में उन पीड़ितों के बीच आज भी कारगिल वार का एक ऐसा सैनिक हैं जो इस हिंसा में अपना सब कुछ गवां चुका है, भले ही वो देश की सीमा पर बाहरी दुश्मनों से देश को बचाने के लिए सफल रहा हो लेकिन देश के अंदर के दुश्मनों से वो अपने परिवार को नहीं बचा पाया,, हमारी सरकार आज हर जगह कारगिल के शहीदों को श्रधांजलि अर्पित कर रहे हैं, पर इस कारगिल में देश के लिए जी जान से लड़ने वाला एक सैनिक आज इस तरह बर्बाद हो गया लेकिन न वहां की राज्य सरकार और न केंद्र सरकार उसकी कोई सुध ले रही हैं।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने की पीड़ित परिवार से मुलाकात-
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने महिला आयोग की सदस्य वंदना सिंह के साथ बंदूक की गोलीबारी के बीच चुराचांदपुर, मणिपुर की यात्रा की और यौन हिंसा की पीड़िताओं की मां और पति से मुलाकात की। स्वाति मालीवाल ने मोड़ रांग और इंफाल जिलों की भी यात्रा की, जहां उन्होंने कई राहत शिविरों में विस्थापित लोगों से बातचीत की। मणिपुर के चुराचांदपुर में लगातार हिंसा और भारी गोलीबारी हो रही है और दो दिन पहले भी वहां एक स्कूल में आग लगा दी गई थी. स्वाति मालीवाल के मुताबिक, मणिपुर सरकार ने उन्हें वहां जाने या हिंसा के पीड़ित लोगों से मिलने में कोई सहायता नहीं दी. ऐसे में स्वाति मालीवाल ने स्वयं अपनी मर्जी से, बिना किसी सुरक्षा के चुराचांदपुर जिले की यात्रा की और हिंसा के पीड़ित लोगों से बातचीत की।
यात्रा के दौरान अपने चुनौतीपूर्ण अनुभव को साझा करते हुए मालीवाल ने दावा किया कि राज्य सरकार ने संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा के लिए उनके सहयोग से इनकार कर दिया। स्वाति मालीवाल के साथ मुलाकात को लेकर कुछ वीडियो भी सामने आए हैं। जिसमें पीड़ित परिवार भावुक नजर आ रहा है और स्वाति मालीवाल उन्हें गले लगाकर उनका ढाढ़स बढ़ा रही हैं। स्वाति मालीवाल ने कहा- “मणिपुर की बर्बरता की पीड़ित बेटियों के परिवार से मिली…. इनके ये आंसू बहुत दिन तक सोने नहीं देंगे।
‘जरूरत की घड़ी में पूरा देश उनके साथ‘-
पीड़ित परिवार के परिजनों ने बताया कि आज तक न तो मुख्यमंत्री, न ही कोई कैबिनेट मंत्री और न ही राज्य का कोई वरिष्ठ अधिकारी उनसे मिलने आया है. स्वाति मालीवाल उनसे मिलने वाली पहली थी. उन्होंने बताया कि उन्हें अब तक सरकार से कोई काउंसलिंग, कानूनी सहायता या मुआवजा नहीं मिला है. वे इस बात से नाराज थे कि उनके मामले में किसी भी पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. स्वाति मालीवाल ने दोनों से विस्तार से बात की और उन्हें आश्वासन दिया कि वे अकेले नहीं हैं बल्कि जरूरत की घड़ी में पूरा देश उनके साथ है।
अब तक नहीं मिली कोई सरकारी मदद-
स्वाति मालीवाल ने कहा, “ये तीन दिन मेरे लिए बेहद कठिन रहे. मुझे मणिपुर में प्रवेश करने के लिए सरकार ने किसी भी सहायता से इनकार कर दिया था लेकिन फिर भी मैं बड़े व्यक्तिगत जोखिम पर यहां आई. वायरल वीडियो ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया और मैं हर कीमत पर बचे लोगों से मिलना चाहती थी. मुझे स्थानीय लोगों ने बताया कि पीड़ित लोगों के परिवारों से मिलने के लिए चुराचांदपुर की यात्रा करना बहुत कठिन है, फिर भी मैंने भारी गोलीबारी के बीच बिना किसी सुरक्षा के वहां जाने का फैसला किया.”उन्होंने कहा, ”किसी तरह मैं उनसे मिलने में कामयाब रही. वे कल्पना से भी बदतर नरक से गुजरे और यह जानकर बहुत दुख हुआ कि न तो मुख्यमंत्री और न ही कोई सरकारी अधिकारी उनसे मिले. अब तक न ही सरकार की ओर से उन्हें कोई सहयोग दिया गया है. अगर मैं दिल्ली से यहां की यात्रा कर सकती हूं और बिना किसी सुरक्षा के उन तक पहुंच सकती हूं तो निश्चित रूप से मणिपुर के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य बुलेट प्रूफ कार में जा सकते हैं और उनसे मिल सकते हैं. अब तक उन्हें काउंसलिंग, कानूनी सहायता और मुआवजा क्यों नहीं दिया गया?”
स्वाति मालीवाल ने कहा, ”मणिपुर में हिंसा बेहद परेशान करने वाली है और जहां भी मैं जा रही हूं वहां डरावनी कहानियां हैं जो दिमाग को सुन्न कर देती है. लोगों ने अपने घर और प्रियजनों को खो दिया है और सरकार उनकी रक्षा करने में पूरी तरह से विफल रही है. मुझे लगता है कि केंद्र को तत्काल मणिपुर के मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगना चाहिए.”उन्होंने कहा, ”प्रधानमंत्री को गृह मंत्री और महिला और बाल विकास मंत्री के साथ तत्काल मणिपुर का दौरा करना चाहिए. मणिपुर के लोग बहुत अच्छे और दयालु होते हैं. ये एक खूबसूरत भूमि है. इनकी सुरक्षा के लिए केंद्र से तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए.।
महिला आयोग अध्यक्ष ने केंद्र व राज्य सरकार पर उठाए कई सवाल-
स्वाति मालीवाल ने मणिपुर के महिला आयोग पर भी कई सवाल उठाए और उनके अधिकार और कर्तव्य उनको याद दिलाए,, स्वाति मालीवाल उन महिला अध्यक्ष में से एक है जो महिला अपराधों से लेकर कई अन्य मामलों में खुल कर सरकारों की आलोचना करती हैं, चाहे वो किसी की भी सरकार हो,,,स्वाति मालीवाल के मणिपुर को लेकर किए इन खुलासों से सरकार की नीयत पर भी कई सवाल उठते हैं, सरकार के इस रवैये से तो लगता है कि मानों न केंद्र और न ही राज्य सरकार किसी को भी इनका दर्द दिखाई नहीं देता क्योकि अगर इनको ये दर्द दिखाई देता तो आखिर क्यों सरकार या कोई सरकारी मदद अभी तक इन तक नहीं पहुंची ? इस रवैये से राज्य सरकार पर तो सवाल उठते ही हैं, लेकिन केंद्र भी सवालों के घेरे में आता है कि आखिर क्यों केंद्र सरकार अब तक बिरेन सरकार से जवाब तलब नहीं कर रही है ?
पिछले कई सालों के अंदर यानी, (2011 से 2023 तक) 17.50 लाख से अधिक लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है। ये लोग अब विदेशों में जाकर बस चुके हैं। इसको लेकर हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 भी आ चुकी है। इसमें भी भारत छोड़ने वाले नागरिकों का पूरा ब्योरा दिया गया है। यही नहीं, ये भी बताया गया है कि आखिर लोग भारत की नागरिकता छोड़कर विदेशों में क्यों बस रहे हैं? विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी लोकसभा में भारत से विदेश जाने वाले भारतीयों को लेकर ये जानकारी दी है. एस जयशंकर ने लोकसभा में बताया कि अब तक 87,000 से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है. एक सवाल का लिखित जवाब देते हुए विदेश मंत्री ने बताया कि ये संख्या जून 2023 तक दर्ज की गई है. एस जयशंकर ने बताया कि इन आकड़ों के साथ ही 2011 के बाद से 17.50 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी है. नागरिक छोड़ने वाले लोग अब उस देश के नागरिक बन गए हैं, जहां वे जाकर बसे हैं।
पाकिस्तान, बांग्लादेश तक की नागरिकता ले रहे लोग-
केंद्रीय विदेश मंत्रालय ने 135 देशों की सूची जारी की है, जहां 17.50 लाख से ज्यादा लोग गए हैं। हैरानी की बात है कि भारत की नागरिकता छोड़कर कई लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल और चीन तक की नागरिकता ले चुके हैं। भारत छोड़ने के बाद सबसे ज्यादा लोग अमेरिका में बसे हैं। इनकी संख्या करीब सात लाख बताई जा रही है। इसके अलावा ब्रिटेन, रूस, जापान, इस्राइल, इटली, फ्रांस, यूएई, यूक्रेन न्यूजीलैंड, कनाडा, जर्मनी जैसे देशों में भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे हैं। कुछ लोगों ने युगांडा, पापुआ न्यू गिनी, मोरक्को, नाइजीरिया, नॉर्वे, जाम्बिया, चिली जैसे देशों की नागरिकता भी ली है।
कोरोना के बाद सबसे ज्यादा लोग विदेश में बसे-
मानसून सत्र के दौरान सांसद कीर्ति चिदंबरम के सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय विदेश मंत्रालय ने बताया है कि कोरोना के बाद 2022 में सबसे ज्यादा 2.25 लाख लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ी है। कोरोना के दौरान यानी 2020 में सबसे कम 85 हजार और 2021 में 1.63 लाख लोग विदेश में जाकर बस गए।
भारत क्यों छोड़ रहे हैं लोग?
आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो साफ पता चलता है कि भारत छोड़ने वाले ज्यादातर लोग नौकरीपेशा हैं। इनमें अमीरों की संख्या कम है। नागरिकता छोड़ने वाले करोड़पति भारतीयों की संख्या केवल 2.5 प्रतिशत है, जबकि बाकी 97.5 प्रतिशत लोग नौकरी पेशा से हैं।’ भारत की नागरिकता छोड़ने वाले 90 से 95 प्रतिशत लोग बेहतर करियर विकल्प के लिए विदेशों में बसते हैं। कई लोग छोटे देश इसलिए चुनते हैं, ताकि वहां जाकर वह व्यापार कर सकें। इन देशों में टैक्स का दायरा भी कम होता है। इससे उन्हें कारोबार बढ़ाने का अच्छा मौका मिल जाता है। इसके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे देशों में जाने वाले ज्यादातर लोग अपने निजी कारणों से जाते हैं।
कितनों ने कब-कब छोड़ी नागरिकता?
विदेश मंत्री ने लोकसभा में कहा कि 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी जबकि 2021 में उनकी संख्या 1,63,370 और 2020 में 85,256 थी. वहीं 2019 में 1,44,017, 2018 में 1,34,561, 2017 में 1,33,049, 2016 में 1,41,603 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी. इसके अलावा 2015 में 1,31,489 और 2014 में 1,29,328 ने भारतीयों ने नागरिकता छोड़ दी।
क्या है नागरिकता छोड़ने की वजह?
जयशंकर ने कहा कि इनमें से कई ने व्यक्तिगत सुविधा की वजह से विदेशी नागरिकता लेने का विकल्प चुना है. इसके अलावा पिछले दो दशकों में वैश्विक कार्यस्थल की खोज करने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या महत्वपूर्ण रही है. भारत दोहरी नागरिकता की पेशकश नहीं करता है. जिसके चलते जब भारतीय विदेश जाते है तो जिस देश में वे गए है, उसके लिए पीआर सुरक्षित करने के लिए उन्हें कभी-कभी अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ने की आवश्यकता होती है।
किस देश को लोग कर रहे हैं पसंद?-
भारत छोड़कर विदेश में रहने वाले भारतीयों को कौन सा देश सबसे ज्यादा पंसद आ रहा है, इस बारे में विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी से अंदाजा लगता है. विदेश मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, 2021 में कुल 78,284 लोगों को अमेरिकी नागरिकता मिल गई।
इसमें बताया गया कि दूसरे नंबर पर ऑस्ट्रेलिया को भारतीय पसंद कर रहे हैं. 2021 के डेटा के मुताबिक 23,533 लोगों को ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता मिली. इसके अलावा तीसरे नंबर पर कनाडा है. जहां 2021 में 21,597 लोग कनाडा के नागरिक बने. चौथे और पांचवें नंबर पर लोगों की पसंद यूके और इटली हैं।
भारतीय लोगों को रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है?
संसद में केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस पर कहा की ‘ज्यादातर लोग काम के सिलसिले में विदेश जाते हैं और वहां व्यक्तिगत सुविधाओं के चलते रहने लगते हैं। ऐसे में भारतीयों के पलायन को रोकने के लिए सरकार कई तरह से कदम उठा रहा है। मेक इन इंडिया के जरिए भारत में ही नागरिकों को बेहतर कॅरियर का विकल्प देने की कोशिश हो रही है। जिस से साथ ही इसका असर भी हो रहा है।’
वित्त मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2023 के लिए 8.15 प्रतिशत की ब्याज दर को मंजूरी दे दी है. 5 करोड़ से ज्यादा ईपीएफ खाताधारकों (EPF Subscribers) के लिए ये खुशखबरी है. ईपीएफ कॉरपस में जमा उनकी गाढ़ी कमाई पर वित्त वर्ष 2022-23 के लिए ब्याज के रकम के मिलने का रास्ता साफ हो गया है. इससे पहले कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees’ Provident Fund Organisation) यानी ईपीएफओ (EPFO) ने सरकार से इतना ब्याज करने की संस्तुति की थी. अब सरकार की ओर से वित्त मंत्रालय ने इसे स्वीकार करते हुए नोटिफिकेशन जारी कर दिया है.
EPFO ने जारी किया सर्कुलर–
वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 8.15 फीसदी ईपीएफ रेट को केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है. ईपीएफओ ने सभी जोनल ऑफिसेज के इंचार्ज को पत्र लिखकर ये सूचित किया है कि भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय ने ये जानकारी दी है केंद्र सरकार ने 2022-23 के लिए सभी ईपीएफ खाताधारकों के ईपीएफ में 8.15 फीसदी ब्याज क्रेडिट किए जाने को मंजूरी दे दी है. ईपीएफओ (EPFO) ने जोनल ऑफिसेज के इंचार्ज और रीजनल ऑफिसेज के ऑफिसर्स इंचार्ज को कहा है कि इस मंजूरी मिलने के बाद ईपीएफ के सदस्यों के खाते में ब्याज के रकम के क्रेडिट करने को लेकर वे जरुरी आदेश जारी करें. बता दें कि वित्तवर्ष 21-22 के लिए ये दर 8.10 प्रतिशत थी. इसके पहले मार्च में अपनी दो दिन की बैठक में ईपीएफओ (EPFO) ने अपने सब्सक्राइबर्स के लिए 2022-23 के कर्मचारी के भविष्य निधि (EPF) पर ब्याज दर बढ़ाने की घोषणा की थी. इसके बाद 2022-23 के लिए ईपीएफ जमा पर ब्याज दर की बढ़ोतरी के लिए वित्त मंत्रालय के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था जिसे आज मंजूर कर लिया गया है. अब सरकार की मंजूरी मिलने के बाद 2022-23 के लिए ईपीएफ पर ब्याज दर ईपीएफओ के पांच करोड़ से अधिक खाताधारकों के खातों में डाल दी जाएगी.
जल्द आएगा खाते में वित्त वर्ष 2022-23 के ब्याज का पैसा-
दरअसल 28 मार्च 2023 को सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज यानि सीबीटी की बैठक में वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 8.15 फीसदी ईपीएफ रेट निर्धारित किया गया था. तब कहा गया था कि वित्त मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद गजेट नोटिफिकेशन के जरिए इसे नोटिफाई किया जाएगा जिसके बाद ईपीएफ खाताधारकों के ईपीएफ खाते में ब्याज के रकम को ट्रांसफर किया जाएगा.
ईपीएफ बोर्ड के इस फैसले के बाद 11 लाख करोड़ रुपये ईपीएफ में जमा प्रिंसिपल रकम पर 90,000 करोड़ रुपये खाते में ब्याज के रकम के तौर पर क्रेडिट किया जाएगा. जबकि 2021-22 में ये 9.56 लाख करोड़ रुपये के प्रिंसिपल रकम पर 77,424.84 करोड़ रुपये ब्याज के रकम के तौर पर ईपीएफ खाताधारकों के खाते में ट्रांसफर किया गया था. वित्त वर्ष 2021-22 में ईपीएफ पर 8.10 फीसदी ब्याज देने का फैसला लिया गया था जिसकी तीखी आलोचना भी हुई थी.
अगस्त से क्रेडिट करना शुरू करेगाEPFO-
EPF Interest rate को मंजूरी मिलने के बाद अब इसके क्रेडिट होने की बारी है. EPFO से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, अगस्त महीने में ब्याज को जमा करना शुरू किया जाएगा. EPFO के करीब 5 करोड़ खाताधारकों को इसका सीधा फायदा मिलेगा. पिछली बार सॉफ्टवेयर अपग्रेडेशन के कारण मेंबर्स के अकाउंट्स में देरी से पैसा आया था, लेकिन EPFO का कहना है कि इस बार इसका पूरा ख्याल रखा गया
ऐसे चेक करें अपना EPF बैलेंस-
आप अपने पीएफ अकाउंट का पासबुक चेक करके ये देख सकते हैं कि आपका ब्याज का पैसा आया है या नहीं. आप इसके लिए या तो EPFO की ऑफिशियल वेबसाइट पर जा सकते हैं. या फिर 7738299899 नंबर पर ‘EPFOHO UAN ENG’ मैसेज भी भेज सकते हैं. 9966044425 भी एक नंबर है, जिस पर मिस्ड कॉल भेजकर पीएफ बैलेंस चेक किया जा सकता है. इसके अलावा, UMANG ऐप के जरिए भी पीएफ अकाउंट एक्सेस किया जा सकता है.
ऑनलाइन चेक करें पीएफ बैलेंस-
1- EPFO की ऑफिशियल वेबसाइटgov.in पर जाएं.
2-‘Our Services’ टैब पर क्लिक करें. इसके बाद ‘For Employees’ के ऑप्शन को सेलेक्ट करें.
3- नया पेज खुलने पर आपको ‘Member Passbook’ पर क्लिक करना होगा. यहां आपको अपना UAN (Universal Account Number) और पासवर्ड डालना होगा.
4- इसके बाद आपका पासबुक ओपन हो जाएगा. इसमें आपको दिख जाएगा कि आपके एंप्लॉयर और आपकी ओर से कितना कॉन्ट्रिब्यूशन हुआ है और इस पर कितना ब्याज मिला है. अगर EPFO की ओर से आपका ब्याज क्रेडिट हो चुका है, तो इसमें रिफ्लेक्ट हो जाएगा.
App से चेक करें बैलेंस-
सबसे पहले Umang App डाउनलोड करें. इसके बाद अपने फोन नंबर को रजिस्टर करें और ऐप में लॉगिन करें. टॉप लेफ्ट कॉर्नर में दिए गए मेन्यू में जाकर ‘Service Directory’ में जाएं. यहां EPFO पर क्लिक करें. यहां View Passbook में जाने के बाद अपने UAN नंबर और OTP के जरिए बैलेंस देख सकते हैं.
क्या आप कोल्ड ड्रिंक के शौकीन हैं और एक दिन में कई-कई बोतल कोल्ड ड्रिंक पी जाते हैं, तो कृपया सावधान हो जाइए, क्योंकि कोल्ड ड्रिंक भी अब आपको कैंसर का रोग लगा सकती है.अगर आप भी डाइट सॉफ्ट ड्रिंक्स, आइसक्रीम और च्युइंग गम के आदी हैं तो अब वक्त आ गया है इन चीजों से दूरी बना ली जाए. क्योंकि एक रिसर्च में इनको लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है. रिसर्च में दावा किया गया है कि इन चीजों का सेवन करने से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का जोखिम पैदा हो सकता है. आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम इतना व्यस्त रहते हैं कि अपनी सेहत के बारे में कुछ सोच ही नहीं पाते,और अपने व्यस्त समय में ही कुछ ऐसा खा लेते हैं जो हमारी सेहत पर बहुत बुरा असर डालती हैं,अधिकतर नौकरीपेशा लोग समय की कमी के चलते अपने खाने पीने में ऐसी चीजों का उपयोग करते हैं जो आसानी से उपलब्ध हो जाती है और यहीं हम लोग बड़ी गलती करते हैं,,, अधिकतर लोग अपने जीवन में सॉफ्ट ड्रिंक्स का लगातार इस्तेमाल करते हैं,घर हो या ऑफिस या कोई पार्टी सभी जगह सॉफ्ट ड्रिंक्स का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं इससे आपको कैंसर जैसी भयानक और जानलेवा बीमारी हो सकती है? शायद आपको नहीं पता होगा कि जिन सॉफ्ट ड्रिंक्स को हम मजे से पीते हैं दरअसल वो सॉफ्ट ड्रिंक भी दो तरह की होती हैं. एक नॉर्मल और दूसरी डाइट यानी शुगर फ्री. नॉर्मल कोल्ड ड्रिंक में मिठास के लिए चीनी का इस्तेमाल होता है. लेकिन डायट कोल्ड ड्रिंक में चीनी की बजाय आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल होता है. कोल्ड ड्रिंक्स और च्यूइंगम में जो आर्टिफिशियल स्वीटनर इस्तेमाल होता है उसका नाम है एस्पार्टेम…. एस्पार्टेम, असल में मिथाइल एस्टर नामक एक कार्बनिक कंपाउंड है.और यही आर्टिफिशियल स्वीटनर कैंसर का कारण बन सकते हैं।
WHO की रिसर्च में बड़ा खुलासा-
अगर आप भी डाइट कोक, आइसक्रीम और च्युइंग गम के आदी हैं तो अब वक्त आ गया है इन चीजों से दूरी बना ली जाए. क्योंकि एक रिसर्च में इनको लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है. रिसर्च में दावा किया गया है कि इन चीजों का सेवन करने से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का जोखिम पैदा हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिसर्च के मुताबिक, एस्पार्टेम एक कार्सिनोजेनिक है, जिसका मतलब है कि ये बॉडी में कैंसर सेल्स को ट्रिगर करने का काम कर सकता है. अगर आप किसी भी ऐसी चीज का सेवन कर रहे हैं, जिसमें एस्पार्टेम मौजूद है तो इसका साफ-सीधा मतलब यह है कि आप खुद कैंसर जैसी घातक बीमारी को निमंत्रण दे रहे हैं. डाइट ड्रिंक्स , डाइट सोडा और च्युइंग गम में एस्पार्टेम का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है. एस्पार्टेम एक तरह का आर्टिफिशियल स्वीटनर है, जिसका इस्तेमाल मिठास लाने के लिए किया जाता है।
कब और किसने खोजा एस्पार्टेम को-
एस्पार्टेम को लैब में बनाया जाता है. ये चीनी से 200 गुना ज्यादा मीठा होता है. 1965 में जेम्स एम. श्लैटर नाम के एक केमिस्ट ने एस्पार्टेम को खोजा था. साल 1981 में अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट यानी FDA ने कुछ ड्राई फ्रूट्स में इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी और फिर साल 1983 से पेय पदार्थों में भी इसका इस्तेमाल शुरू हो गया।
क्या कहता है IARC –
इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ (IARC) का कहना है कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी मात्रा में एस्पार्टेम से भरपूर चीजों का सेवन कर रहे हैं. अगर आप थोड़ी मात्रा में भी इस आर्टिफिशियल स्वीटनर का सेवन कर रहे हैं तो मतलब अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं. एस्पार्टेम सेहत के लिए कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि दानेदार चीनी की तुलना में एस्पार्टेम में 200 गुना मिठास ज्यादा होती है. आज 95 प्रतिशत Sugar Free Soft Drink industry में Aspartame का ही प्रयोग किया जाता है. इतना ही नहीं बाजार में उपलब्ध 97 प्रतिशत तक Sugar Free टेबलेट और पाउडर में एस्पार्टेम का ही इस्तेमाल होता है. इसी तरह शुगर फ्री Chewing Gum Industry में भी एस्पार्टेम का ही प्रयोग किया जाता है. यानी भले ही आप शुगर फ्री या डायट देखकर कोल्ड ड्रिंक पी रहे हैं और सोच रहे हैं कि इससे आपकी सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा तो आप ये समझ लीजिये कि ऐसा करके आप खुद को ही धोखा दे रहे हैं।
सिर्फ कैंसर ही नहीं, कई बीमारियां पैदा कर सकता है एस्पार्टेम-
अब तक आर्टिफिशियल स्वीटनर एस्पार्टेम को फूड कैटेगरी में रखा गया था. इसलिए WHO भी इसके इस्तेमाल को खतरनाक नहीं मानता था. हालांकि एस्पार्टेम पर सवाल तो काफी पहले से उठते रहे हैं. कई इंटरनेशनल स्टडीज में ये बात सामने आ चुकी है कि एस्पार्टेम स्वीटनर का लगातार इस्तेमाल शरीर के कई अंगों में करीब 92 तरह के दुष्प्रभाव पैदा करते हैं. जिनमें से कुछ हम आपको बताते हैं.स्टडी के मुताबिक एस्पार्टेम का लंबे समय तक सेवन करने की वजह से आंखों में धुंधलेपन की शिकायत हो सकती है. गंभीर स्थिति में ये अंधेपन की वजह भी बन सकता है. लंबे वक्त तक एस्पार्टेम के सेवन से कान में भिनभिनाने और तेज आवाज में परेशानी आना शामिल है. ये बहरेपन की वजह भी बन सकता है. एस्पार्टेम के लगातार सेवन से हाई ब्लड प्रेशर और सांस लेने में कठिनाई की समस्या हो सकती है.इतना ही नहीं माइग्रेन, कमजोर याददाश्त और मिर्गी के दौरे जैसी बीमारियों की वजह भी लंबे समय तक एस्पार्टेम का इस्तेमाल हो सकता है.एस्पार्टेम के सेवन की वजह करने की वजह से मरीज डिप्रेशन का शिकार भी हो सकता है. चिड़चिड़ापन और नींद ना आने की समस्या हो सकती है. एस्पार्टेम के इस्तेमाल के चलते, डायबिटीज के नियंत्रण में परेशानी, बालों का झड़ने, वजन घटने या बढने जैसी चीजें भी हो सकती हैं।
IARC ने किया ये ऐलान-
इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर यानी IARC ने ऐलान किया है कि वो जल्द ही एस्पार्टेम को कार्सिनोजेनिक (carcinogenic) कैटेगरी में शामिल करने वाली है. दरअसल कार्सिनोजेंस वो पदार्थ होते हैं जो इंसानों में किसी ना किसी तरीके से कैंसर की वजह बन सकते हैं. WHO की रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि एस्पार्टेम से तैयार कोल्ड ड्रिंक और अन्य चीजें कैंसर करवा सकती हैं. और अब बाजार में शुगर फ्री के नाम पर जो कुछ भी चीजें आएंगी. उन पर वॉर्निंग लिखी होगी कि – इससे कैंसर होता है. वैसे ही जैसे सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है. बता दें कि पिछले साल फ्रांस में एस्पार्टेम के प्रभावों को लेकर एक लाख से अधिक लोगों पर एक रिसर्च की गई थी. इस रिसर्च में सामने आया था कि जो लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं, उनमें कैंसर का रिस्क ज्यादा रहता है. तो सोचिये इतने खतरनाक आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल कोल्ड ड्रिंक को मीठा बनाने में हो रहा है. इंग्लैंड में न्यू हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल लगभग दो लाख मौतों के लिए आर्टिफिशियल स्वीटनर से तैयार ड्रिंक्स ही सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं।
इन बातों पर जरूर गौर करें-
गौर करने वाली बात तो ये भी है कि इतने नुकसानों के बारे में पता होने के बावजूद कोल्ड ड्रिंक इंडस्ट्री दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही है. रिपोर्ट के मुताबिक. वर्ष 2016 में भारत में एक व्यक्ति सालाना औसतन 44 बोतल कोल्ड ड्रिंक पीता था. इसके बाद वर्ष 2021 में एक व्यक्ति सालाना औसतन 84 बोतल कोल्ड ड्रिंक पीने लगा.यानी लगभग डबल ,,,,,,लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि भारत के लोग ही सबसे ज्यादा कोल्ड ड्रिंक पी रहे हैं तो गलत सोच रहे हैं. अमेरिका जैसे देशों की तुलना में ये खपत बहुत कम है.अमेरिका में एक व्यक्ति सालभर में औसतन 1496 बोतल कोल्ड ड्रिंक पी जाता है. मेक्सिको में 1489, जर्मनी में 1221 और ब्राजील में एक व्यक्ति सालाना औसतन 537 बोतल कोल्ड ड्रिंक पीता है. और ये तो तब है जब सबको पता है कि जितना ज्यादा कोल्ड ड्रिंक का सेवन उतना ज्यादा बीमारियों को निमंत्रण,,,लेकिन आज भी इन चीजों की इतनी बड़ी संख्या में हो रहा उपयोग ये बताता है कि लोग अपनी सेहत के प्रति कितने गंभीर है,,अगर आप भी स्वस्थ रहना चाहते हैं तो इन बातों पर जरूर गौर करिये।
भारत देश जिसे भारत माता के नाम से जाना जाता है, जिस देश में महिलाओं के अपमान पर महाभारत हो जाती है. उसी देश के पूर्वोत्तर इलाके मणिपुर से दिल दहलाने वाली घटना सामने आई. जो की इंसानियत को शर्मसार और हैवानियत की हदों को पार कर देने वाली इस घटना का वायरल वीडियो देखकर लोगों की रूह कांप गई. इस वायरल वीडियो में दो महिलाओं को निर्वस्त्र अवस्था में लोगों के बीच घुमाते हुए दिखाया गया. इतना ही नहीं, आरोप ये भी है कि इस खौफनाक परेड कराने से पहले उनके साथ दरिंदगी भी की गई. इस घटना ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है. नेताओं से लेकर आम जनता तक, हर कोई इस घटना की कड़ी निंदा कर रहा है. मणिपुर में पिछले 83 दिनों से हिंसा जारी है। पुलिस ने इस घटना के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. जानकारी के मुताबिक, इस घटना को बीती 4 मई को अंजाम दिया गया था. इस घटना को लेकर हिंसा की आग में जलने वाले मणिपुर का माहौल और बिगड़ गया है. लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार भी मणिपुर नहीं गए,भले ही वो विदेश में जाकर भारत का खूब डंका बजाते रहे हों लेकिन ये भी उतना ही सच है कि उन्हीं की सरकार वाले राज्य में पिछले दो महीने से आग लगी है,कई लोग मौत के मुँह में समा गए,हजारों लोग बेघर हो गए,सैनिकों के हथियार तक छीने जा रहे हैं, इस घटना की तस्वीर इतनी विचलित करती है कि इसको दिखाया भी नहीं जा सकता, केंद्र और राज्य सरकार की नाकामी का इससे बड़ा कारण नहीं हो सकता कि इतने समय से प्रदेश में हिंसा जारी है और न तो राज्य सरकार इस पर कोई ठोस कार्रवाई कर पायी न केंद्र की सरकार। पीएम मोदी ने कहा कि दोषियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को स्वत: संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए है।
चार मई की घटना-
दरअसल, मणिपुर इन दिनों जातीय हिंसा की चपेट में है, लेकिन अब एक वीडियो को लेकर मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में तनाव फैल गया है, जिसमें दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह वीडियो चार मई का है और दोनों महिलाएं कुकी समुदाय से हैं, वहीं जो लोग महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमा रहे हैं वो सभी मैतई समुदाय से हैं। आदिवासी संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।
पहले पीएम मोदी और चीफ जस्टिस की टिप्पणी-
संसद के मानसून सत्र से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से बातचीत की। उन्होंने मणिपुर हिंसा का जिक्र करते हुए आक्रोश व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरा हृदय पीड़ा से भरा है, क्रोध से भरा है। मणिपुर की जो घटना सामने आई है, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाली घटना है। पाप करने वाले, गुनाह करने वाले, कितने हैं-कौन हैं, यह अपनी जगह है, लेकिन बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है। सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वे माताओं-बहनों की रक्षा करने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाएं। अपने राज्यों में कानून व्यवस्था को और मजबूत करें। घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ की हो या मणिपुर की हो, हम राजनीतिक विवाद से ऊपर उठकर कानून व्यवस्था और नारी के सम्मान का ध्यान रखें। किसी भी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा। मणिपुर की इन बेटियों के साथ जो हुआ है, उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता।’
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ –
‘हम सरकार को कार्रवाई करने के लिए थोड़ा समय देंगे नहीं तो हम खुद इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे। हमारा विचार है कि अदालत को सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि अपराधियों पर हिंसा के लिए मामला दर्ज किया जा सके। मीडिया में जो दिखाया गया है और जो दृश्य सामने आए हैं, वे घोर संवैधानिक उल्लंघन को दर्शाते हैं और महिलाओं को हिंसा के साधन के रूप में इस्तेमाल करके मानव जीवन का उल्लंघन करना संवैधानिक
लोकतंत्र के खिलाफ है।’
दिगज्ज पत्रकारों के बयान-
इस घटना के बाद न केवल राजनीतिक पार्टियों ने बल्कि देश की दिग्गज पत्रकारों ने भी केंद्र और राज्य कीसरकारोंको आड़े हाथों लिया ..भले ही ये पिछले कई वर्षों में देखने को नहीं मिला हो पर अब दिखाई दिया जो कि इशारा करता है वाकई घटना कितनी बड़ी है,,,,भले ही पहलवानों के मुद्दों पर या अन्य कई मुद्दों पर ऐसा कोई ट्वीट देखने को पिछले कई वर्षों में नहीं दिखाई दिया ..लेकिन इस बार कई पत्रकारों ने इस पर खुल कर विरोध जताया और सरकार को खूब
खरी खोटी सुनाई।
मणिपुर घटना पर फूटा सेलेब्स का गुस्सा-
मणिपुर से दिल दहला देने वाली जो वीडियो सामने आया है उस ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है. दो महिलाओं को निर्वस्त्र परेड कराने के वीडियो पर कई सेलेब्स का भी गुस्सा फूटा है, इस भयावह वीडियो पर अभिनेता अक्षय कुमार ने भी इस घटना की निंदा करते हुए कहा कि दोषियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए, वहीं इस पर रिचा चड्ढा, उर्फी जावेद, रेणुका सहारे भी एक्टिव है. उन्होंने भी इस घटना की निंदा की है
महिलाओं को नग्न कराकर घूमाने का किन पर लगा है आरोप-
रिपोर्ट्स के मुताबिक, वायरल वीडियो में जिन दो महिलाओं को नग्न करके घुमाया जा रहा है, वो कुकी समुदाय की हैं। यह वीडियो चार मई का बताया जा रहा है, जब हिंसा शुरुआती चरण में थी। महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का आरोप मैतई समुदाय के लोगों पर लगा है।इस मामले में पुलिस ने अज्ञात हथियारबंद बदमाशों के खिलाफ थौबल जिले के नोंगपोक सेकमाई पुलिस स्टेशन में अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और हत्या का मामला दर्ज किया है। उधर, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी मामले की जांच के लिए अलग टीम गठित कर दी है। केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार से इस मसले पर रिपोर्ट मांगी है। केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने भी मुख्यमंत्री से बात की।
मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा?
इसे समझने के लिए हमें मणिपुर का भौगोलिक स्थिति जानना चाहिए। दरअसल, मणिपुर की राजधानी इम्फाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10% हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 43% आबादी रहती है। इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है। आंकड़ें देखें तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं।वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नगा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है।
भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुई हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती। ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़े हैं।
हिंसा की शुरुआत कब हुई-
मौजूदा तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था। देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे।इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए।
एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नगा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा। चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी। पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी। सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया। अब तक इस हिंसा के चलते 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तीन हजार से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं।
हिंसा की तीन वजहें-
1. मैतेई समुदाय के एसटी दर्जे का विरोध-
मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले कई सालों से मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है। मामला मणिपुर हाईकोर्ट पहुंचा। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है।कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने का आदेश दे दिया। अब हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला बेंच केस की सुनवाई कर रही है।
2. सरकार की अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई-
आरक्षण विवाद के बीच मणिपुर सरकार ने अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई ने आग में घी डालने का काम किया। मणिपुर सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं। ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक अभियान चला रही है।
वहीं, आदिवासियों का कहना है कि ये उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया। जिससे आक्रोश फैला।
3. कुकी विद्रोही संगठनों ने सरकार से हुए समझौते को तोड़ दिया-
हिंसा के बीच कुकी विद्रोही संगठनों ने भी 2008 में हुए केंद्र सरकार के साथ समझौते को तोड़ दिया। दरअसल, कुकी जनजाति के कई संगठन 2005 तक सैन्य विद्रोह में शामिल रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार के समय, 2008 में तकरीबन सभी कुकी विद्रोही संगठनों से केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन यानी SoS एग्रीमेंट किया।
इसका मकसद राजनीतिक बातचीत को बढ़ावा देना था। तब समय-समय पर इस समझौते का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा, लेकिन इसी साल 10 मार्च को मणिपुर सरकार कुकी समुदाय के दो संगठनों के लिए इस समझौते से पीछे हट गई। ये संगठन हैं जोमी रेवुलुशनरी आर्मी और कुकी नेशनल आर्मी। ये दोनों संगठन हथियारबंद हैं। हथियारबंद इन संगठनो के लोग भी मणिपुर की हिंसा में शामिल हो गए और सेना और पुलिस पर हमले करने लगे।
अब सवाल पीएम से भी यही-
अब सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी यही है कि आख़िरकार मणिपुर के ऐसे हालात होने के बाद और उस पर ये विभत्स घटना होने के बाद भी आखिरकार मुख्यमंत्री एन बिरेन जी अपने पद पर बने हुए हैं जिनको नैतिकता के शायद मायने क्या हैं उसकी पूरी तरह से जानकारी नहीं होगी,,,मगर ऐसा नहीं है कि उनकी नैतिकता ने पहले हिल्लोरे नहीं मारे थे. और फ़ैसला भी किया था त्यागपत्र देने का ..मगर फिर अपने समर्थकों की दुहाई देने पर अपने ही फैसले को वापिस ले लिया और फिर से मुख्यंत्री की गद्दी पर विराजमान हो गए ..पर ऐसा नहीं है कि दिल्ली दरबार इससे अंजान रहा होगा ..पर अब दिल्ली दरबार को ही क़दम आगे बढ़ाना होगा .. फिलहाल पुलिस ने इस घटना के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. जानकारी के मुताबिक, इस घटना को बीती 4 मई को अंजाम दिया गया था. इस घटना को लेकर हिंसा की आग में जलने वाले मणिपुर का माहौल और बिगड़ गया है।
केदारनाथ मंदिर में अब कोई रील्स नहीं बना पाएंगे , केदारनाथ में पैदा हो रहा है एक बार फिर बड़ा संकट, खुद भगवान ही अब खतरे में आ गए हैं,केदारनाथ भगवान शिव का वो धाम जो हिमालय की गोद में स्थित है,पहले केदारनाथ की यात्रा काफी कठिन मानी जाती थी लेकिन आज के समय में सभी लोग वह पहुंच रहे हैं. एक समय था जब केदारनाथ जाने का रास्ता काफी कठिन था,और लोग यहां अपने अंत समय में जाया करते थे, क्योकि उस वक्त यहां पहुंचने के लिए न सड़क थी और ना ही आज की तरह कोई हैली या अन्य सुविधाएं थी. कहते हैं पुराने समय में हरिद्वार के बाद पूरा रास्ता काफी मुश्किल भरा हुआ करता था, इसलिए श्रद्धालु अपने अंत समय में यहां जाया करते थे, और जाने के बाद ये भी उम्मीद कम ही रहती थी कि इंसान लौट कर आएगा या नही, इसलिए कई लोग यात्रा पर जाने से पहले अपना पिंड दान कर दिया करते थे। लेकिन आज धाम की स्तिथि कुछ और ही बयां करती है।
2013 की आपदा के बाद लोगो की भीड़ बढ़ने लगी-
2013 की आयी भीषण आपदा के बाद केदारनाथ धाम सिर्फ मंदिर को छोड़कर पूरी तरह तहस नहस हो गया था,जिसके बाद सबसे पहले उस समय के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदारनाथ यात्रा को सुचारु और मंदिर परिसर को फिर से खड़ा करने की काफी कोशिश की, लेकिन 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह केदारनाथ को पुनः सवार कर खड़ा किया उसके बाद से ही केदारनाथ जाने के लिए लोगों में उत्सुकता बढ़ी,,,और श्रद्धालुओं की संख्या में यहां बहुत इजाफा होने लगा,,, लेकिन आज के समय में केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं के साथ-साथ मनोरंजन के लिए पहुंचने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है,सोशल मीडिया के इस दौर में कई वीडियो केदारनाथ से वायरल हुए जिससे केदारनाथ धाम ज्यादा चर्चा में बना है,ऐसे वीडियो से लगातार धार्मिक भावनाएं आहत होने का आरोप लगते रहे हैं, जिसके लिए मंदिर समिति पर एक्शन लेने का दबाव भी बन रहा थ।
मंदिर में फ़ोन और फोटोग्राफी पर प्रतिबंध-
लगातार ऐसे मामलों के सुर्ख़ियों में आने के बाद केदारनाथ मंदिर समिति ने अब बड़ा फैसला किया है,,, मंदिर समिति ने केदारनाथ मंदिर में अब मोबाइल फोन से फोटोग्राफी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की और से इस संबंध में धाम में जगह-जगह साइन बोर्ड भी लगाए गए हैं। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि केदारनाथ मंदिर के अंदर यदि कोई श्रद्धालु फोटो खींचता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। केदारनाथ मंदिर में आने वाले कई श्रद्धालु रील्स बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं। जिससे धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंच रही है। हाल ही में केदारनाथ धाम में एक महिला द्वारा गर्भ ग्रह में नोट बरसाने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। जबकि गर्भगृह में फोटो खिंचवाना वर्जित है, हालांकि सरकार ने कई बार खुद ही इस नियम की अनदेखी की है, बीकेटीसी के अध्यक्ष ने कहा कि धाम में अभी तक क्लॉक रूम की व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालु मोबाइल फोन लेकर दर्शन कर सकते हैं। लेकिन मंदिर के अंदर फोटो और वीडियो नहीं खींच सकते हैं। इस पर प्रतिबंध है। यदि कोई श्रद्धालु आदेशों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
भविष्या के लिए एक बड़ा डर-
केदारनाथ धाम की सिर्फ यही चिंता नहीं है, बल्कि यहां उमड़ रही भारी भीड़ भी एक बड़ा डर भविष्य के लिए खड़ा हो रहा है, केदारनाथ हिमालय के सेंसिटिव जोन में बसा है यहां पर इतनी भीड़ पहुंचने से भी कई तरह का प्रभाव पड़ रहा हैं,भारी भीड़ से यहां दबाव भी बढ़ता है,केदार वैली में हेलीकॉप्टर से बढ़ रहे शोर से भी यहां के पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है, कई बार शोधकर्ता इस विषय पर भी सरकार को चेता चुके हैं, लेकिन उनकी बात पर कोई गौर करने को तैयार नहीं है।
आपदा के बाद तापमान में बड़ा बदलाव-
केदारनाथ धाम में आई आपदा के बाद से यहां के तापमान में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहा हैं. पहले जहां धाम में बर्फबारी और बारिश समय पर होने से तापमान सही रहता था. ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थीं. वहीं अब कुछ सालों से धाम में ग्लेशियर चटकने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं. इसके साथ ही यहां के बुग्यालों को नुकसान पहुंचने से वनस्पति और जीव जंतु भी विलुप्ति के कगार पर हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पर्यावरण को लेकर कोई कार्य नहीं किये जाने से पर्यावरण विशेषज्ञ भी भविष्य के लिए चिंतित नजर आ रहे है।
पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर-
केदारनाथ आपदा को नौ साल का समय बीत चुका है. तब से लेकर आज तक धाम में पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर चल रहे हैं. धाम को सुंदर और दिव्य बनाने की दिशा में निरंतर काम किया जा रहा है, लेकिन इन पुनर्निर्माण कार्यों और बढ़ती मानव गतिविधियों के साथ ही हेली सेवाओं ने धाम के स्वास्थ्य को बिगाड़ कर रख दिया है. यहां के पर्यावरण को बचाने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया जा रहा है, जिससे आज केदारनाथ की पहाड़ियां धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई है।
केदार घाटी के लिए हो रहा नया संकट खड़ा-
केदारनाथ घाटी के लिए एक बड़ी चिंता भी है- कंपन पैदा करता हेलिकॉप्टरों का शोर। हर 5 मिनट में एक हेलिकॉप्टर केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में गड़गड़ा रहा है ,यही है नया संकट। क्योंकि, विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ये पवित्र मंदिर ग्लेशियर को काटकर बनाया गया है। इसलिए शोर से घाटी के दरकने और हेलिकॉप्टरों के धुंए के कार्बन से पूरा इलाका खतरे की जद में है। हमने भगवान तक पहुंचने के इतने सरल व अवैज्ञानिक रास्ते बना दिए हैं कि अब भगवान पर ही मुसीबत आ गई है। केदारनाथ के लिए 1997-98 तक एक ही हेलिपैड था। अब 9 हेलीपैड बन गए हैं। ये देहरादून से फाटा तक फैले हैं और 9 कंपनियों के लिए उड़ान सुविधा देते हैं। 8 साल पहले तक केदारनाथ के लिए कुल 10-15 उड़ानें थीं। अब केदारनाथ वैली में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक हेलिकॉप्टर रोजाना 250 से ज्यादा राउंड लगाते हैं। इनका शोर और इनसे निकलने वाले कार्बन ने ग्लेशियर काटकर बनाए मंदिर और उसकी पूरी घाटी के लिए नया संकट खड़ा कर दिया है।
धीरे-धीरे धाम में हो रहा है भू धसाव-
केदारनाथ धाम में पाये जानी वाली घास विशेष प्रकार की है. वनस्पति विज्ञान में इसे माँस घास कहा जाता है. ये जमीन को बांधने का काम करती है. साथ ही यहां के ईको सिस्टम को भी सही रखती है. बताया जा रहा है कि यह माॅस घास जमीन में कटाव होने से रोकती है और हिमालय के तापमान को व्यवस्थित रखने में मददगार होती है. केदारनाथ धाम चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा है. यहां धीरे-धीरे भू धसाव हो रहा है. यहां मानव का दबाव ज्यादा बढ़ गया है. भैरवनाथ मंदिर, वासुकी ताल और गरूड़चट्टी जाने के रास्ते से इस घास को रौंदा जाता है. बुग्यालों में खुदाई करके टेंट लगाए गए हैं. जिन स्थानों पर टेंट लगाए गए हैं, वहां के बुग्यालों को पुनर्जीवित करने के लिए कोई कार्य नहीं किया जाता है, जिससे पानी का रिसाव होता जाता है और भूस्खलन की घटनाएं सामने आती है।
मंदिर की पहाड़ियों पर एवलांच की घटनाएं-
केदारनाथ धाम की पहाड़ियों में लगातार एवलांच की घटनाएं सामने आ रही हैं. इसके लिए पर्यावरणविद धाम में हो रहे तापमान बदलाव का कारण मानते हैं. पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली की माने तो केदारनाथ धाम के तापमान में ग्लोबल वार्मिंग के कारण वृद्धि देखने को मिल रही है. ग्लेशियर खिसक रहे हैं. केदारनाथ धाम में अनियंत्रित लोगों के जाने से वातावरण को नुकसान पहुंच रहा है. हिमालय क्षेत्र में हेलीकॉप्टर सेवाएं टैक्सी की तरह कार्य कर रही हैं, जबकि इनकी उड़ानों को विशेष इमरजेंसी की सेवाओं में उपयोग किया जाना चाहिए।
खतरे में हैं कई पशु और जानवर-
केदारनाथ में नीचे उड़ते हेलीकाप्टर दुर्लभ प्रजातियों के कई जीवों का ब्रीडिंग साइकल बिगड़ा है। उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल और राजकीय पशु कस्तूरी मृग इस सेंचुरी में अब नहीं दिखते। तितलियों की कई दुर्लभ प्रजातियां तो गायब हो चुकी हैं। स्नो लैपर्ड, हिमालयन थार और ब्राउन बीयर्स भी खतरे में हैं।
NGT के नियमों की उड़ती धज्जियां-
NGT ने सुनिश्चित करने को कहा था कि हेलिकॉप्टर केदारनाथ सेंचुरी में 600 मीटर के नीचे न उड़ें। आवाज 50 डेसिबल हो। लेकिन फेरे जल्दी पूरे करने और फ्यूल बचाने के लिए हेलिकॉप्टर 250 मी. ऊंचाई तक उड़ते हैं। आवाज भी दोगुनी होती है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीटूयट में ग्लेशियर विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ डीबी डोभाल कहते हैं- सरकार को ये रिपोर्ट दे चुके हैं कि इससे मंदिर और घाटी को बड़ा खतरा हो सकता है।पद्मभूषण पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी बताते हैं कि हिमालय के इस सबसे संवेदनशील व शांत क्षेत्र में 100 डेसिबल शोर और कार्बन उत्सर्जन हर 5 मिनट में होगा तो मंदिर-पर्यावरण-वन्य जीवों के लिए खतरा तय है।
देश के कई राज्यों में झमाझम बारिश हो रही है. मौसम विभाग (IMD) ने कई राज्यों के लिए भारी बारिश का ऑरेंज अलर्ट जारी किया है. कुछ राज्य सरकारों ने स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने का फैसला लिया है. दिल्ली में भी भारी बारिश के बीच मौसम विभाग ने येलो अलर्ट जारी किया था. तो वहीं सबसे ज्यादा हिमाचल प्रदेश में बारिश का कहर बरपा रहा है. हिमाचल में लगातार हो रही भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालात बने हुए है. कई लोगों की मौतें भी हो चुकी है.तो वहीं राज्य में बारिश से करोड़ों का नुकसान भी हुआ है. वहीं भारी बारिश को लेकर एक बार फिर अलर्ट जारी कर दिया गया है। मौसम विभाग का मानना है कि 14 से 16 जुलाई के बीच भारी बारिश हो सकती है। हिमाचल प्रदेश में मानसून सीजन (जून से सितंबर) में होने वाली कुल बारिश की करीब 30 फीसदी बारिश इस बार चार दिन में ही हो गई जोकि रिकॉर्ड के अनुसार अप्रत्याशित है। प्रदेश में 7 से 10 जुलाई के दौरान तीव्र मानसून की स्थिति बनी रही। इस अवधि के दौरान राज्य के अधिकांश हिस्सों में बहुत भारी से अत्यधिक भारी बारिश हुई।
अब तक इतने लोगों की हुई मौत-
हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदा से अब तक 98 लोगों की जान जा चुकी है। बुधवार को मलबे में दबे 6 लोगों के शव निकाले गए। एक दिन पहले तक मृतकों की संख्या 92 थी, जोकि बढ़कर 98 पहुंच गई है। चौथे दिन भी राहत एवं बचाव कार्य युद्धस्तर पर जारी है और 16 लोगों की अभी तक तलाश जारी है। समूचा प्रशासन राहत कार्यों में लगा हुआ है।
2800 पेयजल योजनाएं बहाल-
वर्षा से हुई तबाही के चलते प्रदेश के कई जिलों चंबा, मंडी, कांगड़ा, शिमला सहित अन्य स्थानों पर 3737 पेयजल योजनाएं बहाल करने में लगे कर्मचारियों के प्रयासों से 2800 योजनाओं को शुरू करने से पेयजल की स्थिति में सुधार आया है। इसके साथ-साथ सिंचाई की 994 योजनाएं ठप हो गई हैं।
कई पशुओं की भी मौत-
भारी बारिश के कारण सैकड़ों जानवरों की भी मौत हो गई है. राज्य सरकार के एक आंकड़े के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में तबाही की बारिश के कारण राज्य में जहां 98 लोगों की जान चली गई है, और कई लोग लापता बताए जा रहे हैं तो वहीं 100 से अधिक लोग घायल हुए हैं. वहीं राज्य भर में 492 जानवरों की भारी बारिश के कारण मौत हो चुकी है.
मौसम विभाग का पूर्वानुमान-
मौसम विभाग की ओर से 14 से 16 जुलाई तक भारी वर्षा का येलो अलर्ट जारी किया गया है। वहीं, बुधवार को प्रदेश के कई हिस्सों में हल्की वर्षा हुई। मौसम विभाग के निदेशक डॉ. सुरेंद्र पाल का कहना है कि 15 जुलाई से दो दिन तक प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में भारी बारिश होगी।
बारिश से प्रदेश भर में 1299 सड़कें बंद-
हिमाचल प्रदेश डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के मुताबिक मंगलवार शाम तक प्रदेश भर में 1299 सड़कें बंद हैं. इसके अलावा नेशनल हाईवे 21 मंडी-कुल्लू, नेशनल हाईवे 505 ग्राम फू-लोसर, नेशनल हाईवे 03 कुल्लू-मनाली और नेशनल हाईवे 707 शिलाई पर आवाजाही ठप हो गई है. भारी बारिश के कारण हिमाचल सड़क परिवहन निगम के 876 बस मार्ग प्रभावित हैं. वहीं 403 बसें कई जगहों पर फंस गई हैं.
’12 घंटे में बहाल करेंगे 700 सड़कें’-
लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन बाधित सड़क मार्गों को बहाल करने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। मौसम अगर अनुकूल रहा तो अगले 12 घंटे में 700 सड़कें बहाल कर ली जाएंगी। बारिश और बाढ़ से प्रदेश में 1299 सड़कें अवरुद्ध हुई हैं। इसके अलावा नेशनल हाईवे 21 मंडी-कुल्लू, नेशनल हाईवे 505 ग्राम फू-लोसर, नेशनल हाईवे 03 कुल्लू-मनाली और नेशनल हाईवे 707 शिलाई पर आवाजाही ठप हो गई है. भारी बारिश के कारण हिमाचल सड़क परिवहन निगम के 876 बस मार्ग प्रभावित हैं. वहीं 403 बसें कई जगहों पर फंस गई हैं. सड़कों को खोलने का काम तेज गति से किया जा रहा है। प्रदेश में लोक निर्माण विभाग को करीब 13 सौ करोड़ के नुकसान का अनुमान है।
4,680 परियोजनाएं हुई क्षतिग्रस्त-
पिछले एक सप्ताह से हिमाचल प्रदेश में हो रही भारी बारिश के कारण पूरे प्रदेश में सामान्य जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है तथा प्रदेश को करोड़ों रुपए की क्षति हुई है उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने बताया की केवल जल शक्ति विभाग में ही 4680 योजनाएं क्षतिग्रस्त हुई हैं, जिससे प्रदेश को 323.30 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। प्रदेश में करीब 2500 ट्रांसफार्मर बंद पड़े हैं. इनमें ऊना जिला की 257 क्षतिग्रस्त योजनाएं भी शामिल है जहां पर लगभग 20 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
‘राष्ट्रीय आपदा घोषित करे सरकार’-
सांसद प्रतिभा सिंह ने कहा कि प्रदेश सरकार पूरी तत्परता के साथ लोगों को राहत प्रदान करने में जुटी है। सरकार मजबूती से बाढ़ प्रभावितों के साथ खड़ी है। उन्होंने केंद्र सरकार से प्रदेश को तुरंत राहत पैकेज जारी करने की मांग के साथ हिमाचल में आई आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का आग्रह किया।
प्रदेश में फिर से भारी बारिश का अलर्ट- हिमाचल प्रदेश में फिर भारी बारिश का अलर्ट जारी हुआ है। मौसम विज्ञान केंद्र शिमला की ओर से प्रदेश के कई भागों में 15 व 16 जुलाई को भारी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया गया है। राज्य के कई भागों में 18 जुलाई तक बारिश का सिलसिला जारी रह सकता है। वहीं, राजधानी शिमला में आज हल्की धूप खिलने के साथ बादल छाए हुए हैं। धौला कुआं में 144.5, रेणुका जी 87.0, रिकांगपिओ 42 और कोटखाई में 30.1 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है।
किन्नौर के सांगला में फंसे 95 पर्यटकों को किया रेस्क्यू-
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में फंसे विदेशियों सहित कुल 95 पर्यटकों को पांच उड़ानों मेंसांगली से चोलिंग (किन्नौर) पहुंचाया गया है। हिमाचल प्रदेश पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि छठी उड़ान तैयार है। बचाव अभियान युद्ध स्तर पर चलाया जा रहा है। सेना और आईटीबीपी की टीम बचाव अभियान में सहयोग कर रही है।
4 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन-
लगातार हो रही बारिश से सबसे ज्यादा तबाही हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी और कुल्लू में हुई है. इस प्राकृतिक मार से राज्य को अब तक चार हजार करोड़ रुपए के नुकसान की आशंका है. हालांकि वास्तविक नुकसान के आकलन के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में कमेटी गठित की है. यह कमेटी नुकसान का सही आकलन करेगी. फिलहाल मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक हिमाचल को तीन हजार करोड़ रुपए से चार हजार करोड़ रुपए तक के नुकसान की बात कही है. आज हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू मंडी और कुल्लू जाकर नुकसान का जायजा लेंगे।
न्यूनतम तापमान-
शिमला में न्यूनतम तापमान 15.4, सुंदरनगर 22.0, भुंतर 18.0, कल्पा 11.1, धर्मशाला 19.2, ऊना 21.6, नाहन 20.9, पालमपुर 17.5, सोलन 19.5, मनाली 13.8, कांगड़ा 20.6, मंडी 21.5, बिलासपुर 21.0, चंबा 21.1, डलहौजी 14.5, कुफरी 14.4, रिकांगपिओ 14.2, धौलाकुआं 23.8, बरठी 23.1, मशोबरा 15.3 और देहरागोपीपुर में 15.0 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।